सोमवार, अगस्त 22, 2011

अंगिया वेताल 1



रूपाली शर्मा एक बेहद खूबसूरत लङकी थी, जिसे संक्षिप्त में सब रूपा कहते थे ।
अपनी खास कमनीय देहयष्टि से वह अप्सराओं जैसी प्रतीत होती थी । उसकी चाल में एक विशेष प्रकार की लचक थी । नृत्य की थिरकन जैसी चाल उसके विशाल नितम्बों में एक वलय पैदा करती थी, जो उसको अप्सराओं के एकदम करीब ले जाती थी ।
वास्तव में वह गलती से इस प्रथ्वी पर उतर आयी कोई अप्सरा ही प्रतीत होती थी, और तब युवक क्या उसको देखकर बूढ़ों के दिल में भी उमंगें लहराने लगती थी । पर उसे अपनी सुन्दरता और भरपूर यौवन का जैसे कोई अहसास न था । जबकि वह अठारह से ऊपर की हो चुकी थी, और ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा थी ।
रूपाली शर्मा ब्राह्मण न होकर मैथिल ब्राह्मण थी । उसके परिवार में फ़र्नीचर आदि लकङी का बिजनेस होता था । उसकी सबसे पक्की सहेली का नाम बुलबुल था । और आज बुलबुल के घर में किसी समारोह का आयोजन था । जिसमें शामिल होने के लिये रूपा आयी हुयी थी ।
उस समय घङी शाम के सात बीस बजाने वाली थी
रूपा के सुन्दर मुखङे पर चिन्ता की लकीरें बढ़ती जा रही थीं । क्योंकि उसे घर लौटना था, और जल्दी ही लौटना था । उन दिनों मोबायल फ़ोन या लैंडलाइन फ़ोन का आम चलन नहीं हुआ था, जो वह अपने घर पर किसी प्रकार की सूचना देकर घरवालों को संतुष्ट कर सकती थी ।
दरअसल वह छह बजे ही बुलबुल से विदा होकर निकलने लगी थी । पर बुलबुल ने थोङा रुक..थोङा रुक’ कहकर उसे इतना लेट कर दिया था, और अब साढ़े सात बज चुके थे ।
जब वह चिंतित थी तब बुलबुल ने कहा कि उसको वह अपने भाई द्वारा साइकिल से घर छुङवा देगी । पर एन टाइम पर उसका भाई एक मित्र के घर चला गया ।
और जब इंतजार करते करते ज्यादा समय हो गया, तब उसने अकेले जाने का ही तय कर लिया ।
यकायक रूपा का कलेजा मानो बाहर आने को हुआ । आसमान में बहुत जोरों से बिजली कङकी, और मूसलाधार बारिश होने लगी । उसके मन में आया जोर जोर से रोने लगे ।
- हे भगवान । वह बिन बुलाई मुसीबत में फ़ँस गयी थी, पर अब क्या हो सकता था ।
उसने दिल को कङा किया, और मचान की तरफ़ बढ़ गयी, जहाँ वह पानी से अपना कुछ बचाव कर सकती थी ।
यह मचान एक विशाल पीपल के पेङ नीचे था । वह मचान के नीचे जाकर चुपचाप खङी हो गयी ।
चारो तरफ़ गहन काला अंधकार छाया हुआ था, और इस अंधेरे में खङे तमाम पेङ पौधे उसे रहस्यमय प्रेतों जैसे नजर आ रहे थे । उसे अन्दर से अपनी मूर्खता पर रोना आ गया । पर अब वह क्या कर सकती थी ।
दरअसल उसका सोचना गलत भी नहीं था । पहले भी कई बार इसी समय वह इस रास्ते से गुजरी थी पर उसे कोई डर महसूस नहीं हुआ था । क्योंकि शार्टकट रास्ता होने से यह आमतौर पर रात दस बजे तक आने जाने वालों से गुलजार रहता था । लेकिन ये संयोग ही था कि आज उसे कोई नजर नहीं आया ।
मचान तक पहुँचते पहुँचते उसके कपङे एकदम भीगकर उसकी माँसल देह से चिपक से गये ।
रूपा ने बैग में से टार्च निकाली, और हाथ में पकङे हुये बारिश के बन्द या कम होने की प्रतीक्षा करने लगी ।
तभी उसे अपने पीछे कुछ सरसराहट सी सुनाई दी । जैसे कोई सर्प पत्तों में रेंग रहा हो । उसका दिल तेजी से धक धक करने लगा, और घबराहट में उसने टार्च जलाकर आवाज की दिशा में देखा ।
पर वहाँ कोई नहीं था ।
उसे आश्चर्य और घबराहट इस बात पर हुयी थी कि बारिश से जमीन, पेङ, झाङियाँ, पत्ते सब पानी से तरबतर हो चुके थे । अतः ऐसे में सरसराहट की आवाज का कोई प्रश्न ही न था । उसके दिल में भय सा जाग्रत हुया, और उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे होने लगा । फ़िर अचानक उसकी चीख निकलते निकलते बची ।
उसे अपने ठीक पीछे किसी के सांस लेने जैसी आवाज सुनाई दी, और फ़िर उसकी गर्दन के पास ऐसी हवा का स्पर्श होने लगा । जैसी नाक से सांस लेते समय बाहर आती है ।
- हा..। वह कांपते स्वर में बोली - क कौन है?
मगर कोई जबाब न मिला ।


