सोमवार, अगस्त 22, 2011

अंगिया वेताल 2



वह सचेत होना चाहती थी । पर वह जादुई कामुक स्पर्श उसकी आँखें बन्द कराता हुआ एक मीठी बेहोशी में ले जा रहा था । वह अज्ञात पुरुष उसके पुष्ट वक्षों को हवा के स्पर्श की तरह सहला रहा था, और उसके जादुई हाथ घूमते हुये कमर तक जा पहुँचे थे ।
- रूपा..। वह मानो उसके मस्तिष्क में बोला - लेट जाओ, और उस वर्जित काम का आनन्द लो, जो इस सृष्टि निर्माण का प्रमुख कारण था ।
- हं हं..हाँ । भरपूर सम्मोहन अवस्था में कहते हुये रूपा ने अपने कपङे हटाये, और लरजती आवाज में बोली - पर कौन हो तुम?
- स्स्स्पर्श । उसके दिमाग में ध्वनि हुयी - एक अतृप्त आत्मा ।
रूपा खोई खोई सी लेट गयी ।
स्पर्श उसको सहलाने लगा । उसके समस्त शरीर में कामसंचार होने लगा ।
- र रूप पा । वह उसकी नाभि से हाथ ले जाता हुआ बोला - अप्सराओं सा यौवन है तुम्हारा । मैंने इतनी सुन्दर कोई चुङैल आज तक नहीं देखी ।
उसकी आँखे बन्द होने लगी ।
उसने अपने दोनों पैर उठाते हुये नब्बे अंश से भी अधिक मोङ लिये ।
फ़िर उसके मुँह से घुटी घुटी सी चीख निकल गयी ।
उसका शरीर तेजी से हिला, और वह शिथिल होती गयी ।
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- हा..। अचानक अपने बेडरूम में सोती हुयी रूपा एक झटके से उठकर बैठ गयी ।
उसका पूरा शरीर पसीने से नहाया हुआ था ।
उसने दीवाल घङी में समय देखा ।
दोपहर के दो बजने वाले थे, और वह ग्यारह बजे से गहरी नींद में सोई हुयी थी । कल रात वह इतना थक गयी थी, मानो हजारों मील की लम्बी यात्रा करके आयी हो, और अभी भी उसका बदन आलस और पीङा से टूट रहा था ।
स्पर्श ने प्रथम मुलाकात में ही उसे असीम तृप्ति का अहसास कराया था । मचान के नीचे उसके साथ खेलने के बाद वह उसे नदी के घुमावदार मोङ पर गहरे पानी में ले गया । वह निर्वस्त्र ही मूसलाधार बारिश में चलती हुयी वहाँ तक गयी । अपने कुर्ता शलवार उसने बैग में डाल लिये थे ।
वह नदी के गहरे पानी में उतर गयी, और मुक्तभाव से तैरने लगी । घर जाने की बात जैसे वह बिलकुल भूल चुकी थी । स्पर्श उसके साथ था, और उसके मादक अंगों से खिलवाङ कर रहा था ।
पर अब उसे कोई संकोच नहीं हो रहा था, और वह प्रेमिका की तरह उसका सहयोग कर रही थी । तब स्पर्श ने नदी के गहरे पानी में उससे खेलना शुरू कर दिया ।
यह उसके जीवन का एक अनोखा अनुभव था । काम सम्बन्धों के बारे में उसने अब तक सिर्फ़ सुना था, पर आज वह उसके अनुभव में आया था ।


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