- ये
पूरा मायाजाल । पीताम्बर आगे बोला - दरअसल, एक रहस्यमय बुढ़िया औरत को लेकर है । जो हमारी ही कालोनी में, मगर सभी मकानों से काफ़ी दूर हटकर, एक पुराने
किलेनुमा बेहद बङे मकान में रहती है ।
यह सुनते ही नीलेश को न चाहते हुये भी हँसी आ ही गयी ।
यह सुनते ही नीलेश को न चाहते हुये भी हँसी आ ही गयी ।
पीताम्बर
थोङा सकपका कर बोला -
मैं आपके हँसने का मतलब समझ गया । मगर कभी कभी वास्तविकता बङी अटपटी
होती है । दरअसल हमारी कालोनी जिस स्थान पर है । उससे दो फ़र्लांग (पांच फ़र्लांग बराबर एक
किमी) की दूरी पर, किसी जमाने में किसी
छोटे मोटे राजा का किला था । करीब दो सौ साल पुराना वह किला, और किले के आसपास उसी समय के बहुत से जर्जर भवन अभी भी गुजरे वक्त की
कहानी कह रहे हैं ।
बहुत से
प्रापर्टी डीलरों ने इस भूमि को लेकर इसका नवीनीकरण करने की कोशिश की । पर विवादों
में घिरी वह सभी भूमि जस की तस पुरानी स्थिति में ही है ।
दूसरे वह
टूटी फ़ूटी हालत के भवन झाङ पोंछ देखरेख के उद्देश्य से किराये पर उठा दिये थे ।
जिसकी वजह से बहुत से किरायेदारों ने लगभग उस पर कब्जा ही कर रखा है । ऐसी हालत
में वह एक किमी के क्षेत्रफ़ल में फ़ैला किला, और राजभवन से जुङे अन्य भवन,
सभी खस्ता हालत में निम्न वर्ग के लोगों की बस्ती बन गये हैं,
और जैसा कि मैंने कहा कि हमारी निम्न मध्यवर्गीय कालोनी सिर्फ़ उससे
दो फ़र्लांग की दूरी पर है ।
नीलेश ने एक सिगरेट सुलगायी, और बेहद शिष्टता से सिगरेट केस उन लोगों की तरफ़ बढ़ाया । हरीश को छोङकर उन तीनों ने भी सिगरेट सुलगा ली ।
- अब मैं वापस रहस्यमय बुढ़िया की बात पर आता हूँ । पीताम्बर एक गहरा कश लगाता हुआ बोला - आज से कोई बीस बाइस साल पहले की बात है, जब बुढ़िया के बारे में लोगों को पता चला कि..?
अचानक नीलेश चौंका, और तिमंजिला कमरे की खिङकी की तरफ़ देखने लगा ।
नीलेश ने एक सिगरेट सुलगायी, और बेहद शिष्टता से सिगरेट केस उन लोगों की तरफ़ बढ़ाया । हरीश को छोङकर उन तीनों ने भी सिगरेट सुलगा ली ।
- अब मैं वापस रहस्यमय बुढ़िया की बात पर आता हूँ । पीताम्बर एक गहरा कश लगाता हुआ बोला - आज से कोई बीस बाइस साल पहले की बात है, जब बुढ़िया के बारे में लोगों को पता चला कि..?
