रविवार, अक्तूबर 16, 2011

जस्सी दी ग्रेट 1




बहुत संभव है कि कुछ पाठकों को मेरे ये दो उपन्यास ‘कामवासना’ और ‘जस्सी दी ग्रेट’ कुछ ज्यादा ही कामुक लगें। लेकिन इसके पीछे भी दरअसल एक रहस्यमय कहानी है। और वो कहानी यह है कि प्रस्तुत उपन्यास ‘जस्सी दी ग्रेट’ एक अनुरोधित कथानक है, और जिसके पात्र, तथा स्थान, तथा वहाँ तक की कहानी, जब तक कि प्रसून गुरूदासपुर (पंजाब) नही पहुँच जाता, मुझे बाकायदा मुख्य-मुख्य बिन्दुओं/घटनाओं के साथ किसी के द्वारा उपलब्ध करायी गयी थी।
इसके पीछे क्या ख्वाहिश/उद्देश्य/भावना थी। ईमानदारी से मुझे नहीं पता।
खैर..जो भी हो, लेकिन मेरी खुद की ऐसी कोई ख्वाहिश नही थी कि मैं किसी कथानक में सामान्य से कुछ अधिक कामुकता का वर्णन करूँ। परन्तु फ़िर मैंने सोचा कि जीवन के इस मुख्य अंग ‘कामवासना’ पर पाठकों की क्या प्रतिक्रिया रहती है। इसको जानने हेतु इस विषय को भी एक-दो उपन्यासों में खास स्थान देना चाहिये। और मैंने वह अनुरोध स्वीकार कर लिया। इसलिये खास मेरे पाठकों को उतना वर्णन अजीब सा, और जैसे मेरे द्वारा लिखित नही लगेगा।
अब रही बात, कामुक वर्णन पर प्रतिक्रिया को लेकर, तो वह मिश्रित ही रही। किसी को ठीक, किसी को बहुत ठीक, और किसी को बिलकुल भी ठीक नहीं लगी। और अगर आप भी ईमानदारी से स्वीकार करें, तो सेक्स के विषय को लेकर कोई ईमानदार और स्पष्ट प्रतिक्रिया मिलने के अक्सर चांस भी नहीं हैं, क्योंकि जिसे बहुत मजा आया हो, वो भी प्रत्यक्ष में इंकार ही करेगा। 
प्रसून सीरीज के हारर उपन्यासों की श्रंखला में लिखा गया यह उपन्यास पंजाब की एक बेहद सुन्दर लङकी जसमीत कौर उर्फ़ जस्सी के पुनर्जन्म की प्रेम कहानी है। युवावस्था के आरम्भ होते ही जस्सी को कुछ बेहद अजीब से अनुभव होते हैं। लेकिन उसे अपने साथ हुये अनुभवों के बारे में कुछ याद नही रहता।
तब उसकी माँ राजवीर अपनी खास सहेली करमकौर से मशवरा करती है। लेकिन अभी इस अजीबोगरीब गुत्थी का कोई हल निकल पाता। उससे पहले ही करमकौर को भी ठीक वैसा ही अनुभव होता है। और मामला सुलझने के बजाय और ज्यादा उलझ जाता है।
और तब एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत उन्हें द्वैतयोगी प्रसून का पता चलता है। राजवीर द्वारा मेल से भेजे गये जस्सी के बाधा (अटैक) वीडियो को देखते ही प्रसून तुरन्त समझ जाता है कि मामला बेहद सीरियस है, और उसके चलते निर्दोष मासूम जस्सी की जिन्दगी खतरे में है।  
बेहद खुशी की बात है कि प्रसून को पाठकों ने न सिर्फ़ पसन्द बल्कि बेहद पसन्द किया । और उससे जुङे कारनामों का पाठकों को बेसबरी से इंतजार रहता है । अतः जैसे जैसे सम्भव होगा । मैं इस तरह के कथानक आपको उपलब्ध कराने की कोशिश करूँगा । लेकिन उपन्यास पढ़ने के बाद अपनी निष्पक्ष राय से अवगत कराना न भूलियेगा।
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  राजीव श्रेष्ठ
      आगरा
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जस्सी दी ग्रेट 2



