रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 1




इस उपन्यास को पूरा पढ़ना, जैसे एक चुनौती ही है। क्योंकि हर अगला पैराग्राफ़, इस रहस्यमय प्रेतकथा का रहस्य सुलझाने के बजाय, इसे और अधिक उलझा देता है। तो ये चुनौती स्वीकार करते हुये ही, अलौकिक जीवन पर आधारित ये मनोवैज्ञानिक उपन्यास पढ़िये।
जिन्दगी, और जिन्दगी से परे, के अनेक रहस्यमय पहलू अपने आप में समेटे हुये, ये लम्बी कहानी (लघु उपन्यास) दरअसल अपने रहस्यमय कथानक की भांति ही, अपने पीछे भी कहीं अज्ञात में, कहानी के अतिरिक्त, एक और ऐसा सच लिये हुये है।
जो इसी कहानी की भांति ही, अत्यन्त रहस्यमय है?
क्योंकि यह कहानी, सिर्फ़ एक कहानी न होकर, उन सभी घटनाक्रमों का एक माकूल जबाब था। नाटक का अन्त था, और पटाक्षेप था। जिसके बारे में सिर्फ़ गिने चुने लोग जानते थे, और वो भी ज्यों का त्यों नहीं जानते थे।
खैर..कहानी की शैली थोङी अलग, विचित्र सी, दिमाग घुमाने वाली, उलझा कर रख देने वाली है, और सबसे बङी खास बात ये कि भले ही आप घोर उत्सुकतावश जल्दी से कहानी का अन्त पहले पढ़ लें। मध्य, या बीच बीच में, कहीं भी पढ़ लें। जब तक आप पूरी कहानी को गहराई से समझ कर, शुरू से अन्त तक नही पढ़ लेते। कहानी समझ ही नहीं सकते।
और जैसा कि मेरे सभी लेखनों में होता है कि वे सामान्य दुनियावी लेखन की तरह न होकर विशिष्ट विषय और विशेष सामग्री लिये होते हैं।
यह उपन्यास आपको कैसा लगा तथा प्रसून के स्थान पर नया चरित्र नितिन कैसा लगा । इस संबंध में अपनी निष्पक्ष, बेबाक और अमूल्य राय से अवगत अवश्य करायें। 
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- राजीव श्रेष्ठ ।
      आगरा


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5 टिप्‍पणियां:

  1. क्या मस्त लिखा है अपने ramsarswat.blogspot.com

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  2. क्या है ये सब ?? काम वासना पर पचीस-तीस पेज ? हद हो गयी ..इससे स्पष्ट हो रहा है के यही अधिक महत्वपूर्ण है आपके लिए ..अगर इतनी मेहनत तुम तत्व ज्ञान और इश्वर प्राप्ति के बारे में करते तो अब तक बहुत उच्च स्थिति को प्राप्त किये होते ..

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