मंगलवार, जुलाई 26, 2011

डायन The Witch 1



आज कुछ बातें स्पष्ट कर देना चाहता हूँ। जिसकी जरूरत मुझे कुछ पाठकों की प्रतिक्रियायें देखकर महसूस हुयी। और वो बातें ये हैं कि मेरे सभी उपन्यास और कहानी सामान्य विषयों पर नहीं हैं बल्कि उनके विषय और दृश्य ज्यादातर ‘जीवन के इस पर्दे से पार’ के हैं।
इसके अलावा दूसरी खास बात ये भी है कि आजकल लेखकों द्वारा जितना भी साहित्य आदि लेखन हो रहा है। उसमें सही मायनों में सही हिन्दी का इस्तेमाल ना के बराबर ही होता है, और इसके स्थान पर उर्दू या अंग्रेजी या फ़िर अन्य प्रचलित अपभ्रंश शब्दों का इस्तेमाल ही अधिक होता है। जो कि मेरे लेखन में नहीं है, या फ़िर बेहद कम है।
तीसरी बात यह है कि मेरा उद्देश्य सिर्फ़ एक लेखक के तौर पर स्थापित होना भर नहीं है। बल्कि अपने पाठकों को तन्त्र मन्त्र, योग, पुनर्जन्म, परालौकिक आदि दुर्लभ विषयों पर अधिकाधिक जानकारी देना, तथा यदि उनमें चाह और योग्यता है, तो उन विषयों में रुचि जगाते हुये शोध की ओर उन्मुख करना भी है । क्योंकि संसार में तमाम लोग इस तरफ़ प्रयासरत हैं। पर शायद कहीं न कहीं उन्हें सही जानकारी का अभाव है।
यहाँ यह बात ठीक से समझ लेना चाहिये कि ऐसा लेखन सिर्फ़ मनोरंजन या दुनियावी जानकारी के उद्देश्य से नहीं होता, बल्कि उसका प्रभाव सीधा हमारी चेतना और अंतःकरण पर भी पङता है। जिसका सम्बन्ध न सिर्फ़ वर्तमान जीवन से है, बल्कि बीत चुके जन्मों, और आने वाले जन्मों से भी है।
अतः सामान्य तौर पर जब कोई पाठक पहली बार मेरी किसी किताब को पढ़ता है, तो उसे कभी कभी तो खास कोफ़्त सी महसूस होती है। उलझन और झुंझलाहट भी होती है। पर यहाँ वही बात है कि इसका कारण विषय और मेरी अजीब सी लेखनशैली ही है, और जो कि जानबूझ कर ही है।
अतः ऐसा भी नहीं है कि यह सब में सरल साधारण भाषा में नहीं लिख सकता। लिख सकता हूँ। पर ऐसा करने से फ़िर इसका उतना लाभ नहीं होगा। जिसकी होने की पूरी पूरी संभावना है।
इसलिये मेरा यही निवेदन है कि ये सभी उपन्यास आपको कुछेक उपन्यास पढ़ लेने पर ही ठीक ठीक समझ आयेंगे, और बहुत संभव है कि एक ही उपन्यास कुछ लोगों को दो या अधिक बार भी पढ़ना पङे।
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राजीव श्रेष्ठ
 आगरा


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डायन The Witch 2



तभी अचानक उसके मोबायल फ़ोन की घन्टी बजी ।
उसने रिसीव करते हुये कहा - यस ।
- सर ! दूसरी तरफ़ से आवाज आयी - हम लोग लाडू धर्मशाला के पास आ गये हैं । अब प्लीज आगे की लोकेशन बतायें ।
उसने बताया, और अपनी कीमती रिस्टवाच पर दृष्टिपात किया ।
फ़िर वह बुदबुदाया - लाडू धर्मशाला.. इसका मतलब गड्डी से भी आधा घन्टा लगना था ।
और अभी शाम के चार बजने जा रहे थे ।
फ़िर वह लगभग टहलता हुआ सा मन्दिर की खिङकी के पास आया, और नीचे दूर दूर तक फ़ैले खेत, और उसके बाद घाटी और पहाङी को निहारने लगा । इस वक्त वह किशोरीपुर के वनखंड स्थित शिवालय में मौजूद था, और पिछले दो दिन से यहाँ था ।
वनखण्डी बाबा के नाम से प्रसिद्ध ये मन्दिर किशोरीपुर से बारह किमी दूर एकदम सुनसान स्थान पर था, और कुछ प्रमुख पर्वों पर ही लोग यहाँ पूजा आदि करने आते थे । जिन लोगों की मन्नत मान्यतायें इस मन्दिर से जुङी थी । वे भी गाहे बगाहे आ जाते थे ।
इस मन्दिर का पुजारी बदरी बाबा नाम का बासठ साल आयु का बाबा था । जो पिछले बीस सालों से इसी मन्दिर में रह रहा था । इसके अतिरिक्त चरस गांजे के शौकीन चरसी गंजेङी बाबा भी इस मन्दिर पर डेरा डाले रहते थे । और कभी कोई कभी कोई के आवागमन के क्रम में नागा, वैष्णव, नाथ, गिरी, अघोरी आदि विभिन्न मत के पन्द्रह बीस साधु हमेशा डेरा डाले ही रहते थे । विभिन्न वेशभू्षाओं में सजे इन खतरनाक बाबाओं को शाम के अंधेरे में चिलम पीता देखकर मजबूत से मजबूत जिगरवाला भी भय से कांप सकता था ।
पर बदरी बाबा एक मामले में बङा सख्त था ।
किसी भी मत का बाबा क्यों न आ जाय । वह मन्दिर के अन्दर बाहर शराब पीने और गोश्त खाने की इजाजत नहीं देता था । हाँ, गाँजे की चिलम और अफ़ीम का नशा करने की खुली छूट थी । क्योंकि खुद बदरी बाबा भी इन नशों का शौकीन था ।
इस समय भी मन्दिर पर बदरी और नीलेश के अलावा ग्यारह अन्य साधु मौजूद थे । जिनमें एक अघोरी और दो नागा भी आये हुये थे । नीलेश इन सबसे अलग मन्दिर के रिहायशी हिस्से की तिमंजिला छत पर मौजूद था । यह स्थान भी उसके गुप्त साधना स्थलों में से एक था, और बदरी प्रसून का तो भगवान के समान आदर करता था ।
- कहाँ होगा इसका अंत? नीलेश फ़िर से सोचने लगा - बङी विचित्र है, ये द्वैत की साधना भी । एक चीज में से हजार चीज निकलती हैं । जब भाई और गुरू ही खोज में हैं, तो वह तो बच्चा है । पुरुष और प्रकृति, और जीव और भगवान..द्वैत को लोगों ने अपनी अपनी तरह से बयान किया है फ़िर भी इसका रहस्य ज्यों का त्यों सा लगता है फ़िर आखिर इसकी जङ कहाँ है?
ऐसे ही विचारों के बीच उसने सिगरेट सुलगायी, और टहलता हुआ सा मंदिर वाले हिस्से की तरफ़ आया । बदरी बाबा चूल्हे पर चाय चढ़ा रहा था ।
तभी उसे दूर मंदिर की टेङी मेङी पगडंडीनुमा सङक पर एक बुलेरो आती दिखायी दी । नीचे बाबा लोग गोरखमत की किसी बात को लेकर झगङा करने के अन्दाज में बहस कर रहे थे ।
कुछ ही मिनटों में बुलेरो मंदिर के प्रांगण में आकर रुक गयी, और उससे चार लोग बाहर निकले । जिनमें दो अधेङ एक वृद्ध और एक युवा था । वे बदरी बाबा से कुछ पूछने लगे ।
तब बदरी बाबा ने मंदिर की सीढ़ियों की तरफ़ इशारा किया ।


