=इच्छाधारी नाग=
त्रिया चरित न जाने कोय, खसम मार के सती होय।
ये कहावत आपने प्रायः सुनी होगी, और आज के समय में तो
इसके कई ज्वलंत उदाहरण भी मौजूद हैं, और प्रायः हमारे आसपास
अक्सर देखने को मिल जाते हैं। हैरत तो तब होती है, जब ये
कहावत औरतों के मुख से सुनते हैं, जिसे वे दूसरी औरतों के
लिये इस्तेमाल करती हैं।
क्योंकि ये प्राचीनकाल से प्रसिद्ध कहावत
है इसलिये इस कहावत की कोई न कोई ठोस वजह अवश्य रही होगी। ये कहावत कब और क्यों
चलन में आयी इसकी जानकारी अभी तक नहीं हुयी है। पर इस बात पर अक्सर एक बात सोचता
हूँ कि एक मामूली मजदूर वर्ग के आदमी से लेकर एक प्रधानमन्त्री या शीर्ष उद्योगपति
जैसे आदमी भी प्रायः अपनी ब्याहता से इस तरह के षङयंत्र करते देखे गये हैं।
लेकिन पुरुषों के लिये इस तरह की
प्रसिद्ध कहावत मेरी नजर से अभी तक नहीं गुजरी है। इसकी क्या वजह हो सकती है? सोचने में नाकामयाब रहा
हूँ। क्योंकि मेरी नजर में तो कमोवेश स्री पुरुष समान व्यवहार ही करते हैं। अगर एक
पुरूष अत्यन्त ज्ञानी पुरुष हो सकता है तो विदुषी स्त्रियों के उदाहरण भी अनगिनत
हैं।
अगर एक स्त्री कुलटा या व्यभिचारिणी हो
सकती है तो कामभ्रष्ट कामी पुरुषों के काले कारनामों से भी इतिहास भरा पङा है।
स्त्री पुरूष जैसी भेद दृष्टि अज्ञान का परिणाम है। आत्मिक ज्ञान की कसौटी पर तो
वह सिर्फ़ आत्मा या चेतन ही है।
एक बार महाभारत श्रीमदभगवदगीता आदि
धर्मग्रन्थों के रचियता व्यास जी जो वृद्ध हो चुके थे। उनके युवा पुत्र शुकदेव को
वैराग हो गया, और वे
जंगल की ओर तपस्या करने जाने लगे। तब वृद्ध व्यास पुत्रमोह में उनके पीछे पीछे
उन्हें मनाने दौङे।
शुकदेव तेजी से चले जा रहे थे। आगे सरोवर
पर कुछ निर्वस्त्र स्त्रियां स्नान कर रही थी। उनके कमर से ऊपर स्तन आदि अंग
पूर्णत अनावृत थे। युवा शुकदेव निकलते चले गये, और स्त्रियां पूर्ववत नहाती रहीं।
लेकिन जब वृद्ध व्यास निकले तो स्त्रियों
ने तत्परता से वस्त्रों से अपने बदन को ढँक लिया, और व्यास जी को आदर से प्रणाम किया। व्यास ने
ये पूरा दृश्य देखा था, तो उनके मन में एक संशय प्रश्न उठ खङा
हुआ।
उन्होंने कहा- देवियों, अभी मेरा युवा पुत्र तुम्हारे सामने से निकला तो तुमने अपने तन को छिपाने
की कोई कोशिश नहीं की, और मुझ वृद्ध को देखते ही तुमने ऐसा
किया। इसका क्या रहस्य है?