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अंगिया वेताल 2



वह सचेत होना चाहती थी । पर वह जादुई कामुक स्पर्श उसकी आँखें बन्द कराता हुआ एक मीठी बेहोशी में ले जा रहा था । वह अज्ञात पुरुष उसके पुष्ट वक्षों को हवा के स्पर्श की तरह सहला रहा था, और उसके जादुई हाथ घूमते हुये कमर तक जा पहुँचे थे ।
- रूपा..। वह मानो उसके मस्तिष्क में बोला - लेट जाओ, और उस वर्जित काम का आनन्द लो, जो इस सृष्टि निर्माण का प्रमुख कारण था ।
- हं हं..हाँ । भरपूर सम्मोहन अवस्था में कहते हुये रूपा ने अपने कपङे हटाये, और लरजती आवाज में बोली - पर कौन हो तुम?
- स्स्स्पर्श । उसके दिमाग में ध्वनि हुयी - एक अतृप्त आत्मा ।
रूपा खोई खोई सी लेट गयी ।
स्पर्श उसको सहलाने लगा । उसके समस्त शरीर में कामसंचार होने लगा ।
- र रूप पा । वह उसकी नाभि से हाथ ले जाता हुआ बोला - अप्सराओं सा यौवन है तुम्हारा । मैंने इतनी सुन्दर कोई चुङैल आज तक नहीं देखी ।
उसकी आँखे बन्द होने लगी ।
उसने अपने दोनों पैर उठाते हुये नब्बे अंश से भी अधिक मोङ लिये ।
फ़िर उसके मुँह से घुटी घुटी सी चीख निकल गयी ।
उसका शरीर तेजी से हिला, और वह शिथिल होती गयी ।
-----------------

- हा..। अचानक अपने बेडरूम में सोती हुयी रूपा एक झटके से उठकर बैठ गयी ।
उसका पूरा शरीर पसीने से नहाया हुआ था ।
उसने दीवाल घङी में समय देखा ।
दोपहर के दो बजने वाले थे, और वह ग्यारह बजे से गहरी नींद में सोई हुयी थी । कल रात वह इतना थक गयी थी, मानो हजारों मील की लम्बी यात्रा करके आयी हो, और अभी भी उसका बदन आलस और पीङा से टूट रहा था ।
स्पर्श ने प्रथम मुलाकात में ही उसे असीम तृप्ति का अहसास कराया था । मचान के नीचे उसके साथ खेलने के बाद वह उसे नदी के घुमावदार मोङ पर गहरे पानी में ले गया । वह निर्वस्त्र ही मूसलाधार बारिश में चलती हुयी वहाँ तक गयी । अपने कुर्ता शलवार उसने बैग में डाल लिये थे ।
वह नदी के गहरे पानी में उतर गयी, और मुक्तभाव से तैरने लगी । घर जाने की बात जैसे वह बिलकुल भूल चुकी थी । स्पर्श उसके साथ था, और उसके मादक अंगों से खिलवाङ कर रहा था ।
पर अब उसे कोई संकोच नहीं हो रहा था, और वह प्रेमिका की तरह उसका सहयोग कर रही थी । तब स्पर्श ने नदी के गहरे पानी में उससे खेलना शुरू कर दिया ।
यह उसके जीवन का एक अनोखा अनुभव था । काम सम्बन्धों के बारे में उसने अब तक सिर्फ़ सुना था, पर आज वह उसके अनुभव में आया था ।