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डायन The Witch 3


- ये पूरा मायाजाल । पीताम्बर आगे बोला - दरअसल, एक रहस्यमय बुढ़िया औरत को लेकर है । जो हमारी ही कालोनी में, मगर सभी मकानों से काफ़ी दूर हटकर, एक पुराने किलेनुमा बेहद बङे मकान में रहती है ।
यह सुनते ही नीलेश को न चाहते हुये भी हँसी आ ही गयी ।
पीताम्बर थोङा सकपका कर बोला - मैं आपके हँसने का मतलब समझ गया । मगर कभी कभी वास्तविकता बङी अटपटी होती है । दरअसल हमारी कालोनी जिस स्थान पर है । उससे दो फ़र्लांग  (पांच फ़र्लांग बराबर एक किमी) की दूरी पर, किसी जमाने में किसी छोटे मोटे राजा का किला था । करीब दो सौ साल पुराना वह किला, और किले के आसपास उसी समय के बहुत से जर्जर भवन अभी भी गुजरे वक्त की कहानी कह रहे हैं ।
बहुत से प्रापर्टी डीलरों ने इस भूमि को लेकर इसका नवीनीकरण करने की कोशिश की । पर विवादों में घिरी वह सभी भूमि जस की तस पुरानी स्थिति में ही है ।
दूसरे वह टूटी फ़ूटी हालत के भवन झाङ पोंछ देखरेख के उद्देश्य से किराये पर उठा दिये थे । जिसकी वजह से बहुत से किरायेदारों ने लगभग उस पर कब्जा ही कर रखा है । ऐसी हालत में वह एक किमी के क्षेत्रफ़ल में फ़ैला किला, और राजभवन से जुङे अन्य भवन, सभी खस्ता हालत में निम्न वर्ग के लोगों की बस्ती बन गये हैं, और जैसा कि मैंने कहा कि हमारी निम्न मध्यवर्गीय कालोनी सिर्फ़ उससे दो फ़र्लांग की दूरी पर है ।
नीलेश ने एक सिगरेट सुलगायी, और बेहद शिष्टता से सिगरेट केस उन लोगों की तरफ़ बढ़ाया । हरीश को छोङकर उन तीनों ने भी सिगरेट सुलगा ली ।
- अब मैं वापस रहस्यमय बुढ़िया की बात पर आता हूँ । पीताम्बर एक गहरा कश लगाता हुआ बोला - आज से कोई बीस बाइस साल पहले की बात है, जब बुढ़िया के बारे में लोगों को पता चला कि..?
अचानक नीलेश चौंका, और तिमंजिला कमरे की खिङकी की तरफ़ देखने लगा ।
- ड डायन ! उसके बोलने से पहले ही नीलेश के मस्तिष्क में यह शब्द गूँजा ।
और उसके खुद के रोंगटे खङे हो गये ।
बङी मुश्किल से उसने खुद को खङा होने से रोका, और संभलकर आगंतुकों को देखने लगा ।
हँसती हुयी छायारूप एक खौफ़नाक बुढ़िया खिङकी पर बैठी थी ।
- मृत्युकन्या ! इस शब्द को उसने बहुत मुश्किल से मुँह से निकलने से रोका - साक्षात मृत्युकन्या की  बहुरूपा गण, यमलोक की डायन, खिङकी पर विराजमान थी, और बङे निश्चिन्त भाव से हँस रही थी । इतनी जबरदस्त शक्ति कि प्रेतवायु के जिक्र, यानी अपने बारे में बात होने, पर ही जान जाती थी । किसी आवेश की आवश्यकता नहीं, किसी मन्त्र संधान की आवश्यकता नहीं । और फ़िर भी वह कालोनी सलामत थी, यह जैसे कोई चमत्कार ही था ।
- कोई चमत्कार नहीं योगी ! डायन उससे सूक्ष्म सम्पर्की होकर बोली - मेरा मतलब, बस खास लोगों से होता है, जिनसे मैंने बदला लेना है, और जिनको यमलोक जाना है, बाकी से मेरा क्या वास्ता ।
- ओ गाड ! नीलेश माथा रगङता हुआ मन ही मन बोला - सच ही कह रही थी वह । पर ऐसी डायन से उसका आज तक वास्ता न पङा था । ये यहाँ से डायन होकर जाने वाली डायन नहीं थी, बल्कि वहाँ से डयूटी पर आयी डायन थी । एक सिद्ध डायन, एक अधिकार सम्पन्न डायन, एक नियम अनुसार आयी डायन ।
- किस सोच में डूब गये भाई ! पीताम्बर उसको गौर से देखता हुआ बोला - मैं आगे बात करूँ?
नीलेश का दिल हुआ, इन अज्ञानियों से कहे कि क्या बात करोगे, जब बात खुद ही मौजूद है । पर वह हाँ भी नहीं कर सकता था, ना भी नहीं कर सकता था । सच तो ये था कि उसकी खुद की समझ में नहीं आ रहा था कि इस समय वो डायन को डील करे, या पीताम्बर कंपनी को ।
- हाँ तो मैं कह रहा था । पीताम्बर घङी पर निगाह डालता हुआ बोला - कि बीस बाइस साल पहले जब उस बुढ़िया ने अपने ही नाती को मार डाला, और उसका खून पी गयी । तभी हमें पता चला कि...!
- ड डायन !  पुनः नीलेश के दिमाग में गूंजने लगा ।
उसकी निगाह फ़िर से स्वतः खिङकी पर गयी ।
डायन पहले की तरह ही खौफ़नाक मगर मधुर अन्दाज में हँस रही थी ।