स्त्रियों ने विनम्रता से उत्तर दिया - हे महात्मन, आपके पुत्र की दृष्टि में स्त्री पुरुष का भेद नहीं है, वो सर्वत्र कण-कण में व्याप्त अविनाशी चेतन को ही
सर्वत्र देखता है। जबकि आप शरीरों को भेद दृष्टि से देखते हैं।
इसी तरह का उदाहरण श्रीकृष्ण भक्त विदुर
पत्नी का है। जिस समय श्रीकृष्ण विदुर के घर पहुँचे विदुर घर पर नहीं थे, और विदुर पत्नी
निर्वस्त्र अवस्था में स्नान कर रही थी। श्रीकृष्ण की आवाज सुनते ही उसने बाबली के
समान दरवाजा खोल दिया, और उसी नग्न अवस्था में श्रीकृष्ण की
आवभगत करने लगी।
इत्तफ़ाक से इसी समय विदुर घर लौट आये, और ये देखकर दंग रह गये
कि उनकी पत्नी नग्न अवस्था में श्रीकृष्ण को केले के छिलके खिला रही हैं, और गिरियां फ़ेंकती जा रही है। तब विदुर ने जाना कि असली प्रेमभक्ति क्या
होती है।
आईये आपको एक दिलचस्प कहानी सुनाते हैं।
एक राजा के चार रानियाँ थी लेकिन बहुत
समय बीत जाने के बाद भी उस राजा के कोई संतान नहीं हुयी थी। इससे राजा बहुत उदास
और मानसिक रूप से हताश और अशान्त रहता था। तब उन चारों रानियों ने एक योजना बनायी, और झूठी खबर फ़ैला दी कि
छोटी रानी को गर्भ ठहर गया है।
पूरे राज्य में खुशी की लहर फ़ैल गयी कि
आखिरकार राज्य का वारिस आ ही गया। राजा की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने राज्य में
मिठाईयां बँटवायी, और दिल
खोलकर गरीबों को दान दिया। इस तरह झूठे गर्भ का नाटक चलता रहा, और आखिर नौ महीने गुजर गये। तब रानियों ने एक विश्वस्त दाई को अपने नाटक
में शामिल कर लिया, और फ़िर से झूठी खबर फ़ैला दी कि रानी ने
एक सुन्दर राजकुमार को जन्म दिया है।
लेकिन छोटी रानी को स्वप्न में किसी
देवात्मा ने चेतावनी दी है कि राजकुमार को रानियों के अतिरिक्त और किसी को न
दिखाया जाय, अन्यथा
ऐसा करने पर राजकुमार की मृत्यु हो जायेगी। राजा जो अपने पुत्र का मुँह निहारने के
लिये के लिये व्याकुल था ये बात (या आदेश) सुनकर मन मसोस कर रह गया। लेकिन उसके सामने चारा ही क्या था, चलो इतना ही काफ़ी है कि उसके एक पुत्र तो है।
इसके बाद रानियों ने एक पत्रा बाँचने
वाले पुरोहित को भी अपने षडयंत्र में शामिल कर लिया, और उसके मुँह से घोषणा करवा दी कि राजकुमार
बेहद विचित्र ग्रहयोग लेकर जन्मा है। इस ग्रहयोग के अनुसार राजकुमार के विवाह से
पूर्व आम जनता या कोई भी उसे (रानियों को छोङकर) देखेगा तो राजकुमार तत्काल मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा।
सब लोग इस विचित्र भविष्यवाणी को सुनकर
ठंडी आह भरकर रह गये, और
राजकुमार को निहारने की हसरत दिल में ही रह गयी। रानियों ने उसका सौन्दर्य वर्णन
अवश्य जनता के बीच पहुँचा दिया कि राजकुमार बेहद सुन्दर है, और
उसके चेहरे पर अनोखा तेज है।
रानियों ने दाई और पुरोहित को धमकी दी कि
ये भेद अगर खुल गया तो उनका जो अंजाम होगा सो होगा ही, वे उन दोनों को फ़ाँसी
पर अवश्य चढ़वा देंगी, सो वे बेचारे डरकर चुप ही रहे। इस तरह
अजन्मा राजकुमार जिसका कहीं कोई अस्तित्व ही न था, जन्मदिन
आदि और अन्य सभी दस्तूर निभाता हुआ अठारह बरस का हो गया, और
उसके विवाह हेतु प्रस्ताव आने लगे, और आखिरकार एक जगह उसका
विवाह भी तय हो गया।
लेकिन जब कन्या के पिता (दूसरे राजा) ने वर को देखने की इच्छा व्यक्त की तो रानियों ने पुरोहित के समर्थन से कह
दिया कि कुन्डली में ऐसा योग बनता है कि राजकुमार को उसी समय देखा जा सकता है। जब
वह बारात लेकर कन्या के दरवाजे पर पहुँच जाये।
कुछ असमंजस के बाद कन्या का पिता मान
गया। आखिर ये बात किसी एरे गैरे की नहीं थी बल्कि राजघराने की बात थी।
उसने सोचा - कुछ ही समय की बात है,
जामाता को विवाह पर देख लेंगे।
और इस तरह विवाह तय हो गया।
विवाह के सारे कार्य निर्विघ्न होते रहे, और बारात जाने के समय
रानियों ने गुँधे हुये आटे का मानवीय पिंड (शरीर) बनाकर पालकी में रख दिया, और गहरी ताकीद कर दी कि
पालकी को कोई खोले नहीं।
इस तरह ये बारात चलती हुयी एक बगीचे में
आकर विश्राम के लिये ठहर गयी।
उधर रानियों को अपनी मृत्यु स्पष्ट नजर आ
रही थी झूठे खेल ने बढ़ते बढ़ते क्या रूप धारण कर लिया था। इसकी उन्होंने कोई कल्पना
नहीं की थी। उन्हें लग रहा था कि राजा और प्रजा उन्हें निश्चय ही फ़ाँसी से कम कोई
सजा नहीं देगें।
जिस बगीचे में यह बारात ठहरी हुयी थी।
उसमें एक इच्छाधारी नाग-नागिन का
जोङा निवास करता था।
नाग ने हँसते हुये नागिन से कहा - तूने कभी बिना दूल्हे की
बारात देखी है?