- मुझे बङी फ़िक्र हो रही है । अंततः फ़िर वह गौर से मनदीप के चेहरे को देखते हुये बोली - पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ..लङकी जवान है ।
उसकी तरफ़ देखते हुये मनदीप को तुरन्त कोई बात न सूझी । जस्सी यकायक बाजार में चक्कर खाकर गिर गयी थी, और जैसे तैसे लोगों ने उसे घर तक पहुँचाया था । घर तक आते आते उसकी हालत में थोङा सुधार सा नजर आने लगा था । पर वह इससे ज्यादा कुछ न बता सकी कि अचानक ही उसे चक्कर सा आ गया था, और वह गिर गयी ।
डाक्टर ने उसका चेकअप किया, और फ़ौरी तौर पर किसी गम्भीर परेशानी से इंकार किया । उसके कुछ मेडिकल टेस्ट भी कराये गये, जिनकी रिपोर्ट अभी मिलनी थी । करीब शाम होते होते जस्सी की हालत काफ़ी सुधर गयी पर वह कमजोरी सी महसूस कर रही थी । जैसे उसके शरीर का रस सा निचोङ लिया गया हो ।
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पर मुझे तो । मनदीप बोला - फ़िक्र जैसी कोई बात नहीं लगती । शरीर है, इसमें कभी कभी ऐसी परेशानियाँ हो जाना आम बात है ।
दरअसल राजवीर जो कहना चाहती थी, वो कह नहीं पा रही थी । उसे लग रहा था, मनदीप पता नहीं क्या सोचने लगे ।
मनदीप सिंह जस्सी का बाप था, सभी उसे बराङ साहब कहकर पुकारते थे । उसकी उमर पैंतालीस साल थी । पाँच फ़ुट ग्यारह इंच लम्बा बराङ एक मजबूत कदकाठी वाला इंसान था और हमेशा कुर्ता पजामा पहनता था ।
वह स्वभाव से बेहद अहंकारी आदमी था और उसे अपने अमीर होने का बहुत अहम था । जिसके चलते वो हमेशा दूसरों को नीचा ही समझता था । वह पगङी बाँधता था और उसके चेहरे पर बङी बङी दाढ़ी मूँछें थी । वह रोज ही शराब पीता था, और चिकन खाने का बहुत शौकीन था ।
वैसे जस्सी और उसके माँ बाप कभी कभी गुरुद्वारा जाते थे लेकिन फ़िर भी मनदीप नास्तिक ही था । इसके विपरीत राजवीर कामचलाऊ धार्मिक थी । जस्सी न आस्तिक थी, और न ही नास्तिक । वो बस अपनी मदमस्त जवानी में मस्त थी ।
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सुनो जी । अचानक राजवीर अजीब से स्वर में बोली - कहीं ऐसा तो नहीं कि ये भूत प्रेत का चक्कर हो?
मनदीप ने उसकी तरफ़ ऐसे देखा, जैसे वह पागल हो गयी हो । दुनियाँ इक्कीसवीं सदी में आ गयी पर इन औरतों और जाहिल लोगों के दिमाग से सदियों पुराने भूत प्रेत के झूठे ख्याल नहीं गये ।
वह तकिये के सहारे बैठ गया और उसने राजवीर को अपनी गोद में गिरा लिया ।
फ़िर वह उसकी तरफ़ देखता हुआ बोला - कैसे होते हैं भूत प्रेत, तूने आज तक देखे हैं । तुझे पता है सिख लोग भूत प्रेत को बिलकुल नहीं मानते । ये सब जाहिल गंवारों की बातें हैं, भूत प्रेत..आज तक किसी ने देखा है, भूत प्रेत को ।
फ़िर उसने जैसे मूड खराब होने का सा अनुभव करते हुये उसके गालों को सहला दिया । मानों उसका ध्यान इस फ़ालतू की बकबास से हटाने की कोशिश कर रहा हो लेकिन राजवीर के दिलोदिमाग में कुछ अलग ही उधेङबुन चल रही थी, जिसे वह मनदीप को बता नहीं पा रही थी ।
फ़िर उसने सोचा, अभी मनदीप से बात करना बेकार है, शायद वह सीरियस नहीं है इसलिये फ़िर कभी दूसरे मूड में बात करेगी । यही सोचते हुये उसने मनदीप का हाथ अपने सीने से हटाया और कपङे ठीक करके बाहर निकल गयी ।
जस्सी दीनदुनियाँ से बेखबर सो रही थी पर राजवीर की आँखों की नींद उङ चुकी थी, और वह रह रहकर करवटें बदल रही थी ।


