सोमवार, सितंबर 19, 2011

तांत्रिक का बदला 1



पाठकों के बेहद चहेते, प्रसून सीरीज का नवीनतम उपन्यास एक बार फ़िर आपके समक्ष है। और आशा है कि अन्य उपन्यासों की तरह यह उपन्यास भी आपको बेहद पसन्द आयेगा। एक बार फ़िर से बता दूँ कि पाठकों द्वारा बहु प्रतीक्षित उपन्यास ‘ओमियो तारा’ अपरिहार्य कारणोंवश शीघ्र और समय पर पूरा न हो सका। जिसका कि मुझे हार्दिक खेद है। मेरी कोशिश रहेगी कि यथाशीघ्र इस कहानी को पाठकों को उपलब्ध करा सकूँ। ओमियो तारा 4D यानी चतुर्थ आयामी दुनियां की एक रहस्य दर रहस्य परतों वाली कहानी है। जो 4D के बारे में दिलचस्प जानकारियां उपलब्ध कराती है।
प्रस्तुत उपन्यास के सम्बन्ध में यही कहना है कि भूत-प्रेतों के अस्तित्व को लेकर प्रत्येक इंसान में एक अजीब सी उत्सुकता, अजीब सा भय, अजीब सा रोमांच होता है। सदियों से भूत-प्रेत अपनी गतिविधियों और विभिन्न प्रकार की अलौकिक घटनाओं को लेकर मनुष्य के भय मिश्रित आकर्षण और जिज्ञासा का कारण रहे हैं।
बहुत पुराने समय से ही, धार्मिक साहित्य भी भूत-प्रेतों को मान्यता देता रहा है, और इस सम्बन्ध में ऐतिहासिक रूप से अनेक विवरण भी मिलते हैं। क्योंकि इंसान के लिये भूत-प्रेत सृष्टि की दूसरी अन्य चीजों के समान दृश्य नहीं होते, अतः कभी भी उनका अस्तित्व निर्विवाद सिद्ध नहीं होता।
अलबत्ता विश्व के तमाम भागों में बसे स्त्री पुरुषों में से कई इन अदृश्य ‘वायु रूहों’ से किसी न किसी तरह परिचित हुये, और गाहे बगाहे अच्छे बुरे परिणाम के साथ प्रभावित भी हुये होते हैं। मौजूदा लम्बी कहानी ‘तांत्रिक का बदला’ भूत प्रेत और उनके इंसानी जीवन से सम्बन्ध सरोकारों को लेकर है।
बेहद खुशी की बात है कि प्रसून को आपने न सिर्फ़ पसन्द बल्कि बेहद पसन्द किया। और उससे जुङे कारनामों का पाठकों को बेसबरी से इंतजार रहता है। अतः जैसे जैसे सम्भव होगा मैं इस तरह के कथानक आपको उपलब्ध कराने की कोशिश करूँगा ।
- राजीव श्रेष्ठ
      आगरा