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अंगिया वेताल 3



छह महीने बाद ।
चोखेलाल भगत चालीस साल का हट्टा कट्टा आदमी था, और जवान औरतों का बेहद रसिया था । वह अपने परिचितों में भगत जी के नाम से मशहूर था । वास्तव में वह एक छोटा मोटा तांत्रिक था । पर यह बात अलग है कि वह अपने आपको बहुत बङा सिद्ध समझता था ।
चोखा भगत दीनदयाल शर्मा के घर अक्सर ही आता जाता रहता था । जहाँ उसे भगत होने के कारण अच्छा खासा सम्मान मिलता था । लेकिन भगत की बुरी निगाह दीनदयाल की सुन्दर बेटी रूपा के ऊपर थी । पर उसे पाने की कोई कामयाबी उसे अब तक न मिली थी, और न ही मिलने की आशा थी । क्योंकि वह एकदम नादान और भोले स्वभाव की थी ।
और अगर वह मनचले स्वभाव की होती, तो भी आधे बुढ्ढे भगत के प्रति उसके आकर्षित होने का कोई प्रश्न ही न था । लिहाजा चोखा मन मारकर रह जाता । चोखा ने अपने जीवन में कई औरतों को भोगा था, और वास्तव में वह भगतगीरी में आया ही इसी उद्देश्य से था । पर रूपा जैसा रूप यौवन आज तक उसकी निगाहों में न आया था ।
तब अपनी इसी बेलगाम हसरत को लिये वह रूपा के घर आँखों से ही उसका सौन्दर्यपान करने हेतु आ जाता था, और यदाकदा झलक जाते उसके स्तन आदि को देखता हुआ सुख पाता था ।
रूपा की भाभी मालती चोखा भगत से लगी हुयी थी ।
मालती का पति भी आधा सन्यासी हो चुका था, और घर में उमंगों से भरी बीबी को छोङकर फ़ालतू में इधर उधर घूमता था । मालती दबी जबान में उसके पुरुषत्वहीन होने की बात भी कहती थी । चोखा मालती से रूपा को पाने के लिये उसे बहकाने फ़ुसलाने के लिये अक्सर जोर देता था ।
पर अब तक कोई बात बनी नही थी ।
आज ऐसे ही ख्यालों में डूबा हुआ चोखा फ़िर से रूपा के घर आया था, और आँगन में बिछी चारपायी पर बैठा था । मालती उसको उत्तेजित कर सुख पहुँचाने हेतु जानबूझ कर ऐसे बैठी थी कि घुटने से दबे उसके स्तन आधे बाहर आ गये थे ।

दोपहर के तीन बजने वाले थे ।
रूपा कुछ ही देर पहले स्कूल से लौटी थी, और कपङे आदि बदल कर वह मालती के पास ही आकर बैठ गयी । भगत की नजरें मालती से हटकर स्वतः ही रूपा के सुन्दर मुखङे पर जम गयी, और अचानक वह बुरी तरह चौंक गया ।
- मसान । उसके मुँह से निकला, और वह गौर से रूपा के माथे पर देखने लगा ।
पर उसके मुँह से निकले शब्द को यकायक न कोई समझ पाया, न सुन पाया ।
भगत ने इधर उधर देखा, सब अपने काम में लगे हुये थे । रूपा की माँ सामने ही कुछ दूर रसोई की तरफ़ मुँह किये चाय पी रही थी । दीनदयाल घर पर नही थे । बस कुछ बच्चे ही मौजूद थे ।
तब भगत ने रूपा की माँ को आवाज दी - ओ पंडितानी सुनियो, तनिक गंगाजल लाओ ।
उसने रूपा की माँ से गंगाजल मँगाया ।
पंडितानी हैरत से उसको देखते हुये गंगाजल ले आयी थी ।
भगत ने थोङा सा गंगाजल अंजुली में लिया, और मन्त्र पढ़कर गंगाजल रूपा की ओर उछाल दिया । गंगाजल के बहुत से छींटे रूपा के सुन्दर मुख पर जाकर गिरे, और वह बेपेंदी के लोटे की तरह लुढ़कती हुयी भगत की तरफ़ आ गयी ।