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डायन The Witch 4


- एक्सक्यूज मी ! नीलेश ने अचानक उसे बीच में टोका - बुढ़िया का लङका अब कहाँ है?
- वो इस समय डी एम है, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ।
नीलेश उछलते उछलते बचा ।
- भले ही आपको इस बात पर हैरानी हो रही होगी, पर वह और उसकी नयी बहू अब बुढ़िया से कोई सम्बन्ध नहीं रखते, और किसी पहाङी जगह पर रहते हैं । सामंत साहब की पत्नी भी प्रशासनिक सेवा में है ।
- ओह ! हठात नीलेश के मुँह से निकला - तो उसकी पहली बहू को भी बुढ़िया ने मार डाला ।
- नहीं । पीताम्बर बोला - दरअसल, धीरज सामंत साहब की पहली शादी बुढ़िया ने छोटी उमर में ही कर दी थी । उस समय धीरज बाबू पढ़ रहे थे । उसी समय उनको एक पुत्र भी हुआ था । जिसे कि, जैसा कि मैंने बताया । बुढ़िया ने कुँएं के पत्थर पर पटक पटक कर मार डाला । इस घटना के बाद वह बहू पागल सी हो गयी, और यूँ ही इधर उधर घूमती रहती । वह बेहद गंदी हालत में रहती थी । फ़िर इसके बाद एक दिन वह शहर ही छोङकर कहीं चली गयी, और उसके बाद उसका कोई पता न लगा ।
बाद में धीरज साहब पढ़ाई के लिये बाहर चले गये, और उसी दौरान उन्होंने नौकरी लगते ही दूसरी शादी कर ली थी । वह उनकी लवमैरिज हुयी थी । इसके बाद धीरज साहब एक दो बार ही शहर में आये, और फ़िर कभी नहीं आये । इस तरह वह बुढ़िया काफ़ी समय से उस विशाल मकान में अकेली रहती है ।
नीलेश ने एक निगाह पूर्ववत ही खिङकी पर बैठी बुढ़िया पर डाली, और जानबूझ कर मूर्खतापूर्ण प्रश्न किया - फ़िर बुढ़िया का खाना वाना कौन बनाता है, और उसका खर्चा वर्चा?
- आप भी कमाल करते हो, नीलेश जी ! पीताम्बर हैरानी से बोला - शेर की गुफ़ा में जाकर कोई बकरा उसके हालचाल जानेगा कि वह क्या कर रहा है, कौन मरने जायेगा ।
- जब बुढ़िया ने । नीलेश बोला - अपने अबोध नाती को मारा, तब आप लोगों ने पुलिस को इंफ़ार्म किया, या सोसायटी के लोगों ने कोई एक्शन लिया?
अब पीताम्बर और उन तीनों को साफ़ साफ़ समझ में आ गया कि यहाँ आकर उनसे भारी गलती हुयी । इस बन्दे के बस का कुछ भी नहीं है, और फ़ालतू में टीवी अखबार वालों की तरह इंटरव्यू कर रहा है । फ़िर भी एकदम अशिष्टता वे कैसे प्रदर्शित कर सकते थे ।
इसलिये वह बोला - नीलेश जी ! पुलिस वालों के बाल बच्चे नहीं होते क्या, जो वह अपनी और अपने घर वालों की जान जोखिम में डालेंगे । ये किसी क्रिमिनल का मामला नहीं बल्कि..!
- ड डायन ! एकदम उसके बोलने से पहले ही नीलेश के मस्तिष्क में एक शब्द ईको साउंड की तरह गूँजने लगा ।
- बल्कि..! नीलेश को उसकी आवाज फ़िर से सुनाई दी - एक डायन का मामला था । कोई उस क्षेत्र में फ़टकने भी नहीं जाता, वह डायन और डायनी महल पूरे शहर में प्रसिद्ध है ।
इस बार डायन मधुर स्वर में हँसी । उसके घुँघरू बजने जैसी ध्वनि सिर्फ़ नीलेश को सुनाई दी । लेकिन उसने खिङकी की तरफ़ देखने की कोई कोशिश नहीं की ।
- खैर..! नीलेश फ़िर से बोला - उस बुढ़िया से आपको क्या कष्ट? वह तो आपसे दो फ़र्लांग दूर रहती है, और फ़िर आपने कहा कि उसकी बस्ती में बहुत से अन्य लोग भी रहते हैं ।
पीताम्बर का मन हुआ कि अपने बाल नोच ले । भेजने वाले ने क्या सोचकर इसके पास भेजा ।
- आप कष्ट पूछ रहे हो । पीताम्बर बोला - ये पूछिये, क्या कष्ट नहीं है । हम लोग बेहद सतर्कता से रहते हैं । डायन ने कितने ही घर वीरान कर दिये, कितने ही लोगों को खा गयी, यानी मार डाला । वो बहुत दूर से खङी भी किसी को देखे, तो बदन में जलन होने लगती है । कभी किसी के घर के आगे रोटी का टुकङा फ़ेंक जाती है, किसी के घर के आगे हड्डियाँ फ़ेंक जाती है । किसी के दरवाजे पर खङी होकर रोटी प्याज भी माँगती है ।
- ओह.. ! नीलेश सीरियस होकर बोला - फ़िर तो यह वही मालूम होती है, जिसकी मीडिया में भी काफ़ी चर्चा हुयी थी । फ़िर शायद वह आपके ही शहर में रहती है । खैर..जब वह आपके यहाँ से रोटी प्याज माँगती है, तब आप उसको देते हो ।
- हमारा बाप भी देगा । पीताम्बर झुंझलाकर बोला - देना पङता है, अपने घर को किसी आपत्ति से बचाने के लिये, बिन बुलायी मुसीबत से बचाने के लिये ।
- अंधेरा..कायम रहेगा ! डायन उसे अँगूठा दिखाती हुयी बोली ।