नागिन ने हैरानी से कहा - बिना दूल्हे की बारात भी
कहीं होती है क्या?
नाग ने कहा - हमारे बगीचे में जो
बारात ठहरी हुयी है, वो ऐसी ही है?
और उसने नागिन को पूरा किस्सा बताया।
इस पर कोमल नारी स्वभाव वाली नागिन ने
कहा - ओह,
जब ये बारात दरवाजे पर पहुँचेगी तो वर प्रतीक्षारत कन्या और अन्य
लोगों पर क्या गुजरेगी, उफ़ स्वामी, ये
तो बङा अनर्थ ही होगा। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि किसी तरह से ये शादी भी निर्विघ्न
हो जाय तो कम से कम कन्या पर एकदम तो बिजली गिरने से बच जायेगी। फ़िर बाद में तो
स्थिति संभल सकती है। क्या ऐसा कोई उपाय नहीं है, प्राणनाथ?
नाग ने कहा - एक उपाय है, उसके लिये यदि तू राजी हो, तो में वर के स्थान पर
मनुष्य का शरीर धारण करके बैठ जाता हूँ, और इसका विवाह
सम्पन्न करा के वापस इसी स्थान पर इनको छोङ दूँगा फ़िर इनके भाग्य में जो होगा,
वो ये जाने। कोई ना काहू सुख दुख कर दाता, निज
कर कर्म भोग सब भ्राता।
नारी स्वभाव वाली भोली नागिन इसके लिये
सहर्ष तैयार हो गयी।
नाग ने इच्छा से मनुष्य शरीर बनाया, और पालकी में वर के
स्थान पर बैठ गया। उसकी सुन्दरता और तेज कामदेव के समान था। जब बारात दरवाजे पर
पहुँची, और वर पालकी से उतरकर पहली बार आम लोगों से रूबरू
हुआ, तो उसे निहारने वाले लोग बेहोश होते होते बचे।
वाकई रानियां ठीक कहती थी वर सुन्दरता
में कामदेव की मूरत नजर आ रहा था।
लोग बङे खुश हुये, इस अनोखे बहुचर्चित वर
की चर्चाएं पहले ही आसमान छू रही थी। उसकी बेमिसाल सुन्दरता ने तो मानो आसमान भी
फ़ाङ दिया। कन्यापक्ष वाले जो तरह तरह से सशंकित थे अपनी इस उपलब्धि पर फ़ूलकर
कुप्पा हो गये। सशंकित वरनी भी वर वर्णन से पुलकित हो उठी उसका सीना धाङ धाङकर
बजने लगा।
नमो देवी नमुस्तते नमुस्तते,
सुन सिय सत्य असीस हमारी, पूजहु मनोकामना
तुम्हारी।
कन्या का वर वाकई सपनों का राजकुमार था।
विवाह निर्विघ्न सम्पन्न हो गया, और बारात वापस उसी बगीचे
में आकर ठहर गयी। नाग राजकुमारी के स्पर्श से कामासक्त हो रहा था, और उससे यौनभोग करने हेतु व्याकुल हो उठा था पर उसे नागिन की तरफ़ से डर
था। यदि वह सीधे सीधे अपने मनोभाव व्यक्त कर देता तो नागिन खूंखार तो हो ही जाती।
नववधू को डसकर उसका काम तमाम कर देती।
उसने एक योजना बनाते हुये नागिन को
समझाया कि देख यदि मैं इसको भली प्रकार घर तक छोङ आऊँ, और कुछ दिन रहकर चुपचाप
चला आऊँ, तो सारी स्थिति ठीक हो जायेगी। इस तरह बहुत भला
होगा, और तमाम बातें बिगङने से बच जायेंगी।
हालांकि नागिन के मन में भी ये बात थी कि
हो न हो नाग अब इससे सम्भोग करने का बेहद इच्छुक हो सकता है। पर नाग ने ये बात ऐसा
सीरियस मुँह बनाकर और तमाम धर्मकर्म की बातें जोङकर पेश की कि नागिन हिचकते हुये
तैयार हो ही गयी।
नाग ने वादा किया कि चार दिन के बाद वो
अवश्य लौट आयेगा।
बारात राजमहल में पहुँच गयी। राजा अपने
पुत्र को देखकर बहुत आनन्दित हुआ। झूठी रानियों के आश्चर्य का ठिकाना न था पर
प्रत्यक्ष प्रमाण को वो कैसे नकार सकती थीं।
उन्होंने सोचा - स्वयं भगवान ने ही उनकी
मदद की है, और जो हुआ, सो अच्छा ही हुआ
आदि।
नाग सब कुछ भूलकर नवयौवना पत्नी में डूब
गया।
