शुक्रवार, अप्रैल 22, 2011

चुङैल 1



प्रसून दी ग्रेट !
बेहद हैरत से उस शख्स को देख रहा था, और आज बङे अच्छे मूड में था ।
हैरत से इसलिये कि उसके तांत्रिक मांत्रिक होने की जिस बात को अब तक स्वयं उसके परिवार वाले कभी नहीं जान पाये थे । उस बात को दूरदराज रहने वाले लोग कैसे जान लेते थे । और न सिर्फ़ जान लेते थे । बल्कि कोई प्वाइंट निकाल कर अपनी प्रेतबाधा आदि समस्या दूर करवाने में सफ़ल भी हो जाते थे । तमाम अन्य लोगों की तरह उसके घरवाले भी उसे कीट विज्ञान के एक शोधार्थी के तौर पर ही जानते थे ।
अब तक अविवाहित रहने के बहाने बनाता हुआ, और जीवन में विवाह और स्त्री से सदा दूर रहने का व्रत ले चुके, प्रसून को कभी कभी, स्वयं अपने आप ही, अपना अस्तित्व, अपने लिये ही रहस्यमय लगता था । उसने अपनी समस्त जिंदगी तन्त्र और योग साधना के लिये अर्पण कर दी थी । अब इसमें आगे क्या और कैसा होना था, ये उसके गुरू और भगवान पर निर्भर था । द्वैत का ये निपुण साधक कितनी विद्याओं का ज्ञाता था । शायद ये स्वयं उसको भी पता नहीं था, और कोई कार्य पङने पर ही उसे समझ आता था कि ये उसकी यौगिक सामर्थ्य में है, या नहीं ।
अभी शाम के चार बज चुके थे ।
जब उसने अपनी व्यक्तिगत कोठी के सामने सङक पर खङी स्कोडा का डोर खोला ही था कि उसके कानों में आवाज आई - माई बाप..
प्रसून ने मुङकर देखा, और लगभग देहाती से दिखने वाले उस इंसान से बोला - हू..मी?
फ़िर उसे जैसे अपनी गलती का अहसास हुआ ।
और उसने तुरन्त हिन्दी में कहा - कौन मैं..मुझे?
फ़िर जैसे और भी निश्चय करने के लिये उसने अपनी ही उंगली से अपने सीने को ठोंका ।
- हाँ, माई बाप..। वह आदमी हाथ जोङकर बोला ।
प्रसून ने हैरत के भाव लाकर अपने आसपास देखा, और बोला - बाप तो समझ आया, लेकिन माई कहाँ है?
देहाती ही ही करके हंसा, और हाथ जोङकर खङा हो गया ।
उसका मतलब समझ कर प्रसून वापस कोठी की तरफ़ मुङा, और उसे पीछे आने का इशारा किया । आगे के संभावित मैटर को पहले ही भांपकर वह कोठी के उस स्पेशल रूम में गया । जो उसकी साधना से रिलेटिव था । एक बेहद बङी गोल मेज के चारो तरफ़ बिछी कुर्सियों पर दोनों बैठ गये । इस कमरे में हमेशा बेहद हल्की रोशनी रहती थी, और लगभग अंधेरे से उस विशाल कक्ष में बेहद कम रोशनी वाले गहरे गुलाबी और बैंगनी रंग के बल्ब एक अजीब सा रहस्यमय माहौल पैदा करते थे ।
प्रसून ने एक सिगरेट सुलगायी, और बेहद मीठे स्वर में बोला - कहिये?
वह आदमी चालीस किलोमीटर दूर एक शहर के पास बसे एक कस्बे से आया था ।
और उसका नाम टीकम सिंह था ।
उसकी पत्नी पिछले तीन सालों से लगातार बीमार थी, और खाट पर ही पङी रहती थी । टीकम सिंह ने अपनी हैसियत के अनुसार काफ़ी पैसा उसके इलाज पर खर्च कर दिया था । पर कोई लाभ नहीं हुआ था । बीच बीच में लोगों ने भूतबाधा या ग्रह नक्षत्र विपरीत होने की भी सलाह दी । तब टीकम सिंह ने उसका भी इलाज कराया । पर नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा । लेकिन अब टीकम सिंह को ये पक्का विश्वास हो गया था कि उसकी पत्नी प्रेतबाधा से ही प्रभावित है ।
और इसकी दो खास वजह भी थीं ।
दरअसल उसके मकान के दोनों साइड जो पङोसी थे । वे वास्तव में भूत ही थे ।
उसके मकान के एक साइड में एक वर्षों पुराना हवेलीनुमा खंडहर मकान था । जिसमें पिछले अस्सी वर्षों से कोई नहीं रहता था, और उसके वारिसान का भी कोई पता ठिकाना नहीं था । टीकम सिंह इस मकान का इस्तेमाल अपने लिये भैंस बांधने और उपले थापने के लिये करता था ।
जबकि उसके मकान के दूसरे साइड में एक बेहद पुराना कब्रिस्तान था । लेकिन अब उसमें मुर्दों को दफ़नाया नहीं जाता था । इन दोनों वीरान पङोसियों के साथ ये दिलदार इंसान वर्षों से अकेला रह रहा था, और उसने कभी कोई दिक्कत महसूस न की थी ।
लेकिन पिछले तीन साल से उसकी पत्नी जो बीमार पङी, तो फ़िर उठ ही न सकी ।
- और इस बात से । प्रसून बोला - आप कूदकर इस नतीजे पर पहुँच गये कि आपकी पत्नी किसी भूत प्रेत के चंगुल में है । अगर कोई बीमारी ठीक ना हो, तो इसका मतलब उसको भूत लग चुके हैं ।
स्वाभाविक ही किसी आम देहाती इंसान की तरह टीकम सिंह प्रसून की पर्सनालिटी उसके घर वैभव आदि से इस कदर झेंप रहा था कि अपनी बात कहने के लिये उचित शब्दों का चुनाव नहीं कर पा रहा था ।
- ना माई बाप । टीकम सिंह हिम्मत करके बोला - ऐसा होता, तो उस मकान में जिसमें रहने की कोई हिम्मत नहीं कर पाता, मैं वर्षों से कैसे रहता । सही बात तो ये है कि मुझे पहले ही पता था कि मेरे दोनों तरफ़ भूतवासा है, और मैंने उसे महसूस भी किया था । पर मैंने सोचा कि ये भूत भी कभी इंसान थे । जब हमें उनसे कोई मतलब नहीं, तो उन्हें भी कोई मतलब नहीं होगा । शायद हम भी मरकर भूत ही बनें । फ़िर भूतों से डरना कैसा ।