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तांत्रिक का बदला 2



कामाक्षा मन्दिर अजीब स्टायल में बना था ।
एक बेहद ऊँची पहाङी के ठीक पीछे उसकी तलहटी में बना ये मन्दिर हर दृष्टि से अजीब था । मन्दिर की सबसे ऊपरी तिमंजिला छत और पहाङी की चोटी लगभग बराबर थी । वह पहाङी घूमकर मन्दिर से इस तरह सटी हुयी थी कि मन्दिर की इस छत से सीधा पहाङी पर जा सकते थे ।
पहाङी के बाद लगभग एक किमी तक छोटी बङी अन्य पहाङियों का सिलसिला था, और उनके बीच में कई तरह के जंगली वृक्ष झाङियाँ आदि किसी छोटे जंगल के समान उगे हुये थे । इस छोटे से पहाङी जंगल के बाद बायपास रोड था, जिस पर चौबीसों घन्टे वाहनों का आना जाना रहता था ।
मन्दिर के बैक साइड में कुछ ही दूर चलकर यमुना नदी थी । यहाँ यमुना का पाट लगभग तीन सौ मीटर चौङा हो गया था, और गहराई बहुत ज्यादा ही थी । यमुना पार करके कुछ दूर तक खेतों का सिलसिला था । फ़िर एक बङा मैदान और लम्बी चौङी ऊसर जमीन थी । इसी ऊसर जमीन पर बहुत पुराना शमशान था, और इसके बाद शालिमपुर नाम का गाँव था ।
वह उठकर टहलने लगा ।
उसने एक सिगरेट सुलगाई, और हल्का सा कश लिया । मगर तेज बुखार में वह सिगरेट उसे एकदम बेकार बेमजा सी लगी । उसने सिगरेट को पहाङी की तरफ़ उछाल दिया, और यमुना के पार दृष्टि दौङाई । दूर शालिमपुर गाँव में जगह जगह जलते बल्ब किसी जुगनू की भांति टिमटिमा रहे थे ।
शमशान में किसी की चिता जल रही थी ।
चिता..इंसान को सभी चिन्ताओं से मुक्त कर देने वाली चिता ।
एक दिन उसकी भी चिता जल जाने वाली थी, और तब वह जीता जागता चलता फ़िरता माटी का पुतला फ़िर से माटी में मिल जाने वाला था ।
क्या इस जीवन की कहानी बस इतनी ही है?
किसी फ़िल्मी परदे पर चलती फ़िल्म ।
शो शुरू, फ़िल्म शुरू । शो खत्म, फ़िल्म खत्म ।
वह पिछले आठ दिनों से कामाक्षा में रुका हुआ था, और शायद बेमकसद ही यहाँ आया था । अब तो उसे लगने लगा था कि उसकी जिन्दगी ही बेमकसद थी ।
क्या मकसद है इस जिन्दगी का?
‘ओमियो तारा’ की कैद में बिताये जीवन के दिनों ने उसकी सोच ही बदल दी थी ।
और तब उसे लगा था कि शायद सब कुछ बेकार ही है, सब कुछ । सत्य शायद कुछ भी नहीं है, और कहीं भी नहीं है ।
वह तीन आसमान तक पहुँच रखने वाला योगी था ।
हजारों लोकों में स्वेच्छा से आता जाता था । पर इससे उसे क्या हासिल हुआ था, कुछ भी तो नहीं । ये ठीक ऐसा ही था, जैसे प्रथ्वी के धनकुबेर अपने निजी जेट विमानों से कुछ ही देर में प्रथ्वी के किसी भी स्थान पर पहुँच जाते थे ।
लेकिन उससे क्या था । प्रथ्वी वही थी, सब कुछ वही था ।
फ़िर सत्य कहाँ था, सत्य कहाँ है?
वह तमाम लोकों में गया ।
सब जगह, सब कुछ, यही तो था ।
वही सूक्ष्म स्त्री पुरुष, वही कामवासना, वैसा ही जीवन, सब कुछ वैसा ही ।
क्या फ़र्क पङना था, अगर अपनी कुछ योग उपलब्धियों के बाद वह इनमें से किसी लोक का वासी हो जाता, और लम्बे समय के लिये हो जाता ।
मगर अभी तलाश पूरी कहाँ हुयी थी ।
वह तलाश, जिसके लिये उसने अपना जीवन ही दाव पर लगाया था ।
सत्य की खोज, आखिर सत्य क्या है?