चार दिन की जगह, एक महीना, फ़िर दो महीना, फ़िर चार महीना गुजर गये। उसने नागिन
की कोई सुधि न ली, और निरंतर कामभोग में लगा रहा। उल्टे उसने
एक बहाना तैयार करते हुये किले के चारो तरफ़ एक बङी खाई खुदवा कर उसमें पानी आदि
भरवा कर कुछ इस तरह की मजबूत व्यवस्था करवा दी कि कोई सर्प जाति किसी भी सूरत में
किले में प्रवेश नहीं कर सकती थी। वो खूंखार नागिन क्या कर सकती है, इसे वो नाग भली भांति जानता था।
चार महीने के लम्बे इंतजार के बाद आखिर
नागिन का धैर्य खत्म हो ही गया, और वो नाग की तलाश में उस किले तक आ ही गयी, किले के
चारों तरफ़ सुरक्षा के इंतजाम देखते ही वो अपने धोखेबाज और बेवफ़ा नाग के मंसूबों
को भली भाँति समझ गयी।
हालांकि ये इंतजाम उसके लिये कोई अहमियत
नहीं रखते थे, वो कोई
अन्य रूप धारण करके महल में घुस सकती थी, और वापिस फ़िर
नागिन बन सकती थी। ये बात इच्छाधारी नाग भी भलीभाँति जानता था, पर इसीलिये शायद किसी ने कहा है कि कामवासना अन्धी ही होती है।
नागिन ने मन में सोचा कि मैं तुम दोनों को
ही सबक सिखाऊँगी, और नागिन
बने रहकर ही महल में प्रवेश करूँगी।
इसी विचार के तहत वो महल में जाने वाले
फ़ूलों की डलिया में छुपकर अन्दर चली गयी, और छुपकर रात होने का इंतजार करने लगी। अगले
चार दिनों तक इसी तरह छुपकर वो नाग और अपनी सौतन की प्रेमलीला देखती रही। कामवासना
में खोये नाग का इस तरफ़ कोई ध्यान न गया। अगर वो जरा भी होश में होता तो उसकी इस
तरह की स्थिति के लिये सचेतक इंद्रिया उसे अवश्य सूचित कर देती बल्कि कर रही थी।
पर वह एक कामीपुरूष की भाँति अन्धा हो
चुका था। उनके प्रेमालाप को देखते हुये उन्हें डसने को तत्पर नागिन अक्सर इस सोच
में पङ जाती - ओह,
कितनी सुन्दर जोङी है। मानो एक दूजे के लिये ही बने हों। दोनों एक
दूसरे को कितना प्रेम करते हैं। क्या इनका वियोग कराना उचित होगा। नाग मुझसे ऊबकर
इसमें दिलचस्पी ले रहा है, तो इसमें उसका क्या दोष, ये तो पुरूष का स्वाभाविक गुण है, और सबसे बङा सवाल
इस राजकुमारी का आखिर क्या दोष है, जो मैं इसे मृत्यु के मुख
में ढकेल दूँ?
इस तरह कभी वो उन्हें डसने की सोचती। कभी
यूँ ही वापस लौट जाने की सोचती। फ़िर सोचती वापिस जाकर करेगी क्या। नाग के धोखा
देने के बाद जीवन का अर्थ ही क्या रह गया है।
इस तरह नागिन ने कई बार उन्हें डसने का
निश्चय किया, और त्याग
दिया।
उसने सोचा कि यदि मैं नाग को डस लेती हूँ, तो हम दो विधवा हो
जायेंगी, और यदि अपने सौतन को डसती हूँ, तो संभव है कि नाग इसके विरह वियोग में प्राण त्याग दे। तब भी मैं विधवा
की विधवा ही रहूँगी।
ऐसे उसने हजारों तरह से घुमा फ़िरा कर
सोचा, और तब?
अगले दिन नाग जब सुबह सोकर उठा, तो उसने देखा कि उसके
बिस्तर के पैरों वाले स्थान पर एक घायल मुख वाली मृतक नागिन पङी है, पास ही रखी पाषाण मूर्ति पर सर पटक पटक कर उसने अपने प्राण त्याग दिये थे।
कुछ ही मिनटों में नाग पूरी कहानी समझ
गया। उसने झपटकर अपनी प्रियतमा को उठाया, और जार-जार रोने लगा -
अरे, तूने एक बार तो बताया होता। एक बार तो
अपने मन की बात कही होती। पता नहीं, अंतिम समय में, तू मुझसे क्या बात करना चाहती थी। अरे, ये सब एक बार
बताया होता। तेरी मृत्यु का मैं पूरा पूरा गुनहगार हूँ।