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चुङैल 2




दूसरे पङोसी यानी कब्रिस्तान का मामला अलग था । वहाँ रात के समय भागदौङ और किसी के आपस में झगङने जैसा अहसास उसे कई बार हुआ था । इसको इंसानी मामला जानकर और कोई चोर आदि का भ्रम होने से कई बार लालटेन लेकर जब वह छत पर देखने पहुँचा, तो वहाँ कोई नहीं था । अब इसके लिये टीकम सिंह एकदम क्लीयर नहीं था कि ये सच था, या उसका वहम था । पर उसे लगता यही था कि यह सच था ।
उसके बारबार पहुँचने से एक पुरुष आवाज ने उससे कहा भी था - टीकम सिंह तुम अपने घर जाओ, और हमारे बीच में दखल न दो ।
पहली बार टीकम सिंह के भय से रोंगटे खङे हो गये ।
वह उल्टे पाँव लौट आया, और फ़िर पूरी रात उसे नींद नहीं आयी । अब उसे भैंस वाले खंडहर मकान में भी भय लगने लगा था । पर गरीब आदमी होने के कारण वह अपना निजी मकान छोङकर कहाँ जाता, और कैसे जाता ।
- तुम्हारे बच्चे । प्रसून के मुँह से निकला ही था कि उसका मतलब समझ कर टीकम सिंह जल्दी से बोला - मालिक ने दिये ही नहीं । हम दो लोग ही रहते हैं वहाँ ।
- ओह, आई सी । प्रसून एक नयी सिगरेट सुलगाता हुआ बोला ।
उसने सिगरेट केस टीकम सिंह की तरफ़ बढ़ाया, तो बेहद झिझक से उसने एक सिगरेट निकाल ली । प्रसून ने उसके मुँह से लगाते ही फ़क्क से लाइटर से सिगरेट जला दी । इससे वह और झेंप सा गया ।
- कितने जिगर वाले हैं, दोनों मियाँ बीबी । प्रसून ने सोचा - जिस मकान में दिन में जाते हुये इंसान की रूह कांप जाय । उसमें आराम से रहते हैं ।
लेकिन फ़िर उसे अपना ही विचार गलत लगा ।
क्योंकि ये एक तरह का समझौता सा था, और मजबूरी भी थी ।
तभी नौकरानी चाय बिस्किट आदि रखकर चली गयी ।
प्रसून ने टीकम सिंह से इशारा करते हुये कहा - चाय पियो भाई, और बताओ कि तुम्हारी खंडहर वाली चुङैल हीरोइन कौन कौन से गाने सुनाती है ।
टीकम सिंह ने झिझकते हुये ही कप उठाया, और सुङक सुङक करता हुआ बीच बीच में बताने लगा ।
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- टीकम सिंह जी । प्रसून उसकी बात पूरी होने पर बोला - आपने गजनी फ़िल्म देखी है । जिस तरह आमिर खान को थोङी थोङी देर में भूल जाने की बीमारी थी, वैसी ही बीमारी मुझे भी है । इसलिये आपके घर चलने से पहले उसका एक नक्शा बना लेते हैं । ताकि वापसी में मैं अपने घर का रास्ता ही न भूल जाऊँ ।
कहते हुये प्रसून ने एक सामान्य सी दिखने वाली प्लेन कापर मैटल शीट टेबल पर बिछा दी । जो वास्तव में दूरस्थ प्रेतबाधा उपचार हेतु एक शक्तिशाली यंत्र का काम करती थी ।
दरअसल वह टीकम सिंह को एक जादुई खेल दिखाने का इच्छुक था ।
जिसके दो खास कारण थे ।
एक तो आज वह खुश मूड में था । दूसरे टीकम सिंह गरीब आदमी था ।


