गुरुवार, अप्रैल 21, 2011

चुङैल 8




दरअसल, बांके के मरने के बाद उसकी पत्नी लीला अर्धविक्षिप्त हो गयी थी, और नहाने धोने आदि का त्याग कर देने के कारण वह जिन्दा चुङैल लगती थी । उसके मिट्टी भरे रूखे उलझे बाल उसे और भी खतरनाक बना देते थे । अपनी बरबादी का कारण वह मुझे ही समझती थी । उसका पुत्र जग्गीलाल जो जगिया के नाम से प्रसिद्ध था । वह भी मुझे ही दोषी मानता था । ये दोनों अक्सर मुझे धमकाते भी रहते थे । पर उनकी धमकी सुनने के अलावा मेरे पास और चारा भी क्या था । लेकिन ये कोई नहीं जानता था कि वे मेरी हत्या भी कर सकते हैं ।
मेरे जमीन पर गिरते ही लीला ने मुझे दबोच लिया, और मेरी छाती पर सवार होकर बैठ गयी ।
- मार इस कुतिया को, मार अम्मा..। मुझे जगिया की आवाज सुनाई दे रही थी ।
लीला ने मेरा ब्लाउज फ़ाङ डाला, और सीने पर प्रहार करने लगी । गर्म जमीन, ईंट की चोट, और सीने पर बैठी बजनीली औरत, मेरी चेतना डूबने लगी, और मैं बेहोश हो गयी । लीला ने मेरे साथ आगे क्या क्या किया, मुझे नहीं मालूम । दोबारा कितने समय बाद, कितने दिन बाद, या कितने महीने बाद, मैं जाग्रत हुयी, मुझे नहीं पता । इस बीच के समय में मैं कहाँ रही, मुझे नहीं पता ।
खैर दोबारा जाग्रत होने पर मुझे पता चला कि मैं गन्दे बदबूदार एक कीचयुक्त गढ्ढे में लेटी हुयी थी । एकदम चौंककर मैं असमंजस से उठ बैठी, क्योंकि मैं एकदम नंगी थी । मैंने कुछ बोलना चाहा, पर मेरी आवाज ही नहीं निकली ।
धीरे धीरे मुझे सब कुछ याद आने लगा । लीला, मेरे पशु, मेरा गाँव, मेरे ईंट मारना, और मैं एकदम चिल्लाने को हुयी । अबकी बार आवाज तो निकली । पर जैसे कोई मच्छर भिनभिना रहा हो । मुझे ये सब कुछ बङा अजीब सा लगने लगा, और मैं समझ नहीं पा रही थी कि आखिर मेरे साथ क्या हुआ है ।
प्रसून के कमरे में गजब का सन्नाटा छाया हुआ था ।
उसने घङी पर निगाह डाली । शाम के सात बज चुके थे ।
उसने जेनी की ओर देखा तो उसे बस ऐसा लगा कि मानो वह कोई दिलचस्प हारर मूवी देख रही हो ।
- कमाल की जिगरावाली है । प्रसून ने सोचा ।
लेकिन टीकम सिंह की हालत खराब थी । वह महीनों से खाट तोङती अपनी पत्नी को भूल ही चुका था, और उल्लुओं की तरह आँखें झपकाता हुआ हर नई परिस्थिति को देख रहा था ।
- बेङा गर्क..भूतो तुम्हारा । प्रसून फ़ीके स्वर में बोला - आज का डिनर ही चौपट कर दिया ।
फ़िर उसने मोबाइल निकाला, और डायलिंग के बाद बोला - यस, चार लोगों के लिये पिज्जा, बट डिलीवरी टाइम नाइन पी एम ।
- ओ तो ठीक है, सर जी । दूसरी तरफ़ से आवाज आई - पर डिलीवरी कौन से शमसान या कब्रिस्तान पर होनी है, आज भूतों को पार्टी दी है क्या?
कोई और समय होता, तो नीलेश के इस मुँह लगे दोस्त को प्रसून एक ही बात कहता - ओह शटअप, लेकिन आज उसका मूड खुश था, इसलिये बोला - आज भूत घर पर ही आ गये ।
- सर जी..। दूसरी तरफ़ वाला घिघियाया - मैंनू बी किसी सुन्दर भूतनी सूतनी से मिलवाओ ना । सुना है..
- शटअप । कहकर उसने फ़ोन काट दिया ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।