सोमवार, अगस्त 22, 2011

अंगिया वेताल 3



छह महीने बाद ।
चोखेलाल भगत चालीस साल का हट्टा कट्टा आदमी था, और जवान औरतों का बेहद रसिया था । वह अपने परिचितों में भगत जी के नाम से मशहूर था । वास्तव में वह एक छोटा मोटा तांत्रिक था । पर यह बात अलग है कि वह अपने आपको बहुत बङा सिद्ध समझता था ।
चोखा भगत दीनदयाल शर्मा के घर अक्सर ही आता जाता रहता था । जहाँ उसे भगत होने के कारण अच्छा खासा सम्मान मिलता था । लेकिन भगत की बुरी निगाह दीनदयाल की सुन्दर बेटी रूपा के ऊपर थी । पर उसे पाने की कोई कामयाबी उसे अब तक न मिली थी, और न ही मिलने की आशा थी । क्योंकि वह एकदम नादान और भोले स्वभाव की थी ।
और अगर वह मनचले स्वभाव की होती, तो भी आधे बुढ्ढे भगत के प्रति उसके आकर्षित होने का कोई प्रश्न ही न था । लिहाजा चोखा मन मारकर रह जाता । चोखा ने अपने जीवन में कई औरतों को भोगा था, और वास्तव में वह भगतगीरी में आया ही इसी उद्देश्य से था । पर रूपा जैसा रूप यौवन आज तक उसकी निगाहों में न आया था ।
तब अपनी इसी बेलगाम हसरत को लिये वह रूपा के घर आँखों से ही उसका सौन्दर्यपान करने हेतु आ जाता था, और यदाकदा झलक जाते उसके स्तन आदि को देखता हुआ सुख पाता था ।
रूपा की भाभी मालती चोखा भगत से लगी हुयी थी ।
मालती का पति भी आधा सन्यासी हो चुका था, और घर में उमंगों से भरी बीबी को छोङकर फ़ालतू में इधर उधर घूमता था । मालती दबी जबान में उसके पुरुषत्वहीन होने की बात भी कहती थी । चोखा मालती से रूपा को पाने के लिये उसे बहकाने फ़ुसलाने के लिये अक्सर जोर देता था ।
पर अब तक कोई बात बनी नही थी ।
आज ऐसे ही ख्यालों में डूबा हुआ चोखा फ़िर से रूपा के घर आया था, और आँगन में बिछी चारपायी पर बैठा था । मालती उसको उत्तेजित कर सुख पहुँचाने हेतु जानबूझ कर ऐसे बैठी थी कि घुटने से दबे उसके स्तन आधे बाहर आ गये थे ।

दोपहर के तीन बजने वाले थे ।
रूपा कुछ ही देर पहले स्कूल से लौटी थी, और कपङे आदि बदल कर वह मालती के पास ही आकर बैठ गयी । भगत की नजरें मालती से हटकर स्वतः ही रूपा के सुन्दर मुखङे पर जम गयी, और अचानक वह बुरी तरह चौंक गया ।
- मसान । उसके मुँह से निकला, और वह गौर से रूपा के माथे पर देखने लगा ।
पर उसके मुँह से निकले शब्द को यकायक न कोई समझ पाया, न सुन पाया ।
भगत ने इधर उधर देखा, सब अपने काम में लगे हुये थे । रूपा की माँ सामने ही कुछ दूर रसोई की तरफ़ मुँह किये चाय पी रही थी । दीनदयाल घर पर नही थे । बस कुछ बच्चे ही मौजूद थे ।
तब भगत ने रूपा की माँ को आवाज दी - ओ पंडितानी सुनियो, तनिक गंगाजल लाओ ।
उसने रूपा की माँ से गंगाजल मँगाया ।
पंडितानी हैरत से उसको देखते हुये गंगाजल ले आयी थी ।
भगत ने थोङा सा गंगाजल अंजुली में लिया, और मन्त्र पढ़कर गंगाजल रूपा की ओर उछाल दिया । गंगाजल के बहुत से छींटे रूपा के सुन्दर मुख पर जाकर गिरे, और वह बेपेंदी के लोटे की तरह लुढ़कती हुयी भगत की तरफ़ आ गयी ।


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