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चुङैल 3



- जेनी । प्रसून एक सिगरेट सुलगा कर बोला - तुमको चुङैल देखना मांगता । एक गाना गाने वाली चुङैल ।
जेनी हल्के से मुस्करा कर रह गयी ।
उसने ईसाईयों के अन्दाज में सीने पर दायें बाय़ें मस्तक और फ़िर हार्ट के पास उंगली रखकर क्रास बनाया, और शान्त बैठ गयी ।
जेनी ईसाई थी, और अल्ला उसकी पुत्री ।
वह प्रसून के यहाँ सर्वेंट के रूप में कार्य करती थी, और घर की पूरी देखभाल का जिम्मा उसी पर था । इस बात को कोई नहीं जानता था कि आठ सौ वर्ग गज में बनी यह खूबसूरत कोठी प्रसून की खुद की थी, और व्यक्तिगत रूप से थी । इस बेहद रहस्यमय इंसान के घर वाले तक यह बात नहीं जानते थे । और इसकी वजह थी, प्रसून द्वारा इसके बेहद पुख्ता गोपनीय इंतजाम, और ज्यादातर उसका यहाँ वहाँ रहना ।
कुछ खास परेशानी वाले लोगों को यदाकदा फ़ोन नम्बर मिल जाने पर उसने अपने दो चार ठिकानों पर बुला लिया था । जिससे कुछ लोग इन स्थानों के बारे में जान गये थे, और भटकते हुये आ ही जाते थे । ये सभी स्थान उसके पैत्रक निवास से बेहद बेहद दूरी पर थे । इसलिये प्रसून के माँ बाप भी इस रहस्य को अब तक नहीं जान पाये थे । उसके माता पिता के बारे में नीलेश उसकी गर्लफ़्रेंड मानसी और उसके गुरू तथा कालेज के टाइम के कुछ साथी ही जानते थे । नीलेश मानसी और गुरू के अलावा उसके खास रहस्यों को कोई भी नहीं जानता था ।
मानसी भी उसकी पर्सनल बातों को कम ही जानती थी ।
और प्रसून के लिये मानसी का कहना था - वेरी बोरिंग बट वेरी इंट्रेस्टिंग मैन, ऐसा भी आदमी किस काम का, जिसको बुलबुलों में रस न आता हो ।
अल्ला टेबल पर रखा प्रसून का सेलफ़ोन उठाकर गेम खेलने लगी ।
प्रसून ने एक गहरा कश लगाया, और सिगरेट ऐश-ट्रे में डाल दी ।
इसके बाद उसने सुनहरे रंग का मोटा मार्कर पेन उठाया, और मैटल शीट पर तीन आयत बनाता हुआ बोला - टीकम सिंह जी, ये बीच वाला आपका घर, और ये इधर गाने वाली चुङैल का खंडहर मकान, और ये इधर कब्रिस्तान । फ़िर ये आपके घर के दरवाजे से मेनरोड का रास्ता, और ये मेनरोड । और फ़िर ये मेनरोड से इस शहर का रोड, और इस रोड से, ये मेरे घर की सङक..। और वह फ़िर से एक आयत बनाता हुआ बोला - और इसके बाद, ये रहा मेरा घर । जिसमें हम लोग इस समय बैठे हैं ।
कहते हुये उसने खूबसूरत बंगले की शेप वाला एक नाइट लैम्प अपने घर के आयत चिह्न पर रख दिया, और अल्ला को गेम बन्द करने को कहकर उसने दूसरा मोबाइल फ़ोन निकाला, और उसे अभिमंत्रित सा करते हुये नाइट लैम्प के अन्दर रख दिया ।
फ़िर वह अल्ला से बोला - बेबी, अभी चुङैल का फ़ोन रिसीव करने का है ।
अल्ला हौले से मुस्कराई ।
मानो प्रसून ने सामान्य सी बात कही हो ।
मगर टीकम सिंह एकदम ही सतर्क होकर बैठ गया ।
कुछ ही क्षणों में पायल की मधुर रुनझुन रुनझुन सुनाई देने लगी ।
इस बेहद परिचित ध्वनि को सुनकर टीकम सिंह भौंचक्का सा सतर्क होकर बैठ गया ।
अल्ला की कंजी आँखें स्थिर हो गयी, और वे चमकती हुयी सी बंगले के माडल पर स्थिर हो गयी ।
- मैं आ गयी । अल्ला बदली हुयी आवाज में बेहद महीन झंकृत स्वर में बोली - आज्ञा दें, किसलिये याद किया?
- योर वेलकम कामिनी जी । प्रसून शालीनता से बोला - आपको आने में कोई परेशानी तो नहीं हुयी? ये आपके पङोसी टीकम सिंह जी यहाँ बैठे हुये हैं । इन्होंने बताया कि आप गाना बहुत अच्छा गाती हैं । मैं आपकी एक म्यूजिकल नाइट आर्गनाइज कराना चाहता हूँ ।
- नहीं । अल्ला फ़िर से बोली - मुझे कोई परेशानी नहीं हुयी, लेकिन योगीराज आप हँसी मजाक अच्छा कर लेते हैं ।