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डायन The Witch 5


- ! फ़िर अचानक वह खिसियाया सा बोला - क्या बिगाङा है, इन मासूम लोगों ने तेरा । क्यों नहीं इन्हें चैन से जीने देती, इन हत्याओं से तुझे क्या मिलता है ।
- सावधान योगी ! डायन यकायक धीर गम्भीर स्वर में बोली - मैं कोई ऐ..बे..तू..दुष्ट..श्रेणी की छिछोरी महत्वहीन प्रेतात्मा नहीं हूँ । मैं गण श्रेणी में आने वाली नियुक्त डायन हूँ, और मृत्युकन्या के अधीन कार्य करती हूँ ।
यह सब जानते हुये भी नीलेश को उसके बोलने पर ऐसा लगा, मानो उसके पास बम फ़टा हो । वह अपनी जगह पर जैसे जङवत होकर रह गया, और उसके कानों में अज्ञात अदृश्य शून्य की सांय सांय सी गूँजने लगी ।
मृत्युकन्या !
मृत्युकन्या कोई मामूली बात नहीं थी ।
और इसका एकदम साफ़ सा मतलब था कि वह डयूटी पर आयी थी, और उसे उसका कार्य करने से कोई नहीं रोक सकता था । शायद इसीलिये ये अच्छा ही हुआ था कि पीताम्बर और दूसरों ने उसे खुद ही नाकाबिल समझ लिया था, वरना ये भयावह स्थिति वह उन्हें एक जन्म में भी नहीं समझा पाता । और अगर समझाने में कामयाब भी हो जाता, तो वह उन्हें कोई दवा देने के स्थान पर उनका दर्द और भी बढ़ाने वाला था । क्योंकि इससे तो वे और भी भयभीत ही हो जाने वाले थे ।
- शक्ति ! यकायक फ़िर जैसे ही नीलेश के दिमाग में यह विचार आया ।
डायन अंगूठा दिखाती हुयी बोली - अँधेरा, कायम रहेगा ।
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नीलेश कमरे से बाहर आकर नीचे मंदिर के प्रांगण में झांककर देखने लगा कि पीताम्बर एण्ड कंपनी क्या कर रही है । उसकी आशा के मुताबिक ही वे नीचे अन्य साधुओं से बात कर रहे थे ।
वह फ़िर से कमरे में आ गया ।
- आप फ़्रिक मत करिये ! उसे डायन का मधुर स्वर सुनाई दिया - उन्हें आज मंदिर में ही रुकना होगा, और उनमें से एक को..। उसने आसमान की तरफ़ उँगली उठायी - आज रवाना होना पङेगा । क्या अजीब सा खेल है ना, कि मृत्यु की गोद में बैठे इंसान को भी पता नहीं होता कि बस वह कुछ ही घंटों का मेहमान और है । यही नियम है, यही दस्तूर है ।
वह जो भी बोलती थी । उससे आगे बोलने के लिये जैसे नीलेश के पास शब्द ही नहीं होते थे । फ़िर वह क्या बोलता, और क्या करता । अतः वह खुद को एकदम असहाय सा महसूस कर रहा था । उसे गुरू की जरूरत महसूस हो रही थी, उसे प्रसून की जरूरत महसूस हो रही थी । पर क्या पता वे कहाँ थे ।
फ़िर भी वह बोला - लेकिन इसका क्या प्रमाण कि जो आप कह रही हो, वह सच है । मतलब आप मृत्युकन्या द्वारा नियुक्त हो ।
- प्रत्यक्षम किं प्रमाणम । वह किसी देवी की तरह ही बोली - योगी, आज रात का खेल जब देखोगे, तब यह प्रश्न खुद समाप्त हो जायेगा । मेरे द्वारा शरीर मुक्त की गयी जीवात्मा को लेने जब दूत आयेंगे, तो वे मुझे प्रणाम करेंगे, और त्रिनेत्रा योगी के लिये ये दृश्य देखना कोई बङी बात नहीं । 
नीलेश का सर मानो धङ से अलग होकर अनन्त आकाश में तेजी से घूमने लगा ।
और वह सिर रहित धङ ही रह गया ।


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डायन The Witch 6




शाम के सात बजने वाले थे ।
और हल्का हल्का अंधेरा घिरने लगा था ।
तभी उसकी निगाह मंदिर के आंगन में ही खङे पीपल के विशाल वृक्ष पर गयी ।
जिस पर बैठी पैर झुलाती हुयी डायन नीचे बैठे लोगों को ही देख रही थी ।
- सान्ता मारिया ! वह सीने पर क्रास बनाकर बोला - किसका सफ़ाया करने वाली है यह? कौन जानता था ।
उसके दिमाग में कुछ देर पूर्व ही हुआ सारा वाकया किसी रील की तरह घूमने लगा ।
खासतौर पर गुरू का ये कहना सर्वत्र..
इसका तो मतलब यही हुआ ना कि प्रसून भाई उसके साथ हैं ।
लेकिन कहाँ? इस बात का कोई उत्तर उसके पास नहीं था ।
पीताम्बर और उसके साथी वाकई रुक गये मालूम होते थे । पर वे क्यों कर रुके थे, ये अभी उसको पता नहीं था । बदरी बाबा और दो अन्य साधु मिलकर भोजन बनाने की तैयारी कर रहे थे ।
जो होगा देखा जायेगा, सोचकर उसने एक सिगरेट सुलगायी, और गहरा कश लेते हुये पीपल पर झूलती हुयी सी डायन को देखने लगा ।
फ़िर अचानक उसके दिमाग में बिजली सी कौंधी।
और उसने समूची एकाग्रता डायन पर केन्द्रित कर दी ।
आज रात में डायन उन चार आगंतुकों में से किसी एक को यमलोक पहुँचाने वाली थी । इसलिये बहुत संभव था कि डायन का पूरा ध्यान उसी लक्ष्य व्यक्ति पर केन्द्रित रहेगा, और तब इसकी सबसे बङी पहचान ये होगी कि उन चारो में से मौत की गोद में बैठ चुके व्यक्ति के मस्तक आदि पर मृत्यु के लक्षण जैसे जाला सा बनना, उसके दोनों सुरों का एक साथ चलना, उसकी चाल ढाल व्यवहार में एक सम्मोहन सा होना अवश्य होंगे । इससे बहुत आसानी से पता लग सकता था कि आज कौन हलाल होने वाला है, और तब शायद कुछ किया भी जा सकता है ।
मगर शायद ही !
पर इस परीक्षण में भी कठिनाई थी । एक तो अंधेरा हो चुका था, इसलिये शरीर पर उभरे मृत्यु पूर्वाभास चिह्न देखना आसान नहीं था । वे चारो अथवा नीचे वाले मिलाकर कई लोग हमेशा साथ ही रहने थे । अतः सम्मोहित को भी आसानी से तलाशना मामूली बात नहीं थी । दूसरे अगर डायन रात के दो बजे तक भी टारगेट को निशाना बनाने वाली थी, तो अब से लेकर सिर्फ़ सात घण्टे ही बचे थे ।
सिर्फ़ सात घन्टे !
और इन सात घन्टों में कोई भी समय ऐसा नहीं आने वाला था, जब वह कुछ कर सकता था ।
कुछ, मगर क्या?
कुछ भी, जो अभी खुद उसे ही पता नहीं था ।
फ़िर उसने वही अंधेरे में तीर चलाने का नुस्खा आजमाने की सोची, और डायन की दृष्टि का अनुसरण करने की कोशिश करने लगा । मगर नीचे पीताम्बर कंपनी को मिलाकर एक दर्जन से अधिक लोग लगभग एक साथ ही बैठे हुये थे, और ऐसे में वह डायन खास किसको ध्यान में ले रही है । पता करना बेहद कठिन ही था ।
तभी अचानक डायन वहीं बैठी बैठी उससे खुद ही सम्पर्की होकर बोली - अँधेरा..कायम रहेगा । आप मेरी गतिविधियों को अध्ययन करने की कोशिश कर रहे हैं, चलो मैं खुद ही बता देती हूँ कि मेरा लक्ष्य हरीश है, सबसे छोटा हरीश ।
नीलेश के दिमाग पर मानों घन प्रहार हुआ हो । फ़िर स्वतः ही उसने नीचे देखना बन्द कर दिया, और कुर्सी की पीठ पर टेक लगाता हुआ अधलेटा सा होकर अब निश्चिन्त भाव से डायन की तरफ़ देखने लगा ।


