रविवार, दिसंबर 18, 2011

महातांत्रिक और मृत्युदीप 4




- देख मंजरी । उसके कानों में अपनी सहेली सोनी की आवाज सुनाई दी मोस्टली, ये दो हरेक की जिन्दगी में कभी न कभी आते ही हैं, एक प्रेमी, एक पति । कभी पति पहले आता है, तो कभी प्रेमी, पर आते निश्चित हैं । और ये दोनों, कभी एक ही इंसान में नहीं होते, हो ही नहीं सकते ।
- लेकिन सोनी । वह हैरानी से बोली - मैं तो प्रेम का अनुभव करना चाहती हूँ । कोई ऐसा जो मेरे दिल के तार तार छेङ दे । मेरे तन-मन को उमंगों से भर दे । मुझे आगोश में लेकर आसमां में उङ जाये । चाँद तारे तोङकर मेरा आँचल सजा दे ।
- धत तेरे की । सोनी ने माथे पर हाथ मारा - साली गधी । अरे कोई तुझे बाग बगीचे में घुमाने वाला भी मिल जाये । कोई तुझे सेब अंगूर खिलाने वाला ही मिल जाये, उसको ही तू बहुत समझ । आसमान में जायेगी, पागल नहीं तो । मैं कहीं कवि न बन जाऊँ, तेरे इश्क में ऐ कविता ।
विचार प्रवाह से उकताकर उसने करवट बदली और सोने की कोशिश करने लगी ।
उन्नीस को पार कर रही मंजरी गोस्वामी खूबसूरत देहयष्टि की मालकिन थी, और सोसायटी में डीजे गर्ल के नाम से मशहूर थी । वह एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी, और बङे परिवार के साथ साथ आर्थिक स्थिति से कमजोर थी ।
तब पंद्रह वर्ष की आयु से ही वह आर्केस्ट्रा पार्टी से जुङकर नाचने गाने लगी ।
पर शायद पहले उसे अपनी ही खूबियों का पता न था । उसकी आवाज में वीणा की झंकार थी, तो देह में हिरनी सी लचक । उसके नृत्य में मोरनी की थिरक थी, तो अदाओं में बिजली की चमक । किसी को वह स्टेज पर उङती मैंना सी नजर आती थी, तो किसी को पंख फ़ङफ़ङाती हुयी बुलबुल ।
इन सब खूबियों के चलते उसका भाव बढने लगा, और जल्द ही वह सबसे महंगी आर्केस्ट्रा कलाकार बन गयी । धनाढ़य व्यक्ति किसी भी कीमत पर उसे अंकशायिनी बनाने के ख्वाब सजाने लगे । अप्रत्यक्ष उसके पास ऊँची कीमत के प्रस्ताव आने लगे ।
पर मंजरी भी खास स्वभाव वाली थी । देह को बेचने से उसे सख्त नफ़रत थी । उसकी सीमा सिर्फ़ गायन नृत्य प्रदर्शन तक ही तय थी । इससे पहले कि ये सीमा टूटती, उसकी शादी मध्यप्रदेश में हो गयी, और सब कुछ पीछे छोङकर वह ढेरों अरमान लिये पिया के घर आ गयी ।
विचारों में खोयी हुयी मंजरी अचानक हङबङा गयी ।
उसने सीने पर तेज कम्पन महसूस किया ।
वह एकदम व्यर्थ ही डर सी गयी थी ।
उसने वायब्रेट करते हुये ब्रा में दबे स्लिम सेलफ़ोन को निकालकर काल रिसीव की ।
- क्याऽ? वह चौंककर बोली - फ़िर..फ़िर.. ये क्या कह रहे हो तुम?
दूसरी तरफ़ से पुष्कर की बात सुनकर उसके होश उङ गये ।
वह काफ़ी हताश निराश दुखी सा था, और अपनी बात कहे चले जा रहा था ।
पर अब उसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था ।
कुछ भी ।
वह तो मानों अज्ञात रहस्यमय भंवर में डूबती जा रही थी ।
वह कह रहा था - रात में जब वह हङबङी में मस्जिद के कोने से मुङा ही था । तभी उसे जमीन में गङे पत्थर की जबरदस्त ठोकर लगी, और वह मुँह के बल गिरा ।
उसका माथा फ़ट गया, और वह काफ़ी देर अचेत सा पङा रहा । बहुत खून बह गया । फिर किसी तरह वह घर पहुँचा, और अभी थोङा सुधार होते ही सीधा उसी को फ़ोन कर रहा है ।
बङी अजीब बात थी ।
उसे संवेदना प्रकट करनी चाहिये थी । पर उसके मुँह से बोल तक न निकल रहा था ।
उसके दिमाग में डरावनी सांय सांय गूँज रही थी ।
- हे भगवान । वह अचानक उछल ही पङी ।
उस समय की सम्मोहक कामवासना में उसका ध्यान ही नहीं गया ।
अब तक की दिमागी उथल पुथल ने उसे सोचने का मौका ही नहीं दिया ।
और तब उसके समस्त शरीर में एक भयानक झुरझुरी सी दौङ गयी ।
वह मुर्दा जैसी बदबू ।
उसके स्पर्श का लीचङ अहसास । उसके स्पर्श का अजनबीपन ।
और..और उसका स्वर भी ।
सब कुछ अलग था ।
वह सब पुष्कर का हरगिज नहीं था ।


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