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चुङैल 4



कुछ देर तक मदहोश करने वाली मधुर ध्वनिलहरी कमरे में गूंजती रही ।
प्रसून ने सिगरेट सुलगायी, और अकारण ही मेज पर गोल गोल उंगली घुमाते हुये मानो वृत सा बनाने लगा । अब तक के इस कार्यक्रम का उद्देश्य दरअसल अल्ला को सशक्त माध्यम के तौर पर तैयार करना था । हालांकि जेनी ऐसी बातों की पूर्व अभ्यस्त थी । पर वह फ़िर भी माहौल को हल्का ही रहने देना चाहता था । लेकिन जब एक चुङैल की मौजूदगी के बाद भी माहौल कतई असामान्य नहीं हुआ । तब उसने मेज के नीचे फ़िक्स एक इलेक्ट्रिक हीट प्लेट पर मौजूद बर्तन में लोबान मिक्स कुछ सुगन्धित पदार्थ डाल दिये, और स्विच आन कर दिया ।
कुछ ही क्षणों में कमरे में अजीब गन्ध वाला धुँआ फ़ैलने लगा ।
- ओके । फ़िर वह अल्ला से मुखातिब होकर बोला - कामिनी जी, अब बताईये । मैं आपके बारे में जानना चाहता हूँ कि आप वहाँ कब से हैं, क्यों है, आदि आदि?
- जो आज्ञा योगीराज । कामिनी बोली - ये बयासी साल पहले की बात है । उस समय मेरी आयु इकत्तीस साल की थी, और मैं अपने पाँच बच्चों और पति के साथ इसी हवेलीनुमा मकान में सुख से रहती थी । काफ़ी बङे इस मकान में मेरे तीन देवर, उनकी पत्नियाँ, बच्चे, और मेरे सास ससुर आदि भी रहते थे । हमारी जिंदगी मजे से कट रही थी ।
मेरे एक देवर का नाम रोशनलाल था । रोशनलाल अक्सर हफ़्ते पन्द्रह दिन बाद सोने चांदी के जेवरात लाता था, और मुझे चुपचाप रखने के लिये दे देता था । ये बात न उसकी पत्नी को मालूम थी, न मेरे पति को, न अन्य किसी को । और इसकी वजह यह थी कि रोशनलाल की पत्नी सु्खदेवी मुँहफ़ट थी । अगर रोशन जेवर उसे देता, तो वह अवश्य पङोस आदि में इसका जिक्र कर देती । एक दो किलो सोने के जेवर उस समय के खाते पीते घर में होना कोई बङी बात नहीं थी । अक्सर कई लोगों के घर होते ही थे ।
पर रोशनलाल का मामला और ही था । वह एक महीने में ही आधा सेर सोना चाँदी जेवरात के रूप में ले आता था, और मेरे पूछने पर कहता कि वह जेवरात गाहने यानी गिरवी रखने का काम करता है । मेरे कमरे में आलमारी के नीचे एक गुप्त स्थान था । जिसमें एक बक्सा फ़िट करके रखा हुआ था । मैं जेवरों को उसी बक्से में डाल देती थी । लेकिन कहते हैं ना कि किसी की हाय कभी न कभी असर दिखा ही जाती है ।
एक रात जब हम सब लोग सोये हुये थे कि अचानक शोरगुल की आवाज पर मैं चौंककर उठ बैठी । हमारे घर में डाकू घुस आये थे, और डयौङी में सास ससुर के पास खङे थे । वे कह रहे थे, तुम्हें पता है कि रोशनलाल को हमने मार डाला है । शायद तुम लोग न जानते हो, पर रोशन एक डाकू था, और हमारा साथी था ।
अभी कुछ दिनों पहले हमने एक शादी वाले घर में डाका डाला था । जिसकी खबर रोशन के एक मुखबिर से ही मिली थी । लेकिन जब हम डाका डाल रहे थे, तभी एक बुढ़िया ने सरदार के पैर पकङ लिये, और बोली । अगर हम लोगों ने उसे लूट लिया तो उसकी इकलौती नातिनी की शादी कभी नहीं हो पायेगी । जिसका कन्यादान मरने से पहले लेने की उसकी बेहद इच्छा है ।
जब यह सब चल ही रहा था, तो अन्दर से चीखने की जोरदार आवाज आई । अन्दर डकैती डालने गये रोशनलाल ने लङकी के छोटे भाई के गले पर कटार रखते हुये जब सब जेवर निकलवा कर कब्जे में कर लिये, तो उसका छोटा भाई यह कहते हुये, कि मैं अपनी जीजी के गहने तुझे नहीं ले जाने दूँगा, उससे लिपट गया, और वह गलती से रोशनलाल के द्वारा मारा गया ।