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तांत्रिक का बदला 3


तभी उसे सीढ़ियों पर किसी के आने की आहट हुयी ।
कुछ ही क्षणों में चाऊँ बाबा किसी अनजाने आदमी के साथ ऊपर आया ।
उसके हाथ में चाय से भरे दो गिलास थे । वे दोनों वहीं पङी बेंच पर बैठ गये ।
चाऊँ ने उसका हाथ थाम कर बुखार देखा, और आश्चर्य से चीखते चीखते बचा ।
प्रसून का बदन किसी तपती भट्टी के समान दहक रहा था ।
उसने प्रसून के चेहरे की तरफ़ गौर से देखा, पर वह एकदम शान्त था ।
बस पिछले कुछ दिनों से उदासी स्थायी रूप से उसके चेहरे पर छाई हुयी थी ।
- आप कुछ औषधि क्यों नहीं लेते? चाऊँ बेहद सहानुभूति से बोला ।
प्रसून ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
उसका चेहरा एकदम भावशून्य था ।
वह यमुना पार के शमशान में जलती हुयी चिता को देखने लगा ।
चाऊँ ने साथ आये आदमी का उससे परिचय कराया, और रात के खाने के लिये उससे पूछा । जिसके लिये उसने साफ़ मना कर दिया ।
तब चाऊँ नीचे चला गया ।
प्रसून धीरे धीरे चाय सिप करने लगा ।
बाबा लोगों की इस खास तीखी चाय ने उसे राहत सी दी ।
दूसरे आदमी का नाम महावीर था ।
और वह इस जलती चिता के पार बसे शालिमपुर गाँव का ही रहने वाला था ।
चाऊँ से यह जानकर कि प्रसून एक पहुँचा हुआ योगी है । उच्चस्तर का तान्त्रिक मान्त्रिक है । उसे प्रसून से मिलने की जबरदस्त इच्छा हुयी, और वह ऊपर चला आया ।
पर प्रसून को देखकर उसे बङी हैरत हुयी ।
वह किसी बङी दाढ़ी, लम्बे केश, और महात्मा जैसी साधुई वेशभूषा की कल्पना करता हुआ ऊपर आया था, और चाऊँ के मुँह से उसकी बढ़ाई सुनकर श्रद्धा से उसके पैरों में लौट जाने की इच्छा रखता था ।
पर सामने जींस और ढीली ढाली शर्ट पहने इस फ़िल्मी हीरो को देखकर उसकी सारी श्रद्धा कपूर के धुँये की भांति उङ गयी, और जैसे तैसे वह मुश्किल से नमस्कार ही कर सका ।
महावीर धीरे धीरे चाय के घूँट भरता हुआ प्रसून को देख रहा था ।
और प्रसून रह रहकर उस जलती चिता को देख रहा था ।
क्या गति हुयी होगी इस मरने वाले की । जीवन की परीक्षा में यह पास हुआ होगा, या फ़ेल । यमदूतों से पिट रहा होगा, या बाइज्जत गया होगा, या सीधा ही चौरासी लाख योनियों में फ़ेंक दिया गया होगा ।
- वह सुरेश था । अचानक महावीर की आवाज सुनकर उसकी तन्द्रा भंग हुयी ।
महावीर ने उसकी निगाह का लक्ष्य समझ लिया था ।
अतः उसके पीछे पीछे उसने भी जलती चिता को देखा, और बोला - मेरा खास परिचय वाला था । पर किसी विशेष कारणवश मैं.. । उसने चिता की तरफ़ उँगली की - इस अंतिम संस्कार में नहीं गया । कल तक अच्छा खासा था, जवान था, पठ्ठा था । चलता था, तो धरती हिलाता था । और बङा अच्छा इंसान था, आज खत्म हो गया । कहते हैं ना, मौत और ग्राहक के आने का कोई समय नहीं होता । अपने पीछे दो बच्चों और जवान बीबी को छोङ गया है ।
- कैसे मरे? प्रसून भावहीन स्वर में निगाह हटाये बिना ही बोला ।
- अब कहें, तो बङा ताज्जुब सा ही है । बस दोपहर को बैठे बैठे अचानक सीने में दर्द उठा । घबराहट सी महसूस हुयी । एक छोटी सी उल्टी भी हुयी, जिसमें थोङा सा खून भी आया । लोग तेजी से डाक्टर के पास शहर ले जाने को हुये । मगर तब तक पंछी पिजरा खाली करके उङ गया । पता तो तभी लग गया था, अब इसमें कुछ नहीं रहा । मगर फ़िर भी गाङी में डालकर डाक्टर के पास ले गये । डाक्टर ने छूते ही बता दिया, मर गया है, ले जाओ ।
वापस घर ले आये, घर से वहाँ ले आये.. । कहते कहते महावीर ने चिता की तरफ़ उँगली उठाई - वहाँ, जहाँ से अब कहीं नहीं ले जाना । देखिये ना कितने आश्चर्य की बात है । आज सुबह तक ऐसा कुछ भी किसी को नहीं मालूम था । सुबह मैं इसको चलते हुये देख रहा था, और अब जलते हुये देख रहा हूँ । इसी को कहते हैं ना, खबर नहीं पल की, तू बात करे कल की ।