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अंगिया वेताल 4




- भगत जी । पंडितानी घबरा कर बोली - बिटिया को क्या हुआ?
- मसान । भगत भावहीन स्वर में बोला - इस पे मसान सवार हो गया ।
फ़िर वह रूपा की ओर मुङा और सख्त स्वर में बोला - बता कौन है तू?
- वो तू । रूपा उच्चस्वर में हँसते हुये बोली - खुद ही बता चुका कि मैं मसान हूँ ।
भगत के मन में इस समय भयंकर बवंडर जारी था । वह कामचलाऊ गद्दी लगाये अवश्य था । पर उसके दिलोदिमाग में निर्वस्त्र रूपा घूम रही थी । यह उसके सौन्दर्य का ही जादू था कि वह जिसको पाने के वह जागते हुये सपने देखता था । कितनी आसानी से पके फ़ल की तरह टपक कर उसकी गोद में आ गिरी थी ।
अब वह एक बार क्या बीसियों बार उसको भोगने वाला था, और पंडितानी खुद उसे रूपा के साथ किसी दामाद की तरह सौंपने वाली थी । मालती पहले ही उसकी मुठ्ठी में थी । आज उसे भगत होने का असली लाभ मिला था ।
जितना ही वह इस विचार को निकालने की कोशिश करता । उतना ही दोगुनी ताकत से वह विचार उसके दिमाग पर हावी हो जाता, जैसे वह सामने बैठी रूपा से मानसिक सहवास कर रहा हो । इसलिये उसने गद्दी का काम आधे में ही छोङ दिया, और काला कपङा आदि मंगाकर ताबीज बनाने लगा । वह इस मरीज को आसानी से ठीक होने देने का इच्छुक नही था ।
उसके द्वारा गद्दी से हटाते ही रूपा अन्दर कमरे में जाकर लेट गयी ।
घबराई हुयी पंडिताइन भगत से मसान के बारे में विस्तार से बात करने लगी ।
भगत ने उन्हें बताया कि घबराने की कोई बात नहीं । कुछ ही गद्दी लगाकर वह रूपा को मसान से हमेशा के लिये छुटकारा दिला देगा । यह बताते हुये भगत ने अतिरिक्त रूप से बढ़ा चढ़ाकर पंडिताइन को पूरा पूरा आतंकित करने की कोशिश की । जिसमें वह कामयाब भी रहा ।
भगत ने यह भी कह दिया अभी वह इस बात का जिक्र किसी से न करे । यहाँ तक कि पंडित जी से भी नहीं । खामखांह सयानी लङकी थी । अगर बात फ़ैल जाती, तो उसके शादी ब्याह में दिक्कत आ सकती थी । यह कहते हुये उसने ऐसा अभिनय किया । मानो उसे कुछ याद आ गया हो, और वह फ़िर से खिंचा सा रूपा के कमरे में आ गया ।