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चुङैल 5




जेनी बङी दिलचस्पी से यह स्टोरी सुन रही थी ।
और टीकम सिंह तो हैरत के मारे भौचक्का ही हो रहा था ।
कमरे के वातावरण में कभी कभी प्रसून की गहरी सांस लेने की आवाज ही सुनायी देती थी ।
- साहिब । वह जैसे भावुक होकर बोला - तेरे खेल न्यारे ।
- लेकिन मुखबिर की सूचना गलत थी । अल्ला फ़िर से बोली - बङी मुश्किल से विवाह वाली कन्या सीता का दहेज जमा हुआ था, और वह परिवार इस इकलौती कन्या के विवाह के चक्कर में कर्जदार हो चुका था ।
सरदार जैसा कट्टरदिल डाकू बुढ़िया की कहानी सुनकर पसीज गया । लेकिन तब तक होनी अपना खेल दिखा चुकी थी, और सीता का भाई गला कट जाने से मर गया था । बुढ़िया को जैसे ही ये पता चला, तो उसने हाय हाय करते हुये ‘इस नासमिटे का सत्यानाश हो जाय’ कहते हुये वहीं दम तोङ दिया । सरदार हतप्रभ रह गया । अच्छा खासा खुशी बधाईयों वाला घर मातम में बदल गया ।
सरदार तेजी से कुछ सोचता हुआ अन्य डाकुओं के साथ घोङों पर नहर के उस स्थान पर पहुँचा । जहाँ रोशनलाल से उसे मिलना था । उसे रोशनलाल पर बेहद गुस्सा था । क्योंकि डाकुओं के कानून के अनुसार औरतों बूढ़ों और बच्चों को मारना सरासर गलत था । रोशनलाल मिला तो, पर वह बेहद घबराया हुआ था । उसके अनुसार वह सोच रहा था कि उसके दल के लोग पीछे से आ रहे होंगे ।
पर पीछे कोई नहीं था । तब उस पर दूसरे गिरोह ने हमला करके उसका सारा माल छीन लिया । और उसने किसी तरह भागकर जान बचाई ।
इस दूसरी नयी बात से तो सरदार का खून ही खौल उठा । उसे यह भी लगा कि रोशन शायद झूठ बोल रहा हो । वहीं दोनों में तकरार बढ़ गयी, और सरदार ने रोशन को काटकर नहर में डाल दिया । इसके बाद तीसरे दिन रात को जब सरदार चुपके से दूसरे जेवर लेकर सीता के घर पहुँचा, तो उसने पेङ से लटक कर फ़ाँसी लगा ली थी । दुखी मन से सरदार लौट आया ।
तब से सरदार बहुत दुखी रहने लगा । वह इस पाप और बुढ़िया का शाप अपनी आत्मा पर बोझ की तरह महसूस करने लगा था । तब किसी साधु आत्मा ने उसे परामर्श दिया कि जो होना था, वह तो हो गया । अब अगर वह दस गरीब कन्याओं का विवाह धूमधाम से करवा दे, तो इस पाप का असर ना के बराबर रह जायेगा ।