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तांत्रिक का बदला 4



मेरा ख्याल है कि भूत-प्रेत जैसा कुछ नहीं होता, यह सब आदमी के दिमाग की उपज है, निरा भ्रम है, और किवदन्तियों से बन गयी महज एक कल्पना ही है । आपका क्या ख्याल है इस बारे में?
बरबस ही प्रसून की निगाह शमशान क्षेत्र के आसपास घूमते हुये रात्रिचर प्रेतों पर चली गयी, जहाँ कुछ छोटे प्रेतगणों का झुँड घूम रहा था ।
चिता का जलना अब समाप्ति पर आ पहुँचा था ।
उसने कलाई घङी पर निगाह डाली ।
दस बजने वाले थे ।
- सही हैं । फ़िर वह बोला - आपके विचार एकदम सही हैं, भूत प्रेत जैसा कुछ नहीं होता । यह आदमी की, आदमी द्वारा रोमांच पैदा करने को की गयी कल्पना भर ही है, अगर भूत होते ।.. वह फ़िर से प्रेतों को देखता हुआ बोला - तो कभी न कभी, किसी न किसी को, दिखाई तो देते । उनका कोई सबूत होता, कोई फ़ोटो होता, अन्य कैसा भी कुछ तो होता । जाहिर है, यह समाज में फ़ैला निरा अँधविश्वास ही है ।
महावीर किसी विजेता की तरह मुस्कराया ।
उसने प्रसून से बिना पूछे ही उसके सिगरेट केस से सिगरेट निकाली, और सुलगाता हुआ बोला - ये हुयी ना पढ़े लिखों वाली बात, वरना भारत के लोगों का बस चले, तो हर आदमी को भूत बता दें, और हर औरत को चुङैल । आपकी बात ने तो मानों मेरे सीने से बोझ ही उतार दिया, मेरा सारा डर ही खत्म कर दिया, सारा डर ही । मैं खामखाह कुछ अजीब से ख्यालों से डर रहा था ।
- कैसे ख्याल । प्रसून उत्सुकता से बोला - मैं कुछ समझा नहीं ।
- अ अरे व वो कुछ नहीं । महावीर लापरवाही से बोला - जैसे आपने किसी को मरते मारते देख लिया हो, और आपको ख्याल आने लगे कि कहीं ये बन्दा भूत सूत बनकर तो नहीं सतायेगा । हा हा हा..ऐसे ही फ़ालतू के ख्यालात, एकदम फ़ालतू बातें, दिमाग में अक्सर आ ही जाती हैं ।
प्रसून चुप ही रहा ।
उसने बची हुयी सिगरेट फ़ेंक दी, और उँगलियां चटकाने लगा ।
- लेकिन ! महावीर फ़िर से बोला लेकिन, आपकी बात से यह तो सिद्ध हुआ कि भूत प्रेत नहीं होते । परन्तु, फ़िर आजकल पिछले कुछ समय से जो मेरे साथ हो रहा है, वह क्या है, वह कौन है? प्रसून जी, आप जानना चाहोगे?
प्रसून ने आसमान में चमकते तारों को देखा ।
उसने अपने बालों में उँगलिया घुमाई, और फ़िर महावीर की तरफ़ देखने लगा ।
उसके देखने का आशय समझते ही महावीर के सामने जैसे गुजरा हुआ समय प्रत्यक्ष हो उठा ।


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तांत्रिक का बदला 5




रात के ग्यारह बजे का समय होने जा रहा था । पर महावीर की आँखों में दूर दूर तक नींद का नामोनिशान नहीं था । वह अपने गाँव शालिमपुर से छ्ह किमी दूर अपने टयूबबैल पर लेटा हुआ था । अक्सर ही वह इस टयूबबैल पर लेटता था । कभी कभी उसके चार भाईयों में से भी कोई लेट जाता था ।
पर अभी कुछ दिनों से उसके भाईयों को यहाँ लेटने में एक अजीब सा भय महसूस होने लगा था । वे कहते थे कि उनकी आम महुआ की बगीची की तरफ़ से कोई औरत सफ़ेद साङी पहने हुये अक्सर टयूबबैल की तरफ़ आती दिखाई देती, और तब अक्सर रात के एक दो बजे का समय होता था ।
हैरानी की बात ये थी कि जब वह दिखना शुरू होती, तब वे गहरी नींद में होते थे । उसी नींद में, वह उसी तरह महुआ बगीची की तरफ़ से चलकर आती, और उन्हें जागते हुये की तरह ही दिखाई देती । उसके दिखते ही किसी चमत्कार की तरह उनकी नींद खुल जाती, और वे उठकर बैठ जाते ।
लेकिन बस उनके आँखें बन्द और खुले होने का फ़र्क हो जाता था ।
बाकी वह रहस्यमय औरत ठीक उसी स्थान पर होती, जहाँ वह आँखें बन्द होने की अवस्था में होती  । उसको देखते ही उनके शरीर के सभी रोंगटे खङे हो जाते । और  उन्हें एकाएक ऐसा भी लगता कि उन्हें तेज पेशाब सी लग रही है, मगर वह वहीं के वहीं मन्त्रमुग्ध से बैठे रह जाते ।
फ़िर वह औरत एक उँगली मोङकर उन्हें पास बुलाने का इशारा करती, कामुक इशारे भी करती, पर भयवश वे उसके पास नहीं जाते थे । तब वह खीजकर एक उँगली को चाकू की तरह गरदन पर फ़ेरकर इशारा करती कि वह उन्हें काट डालेगी । फ़िर वह इधर उधर चक्कर लगाकर वापस बगिया के पीछे जाकर कहीं खो जाती थी ।
ऐसा अनुभव होते ही उसके भाईयों ने टयूबबैल पर लेटना बन्द कर दिया ।
उसका भाई घनश्याम तो रात के उसी टाइम टयूबबैल छोङकर घर भाग आया था, और दोबारा नहीं लेटा । दूसरा पटवारी तीन चार दिन हिम्मत करके लेटा, फ़िर उसकी भी हिम्मत जबाब दे गयी । वह अचानक बीमार भी हो गया, और छोटा तो भूतों के नाम से ही काँपता था ।
सो अब यह जिम्मेवारी महावीर पर ही आ गयी थी ।
लेकिन उन सबके देखे महावीर दिलेर था । और वह भूत प्रेतों को नहीं मानता था ।