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डायन The Witch 7




- मैं सुन्दरी नहीं हूँ । वह बिना किसी भाव के बोली - मेरा नाम चंडूलिका साक्षी है, और यमलोक मेरा निवास है, क्या तुम मेरा मेहमान बनना पसन्द करोगे?
- कमीनी ! न चाहते हुये भी स्वभाववश नीलेश के मन में भाव आ ही गया - तेरा मेहमान बनना, तो शायद मूर्ख से मूर्ख भी ना पसन्द करे ।
- लेकिन ऐसा नहीं है । अबकी बार डायन बिना किसी उत्तेजना के शान्त स्वर में बोली - योगी आप डायन या ऐसी अन्य गण आत्माओं के बारे में जानते नहीं हैं, इसलिये ।
- जानना भी नहीं चाहता । इस बार नीलेश के मुँह से निकल ही गया - मेरे दिमाग में इस समय सिर्फ़ एक ही बात है कि हरीश की मौत होगी, मगर क्यों, क्यों चंडूलिका साक्षी क्यों, आखिर क्यों? जबकि तुम इसे अलफ़ बता रही हो ।
- जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च । वह डाली पर ठीक से बैठती हुयी बोली तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि, क्योंकि हे योगी ! जिसने जन्म लिया है, उसका मरना निश्चित है, और उसके बाद मरने वाले का जन्म भी तय है । जिसके बारे में कुछ किया नहीं जा सकता, कुछ भी नहीं किया जा सकता । फ़िर ऐसा जानकर उसके बारे में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिये ।
मगर न जाने क्यों, न जाने कौन सी अज्ञात प्रेरणा से नीलेश अब उस डायन से प्रभावित नहीं हो रहा था, और अपने स्वभाव में लौट आया था । अब वह नीलेश था, वास्तविक नीलेश ।
अतः एकदम लापरवाह होकर बोला - तेरी माँ ..
तभी उसे पीताम्बर ऊपर आता दिखायी दिया ।
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- हम लोग आज रुक गये । वह बेहद गर्मजोशी से बोला - दरअसल भगवान की कृपा से हमारा काम बन गया । नीचे बाबाओं में जो गजानन बाबा हैं, उन्होंने कहा है कि डायन क्या उसकी माताजी भी हमारी बस्ती छोङ देगी, उन्होंने बहुत टेङी टेङी डायनों चुङैलों को ठीक किया है । वे आपके बारे में कह रहे थे कि आप अभी नौसिखिया हैं । ..नीलेश जी माइंड मत करना, लेकिन ये डायन चुङैल वास्तव में बच्चों के काम नहीं हैं । फ़िर अभी आप तंत्र विद्या सीख रहे हो, और अभी उमर ही क्या हुयी होगी आपकी । अभी तो शायद, शादी भी नहीं हुयी होगी । वैसे आप शादी तो करेंगे ना । बुरा मत मानना, क्योंकि मैंने सुना है कि साधु लोग अक्सर शादी नहीं करते, ना । लेकिन हम ग्रहस्थ लोगों का तो शादी बिना गुजारा नहीं हो सकता । 
- कमाल है । नीलेश मन ही मन हैरान सा रह गया - इसे अचानक क्या हो गया ।
तब उसे ख्याल आया कि ये गांजा भरी चिलम का कमाल था, जो उसने थोङी देर पहले नीचे साधुओं के साथ पी थी, और उसे पीने से काफ़ी हद तक उसके मन से डायन का खौफ़ जाता रहा था ।
परन्तु मौत का बिगुल बज चुका था । मौत और मरने वाला आमने सामने आ चुके थे, लेकिन उस भावी मौत से अनजान ये इंसान कितना खुश था । सिर्फ़ कुछ घन्टे बाद होने वाली मौत से ।
नीलेश उससे हरीश के बारे में पूछना चाहता था । पर उसमें एक बेहद दिक्कत वाली बात यह थी कि हरीश वाकई मर जाता, या अन्य कोई बङा हादसा होता, तो उसके तार खामखाह उससे जुङ जाने वाले थे । क्या पता हरीश के साथ क्या और कैसे होने वाला था, और इस तरह पूछकर एक होने वाली बात से जानबूझ कर सम्बन्ध बनाता हुआ, वह एक और नयी मुसीबत को जन्म नहीं देना चाहता था ।
लेकिन तभी उसे डायन की आवाज सुनायी दी - चिंता न करो, और मौत का नंगा नाच देखो । जो आप जानना चाहते हो । वह यह खुद बतायेगा, और बिना पूछे बतायेगा ।
- अब देखो ना । पीताम्बर सिगरेट का गहरा कश लेता हुआ बोला - मेरे लङके हरीश को ही देखो । अभी क्या उमर है उसकी, पर मैंने उसकी शादी तय कर दी । नीलेश जी, बुरा मत मानिये, लेकिन आजकल इंडिया में विदेशों की तर्ज पर फ़्री सेक्स का चलन होता जा रहा है । ऐसे में कुछ उल्टा सुल्टा हो जाये, तो कुल खानदान पर दाग लग जाता है । इसलिये मैं उसकी जल्द से जल्द शादी कर देना चाहता हूँ ।
- मगर मौत से । चंडूलिका सर्द स्वर में बोली - वो भी कुछ ही देर में, अर्थी रूपी घोङे पर बैठा हुआ, रक्त से सराबोर सजा हुआ, और तुम्हारे रुदन की मातम रूपी शहनाईयाँ सुनता हुआ, वह अपनी बारात शमशान ले जायेगा, और मौत की देवी का आलिंगन करेगा, जो बेकरारी से उसका इंतजार कर रही है । 
उस बेहद सर्द स्वर को सुनकर नीलेश जैसे इंसान के भी भय से रोंगटे खङे हो गये ।