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जस्सी दी ग्रेट 3



राजवीर उसकी तरफ़ देखती हुयी बोली - समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूँ, और कैसे कहूँ, और कहाँ से कहूँ ।
करमकौर ने इसे हमेशा की तरह सेक्सी मजाक ही समझा, अतः वह बोली - कहीं से भी बोल, आग्गे से पीच्छे से, ऊप्पर से नीच्चे से ।
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वो बात नहीं । राजवीर बोली - मैं वाकई सीरियस हूँ, और जस्सी को लेकर सीरियस हूँ । पिछले कुछ दिनों से, मैं कुछ अजीब सा देख रही हूँ, और अनुभव भी कर रही हूँ ।
करमकौर बात की नजाकत को समझते हुये तुरन्त सीरियस हो गयी, और प्रश्नात्मक निगाहों से राजवीर की तरफ़ देखने लगी ।
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मैं ! राजवीर बोली - पिछले कुछ दिनों से, या लगभग बीस दिनों से जस्सी के पास ही सो रही हूँ । मैंने सोचा अगर वो वजह पूछेगी भी, तो मैं कुछ भी बहाना बोल दूँगी पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं पूछा । तुझे मालूम ही है, मैं अक्सर ग्यारह बजे के बाद ही सोती हूँ, जबकि जस्सी दस से कुछ पहले ही सो जाती है ।
मनदीप का नशा ग्यारह के लगभग ही कुछ हल्का होता है, तब वह रोमांटिक मूड में होता है, और मुझे उन पलों का ही इंतजार रहता है, क्योंकि उस समय वह भूखे शेर के समान होता है । लिहाजा उसका ये रुटीन पता लगते ही मेरी बहुत सालों से ऐसी आदत सी बन गयी है ।
लगभग बीस दिन पहले, ऐसे ही एक दिन, जब मैं सोने से पहले बाथरूम जा रही थी, तब मैंने जस्सी को कमरे में टहलते हुये देखा । ऐसा लग रहा था कि जैसे वह बहुत धीरे धीरे किसी से मोबायल फ़ोन पर बात कर रही हो । मैंने सोचा, लङकी जवान हो चुकी है, शायद किसी ब्वाय फ़्रेंड से चुपके से बात कर रही हो । उस वक्त उसके कमरे की लाइट बन्द थी, और बाहर का बहुत ही मामूली प्रकाश कमरे में जा रहा था, फ़िर उसे गौर से देखते हुये मुझे इसे बात का ताज्जुब हुआ कि उसके हाथ में कोई मोबायल था ही नहीं ।
और करमा तू यकीन कर । वह उसके पीछे बनी खिङकी पर एक दृष्टि डालकर बोली - वह निश्चय ही किसी से बात कर रही थी, और ये मेरा भ्रम नहीं था..और ये एकाध मिनट की भी बात नहीं थी । मैं उसको लगभग बीस मिनट से देख रही थी, और सुन भी रही थी । पर उसकी बातचीत में मुझे बहुत ही हल्का हल्का हाँ..हूँ..ठीक .. जैसे शब्द ही मुश्किल से सुनाई दे रहे थे ।
करमकौर के चेहरे पर गहन आश्चर्य के भाव आये और खुद बखुद उसकी आँखे गोल गोल हो गयीं ।
तभी राजवीर का नौकर सतीश वहाँ आया । उसने एक चोर निगाह करमकौर के खुले वक्ष पर डाली, और राजवीर से बोला - मैं बाजार जा रहा हूँ, कुछ आना तो नहीं है?
राजवीर ने ना..ना में सिर हिलाया ।