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अंगिया वेताल 5



जैसे ही घङी ने रात के ग्यारह बजाये ।
रूपा एक झटके से बिस्तर से उठकर खङी हो गयी ।
अभी वह पहले के दिनों की तरह चुपचाप पंजामाली जाने के लिये निकलने ही वाली थी कि उसे अपने पीछे वही चिर परिचित स्पर्श का अहसास हुआ, और इसके साथ ही उसके शरीर में खुशी की लहर सी दौङ गयी ।
स्पर्श वहीं आ चुका था, और हमेशा की तरह उसके पीछे सटा हुआ था ।
- र रू पा । वह उसके दिमाग में बोला - तुम्हारी याद मुझे फ़िर से खींच लायी ।
- अ आज मैं भी । वह थरथराती आवाज में बोली - बैचेन हूँ, कमीने भगत ने आज मेरे सामने ही भाभी..
- मैं जानता हूँ । स्पर्श उसी तरह धीरे धीरे बोला - और खास इसीलिये आया हूँ । वह आधा भगत मुझे मसान समझता है, और सोचता है कि वह मुझे काबू में कर लेगा । पर उसके लिये ऐसा करना संभव नहीं है । उल्टे मैं उसे तिगनी का नाच नचाने वाला हूँ । बस तुम गौर से मेरी बात सुनो, क्योंकि रूप मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ ।
रूपा ध्यान से उसकी बात सुनने लगी ।
ज्यों ज्यों स्पर्श उसको बात बताता जा रहा था । उसके चेहरे पर अनोखी चमक बढ़ती जा रही थी । एक नये रोमांच का पूर्व काल्पनिक अनुभव करते हुये उसकी आँखे नशे से बन्द होने लगी ।
- स्पर्श । वह फ़िर मदहोश होकर बोली - मैं प्यासी हूँ ।
- हाँ रूप । स्पर्श लरजते स्वर में बोला ।
फ़िर वह बिस्तर पर गिरती चली गयी, और कुछ ही क्षणों में उसके कपङे तिरस्कृत से अलग पङे हुये थे ।
- हा..  अचानक रूपा मानो सोते से जागी । यह सब क्या हो रहा है, उसके साथ ।

वह मानो गहन अँधकार में गिरती ही चली जा रही हो ।
चारों तरफ़ गहरा अँधकार, और वह बिना किसी आधार के नीचे गिरती ही चली जा रही थी ।
कहीं कोई नहीं था, बस अँधेरा ही अँधेरा ।
फ़िर वह अँधेरे की एक लम्बी सुरंग में स्वतः गिरती चली गयी ।
पता नहीं कब तक, गिरती रही, गिरती रही, और अन्त में उस सुरंग का मुँह योनि के समान दरवाजे में खुला । तुरन्त दो पहलवान जैसे लोगों ने उसे अपने पीछे आने का इशारा किया । वह मन्त्रमुग्ध सी उनके पीछे चलती गयी ।
एक अंधेरे से घिरी पीली सी बगिया में वे दोनों उसे छोङकर गायब हो गये ।
वह ठगी सी खङी रह गयी । बगिया के पेङ बँधे हुये प्रेतों की तरह शाँत से खङे मानो उसी को देख रहे थे । कहीं कोई नहीं था ।
रूपा को ऐसा लगा, मानो प्रलय के बाद धरती पर विनाश हो गया हो, और समस्त धरती जनजीवन से रहित हो गयी हो, फ़िर वह कैसे जीवित बच गयी । बहुत दूर आबादी जैसे कुछ मकान नजर आ रहे थे । बहुत कोशिश करने पर उसे अपना घर हल्का सा याद आता था, और तुरन्त ही भूल जाता था । उसे अन्दर से लग रहा था, वह डरना चाह रही थी, पर डर नहीं पा रही थी । उसे कभी कभी दिल में रोने जैसी हूक भी उठ रही थी, पर वह रो भी नहीं पा रही थी ।
उसकी समस्त इच्छायें भावनायें एक अदृश्य जादुई नियंत्रण में थी । जिससे वह बाहर निकलना चाहती थी, पर निकल नहीं पा रही थी । फ़िर अचानक रूपा को कुछ इच्छा हुयी, और वह खिंचती हुयी सी बस्ती की तरफ़ चलने लगी ।