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चुङैल 6



कहते हैं कि इंसान को एक पल की खबर नहीं होती कि अगले ही पल क्या हो जाय । शायद बुढ़िया का शाप फ़लीभूत होने जा रहा था । इसीलिये मेरे देवर दीनदयाल जो छत पर सोये हुये थे । वे ये सोचकर कि घर में डाकू घुस आये हैं । चुपचाप बंदूक निकाल लाये, और एक सुरक्षित स्थान से उन्होंने डाकू को निशाना बना दिया । बस यही गङबङ हो गयी । गोली चलते ही घर में एकदम भगदङ सी मच गयी । डाकुओं ने भी मोर्चा ले लिया, और आनन फ़ानन दीनदयाल मारा गया । उसे बचाने के चक्कर में उसकी पत्नी भी मर गयी । दो हत्या करने के बाद डाकू घर से निकलकर भाग गये ।
लेकिन एकदम घर में हुयी तीन मौतों का सदमा मेरे बूढ़े सास ससुर सह न सके, और उन्होंने दूसरे ही दिन दम तोङ दिया । पटवारी के नाम से प्रसिद्ध मेरे एक देवर जो उस दिन घर से निकलकर भाग गये थे । उन्हें भी कुछ दिनों बाद रास्ते में अज्ञात कारणों से मरा पाया गया । तब मेरी दोनों देवरानियाँ भी अपने बच्चों के साथ अपने मायके चली गयीं ।
और फ़िर हर वक्त बच्चों से चहचहाती, पर अब वीरान सी रहती, उस हवेली में, मैं अपने पांच बच्चों और पति के साथ सोने चाँदी से भरे बक्से के साथ अकेली ही रह गयी । कभी कभी मुझे इस घटना पर दुख होता था । पर कभी मैं अजीब से लालच में आकर यह बात सोचती कि इस घटना ने ही तो आज मुझे किसी महारानी के समान धनवान बेहद धनवान दिया था । और ये बात मेरे पति भी नहीं जानते थे ।
अब मुझे एक डर यह भी हो गया था कि अगर मैंने अपने पति को यह बात सही सही बता दी । तो  पता नहीं वो इसका क्या मतलब निकालें । अतः मैं बात छुपाये ही रही । मैंने सोचा, किसी दिन किसी बहाने से बक्से का खुलासा कर दूँगी कि यहाँ शायद जमीन में कुछ दबा हुआ है ।
लेकिन इसकी जरूरत ही नहीं आयी । बूढ़ी का शाप अपना काम कर रहा था । क्योंकि उधर हमारे पूरे परिवार के खत्म हो जाने से मेरे पहले से ही धार्मिक पति और भी धार्मिक हो गये, और एक दिन मृतक अनुष्ठान की किसी क्रिया के लिये वे मेरे बङे पुत्र गिरीश के साथ गंगास्नान हेतु गये । जहाँ नहाते समय गिरीश भंवर में फ़ँसकर डूबने लगा, और उसे बचाने के चक्कर में मेरे पति भी डूब गये । बेहद चढ़ी हुयी उफ़नती गंगा में कोई भी उन्हें बचाने का साहस न कर सका ।
और इस तरह उनकी लाश भी नहीं लौटी । खोजबीन करते करते किसी जानकार द्वारा खबर ही आ गयी । यही बहुत बङी बात थी । सिर्फ़ तीन महीने में ही हँसता खेलता परिवार इस तरह मौत की भेंट चढ़ गया था । मानो यहाँ पहले कोई रहता ही न था । मेरी माँग का सिन्दूर पुँछ चुका था, और वीरान हवेली जैसे काटने को दौङती थी । पर ना जाने क्यों बक्से में भरे जेवरात का आकर्षण अभी भी मेरे लिये उतना ही था ।
पति के क्रियाकर्म कराने के बाद मायके वालों की सलाह पर मैं हवेली को ताला लगाकर अपने चार बच्चों के साथ मायके आ गयी । धन सम्पदा से भरा बक्सा अब भी हवेली में ही मौजूद था । जिसका राज सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे सीने में दफ़न था ।