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डायन The Witch 8



ठीक दो घन्टे बाद ।
जैसे ही घङी ने रात के ग्यारह बजाये, हरीश को कुछ बैचेनी सी महसूस हुयी ।
ये बैचेनी क्यों थी, इसका उसे कुछ पता नहीं था । उसे लघुशंका की भी आवश्यकता महसूस हो रही थी । उसने अपने पास सोये लोगों पर निगाह डाली, और तख्त से उठ खङा हुआ । फ़िर वह लघुशंका हेतु मंदिर के पिछवाङे पहुँचा ।
तभी उसे मंदिर से कुछ ही फ़ासले पर स्थिति छोटी पहाङियों के नजदीक, जुगनू की तरह चमकती, मगर उससे अधिक प्रकाश वाली, चार आँखें सी चमकती नजर आयीं । जो किन्हीं जंगली जीवों जैसी प्रतीत होती थी । हरीश ने इससे पहले ऐसी अदभुत चीज कभी नहीं देखी थी, वह बेख्याली में सम्मोहित सा उधर ही जाने लगा, जैसे किसी अदृश्य डोर से बंधा हो ।
यह मौत का बुलावा था, अंतिम आमंत्रण ।
उसे नहीं पता था कि गजानन बाबा चुपचाप उसके पीछे दूरी बनाकर चल रहा था ।
बाहर हल्की हल्की सर्दी सी थी । यूँ भी खुले में गर्मियों में भी ठंड मालूम होती है । नीलेश ने अपने बदन पर जैकेट डाल ली, और उसकी जेबों में हाथ डाले हुये वह पहाङियों की तरफ़ जाने लगा । डायन कहाँ हैं, क्या कर रही है? अब इससे उसे कोई मतलब नहीं था ।
दरअसल उसने आज रात जागते ही गुजारने का तय कर लिया था, और वह इन आगंतुकों पर बराबर नजर रखे हुये था । उसे अच्छी तरह मालूम था कि डायन का कहा मिथ्या नहीं था, और वह इस मौत का लाइव टेलीकास्ट देखना चाहता था, जो बकौल चंडूलिका साक्षी अलफ़ थी, और टल भी सकती थी । हालांकि डायन ने अपने सभी पत्ते नहीं खोले थे, पर वह बेचारी नहीं जानती थी कि नीलेश महान योगियों के शक्तिपुंज से एक चेन द्वारा जुङा हुआ है, और बहुत कुछ जान गया है ।
जैसे ही हरीश उन जानवरों के समीप पहुँचा । उनका कुछ कुछ आकार उसे समझ आने लगा ।
वे चीते के बच्चे समान कोई जानवर थे, और आपस में लङते हुये से मालूम हो रहे थे । उससे कुछ ही अलग चलते हुये गजानन बाबा ने किसी अदृश्य प्रेरणा से हाथ में पत्थर का टुकङा उठा लिया था, और उन जंगली जानवरों को लक्ष्य कर मारने वाला था । उसका इरादा हरीश को बचाने का था ।
चंडूलिका साक्षी इस डैथ ग्राउंड से कुछ ही अलग एकदम शान्त खङी थी । पर उसकी आँखों में एक प्यासी खूनी चमक तैर रही थी । चार भयंकर यमदूत पहाङियों पर आ चुके थे, और अंतिम क्षणों के लिये तैयार थे, जिसमें बस अब कुछ ही देर थी ।
गजानन बाबा के हाथ से फ़ेंका गया पत्थर सनसनाता हुआ एक बिल्लोरी जानवर की ओर लपका । बस इसी का डायन को इंतजार था । पत्थर लगते ही जानवर मानो अपमान से तिलमिलाया । उसने बैचेनी से अपने शरीर को इधर उधर घुमाया । ठीक उसी क्षण चंडूलिका ने अपनी उंगली जानवर की ओर सीधी कर दी । वह पारदर्शी आकृति वाला जानवर सशरीर हरीश के जिस्म में समाकर एकाकार हो गया ।
हरीश एकदम से लङखङाया, और फ़िर झटके से सीधा हुआ ।
अब उसकी आँखों में वही बिल्लोरी जानवर जैसी तेज चमक नजर आ रही थी ।
गजानन बाबा के छक्के छूट गये ।
वह वापस ‘बचाओ बचाओ’ चिल्लाता हुआ मंदिर की तरफ़ भागा ।
- अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः, अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व । चंडूलिका की गम्भीर महीन आवाज गूँजी - यह देह तो मरणशील है, लेकिन इस शरीर में बैठने वाला आत्मा अमर है । इस आत्मा का न तो अन्त है, और न ही इसका दूसरा कोई मेल है । इसलिये मौत से मत भाग गजानन, और उससे युद्ध कर । मौत से भागकर, तू कहाँ जायेगा, मौत तेरे सिर पर नाच रही है । तेरा अन्त आ गया है ।
तभी यकायक दूसरा बिल्लोरी जानवर उछल कर लपका ।
और दूसरे ही क्षण वह गजानन बाबा के शरीर में समा गया ।
बाबा ने भागना बन्द कर दिया, और सधे सख्त कदमों से पलट कर हरीश की ओर बढ़ा ।
- भाग..हरीश.. ! अचानक सचेत होकर नीलेश चिल्लाया - भाग, जितना तेज भाग सके, यहाँ से दूर भाग ।
मगर हरीश ने जैसे सुना तक नहीं, और वह किसी मल्ल योद्धा की भांति गजानन बाबा से भिङ गया, और दोनों एक दूसरे का गला दबाने लगे । यहाँ तक कि दोनों की जीभें बाहर निकल आयीं । मगर गले पर उनकी पकङ कम नहीं हुयी ।
तभी नीलेश को डायन की आवाज फ़िर सुनाई दी - अँधेरा, कायम रहेगा ।