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तांत्रिक का बदला 6



आज तो उसे नींद ही नहीं आ रही थी, और वह एक अजीब सी बैचेनी महसूस कर रहा था ।
अतः वह चारपाई पर ही उठ कर बैठ गया, और बीङी सुलगाकर उसका कश लेते हुये दिमाग को संयत करने की कोशिश करने लगा । फ़िर उसने थोङी दूर स्थिति महुआ बगीची को देखा ।
बगीची के आसपास एकदम शान्ति छाई हुयी थी ।
रात के काले अँधेरे में सभी पेङ रहस्यमय प्रेत के समान शान्त खङे थे ।
वह उठकर टहलने लगा । रिवाल्वर उसने कमर में लगा ली, और बीङी का धुँआ छोङते हुये इधर उधर देखने लगा । तभी उसकी निगाह यमुना पारी शमशान की तरफ़ गयी, और वह बुरी तरह चौंक गया ।
नीम और शीशम के दो पेङों के बीच एक मँझले कद की औरत दो छोटे छोटे बच्चों के साथ घूम रही थी । अभी रात के लगभग बारह बजने वाले थे, और यह औरत अकेली यहाँ इन छोटे छोटे बच्चों के साथ क्या कर रही थी । जहाँ इस वक्त कोई आदमी भी अकेले में आता हुआ घबराता है ।
और यह ठीक वैसा ही दृश्य था, जैसे कोई औरत अपने खेलते हुये बच्चों की निगरानी कर रही हो । वह इसका पता लगाने के लिये वहाँ जाना चाहता था, पर उसकी हिम्मत न हुयी ।
वह कुछ देर तक उन्हें देखता रहा । फ़िर वे लोग अंधेरे में गायब हो गये ।
दो बच्चों के साथ इस रहस्यमय औरत ने उसे और भी भयानक सस्पेंस में डाल दिया था ।
क्या माजरा था, क्या रहस्य था?
उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था ।
अब उसे भी टयूबबैल पर लेटते हुये भय लगने लगा ।
पर वह यह बात भला किससे और कैसे कहता । अतः उसे मजबूरी में लेटना पङता । लेकिन वह बिलकुल नहीं सो पाता था ।
वह काली नग्न औरत, और वह दो बच्चों वाली रहस्यमय औरत, उसे अक्सर दिखायी देते । परन्तु जाने किस अज्ञात भावना से यह बात वह अब तक किसी को भी न बता सका ।
इतना बताकर वह चुप हो गया, और आशा भरी नजरों से प्रसून को देखने लगा ।
पर उसे उसके चेहरे पर कोई खास भाव नजर नहीं आया ।
जबकि वह इस सम्बन्ध में सब कुछ जानने की आशा कर रहा था ।
तब उसने अपनी तरफ़ से ही पूछा ।
- कुछ खास नहीं । प्रसून लापरवाही से बोला - कभी कभी ऐसे भ्रम हो ही जाते हैं । जैसे तेज धूप में रेगिस्तान में पानी नजर आता है, पर होता नहीं है । जिन्दगी एक सपना ही तो है, और सपने में कुछ भी दिखाई दे सकता है, कुछ भी ।
महावीर उसके उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ, मगर आगे कुछ नहीं बोला ।