अचानक नीलेश चौंका, और तिमंजिला कमरे की खिङकी की तरफ़ देखने लगा ।
- ड
डायन ! उसके बोलने से पहले ही नीलेश के मस्तिष्क में यह शब्द
गूँजा ।
और उसके खुद के रोंगटे खङे हो गये ।
और उसके खुद के रोंगटे खङे हो गये ।
बङी मुश्किल
से उसने खुद को खङा होने से रोका, और संभलकर आगंतुकों को देखने लगा ।
हँसती हुयी
छायारूप एक खौफ़नाक बुढ़िया खिङकी पर बैठी थी ।
- मृत्युकन्या ! इस शब्द को उसने बहुत मुश्किल से मुँह से निकलने से रोका - साक्षात मृत्युकन्या की बहुरूपा गण, यमलोक की डायन, खिङकी पर विराजमान थी, और बङे निश्चिन्त भाव से हँस रही थी । इतनी जबरदस्त शक्ति कि प्रेतवायु के जिक्र, यानी अपने बारे में बात होने, पर ही जान जाती थी । किसी आवेश की आवश्यकता नहीं, किसी मन्त्र संधान की आवश्यकता नहीं । और फ़िर भी वह कालोनी सलामत थी, यह जैसे कोई चमत्कार ही था ।
- मृत्युकन्या ! इस शब्द को उसने बहुत मुश्किल से मुँह से निकलने से रोका - साक्षात मृत्युकन्या की बहुरूपा गण, यमलोक की डायन, खिङकी पर विराजमान थी, और बङे निश्चिन्त भाव से हँस रही थी । इतनी जबरदस्त शक्ति कि प्रेतवायु के जिक्र, यानी अपने बारे में बात होने, पर ही जान जाती थी । किसी आवेश की आवश्यकता नहीं, किसी मन्त्र संधान की आवश्यकता नहीं । और फ़िर भी वह कालोनी सलामत थी, यह जैसे कोई चमत्कार ही था ।
- कोई
चमत्कार नहीं योगी ! डायन उससे सूक्ष्म सम्पर्की होकर बोली -
मेरा मतलब, बस खास लोगों से होता है, जिनसे मैंने बदला लेना है, और जिनको यमलोक जाना है,
बाकी से मेरा क्या वास्ता ।
- ओ गाड ! नीलेश माथा रगङता हुआ मन ही मन बोला - सच ही कह रही थी वह । पर ऐसी डायन से उसका आज तक वास्ता न पङा था । ये यहाँ से डायन होकर जाने वाली डायन नहीं थी, बल्कि वहाँ से डयूटी पर आयी डायन थी । एक सिद्ध डायन, एक अधिकार सम्पन्न डायन, एक नियम अनुसार आयी डायन ।
- किस सोच में डूब गये भाई ! पीताम्बर उसको गौर से देखता हुआ बोला - मैं आगे बात करूँ?
नीलेश का दिल हुआ, इन अज्ञानियों से कहे कि क्या बात करोगे, जब बात खुद ही मौजूद है । पर वह हाँ भी नहीं कर सकता था, ना भी नहीं कर सकता था । सच तो ये था कि उसकी खुद की समझ में नहीं आ रहा था कि इस समय वो डायन को डील करे, या पीताम्बर कंपनी को ।
- ओ गाड ! नीलेश माथा रगङता हुआ मन ही मन बोला - सच ही कह रही थी वह । पर ऐसी डायन से उसका आज तक वास्ता न पङा था । ये यहाँ से डायन होकर जाने वाली डायन नहीं थी, बल्कि वहाँ से डयूटी पर आयी डायन थी । एक सिद्ध डायन, एक अधिकार सम्पन्न डायन, एक नियम अनुसार आयी डायन ।
- किस सोच में डूब गये भाई ! पीताम्बर उसको गौर से देखता हुआ बोला - मैं आगे बात करूँ?
नीलेश का दिल हुआ, इन अज्ञानियों से कहे कि क्या बात करोगे, जब बात खुद ही मौजूद है । पर वह हाँ भी नहीं कर सकता था, ना भी नहीं कर सकता था । सच तो ये था कि उसकी खुद की समझ में नहीं आ रहा था कि इस समय वो डायन को डील करे, या पीताम्बर कंपनी को ।
- हाँ
तो मैं कह रहा था । पीताम्बर घङी पर निगाह डालता हुआ बोला - कि
बीस बाइस साल पहले जब उस बुढ़िया ने अपने ही नाती को मार डाला, और उसका खून पी गयी । तभी हमें पता चला कि...!
- ड डायन ! पुनः नीलेश के दिमाग में गूंजने लगा ।
उसकी निगाह फ़िर से स्वतः खिङकी पर गयी ।
डायन
पहले की तरह ही खौफ़नाक मगर मधुर अन्दाज में हँस रही थी ।- ड डायन ! पुनः नीलेश के दिमाग में गूंजने लगा ।
उसकी निगाह फ़िर से स्वतः खिङकी पर गयी ।
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