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डायन The Witch 9




उसे याद आया हिमालयी क्षेत्र में स्वर्ग सीढ़ी के नजदीक भी ऐसा ही स्थान है । जहाँ पूर्वजन्म के संस्कारों से एकत्र हुये लोग स्वतः प्रेरित होकर एक दूसरे का गला दबाने लगते हैं । वास्तव में मौत के इस ओटोमैटिक सिस्टम के चलते वे दोनों शिकार खुद ही एक जगह पर आ गये, और मौत का खेल शुरू हो गया  
- योगी चंडूलिका बोली अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे । गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः । जिनके लिये शोक नहीं करना चाहिये, उनके लिये तुम शोक कर रहे हो । और बोल तुम बुद्धिमानों की तरह रहे हो । ज्ञानी लोग, न उनके लिये शोक करते हैं, जो चले गये,  और न ही उनके लिये, जो हैं ।
और अब अंतिम खेल शुरू हो चुका था ।
डायन ने उसे ‘डन’ का अंगूठा दिखाया ।
मगर उसकी तरफ़ से एकदम बेपरवाह नीलेश ने खुद को एकाग्र किया, और बुदबुदाया - अलख..
इसके साथ ही वह अपनी मध्य उंगली को अंगूठे से इस तरह से बारबार छिटकने लगा ।
मानो उसमें कोई गन्दी चीज लगी हो ।
तुरन्त ही वह बिल्लोरी जानवर इस शक्तिशाली प्रयोग से भयभीत हुआ, और हरीश के शरीर से निकलकर डायन में समा गया ।
डायन गुस्से में भयंकर रूप से दहाङी ।
- भाग हरीश ! अबकी बार नीलेश गला फ़ाङकर चिल्लाया मौत से बचना चाहता है, तो भाग । जितना तेज भाग सकता है, उतना तेज भाग, और मंदिर भी मत जाना, यहाँ से दूर भाग जा । सुबह ही मंदिर लौटना, तब मैं देखूँगा ।
हरीश के ऊपर से यकायक मानो नशा सा उतरा ।
उसने बिलकुल भी बिलम्ब नहीं किया, और तेजी से भागने लगा ।
नीलेश के शब्द उसका पीछा कर रहे थे - भाग हरीश, जल्दी भाग, और जल्दी, मौत तेरे पीछे है ।
गजानन बाबा जमीन पर गिर पङा, और निचेष्ट हो गया ।
चारों दूत उसके करीब आ गये, और उसके प्राणों को समेट कर बाहर लाने लगे ।
प्राणीनामा संयुक्त होते ही बाबा का शरीर दो बार हल्के से हिला, और दम निकलते ही वह बेदम हो गया । दूतों ने चंडूलिका को प्रणाम किया, और बाबा के जीव को लेकर हवा में दो सौ फ़ुट ऊँचा उठे । इसके बाद एक उज्जवल चमक सी कुछ क्षणों के लिये नजर आयी, और फ़िर वे उत्तर दिशा में रवाना हो गये ।
कसमसाती हुयी चंडूलिका ने नीलेश को गुस्से से घूरा, और फ़िर अंगूठा दिखाती हुयी बोली - छोङूँगी नहीं ..
- शक्ति ! नीलेश ने हँसकर उसकी तरफ़ देखा ।
डायन अंगूठा दिखाती हुयी बोली अँधेरा ।
और फ़िर वह अदृश्य हो गयी ।
नीलेश ने एक सिगरेट सुलगायी, और टहलता हुआ सा मंदिर की तरफ़ जाने लगा ।


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डायन The Witch 10



दूसरे दिन सुबह नीलेश उन लोगों के उठने से पहले ही गायब था ।
दरअसल वह वनखण्डी मंदिर पर रात में गया ही नहीं था । 
अचानक कुछ ध्यान में आते ही वह उस दिशा में बढ़ने लगा था । जिधर हरीश भागा था ।
वह बेहद सावधानी से उसे तलाशता हुआ जा रहा था । पर उसे हरीश कहीं नजर नहीं आया । तब  उसकी तलाश छोङकर वह वनखण्डी मंदिर से पाँच किमी दूर एक अन्य मंदिर में जा पहुँचा ।
उस समय रात के चार बजने में कुछ ही मिनट कम थे ।
मंदिर का पुजारी और एक बाई गहरी नींद में सोये हुये थे । नीलेश की आहट से बूढ़ा पुजारी स्वयँ ही उठ गया । वह नीलेश को अच्छे योगी और उच्च खानदान के सपूत के तौर पर बखूबी जानता था । उसे नीलेश को इस समय अचानक देखकर कुछ आश्चर्य सा हुआ ।
नीलेश ने उसे बताया कि वह सुबह टहलते हुये इस तरफ़ चला आया, और पुजारी द्वारा खाली किये दीवान पर लेटते हुये उसने आँखें मूँद ली ।
मौत का यूँ साक्षात खेल उसके जीवन में पहली बार घटा था ।
कोई एक घन्टा बाद जब पुजारी ने हाथ में चाय लिये उसे झकझोरते हुये जगाया । तब वह गहरी नींद के आगोश में जा चुका था । तुलसी के पत्तों और तेज अदरक की साधुई चाय ने उसके सुस्त बदन में एक नयी स्फ़ूर्ति पैदा की, और वह फ़िर से चैतन्य होने लगा ।
कोई सवा पाँच बजे तक नीलेश वहीं मौजूद रहा । इसके बाद मंदिर में खङी एक युवा महन्त की बाइक उठाकर वह पीछे के रास्ते वनखण्डी पहुँचा । इसके बाद सबकी निगाह बचाता हुआ वह एक पेङ के सहारे दो मंजिल पर पहुँचा, और वहाँ से आसानी से तिमंजिला स्थिति अपने कमरे में आ गया ।
अब उसे नीचे का जायजा लेना था ।
उसने खिङकी से उस डैथ ग्राउंड का भी जायजा लिया । जहाँ गजानन बाबा देह मुक्त हुआ था ।
पर अभी वहाँ कोई हलचल नहीं थी ।
उस तरफ़ लोगों का आना जाना नौ दस बजे के लगभग ही शुरू होता था ।
तभी बदरी बाबा चाय लेकर उसके कमरे में आया ।
नीलेश उससे यूँ ही हालचाल लेने के अन्दाज में बात पूछने लगा ।
बदरी बाबा ने बताया कि वे चारो लोग पीताम्बर एण्ड कंपनी अपनी गाङी से जा चुके हैं, और सब ठीक ही है । उसे समझ में नहीं आया कि अचानक नीलेश इस तरह क्यों पूछ रहा है ।
- नहीं, नहीं । नीलेश ने बात संभाली - गजानन बाबा डायन बाधा उपचार के लिये उनके साथ जाने वाले थे । ऐसा पीताम्बर बोल रहा था, वे साथ गये, या नहीं?
बदरी बाबा बेहद उपहासी अंदाज में हँसा, और बोला - गजानन बाबा, चरसी चिलम के नशे में क्या न क्या बोल जाये, खुद उसे पता नहीं । वो भला क्या उपचार करेगा । सुबह मैंने उन लोगों को सब समझा दिया । दूसरे गजानन मुँह अंधेरे से ही खुद गायब है । कहीं दिशा मैदान (शौच) को लम्बा निकल गया होगा ।
दूसरे वो पीताम्बर का छोरा हरीश जाने को व्याकुल था, इसलिये वो लोग फ़िर चले गये । वे तुमसे भी मिलने आये, पर तुम भी यहाँ नहीं थे । मैंने कह दिया, सुबह हमारी तरह के साधु लोग अक्सर इधर उधर शौच दातुन आदि को निकल जाते हैं । साधुओं की किसी बात का कोई ठिकाना नहीं होता, कब कहाँ हों ।
- और दूसरे साधु? नीलेश ने प्रश्न किया ।
बदरी को एक बार फ़िर आश्चर्य हुआ, पर वह नीलेश का बेहद सम्मान करता था ।
अतः बोला - वे अभी नहीं उठे, लगता है चिलम ज्यादा चढ़ा ली । क्या पता उठने वाले होंगे ।
- बाबाजी ! अचानक नीलेश ने अजीब सा प्रश्न किया - आप कभी जेल गये हो?
- नहीं तो ! बदरी उछल कर बोला - क्या ..क्या.. क्यों, क्यों?
- अगर ! नीलेश बेहद गम्भीरता से बोला - आगे भी नहीं जाना चाहते, तो तुरन्त बिना सवाल किये मेरे साथ चलो ।