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तांत्रिक का बदला 7


उसकी निगाह फ़िर से शमशान की तरफ़ गयी, और अबकी बार वह चौंक गया ।
उसके सामने एक अजीब दृश्य था ।
कपालिनी, कामारिका और कंकालिनी नाम से पुकारी जाने वाली तीन प्रेतगणें शमशान वाले रास्ते पर जा रही थीं । पर उसके लिये ये चौंकने जैसी कोई बात नहीं थी । चौंकने वाली बात ये थी कि वे रास्ते से कुछ हटकर खङी एक मँझले कद की औरत को धमका सा रही थी । औरत के पास ही दो छोटे बच्चे थे, और वह औरत उनके हाथ जोङ रही थी ।
कामारिका आगे खङी थी, और उस औरत के गाल पर थप्पङ मार रही थी । फ़िर उसने औरत के बाल पकङ लिये, और तेजी से उसे घुमा दिया । तब कपालिनी और कंकालिनी उसको लातों से मारने लगी ।
प्रसून की आँखों में खून उतर आया ।
उसका दहकता बदन और भी दुगने ताप से तपने लगा । शान्त योगी एकदम खूँखार सा हो उठा । फ़िर उसने अपने आपको संयत किया, और ध्यान वहीं केन्द्रित कर दिया । अब उसे वहाँ की आवाज सुनाई देने लगी ।
- नहीं, नहीं ! वह औरत हाथ जोङते हुये चिल्ला रही थी - मुझ पर रहम करो, मेरे बच्चों पर रहम करो ।
पर खतरनाक पिशाचिनी सी कामारिका, जैसे कोई रहम दिखाने को तैयार ही न थी । उसने दाँत चमकाते हुये जबङे भींचे, और जोरदार थप्पङ उस औरत के गाल पर फ़िर से मारा । इस पैशाचिक थप्पङ के पङते ही वह औरत फ़िरकनी के समान ही अपने स्थान पर घूम गयी । उसकी चीखें निकलने लगी । उसके बच्चे भी माँ माँ करते हुये रो रहे थे, पर डायनों के दिल में कोई रहम नहीं आ रहा था ।
-हे भगवान..मुझे बचा ! वह औरत आसमान की तरफ़ हाथ उठाकर रोते हुये बोली - मुझे बचा, कम से कम मेरे बच्चों पर रहम कर मालिक ।
- मूर्ख जीवात्मा ! कामारिका दाँत पीसकर बोली - कहीं कोई भगवान नहीं है, भगवान सिर्फ़ एक कल्पना है, चारों तरफ़ प्रेतों का राज चलता है, तू कब तक यूँ भटकेगी ।
- ये ऐसे नहीं मानेगी ! कपालिनी आपस में अपने हाथ की मुठ्ठियाँ बजाते हुये बोली ।
फ़िर उसने उसके दोनों बच्चे उठा लिये, और गेंद की तरह हवा में उछालने लगी ।
बच्चे अरब देशों में होने वाली ऊँट दौङ पर बैठे बच्चों के समान चिंघाङते हुये जोर जोर से रोने लगे । उधर कंकालिनी ने वापिस उसे लात घूँसों पर रख लिया ।
प्रसून को अब सिर्फ़ उस औरत के मुँह से ‘भगवान और मेरे बच्चे’ तथा दोनों माँ बच्चों के चीखने चिल्लाने की ही आवाज सुनाई दे रही थी ।
तीनों डायनें मुक्त भाव से अट्टाहास कर रही थी ।
प्रसून की आँखे लाल अंगारा हो गयी । उसका जलता बदन थरथर कांपने लगा ।


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Tantrik ka badla तांत्रिक का बदला
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तांत्रिक का बदला 8




उसने सामने देखा । कामारिका कमर पर हाथ टिकाये दोनों डायनों द्वारा औरत और बच्चों को ताङित होते हुये देख रही थी । उसने उसी को लक्ष्य किया । फ़िर उसने मुठ्ठी से उँगली का पोरुआ निकाला, उसकी नारी स्तन के रूप में कल्पना की ।
और वह पोरुआ बेदर्दी से दाँतों से चबा लिया ।
- हा..आऽ ! कामारिका जोर से चिल्लाई ।
उसने स्तन पर हाथ रखा, और चौंककर इधर उधर देखने लगी । वह बेहद पीङा का अनुभव करते हुये स्तन सहला रही थी । कपालिनी कंकालिनी भी अचानक सहम कर उसे देखने लगी । प्रसून ने दूसरे स्तन का भाव किया, और दुगनी निर्ममता दिखाई ।
कामारिका भयंकर पीङा से चीख उठी । उसने दोनों स्तनों पर हाथ रख लिया, और लङखङा कर गिरने को हुयी । दोनों डायनें भौंचक्का रह गयी ।
फ़िर कपालिनी संभली, और दाँत पीसकर बोली - हरामजादे ! कौन है तू? सामने क्यों नहीं आता, जिगर वाला है, तो सामने आ.. नामर्द ।
तभी कपालिनी को अपने गाल पर जोरदार थप्पङ का अहसास हुआ ।
थप्पङ की तीव्रता इतनी भयंकर थी कि वह झूमती हुयी सी उसी औरत के कदमों में जा गिरी । जिसका कि अभी अभी वह कचूमर निकालने पर तुली थी ।
- बताते क्यों नहीं ! कामारिका फ़िर से संभल कर सहम कर बोली - त तुम.... आप कौन हो?
- इधर देख! प्रसून के मुँह से मानसिक आदेश युक्त बहुत ही धीमा स्वर निकला ।
तीनों ने चौंक कर उसकी दिशा में ठीक उसकी तरफ़ देखा ।