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गुरुवार, अप्रैल 21, 2011

चुङैल 7




जवानी के इस खेल में हमें ऐसा आनन्द आया कि हम रोज रोज ही अंजाम की परवाह किये बिना संभोग करने लगे, और परिणाम स्वरूप मुझे एक महीने का गर्भ ठहर गया ।
अभी मैं ठीक से इस बारे में जान ही पायी थी कि खुशकिस्मती से अगले ही महीने मेरी शादी हो गयी, और मैं ससुराल आ गयी । मेरे पेट में एक माह का गर्भ था । ठीक आठ महीने दस दिन बाद मैंने बांके के बच्चे को जन्म दिया । जिसका नाम गिरीश रखा गया । पर अब वह मेरे पति का बच्चा था, और असली सच सिर्फ़ मुझे ही पता था ।
विधवा होने के बाद जब मैं फ़िर से मायके रहने लगी, तो आते जाते बांके से मेरी नजरें चार हो ही जाती थी । मैंने महसूस किया कि बांके अब भी लालायित होकर मेरी तरफ़ देखता है । पर हिम्मत नहीं कर पाता । तब मेरे दिल में दबी हुयी पुरानी चिंगारी भङक उठी, और मैं उसकी तरफ़ देखकर मुस्करा दी । इसके बाद स्पष्ट इशारा करने हेतु उसे कुंएं से बाल्टी भरते समय मैंने कुंएं में झांकने का बहाना करते हुये अपने स्तन उसकी पीठ से सटा दिये । यह इशारा काफ़ी था ।
दूसरे दिन दोपहर में जब मैं पेङ के सहारे खङी थी । बांके ने पीछे से आकर ब्लाउज के ऊपर से मेरे स्तन पर हाथ रख दिये, और हम दोनों अरहर के खेत में चले गये । वासना के अन्धों को कुछ दिखाई नहीं देता । यही बात हमारे ऊपर लागू हुयी । लेकिन दूसरे हमें देख रहे हो सकते हैं ।
मोती नाम का एक गाँव का लङका हमें देख रहा था । अभी हम वासना के झूले में झूल ही रहे थे कि हमें आसपास लोगों का कोलाहल सुनाई दिया, और देखते ही देखते कई लोग अरहर के खेत में घुस आये । उन्होंने बांके के बाल पकङकर उसे खींच लिया, और जूते मारते हुये गाँव की तरफ़ ले जाने लगे । इत्तफ़ाकन उन लोगों में मेरा भाई भी था । वह मुझे लगभग घसीटता हुआ गाँव की तरफ़ ले जाने लगा । गाँव के लोगों को इस अनाचार पर इतना क्रोध था कि मानो वे हम दोनों को मार ही डालेंगे ।
खैर प्रसून जी, इंसान की गलती कितनी ही बङी क्यों न हो, फ़िर भी उसे कोई एकदम नहीं मार देता । शाम को बङे बूढ़ों ने सोच विचार कर पंचायत रखने का फ़ैसला किया । ये पंचायत दस दिन बाद की रखी गयी थी ।
यदि बांके कुँवारा होता, तो मैं जानती थी कि पंचायत के फ़ैसले से उसे मुझ विधवा के साथ शादी करनी ही पङती । पर वह न सिर्फ़ शादीशुदा था । बल्कि उसके चार बच्चे भी थे । तब पंचायत क्या फ़ैसला करेगी, ये सोचकर मेरा दिल काँप जाता था । मैंने घर से निकलना बन्द कर दिया था । अतः मुझे बांके के बारे में कोई खबर नहीं थी ।
पंचायत का दिन करीब आ रहा था । उससे ठीक एक दिन पहले बांके ने गाँव के बगीचे में पेङ से फ़ाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली । यह खबर जैसे ही मेरे पास आयी, मेरा दिल काँप कर रह गया । अब मैं इस मामले में अकेली थी । पंचायत क्या फ़ैसला करेगी? हो सकता है मुझे चरित्रहीनता के आधार पर गाँव से निकाल दिया जाय । उस हालत में अब मैं कहाँ जाऊँगी । हालांकि मैं अच्छी खासी सेठानी थी । पर एक नितान्त अकेली औरत सिर्फ़ धन के सहारे जीवन नहीं बिता सकती । इसलिये मेरे दिल में भी बारबार यही विचार आ रहा था कि मुझे भी फ़ाँसी लगाकर आत्महत्या कर लेनी चाहिये । पर जेवरातों से भरा बक्सा मुझे कोई भी ऐसा कदम उठाने से रोक रहा था ।..
कहते कहते अचानक अल्ला रुक गयी ।
और झूलती हुयी सी बेहोश होकर चेयर पर लुङक गयी ।
टीकम सिंह घबरा गया ।
जेनी ने कुछ उलझन के साथ प्रसून की तरफ़ देखा ।
उसके मुँह से निकला - सारी, आरेंज जूस ।