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डायन The Witch 11



इसके ठीक तीसरे दिन नीलेश पीताम्बर के शहर पहुँचा ।
दूसरा दिन उसने वनखण्डी मन्दिर पर ही गुजारा था ।
बदरी बाबा के जीवन में उससे जुङी हुयी यह पहली हत्या थी । इसलिये अन्दर ही अन्दर वह बेहद डरा हुआ था । हालांकि नीलेश को एक परसेंट ही किसी बबाल की उम्मीद थी । फ़िर भी वह बदरी का डर समझते हुये रुक गया था ।
गजानन का थैला आदि अन्य सामान उसने दूसरे साधुओं के नोटिस में आने से पहले ही छिपा देने को कह दिया था । इस तरह अपनी समझ से उसने पूरा इंतजाम ही कर दिया था । इसके बाद भी कोई बात होती, तो बदरी के पास उसका फ़ोन नम्बर था, जिससे वह सीधी बात करा सकता था । तब जाकर बदरी को थोङा तसल्ली मिली ।
नीलेश की ऊँची पहुँच भी उसे काफ़ी हिम्मत बँधा रही थी ।
अब वह सीधा डायन के विशाल निवास में मौजूद था ।
एक बार को मुम्बई में अमिताभ बच्चन का निवास तलाशने में दिक्कत आ सकती थी । पर डायन का निवास तलाश करने में उसे कोई दिक्कत नहीं आयी । उसने डायन के बारे में सीधा सीधा न पूछकर पीताम्बर द्वारा बताये ब्यौरे के आधार पर घुमा फ़िराकर पूछा, और आसानी से यहाँ तक बिना किसी रोकटोक के पहुँच गया । उसने पीताम्बर या हरीश से सम्पर्क करने की कोई कोशिश नहीं की ।
उसके साथ जलवा के नाम से प्रसिद्ध उन्नीस साल का बातूनी बोलने की आदत से मजबूर लङका था । जिसे वह इस पूरे खेल की अहमियत समझते हुये वक्त बेवक्त जरूरत की सोचकर ले आया था । जलवा को भुतहा बातों का बङा शौक था । भुतहा स्थानों को देखने का बङा शौक था । भूतों का देखने का बङा शौक था । पर आज तक उसकी भूत देखने की हसरत पूरी नहीं हुयी थी ।
वह नीलेश की इस योगी रूप वास्तविकता से परिचित नहीं था । लेकिन नीलेश से कुछ कुछ अवश्य परिचित था, और उसके अत्यन्त धनाढ़य होने का रौब खाता था ।
नीलेश ने उसे बताया कि रामसे ब्रदर्स और रामगोपाल वर्मा कोई डरावनी फ़िल्म बनाना चाहते हैं । जिसके लिये उन्हें एक हटकर और रियल टायप लोकेशन की तलाश है । उसी को देखने वह जा रहा था । फ़िर ये जानकर कि रामू जी नीलेश के दोस्त हैं । जलवा दंग रह गया । नीलेश के प्रति उसके मन में अतिरिक्त सम्मान बढ़ गया ।
लेकिन हकीकत और ख्यालात में जमीन आसमान का अन्तर होता है ।
यह जलवा को आज ही पता चला था ।
डायनी महल में कदम रखते ही वह जहाँ का तहाँ ठिठक कर खङा हो गया ।
अपने जीवन में इससे अधिक भयानक जगह उसने सपने में भी नहीं देखी थी । सपने में भी नहीं सोची थी । उस विशाल टूटे फ़ूटे मकान में हर तरफ़ बेहद गन्दगी और दुर्गन्ध का साम्राज्य कायम था । जगह जगह मरे हुये पक्षियों के सूखे पिंजर और बेतरतीब पंख बिखरे हुये थे । विभिन्न जीवों के मल और बीट की भरमार थी । सैकङों उल्लूओं के घोंसले टूटी दीवालों के मोखों में मौजूद थे । अन्य तरह की चिङियाओं, गिरगिट, छिपकली, चमगादङ, काकरोच, मेंढक, गिलहरियों आदि की भी भरमार थी । उस निवास की सफ़ाई झाङू आदि भी बहुत वर्षों से नहीं हुयी थी ।
नीलेश वहाँ स्वतः उग आये पेङों की लम्बी घनी पत्तेदार टहनियाँ तोङकर इकठ्ठी करने लगा । एक समान टहनियों को उसने लकङी की छाल उतार कर उसी के रेशों से बाँधकर झाङू का आकार दे दिया । जलवा हैरत से उसकी तरफ़ देख रहा था । पर समझ कुछ भी नहीं पा रहा था ।
- दादा ! वह बङे अजीब स्वर में बोला - यहाँ शूटिंग करेंगे?
- अरे जलवा भाई ! नीलेश उसका हाथ थामता हुआ बोला - यह फ़िल्लम वाले भी खिसके दिमाग के होते हैं । कहाँ शूटिंग करें, क्या पता । बङी जबरदस्त शूटिंग होने वाली है यहाँ, आओ चलते हैं ।
कहकर उसका हाथ थामे वह मकान में प्रवेश कर गया, और यूँ गौर से मकान का एक एक कोना देखने लगा । जैसे गम्भीरता से मकान खरीदने की सोच रहा हो । मकान की दीवालों पर जगह जगह छोटे जीवों और पक्षियों के खून से विचित्र आकृतियाँ बनी हुयी थीं ।
तभी एक कमरे में पहुँच कर दोनों स्वतः ही ठिठक गये ।
इस कमरे में एक अधखायी नोची हुयी सी सङी हालत में बकरिया पङी हुयी थी । जिससे भयंकर सङांध उठ रही थी । जलवा को उबकायी होते होते बची । इसी कमरे में एक तरफ़ पुआल आदि का लत्ते पत्ते बिछाकर बिस्तर बना हुआ था, और खाये हुये पक्षियों की हड्डियाँ चारो ओर फ़ैली हुयी थी ।


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मेरे बारे में

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।