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तांत्रिक का बदला 9


कैसा रहस्यमय है, ये पूरा जीवन भी । हमसे चार कदम दूर ही जिन्दगी क्या क्या खेल खेल रही है, क्या खेल खेलने वाली है । शायद कोई नहीं जान पाता । खुद थोङी देर पहले उसने ही नहीं सोचा था कि वह अकारण ही यहाँ आयेगा । उसे जलती लाश के बारे में मालूमात होगा । पर हुआ था, और सब कुछ थोङी देर पहले ही हुआ था ।
चलते चलते वह ठीक उसी जगह आ गया, जहाँ वह औरत टीले पर शान्त बैठी हुयी थी, और उसके बच्चे वहीं पास में खेल रहे थे ।  
प्रसून उनकी नजर बचाता हुआ उन्हें छुपकर देखने लगा । कुछ देर शान्ति से उसने पूरी स्थिति का जायजा लिया । वह टीला मुर्दा जलाने के स्थान से महज सौ मीटर ही दूर था । औरत और बच्चों को देखकर जाने किस भावना से उसके आँसू बहने लगे । फ़िर उसने अपने आपको नियन्त्रित किया, और अचानक ही किसी प्रेत के समान उस औरत के सामने जा प्रकट हुआ ।
वह तुरन्त ही भयभीत होकर खङी हो गयी, और बच्चों का हाथ थाम कर चलने को हुयी ।
- कौन थीं ये? उसने खुद ही जानबूझ कर जैसे मूर्खतापूर्ण प्रश्न किया - अभी अभी जो..
वह एकदम से चौंकी ।
उसने गौर से प्रसून को देखा, पर वह कुछ नहीं बोली । उसने बात को अनसुना कर दिया, और तेजी से वहाँ से जाने को हुयी । प्रसून ने असहाय भाव से हथेलियाँ आपस में रगङी । उसकी बेहद दुखी अवस्था देखकर वह यकायक कुछ सोच नहीं पा रहा था ।
फ़िर वह सावधानी से मधुर आवाज में बोला - ठहरो बहन, मैं उनके जैसा नहीं हूँ ।
वह ठिठक कर खङी हो गयी ।
उसके चेहरे पर गहन आश्चर्य था । वह बङे गौर से प्रसून को देख रही थी, और बारबार देख रही थी । और फ़िर अपने को भी देख रही थी ।
फ़िर वह कंपकंपाती सी बेहद धीमी प्रेतक आवाज में बोली - अ आप भगवान हो क्या, मनुष्य रूप में ।
प्रसून के चेहरे पर घोर उदासी छा गयी ।
वह उसी टीले पर बैठ गया । उसने एक निगाह उन मासूम बच्चों पर डाली, और भावहीन स्वर में बोला - नहीं ।
औरत ने बच्चों को फ़िर से छोङ दिया था, और जैसे असमंजस की अवस्था में इधर उधर देख रही थी । प्रसून उसके दिल की हालत बखूबी समझ रहा था, और इसीलिये वह बात को कैसे और कहाँ से शुरू करे, यह तय नहीं कर पा रहा था ।
तभी यकायक उस औरत के चेहरे पर विश्वास सा जगा, और वह कुछ चकित सा होकर बोली - आप मुझे देख सकते हो, और इन.. । उसने बच्चों की तरफ़ उँगली उठाई - दो बच्चों को भी ।
प्रसून ने बेहद स्नेह भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
लेकिन उस औरत के चेहरे पर अभी भी हैरत थी ।
इसलिये वह बोली - फ़िर और सब.. क्यों नहीं देख पाते?
- शायद इसलिये । वह जल चुकी चिता पर निगाह फ़ेंकता हुआ बुझे स्वर में बोला - क्योंकि इंसान सत्य नहीं, सपना देखना अधिक पसन्द करता है । वह जीवन भर सपने में जीता है, सपने में ही मर जाता है ।
- मेरा नाम रत्ना है । उसके मुर्दानी चेहरे पर बुझी राख में इक्का दुक्का चमकते अग्निकणों के समान चमक पैदा हुयी ।
फ़िर वह वहीं उसके सामने जमीन पर ही बैठ गयी ।