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चुङैल 8




दरअसल, बांके के मरने के बाद उसकी पत्नी लीला अर्धविक्षिप्त हो गयी थी, और नहाने धोने आदि का त्याग कर देने के कारण वह जिन्दा चुङैल लगती थी । उसके मिट्टी भरे रूखे उलझे बाल उसे और भी खतरनाक बना देते थे । अपनी बरबादी का कारण वह मुझे ही समझती थी । उसका पुत्र जग्गीलाल जो जगिया के नाम से प्रसिद्ध था । वह भी मुझे ही दोषी मानता था । ये दोनों अक्सर मुझे धमकाते भी रहते थे । पर उनकी धमकी सुनने के अलावा मेरे पास और चारा भी क्या था । लेकिन ये कोई नहीं जानता था कि वे मेरी हत्या भी कर सकते हैं ।
मेरे जमीन पर गिरते ही लीला ने मुझे दबोच लिया, और मेरी छाती पर सवार होकर बैठ गयी ।
- मार इस कुतिया को, मार अम्मा..। मुझे जगिया की आवाज सुनाई दे रही थी ।
लीला ने मेरा ब्लाउज फ़ाङ डाला, और सीने पर प्रहार करने लगी । गर्म जमीन, ईंट की चोट, और सीने पर बैठी बजनीली औरत, मेरी चेतना डूबने लगी, और मैं बेहोश हो गयी । लीला ने मेरे साथ आगे क्या क्या किया, मुझे नहीं मालूम । दोबारा कितने समय बाद, कितने दिन बाद, या कितने महीने बाद, मैं जाग्रत हुयी, मुझे नहीं पता । इस बीच के समय में मैं कहाँ रही, मुझे नहीं पता ।
खैर दोबारा जाग्रत होने पर मुझे पता चला कि मैं गन्दे बदबूदार एक कीचयुक्त गढ्ढे में लेटी हुयी थी । एकदम चौंककर मैं असमंजस से उठ बैठी, क्योंकि मैं एकदम नंगी थी । मैंने कुछ बोलना चाहा, पर मेरी आवाज ही नहीं निकली ।
धीरे धीरे मुझे सब कुछ याद आने लगा । लीला, मेरे पशु, मेरा गाँव, मेरे ईंट मारना, और मैं एकदम चिल्लाने को हुयी । अबकी बार आवाज तो निकली । पर जैसे कोई मच्छर भिनभिना रहा हो । मुझे ये सब कुछ बङा अजीब सा लगने लगा, और मैं समझ नहीं पा रही थी कि आखिर मेरे साथ क्या हुआ है ।
प्रसून के कमरे में गजब का सन्नाटा छाया हुआ था ।
उसने घङी पर निगाह डाली । शाम के सात बज चुके थे ।
उसने जेनी की ओर देखा तो उसे बस ऐसा लगा कि मानो वह कोई दिलचस्प हारर मूवी देख रही हो ।
- कमाल की जिगरावाली है । प्रसून ने सोचा ।
लेकिन टीकम सिंह की हालत खराब थी । वह महीनों से खाट तोङती अपनी पत्नी को भूल ही चुका था, और उल्लुओं की तरह आँखें झपकाता हुआ हर नई परिस्थिति को देख रहा था ।
- बेङा गर्क..भूतो तुम्हारा । प्रसून फ़ीके स्वर में बोला - आज का डिनर ही चौपट कर दिया ।
फ़िर उसने मोबाइल निकाला, और डायलिंग के बाद बोला - यस, चार लोगों के लिये पिज्जा, बट डिलीवरी टाइम नाइन पी एम ।
- ओ तो ठीक है, सर जी । दूसरी तरफ़ से आवाज आई - पर डिलीवरी कौन से शमसान या कब्रिस्तान पर होनी है, आज भूतों को पार्टी दी है क्या?
कोई और समय होता, तो नीलेश के इस मुँह लगे दोस्त को प्रसून एक ही बात कहता - ओह शटअप, लेकिन आज उसका मूड खुश था, इसलिये बोला - आज भूत घर पर ही आ गये ।
- सर जी..। दूसरी तरफ़ वाला घिघियाया - मैंनू बी किसी सुन्दर भूतनी सूतनी से मिलवाओ ना । सुना है..
- शटअप । कहकर उसने फ़ोन काट दिया ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।