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अंगिया वेताल 6



- र रूप । उसे वही परिचित आवाज सुनाई दी ।
उसके जिस्म में अनजानी खुशी की लहर सी दौङ गयी ।
इस अपरिचित बियावान जगह पर स्पर्श के मिलने से उसे बहुत राहत मिली ।
- स्पर्श हम कहाँ है? वह सहमी सी बोली - ये प्रथ्वी तो नहीं मालूम होती ।
- हाँ रूपा, तुम सच कह रही हो । ये प्रथ्वी नहीं, बल्कि अतृप्त और अकाल मृत्यु को प्राप्त इंसानों के रहने का प्रेतलोक है । तुम यहाँ अपने आंतरिक शरीर से आयी हो । तुम्हारा स्थूल शरीर तुम्हारे कमरे में मृतक के समान ही पङा है । क्या तुम्हें भय लग रहा है?
उसने न में सिर हिलाया, और अपने बदन पर स्पर्श की छुअन महसूस करने लगी ।
--------------

चोखा भगत पंजामाली के शमशान में पहुँचा ।
आज वह सिद्धि हेतु आया था । चोखा कई दिनों से इसके लिये चक्कर काट रहा था । तब रात दस बजे के करीब उसे दाह के लिये जाती लाश मिली थी । वह एक हंडिया और चावल साथ ले आया था । यह सिद्धि उसे लपटा बाबा ने बतायी थी ।
चोखा खुद क्योंकि अनपढ़ था, और शौकिया ही तांत्रिक बना था । इसलिये उसने इधर इधर बाबाओं के पास बैठकर कुछ छोटे मोटे मन्त्र, तन्त्र, जन्त्र सीख लिये थे, और इन्ही से काम करता हुआ वह अंधविश्वासी टायप मूढ़ औरतों में खासा लोकप्रिय था । मन्त्र तन्त्र से आकर्षित औरतें अक्सर उससे प्रभावित हो जाती थी । तब वह साधारण बातों में नमक मिर्च लगाकर उसमें भय पैदा करते हुये उनका मनमाना इस्तेमाल करता था ।
इसके अलावा एक कारण और भी था । हराम की खाने के हुनर में उस्ताद चोखा शरीर से बलिष्ठ था । अतः जब वह औरत को अनोखी तृप्ति का अहसास कराता, तब वे उसकी वैसे ही गुलाम हो जाती और अपनी ऐसी ही खूबियों के चलते चोखा मानता था कि उस पर भगवान की खासी कृपा है ।
पर जैसा कि कहते हैं - अन्त बुरे का बुरा ।
और उसके बुरे दिन शुरू हो चुके थे ।


