शुक्रवार, अप्रैल 22, 2011

चुङैल 5




जेनी बङी दिलचस्पी से यह स्टोरी सुन रही थी ।
और टीकम सिंह तो हैरत के मारे भौचक्का ही हो रहा था ।
कमरे के वातावरण में कभी कभी प्रसून की गहरी सांस लेने की आवाज ही सुनायी देती थी ।
- साहिब । वह जैसे भावुक होकर बोला - तेरे खेल न्यारे ।
- लेकिन मुखबिर की सूचना गलत थी । अल्ला फ़िर से बोली - बङी मुश्किल से विवाह वाली कन्या सीता का दहेज जमा हुआ था, और वह परिवार इस इकलौती कन्या के विवाह के चक्कर में कर्जदार हो चुका था ।
सरदार जैसा कट्टरदिल डाकू बुढ़िया की कहानी सुनकर पसीज गया । लेकिन तब तक होनी अपना खेल दिखा चुकी थी, और सीता का भाई गला कट जाने से मर गया था । बुढ़िया को जैसे ही ये पता चला, तो उसने हाय हाय करते हुये ‘इस नासमिटे का सत्यानाश हो जाय’ कहते हुये वहीं दम तोङ दिया । सरदार हतप्रभ रह गया । अच्छा खासा खुशी बधाईयों वाला घर मातम में बदल गया ।
सरदार तेजी से कुछ सोचता हुआ अन्य डाकुओं के साथ घोङों पर नहर के उस स्थान पर पहुँचा । जहाँ रोशनलाल से उसे मिलना था । उसे रोशनलाल पर बेहद गुस्सा था । क्योंकि डाकुओं के कानून के अनुसार औरतों बूढ़ों और बच्चों को मारना सरासर गलत था । रोशनलाल मिला तो, पर वह बेहद घबराया हुआ था । उसके अनुसार वह सोच रहा था कि उसके दल के लोग पीछे से आ रहे होंगे ।
पर पीछे कोई नहीं था । तब उस पर दूसरे गिरोह ने हमला करके उसका सारा माल छीन लिया । और उसने किसी तरह भागकर जान बचाई ।
इस दूसरी नयी बात से तो सरदार का खून ही खौल उठा । उसे यह भी लगा कि रोशन शायद झूठ बोल रहा हो । वहीं दोनों में तकरार बढ़ गयी, और सरदार ने रोशन को काटकर नहर में डाल दिया । इसके बाद तीसरे दिन रात को जब सरदार चुपके से दूसरे जेवर लेकर सीता के घर पहुँचा, तो उसने पेङ से लटक कर फ़ाँसी लगा ली थी । दुखी मन से सरदार लौट आया ।
तब से सरदार बहुत दुखी रहने लगा । वह इस पाप और बुढ़िया का शाप अपनी आत्मा पर बोझ की तरह महसूस करने लगा था । तब किसी साधु आत्मा ने उसे परामर्श दिया कि जो होना था, वह तो हो गया । अब अगर वह दस गरीब कन्याओं का विवाह धूमधाम से करवा दे, तो इस पाप का असर ना के बराबर रह जायेगा ।


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