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जस्सी दी ग्रेट 4




- राजवीर ! अचानक करमकौर ने फ़िर से टोका - अभी अभी तूने कहा कि तूने उसका और भी  रहस्यमय व्यवहार नोट किया, वो क्या था?
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हाँ, वो ये..कि वो अक्सर रात को कभी कभी उठ जाती थी, और कभी भी उठ जाती थी । फ़िर खिङकी के पास खङे होकर उसके पार ऐसे देखती थी, जैसे मानों किसी दूसरी दुनियाँ को देख रही हो, और खिङकी के एकदम पार, कोई दूसरा लोक, कोई दूसरी धरती उसे नजर आ रही हो ।
उसके चेहरे के भाव भी ऐसे बदलते थे कि जैसे वह लगातार कुछ दिलचस्प सा देख रही हो । इसके  अलावा भी मैंने उसे खङे खङे दीवाल पर, या यूँ ही खाली जगह में किसी काल्पनिक बेस पर कुछ लिखते सा भी देखा.. लेकिन अब इससे भी ज्यादा चौंकने वाली बात तुझे बताती हूँ ।
एक दिन जब ये सब देखना मेरी बरदाश्त के बाहर हो गया तो मैंने अपना जागना शो करते हुये आहट की, पर उस पर कोई असर नहीं हुआ । मैं भौंचक्का रह गयी, और तब डायरेक्ट मैंने उसको आवाज ही दी । और करमा ताज्जुब..उस पर फ़िर भी कोई असर नहीं हुआ । अब तो मैं चीख ही पङना चाहती थी, पर फ़िर भी मैंने खुद को कंट्रोल करते हुये, उसे ‘जस्सी जस्सी मेरी बेटी’ कहते हुये झंझोङ ही दिया ।
और करम..उस पर फ़िर भी कोई असर नहीं हुआ बल्कि उसका रियेक्शन ऐसा था कि जैसे किसी पुतले को हिलाया गया हो, और तब मेरे छक्के ही छूट गये । फ़िर करमा जैसे ही मैंने उसे छोङा, वह फ़िर से लुढ़क गयी ।
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ओ माय गाड ! करमकौर के माथे पर पसीना छलछला आया - ओ माय..गाड..यकीन नहीं होता, और लगता ही नहीं कि ये सब सच है । तूने बराङ साहब को नहीं बोला, ये सब?
राजवीर के चेहरे पर वितृष्णा के भाव आये । उसने सूखी भावहीन आँखों से करमकौर को देखा । तब वह जैसे सब कुछ समझ गयी के अंदाज में सिर हिलाने लगी ।
- खैर ! राजवीर आगे बोली - रहस्य अभी भी खत्म नहीं हुआ, और अब मुझे और भी अजीब सा इसलिये लग रहा था, क्योंकि दिन में उसका व्यवहार एकदम नार्मल होता था, और लगता था जैसे कोई बात ही न हो । वह चंचल तितली की तरह इधर उधर उङती रहती थी, और अपनी पढ़ाई वगैरह कायदे से करती थी । इसलिये ये मेरे लिये और भी रहस्य था कि उसके रात के व्यवहार का दिन पर कोई असर नजर नहीं आता था ।
देख करमा ! वह भावुक स्वर में बोली - तू मेरी सबसे खास सहेली है, और तुझसे मेरी कोई बात छिपी नहीं । इतना क्लियरली ये सब मैंने सबसे पहले तुझे, और अभी अभी ही बताया है । ये जवान लङकी का मामला है, और बराङ साहब को मैं इस मामले में बेवकूफ़ ही समझती हूँ । एक तो वह बन्दा नास्तिक है, और दूसरे ऐसी बातों का बिना सोचे समझे मजाक उङाता है ।
पहले बोल देता है और बाद में सोचता है कि अरे ये उसने क्या बोल दिया । दूसरे वह दारू के नशे में किसी को क्या कुछ बोल दे, इसलिये मैं पहले सभी बात पर खुद विचार करना चाहती थी । फ़िर जब मुझे लगा कि ये मामला सोचना समझना मेरी समझ से बाहर है, तब मैंने तुझे बुलाया । बोल बहन, मैंने कुछ गलत किया क्या?
करमकौर ने भारी सहानुभूति जताते हुये पूर्ण हमदर्दी से उसके समर्थन में सिर हिलाया ।
राजवीर आशा भरी नजरों से उसे देखने लगी कि शायद वह रास्ता दिखाने वाली कोई बात बोले ।
पर उल्टे वह भी गहरे सोच में डूब गयी लगती थी, जैसे मानों उसकी समझ में कुछ भी न आ रहा हो  कि ये चक्कर घनचक्कर क्या है ।
यहाँ तक कि उसका बच्चा दूध पीते पीते कब का सो गया था और उसका स्तन ज्यों का त्यों खुला था । राजवीर की बात सुनते सुनते वह जैसे किसी अदृश्य लोक में जा पहुँची थी ।
तभी किसी के आने की आहट हुयी ।
जस्सी कालेज से लौटी थी, और यकायक हङबङाहट में जिस समय करमकौर अपना स्तन अन्दर कर रही थी । जस्सी वहाँ आयी । उसने मुस्कराकर करमकौर को देखा और अपने कमरे में चली गयी ।


