शनिवार, फ़रवरी 08, 2014

प्रेतकन्या 1




दरअसल इन लोकों में प्रथ्वी की तरह मर्दानगी वाला सिद्धांत चलता है।
यदि सभ्यता का प्रदर्शन किया, तो आपको डरपोक माना जायेगा, और ये भी पहचान हो जायेगी कि आप पहली बार यहाँ आये हैं। न सिर्फ़ नये, बल्कि अंतरिक्ष के लिये अजनबी भी, और ये दोनों बातें बेहद खतरनाक थीं।
प्रेतकन्या एक सफ़ेद घांघरा सा पहने थी, और कमर से ऊपर निर्वस्त्र थी।
उसके लम्बे लम्बे बाल हवा में लहरा रहे थे।
- तुम वाकई सख्त, और बङे..। उसने प्रसून के शरीर पर निगाह फ़ेंकते हुये होठों पर जीभ फ़िरायी - जिगर वाले हो। आओ..मेरे जैसा सुख पहुँचाने वाली, यहाँ दूसरी नहीं है, क्या तुम..। उसने अपने उन्नत कुचों को उठाते हुये कहा - भोग करना चाहोगे।
वह फ़िर एक अजीब से चक्कर में पङ गया।
दरअसल उससे भोग करने का मतलब था, अपने दिमाग को उसे रीड करने देना, और लगभग दस प्रतिशत प्रेतभाव का फ़ीड हो जाना, और सम्भोग नहीं करने का मतलब था, उसका रुष्ट हो जाना, तो जो जानकारी वह उससे प्राप्त करना चाहता था, उससे वंचित रह जाना।
उसने फ़ैसला लेते हुये बीच का रास्ता अपनाया, और उसे पेङ के नीचे टेकरी पर गिराकर उसके उरोजों से खेलने लगा।
- पहले तुझे कभी नहीं देखा..किस लोक का प्रेत है तू? वह आनन्द से आँखे बन्द करते हुये बोली।
- इस वक्त मेरे दिमाग में सिर्फ़ एक ही बात है..। वह सावधानी से बोला - उस किंझर वाली की अकङ ढीली करना।
यकायक मानों विस्फ़ोट सा हुआ।
किंझर शब्द सुनते ही वह चौंककर बैठ गयी, और लगभग चिल्लाकर बोली - तू प्रेत नहीं..कुछ अन्य है..। प्रेत किंझर का मुकाबला नहीं कर सकता..
- मैं जो भी हूँ। प्रसून ने उसकी कमजोर नस पर चोट की - तू मुझे किंझर का शार्टकट बता। मेरे पास समय कम है, लेकिन लौटते समय..समझ गयी कहाँ चोट दूँगा..
उसका पैंतरा काम कर गया।
वह बेहद अश्लील भाव से हँसी।
चींटी से लेकर मनुष्य, और फ़िर देवताओं तक भी, किसकी कमजोरी नहीं होती, ये कामवासना।
अबकी बार जब उसने अंतरिक्ष में छलांग लगायी, तो उसके पास पूरी जानकारी थी।
किंझर बेहद शक्तिशाली किस्म के वेताल प्रेतों का लोक था, और वहाँ का आम जनजीवन बेहद उन्मुक्त किस्म का था। हस्तिनी किस्म की स्थूलकाय प्रेतनियां पूर्णतः नग्न अवस्था में रहती थी, और लगभग दैत्याकार पुरुष भी एकदम निर्वस्त्र रहते थे।
सार्वजनिक जगहों पर सम्भोग, और सामूहिक सम्भोग के दृश्य वहाँ लगभग आम ही थे।
फ़िर कुछ ही देर में वह किंझर पर मौजूद था।
क्षेत्रफ़ल की दृष्टि से किंझर एक विशालकाय प्रेतलोक था।
अभी वह सोच विचार में मग्न ही था कि उसके पास से बीस बाईस युवतियों का दल गुजरा।
वे बङे कामुक भाव से उस अजनबी को देख रही थी।
अब उसे युक्ति से काम लेना था।
उसने बेलनुमा एक पेङ की टहनी तोङी, और उसे यूँ ही हिलाता हुआ एक प्रेतकन्या के पास पहुँचा, और उसके नितम्ब पर सांकेतिक रूप से हल्का सा वार जैसे काम आमन्त्रण हेतु किया।
उसने आश्चर्य से तुरन्त पलटकर देखा।
प्रसून ने उसका हाथ पकङ कर फ़ौरन ही अपनी तरफ़ खींच लिया।
ये वहाँ की निश्चित जीवनशैली थी।
इसके विपरीत, अगर वह प्रथ्वी की तरह, बहनजी या भाभीजी जरा सुनना, जैसी शैली में बात करता, तो वो तुरन्त समझ जाती कि वह प्रथ्वी, या उस जैसे किसी अन्य लोक का है, और ये स्थिति उसे कैद करा सकती थी। प्रसून के शरीर से मानव की बू नहीं आती थी। क्योंकि पूर्व की अंतरिक्ष यात्राओं में ही वह ऐसी बू को छिपाने की तरकीबें जान गया था।
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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।