शुक्रवार, अप्रैल 22, 2011

चुङैल 6



कहते हैं कि इंसान को एक पल की खबर नहीं होती कि अगले ही पल क्या हो जाय । शायद बुढ़िया का शाप फ़लीभूत होने जा रहा था । इसीलिये मेरे देवर दीनदयाल जो छत पर सोये हुये थे । वे ये सोचकर कि घर में डाकू घुस आये हैं । चुपचाप बंदूक निकाल लाये, और एक सुरक्षित स्थान से उन्होंने डाकू को निशाना बना दिया । बस यही गङबङ हो गयी । गोली चलते ही घर में एकदम भगदङ सी मच गयी । डाकुओं ने भी मोर्चा ले लिया, और आनन फ़ानन दीनदयाल मारा गया । उसे बचाने के चक्कर में उसकी पत्नी भी मर गयी । दो हत्या करने के बाद डाकू घर से निकलकर भाग गये ।
लेकिन एकदम घर में हुयी तीन मौतों का सदमा मेरे बूढ़े सास ससुर सह न सके, और उन्होंने दूसरे ही दिन दम तोङ दिया । पटवारी के नाम से प्रसिद्ध मेरे एक देवर जो उस दिन घर से निकलकर भाग गये थे । उन्हें भी कुछ दिनों बाद रास्ते में अज्ञात कारणों से मरा पाया गया । तब मेरी दोनों देवरानियाँ भी अपने बच्चों के साथ अपने मायके चली गयीं ।
और फ़िर हर वक्त बच्चों से चहचहाती, पर अब वीरान सी रहती, उस हवेली में, मैं अपने पांच बच्चों और पति के साथ सोने चाँदी से भरे बक्से के साथ अकेली ही रह गयी । कभी कभी मुझे इस घटना पर दुख होता था । पर कभी मैं अजीब से लालच में आकर यह बात सोचती कि इस घटना ने ही तो आज मुझे किसी महारानी के समान धनवान बेहद धनवान दिया था । और ये बात मेरे पति भी नहीं जानते थे ।
अब मुझे एक डर यह भी हो गया था कि अगर मैंने अपने पति को यह बात सही सही बता दी । तो  पता नहीं वो इसका क्या मतलब निकालें । अतः मैं बात छुपाये ही रही । मैंने सोचा, किसी दिन किसी बहाने से बक्से का खुलासा कर दूँगी कि यहाँ शायद जमीन में कुछ दबा हुआ है ।
लेकिन इसकी जरूरत ही नहीं आयी । बूढ़ी का शाप अपना काम कर रहा था । क्योंकि उधर हमारे पूरे परिवार के खत्म हो जाने से मेरे पहले से ही धार्मिक पति और भी धार्मिक हो गये, और एक दिन मृतक अनुष्ठान की किसी क्रिया के लिये वे मेरे बङे पुत्र गिरीश के साथ गंगास्नान हेतु गये । जहाँ नहाते समय गिरीश भंवर में फ़ँसकर डूबने लगा, और उसे बचाने के चक्कर में मेरे पति भी डूब गये । बेहद चढ़ी हुयी उफ़नती गंगा में कोई भी उन्हें बचाने का साहस न कर सका ।
और इस तरह उनकी लाश भी नहीं लौटी । खोजबीन करते करते किसी जानकार द्वारा खबर ही आ गयी । यही बहुत बङी बात थी । सिर्फ़ तीन महीने में ही हँसता खेलता परिवार इस तरह मौत की भेंट चढ़ गया था । मानो यहाँ पहले कोई रहता ही न था । मेरी माँग का सिन्दूर पुँछ चुका था, और वीरान हवेली जैसे काटने को दौङती थी । पर ना जाने क्यों बक्से में भरे जेवरात का आकर्षण अभी भी मेरे लिये उतना ही था ।
पति के क्रियाकर्म कराने के बाद मायके वालों की सलाह पर मैं हवेली को ताला लगाकर अपने चार बच्चों के साथ मायके आ गयी । धन सम्पदा से भरा बक्सा अब भी हवेली में ही मौजूद था । जिसका राज सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे सीने में दफ़न था ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।