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जस्सी दी ग्रेट 5



सम्पूर्ण सृष्टि का आधार ही है, कामवासना ।
अगर ये कामवासना न होती । स्त्री पुरुष के दैहिक आकर्षण और लैंगिक मिलन की एक अजीब सी और सदा अतृप्त रहने वाली प्यास सभी के अन्दर प्रबल न होती तो शायद कभी समाज का निर्माण संभव ही नही था ।
और वास्तव में आदिसृष्टि के समय जब ज्ञान और आत्मभाव की प्रबलता थी । तब उस समय की आत्मायें काम से बिलकुल मोहित नहीं थी और हद के पार उदासीन ही थीं । देवी तुल्य नारियों से भी पुरुष कामभावना के धरातल पर कतई आकर्षित नहीं होते थे । उनके उन्नत गोल स्तन और थिरकते मांसल नितम्बों की मादक लय भी पुरुषों में एक चिनगी काम पैदा नहीं कर पाती थी ।
जबकि नारी की बात कुछ अलग थी । उसका निर्माण ही प्रकृति रूपा हुआ था, और वह पुरुष के अर्धांग से विचार रूप होकर उत्पन्न हुयी थी तथा बारबार उसको आत्मसात करती हुयी आलिंगित भाव से उसमें ही समाये रहना चाहती थी । उसकी सिर्फ़ एकमात्र ख्वाहिश यही थी ।
पर आदिसंतति प्रबल थी और इस प्रकृति भाव के अधीन नहीं थी, अतः वे तप को प्रमुखता देते थे ।
उस माहौल के प्रभाव से देवी नारी भी तब पुरुष के सामीप्य की एक अजीब सी चाह लिये तप में ही तल्लीन हो जाती थी । लेकिन इस तप का सर्वांगीण उद्देश्य पूर्ण चेतन पुरुष को प्राप्त करना ही था ।
कालपुरुष और दुर्लभ सौन्दर्य की स्वामिनी अष्टांगी कन्या जीवों के इस कामविरोधी रवैये से बङे हैरान थे, क्योंकि सृष्टि का मूल काम उन्हें कतई आकर्षित नहीं कर रहा था, और तब उन्होंने एक निर्णय लेते हुये विष के समान इस काम विषय वासना को अति आकर्षण की मीठी चाशनी में लपेट दिया ।
ये हथियार कारगर साबित हुआ और जीव काम मोहित होने लगे । पुरुष को स्त्री हर रूप में आकर्षित करने लगी । उसके अंग अंग में एक प्रबल सम्मोहन और जादुई प्रभाव उत्पन्न हो गया । उसकी काली घटाओं सी लहराती जुल्फ़ें, गुलाबी लालिमा से दमकते कोमल गाल, रस से भरे हुये अधर और विभिन्न आकारों से सुशोभित गोल स्तन मानों पुरुष के लिये खजाने से भरपूर कलश हो गये ।
उसकी हरे पेङ की डाली सी लचकती, किसी मदमस्त नागिन की तरह बलखाती कमर पुरुषों के दिल को हिलाने लगी । उसकी कटावदार गहरी नाभि में एक उन्मादी सौन्दर्य झलकने लगा, और उसकी गोरी गोरी चिकनी जंघायें तपस्वियों के दिल में तूफ़ान उठाने लगी तथा उसके नितम्बों की लचक से संयमी पुरुषों के दिल भी बेकाबू होने लगे ।
महामाया ने एक और भी विचित्र खेल खेला । उसने नारी की वाणी में सुरीली कोयल की कूक सी पैदा कर दी और उसकी वाणी तक में काम को लपेट दिया । उसकी हर क्रिया को उसने कामपूर्ण कर दिया, और इस तरह ये पुरुष जीवभाव में नारी के वशीभूत होता गया, और आज तक हो रहा है ।
और तब सब कुछ ठीक उल्टा ही हो गया । नारी जो वास्तव में पुरुष से उत्पन्न हुयी थी । पुरुष अपने को अब उसी नारी से उत्पन्न मानने लगा, और उसे ही प्रमुख आदिशक्ति मानता हुआ माया के पूर्ण अधीन हो गया ।  
माया और महामाया ।
अच्छे अच्छे देव पुरुषों और योग पुरुषों को भी अपने इशारों पर सदा नचाने वाली महामाया ।
और करमकौर भी उसी महामाया का ही एक अंश थी ।


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मेरे बारे में

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।