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तांत्रिक का बदला 10



- कितना समय हो गया? फ़िर वह भावहीन स्वर में बोला ।
- पाँच महीने..से कुछ ज्यादा ।
- और तुम्हारे पति? वो फ़िर से चिता को देखता हुआ बोला - वो कहाँ हैं?
अबकी वह फ़फ़क फफक कर आँसू रहित रोने लगी ।
प्रसून ने उसे रोने दिया ।
उसका खाली हो जाना जरूरी था, वह बहुत देर तक रोती रही ।
बच्चे उसे रोता हुआ देखकर उसके ही पास आ गये थे, और प्रसून को ही सहमे सहमे से देख रहे थे । प्रसून की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ।
कुछ देर बाद वह चुप हो गयी ।
प्रसून को इसी का इंतजार था ।  
उसने रत्ना से ‘सुनो बहन’ कहा ।
रत्ना ने उसकी तरफ़ देखा ।
प्रसून ने अपनी झील सी गहरी शान्त आँखें उसकी आँखों में डाल दी ।
यकायक रत्ना शून्य होती चली गयी ।
शून्य, सिर्फ़ शून्य, शून्य ही शून्य ।
अब उसकी जिन्दगी का पूरा ब्यौरा प्रसून के दिमाग में कापी हो चुका था ।
वह दुखी जीवात्मा, जैसे कुछ भी बता पाने में असमर्थ थी, और प्रसून को उस तरह उससे जानने की जिज्ञासा भी नहीं थी ।  
फ़िर कुछ ही देर में वह सामान्य हो गयी ।
उसे एकाएक ऐसा लगा था, जैसे मानों वह गहरी नींद में सो गयी थी ।
शायद इस नयी और अदभुत प्रेतक जिन्दगी में, और शायद इस जिन्दगी से पहले भी, उसे ऐसी भरपूर नींद कभी नहीं आयी थी, और अब वह अपने आपको एकदम तरोताजा महसूस कर रही थी ।
- कहाँ रहती हो आप । वह स्नेह से बोला - और खाना?
अब वह लगभग सामान्य थी ।
प्रसून के ‘कहाँ रहती हो’ कहते ही उसकी निगाह खोहनुमा एक ढाय पर गयी ।
और ‘खाना’ कहते ही उसने स्वतः ही चिता की तरफ़ देखा ।
प्रसून उसके दोनों ही मतलब समझ गया, और यहाँ रहने का कारण भी समझ गया ।
- लेकिन । वह फ़िर से बोला - बच्चे, बच्चे क्या खाते हैं?
यकायक उसके चेहरे पर जैसे अथाह दुख सा लहराया ।
स्वतः ही उसकी निगाह त्याज्य मानव मल पर गयी ।
प्रसून बेबसी से उँगलिया चटकाने लगा ।
उसके चेहरे पर गहरी पीङा सी जाग्रत हुयी ।
सीधा सा मतलब था कि उन्होंने बहुत दिनों से अच्छा कुछ भी नहीं खाया था ।


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तांत्रिक का बदला 11




रत्ना हैरत से यह सब सुनते देखते रही ।
जाने क्यों उसे लग रहा था कि ये इंसान नहीं है, स्वयँ भगवान ही है, पर अपने आपको प्रकट नहीं करना चाहते । जो हो रहा था, उस पर उसे पूरा विश्वास भी हो रहा था, और नहीं भी हो रहा था कि अचानक ये चमत्कार सा कैसे हो गया ।
प्रसून ने उसे बताया नहीं ।
लेकिन अब वह अपने स्तर पर पूरा निश्चित था ।
वह प्रेतों के प्रेतभाव से हमेशा के लिये बच्चों सहित बच चुकी थी ।
अब प्रसून के सामने बस एक ही काम शेष था ।
कि वह उन्हें किसी सही जगह पुनर्जन्म दिलवाने में मदद कर सके ।
लेकिन ये तो सिर्फ़ रत्ना से जुङा काम था ।
वैसे तो उसे बहुत काम था ।
बहुत काम, जिसकी अभी शुरूआत भी नहीं हुयी थी ।
यह ख्याल आते ही उसके चेहरे पर अजीब सी सख्ती नजर आने लगी ।
और वह ‘चलता हूँ बहन’ कहकर उठ खङा हुआ ।
रत्ना एकदम हङबङा गयी ।
उसके चेहरे पर प्रसून के जाने का दुख स्पष्ट नजर आने लगा ।
वह उसके चरण स्पर्श करने को झुकी ।
‘अरे अरे, क्या करती हो बहन’ कहकर प्रसून तेजी से खुद को बचाता हुआ पीछे हट गया ।
- अब । तब वह रुँआसी होकर बोली - कब आओगे भैया?
- जल्द ही । वह भावहीन होकर सख्ती से बोला - तुम्हें.. । उसने खोह की तरफ़ देखा, त्यागे गये मानव मलों की तरफ़ देखा - किसी सही घर में पहुँचाने के लिये ।
फ़िर वह उनकी तरफ़ देखे बिना तेजी से मुङकर एक तरफ़ चल दिया ।
क्योंकि उसकी आँखें भीग रही थी ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।