रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 22




कल उसने एक बङा अजीब सा निर्णय लिया था ।
वह अच्छी तरह जान गया था कि वह चाहे सालों लगा रहे, इस बेहद रहस्यमय फ़ैमिली की, इस देवर भाभी की रहस्य कथा, या फ़िर देवर भाभी प्रेत रहस्य कथा को किसी तरह नहीं जान पायेगा । तब उसने कुछ अजीब सा, अलग हटकर सोचा, और उन्हीं के घर में कमरा लेकर बतौर किरायेदार रहने लगा ।
और अभी वे सब छत पर बैठे थे ।
उसे ये भी बङा रहस्य लगा कि उन दोनों ने उसके बारे में जानने की कोई कोशिश नहीं की ।
वह कहाँ रहता है ? उसके परिवार में कौन है ?
उसने कहा कि वह स्टूडेंट है, और उनके यहाँ रहना चाहता है, और वे मान गये ।
वह कुछ किताबें, कपङे और स्कूटर के साथ वहाँ आ गया । अन्य छोटे मोटे सामान उन देवर भाभी ने उसे घर से ही दे दिये थे ।
गौर से देखा जाये, तो हर आदमी की जिन्दगी सिर्फ़ एक प्रश्नात्मक जिज्ञासा से बना फ़ल मात्र है ।
आगे क्या, ये क्या, वो क्या, ये अच्छा, ये बुरा, जैसे प्रश्न उत्तरों में उलझता हुआ वह जन्म दर जन्म यात्रा करता ही जाता है । और कभी ये नहीं सोच पाता कि हर प्रश्न वह स्वयं ही पैदा कर रहा है, और फ़िर स्वयं ही हल कर रहा है । उसका स्वयं ही उत्तर भी दे रहा है ।
बस उसे ये भ्रम हो जाता है कि प्रश्न उसका है, और उत्तर किसी और का ।
प्रश्न उत्तर, शायद इसी का नाम जीवन है ।
प्रश्न उत्तर, सिर्फ़ उसकी एक जिज्ञासा ही, आज उसे इस घर में ले आयी थी ।
यकायक एक बङी सोच बन गयी थी उसकी । अगर वह ये प्रश्न हल कर सका, तो शायद जिन्दगी के प्रश्न को ही हल कर लेगा । बात देखने में छोटी सी लग रही थी, पर बात उसकी नजर में बहुत बढ़ी थी । इसका हल हो जाना, उसकी आगे की जिन्दगी को सरल पढ़ाई में बदल सकता है । जिसके हर इम्तहान में फ़िर वह अतिरिक्त योग्यता के साथ पास होने वाला था, और यही तो सब चाहते हैं ।
फ़िर उसने क्या गलत किया था ?
अब बस उसकी सोच इतनी ही थी, कि अब तक जो वह मनोज के मुँह से सुनता रहा था । उसका चश्मदीद गवाह वह खुद होगा कि आखिर इस घर में क्या खेल चल रहा है ?
रात के आठ बज चुके थे ।
मनोज कहीं बाहर निकल गया था, पर वह कुछ घुटन सी महसूस करता खुली छत पर आ गया ।
पदमा नीचे काम में व्यस्त थी ।
अपने घर में एक नये अपरिचित युवक में स्वाभाविक दिलचस्पी लेते हुये अनुराग भी ऊपर चला आया, और उसी के पास कुर्सी पर बैठ गया ।
- मनोज जी से मेरी मुलाकात । वह उसकी जिज्ञासा का साफ़ साफ़ उत्तर देता हुआ बोला - नदी के पास शमशान में हुयी थी, जहाँ मैं नदी के पुल पर अक्सर घूमने चला जाता हूँ । मनोज को शमशान में खङे बूढ़े पीपल के नीचे एक दीपक जलाते देखकर मेरी जिज्ञासा बनी कि ये क्या है ? यानी इस दीपक को जलाने का क्या मतलब है ?
लेकिन उसने अपनी तंत्र मंत्र दिलचस्पी आदि के बारे में कुछ न बताया ।
- ओह । अनुराग जैसे सब कुछ समझ गया - कुछ नहीं जी, कुछ नहीं, नितिन जी आप पढ़े लिखे इंसान हो, ये सब फ़ालतू की बातें हैं, कुछ नहीं होता इनसे । पहली बात भूत-प्रेत जैसा कुछ होता है, मैं नहीं मानता, और यदि होता भी है, तो वो इन दीपक से भला कैसे खत्म हो जायेगा ?
फ़िर आप सोच रहे होंगे कि हमारी कथनी और करनी में विरोधाभास क्यों ? क्योंकि दीपक तो मेरा भाई मनोज ही जलाने जाता है ।
बात ये है कि लगभग चार साल पहले ही पदमा से मेरी शादी हुयी है, और लगभग उसी समय ये बना बनाया घर मैंने खरीदा था, और हम किराये के मकान से अपने घर में रहने लगे थे । सब कुछ ठीक चल रहा था, और अभी भी ठीक ही है । पर कभी कभी, अण्डरस्टेंड..कभी कभी मेरी वाइफ़ कुछ अजीब सी हो जाती है.. एज ए हिस्टीरिया पेशेंट, यू नो हिस्टीरिया ?
वह सेक्स के समय, या फ़िर किसी काम को करते करते, या सोते सोते ही अचानक अजीब सा व्यवहार करने लगती है ।


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