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अंगिया वेताल 7



रात के लगभग ग्यारह बज चुके थे, और शव को जलाने आये लोग वहाँ से जा चुके थे । चिता की आग अभी भी धधक रही थी । उनके जाते ही पेङों के पीछे छिपा चोखा निकल आया, और सावधानी से इधर उधर देखता हुआ जलते मुर्दे के पास आकर बैठ गया । उसने सिर्फ़ एक लंगोट पहना हुआ था, और सांवली बलिष्ठ कसरती देह से जिन्दा भूत ही लग रहा था । चोखा पहले भी शव के पास रात गुजारने के अनुभवों से गुजर चुका था । अतः उसके मन में नाममात्र का भी भय न था ।
हाँ, दूसरी बातों को लेकर भय था ।
क्या थी वे बातें?
तब स्वतः ही उसके दिमाग में लपटा बाबा के बोल गूँजे - मगर सावधान चोखे, सिद्धि के दौरान कोई रूपसी नग्न, अर्धनग्न अवस्था में आकर तुझे काम निमन्त्रण दे । उसको स्वीकार नहीं करना । कोई डाकिनी, शाकिनी, डायन, चुङैल तुझे भयभीत करे, करने देना । तू शान्त होकर अपना काम करना । अगर तू किसी भी तरह बहका, तो तेरी मौत निश्चित है । 
चोखा के भय से रोंगटे खङे हो गये ।
शमशान और तामसी शक्तियों की इस तरह की निकृष्ट साधना जिसमें डाकिनी, शाकिनी प्रकट होने वाली थी, से रूबरू होने का उसका पहला ही चांस था । पर वह यह नहीं जानता था कि यह पहला चांस ही उसका आखिरी चांस होने वाला था ।
चोखा ने हंडिया मुर्दे के पास ही रख दी, और उसके पानी में चावल और कुछ अन्य चीजें डाल दी । फ़िर उसने अपने सामान की पोटली से तेल निकाला, और सारे बदन पर मलने लगा । पूरे बदन को तेल से तरबतर करने के बाद उसने चिता की गर्म गर्म राख को बदन पर मला, और कुछ ही देर में भयानक काले जिन्न के समान नजर आने लगा । उसकी लाल लाल आँखें चिता के मद्धिम प्रकाश में खूंखार चीते की भांति चमकने लगी ।
- खुश हो कालका । कहते हुये उसने चावल की हंडिया चिता पर पकने के लिये रख दी, और फ़िर गांजे से भरी चिलम को चिता की आग से जलाकर पीने लगा ।
निकृष्ट डरावनी साधनाओं में नशा भय को बहुत कम कर देता है, ये उसका माना हुआ अनुभव था । अतः उसने आज भी वही काम किया था । नशीली चिलम का सुट्टा जैसे ही उसके दिमाग में चढ़ता, वह और भयंकर सा हो उठता । पूरी चिलम पीते पीते उसकी आँखे इस तरह लाल हो गयीं । मानो उनसे खून छलक रहा हो ।
तब उसने चिता से काफ़ी गर्म राख उठायी, और जमीन पर एक बिछावन के रूप में बिछा दी ।
फ़िर उस पर बैठकर वह मन्त्र पढ़ने में तल्लीन हो गया । क्लीं क्लीं जैसे बीज मन्त्रों के साथ डाकिनी, शाकिनी, कालका आदि शब्द बीच बीच में उसके मुँह से धीरे धीरे निकलने लगे, और वह झूमने लगा ।
उसके आसपास शमशान में विचरने वाले गण एकत्र होने लगे । मगर तांत्रिक से कुछ अनजाना भय सा खाते हुये वे उससे एक निश्चित दूरी पर ही रहे । तब कुछ बङे गण आये, और चोखा को अपने बदन पर प्रेतवायु के झोंकों जैसा अहसास होने लगा ।
यह अहसास इस तरह होता है । जैसे एक इंसान दूसरे इंसान की गर्दन आदि पर हल्की सी फ़ूँक मारे, और ये अहसास अक्सर कान के पास ही गरदन तक अधिक होता है ।
फ़िर उसके सामने शाकिनी आदि प्रत्यक्ष होने लगी । हड्डियों के कंकाल सी और कभी काली गन्दी सी वे स्थूल शरीरी सी भी दिखती औरतें निर्वस्त्र थी । उनके उलझे हुये बाल बहुत गन्दे और हवा में उङते थे । उनकी कमर पर नीच देवियों की भांति हड्डियों की मालायें भी बँधी थी, और उनके काले स्तन नोकीले और तने थे ।
ऐसे बहुत से अन्य अनुभव चोखे को होते रहे । पर लपटा की बात को ध्यान रखता हुआ बहुत हल्का सा ही विचलित होता हुआ वह अपने काम में ही लगा रहा ।


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अंगिया वेताल 8




यकायक ।
तभी मानो पंजामाली में बहार उतरी ।
छन छनछन छन की मधुर लय ताल के साथ एक अनिद्ध सर्वांग सुन्दरी ने वहाँ कदम रखा, और चहलकदमी सी करते हुये मानो शमशान का निरीक्षण करने लगी ।
सारी प्रेतनियाँ अपनी जगह स्तब्ध खङी रह गयी, और सब कुछ भूलकर बस इस अदभुत नायिका को देखने लगी । जो किसी परीलोक से परी की भांति अचानक उतर आयी हो ।
उसके जगमग जगमग करते सौन्दर्य से मानो अँधेरे में भी प्रकाश फ़ैल गया हो ।
शमशान जैसा स्थान भी स्वर्ग के उपवन में बदल गया हो ।
----------------

चोखा भगत आँखे बन्द किये तेजी से मन्त्र का जाप कर रहा था ।
किसी औरत के पायलों के नूपुर की मधुर छन छन छन उसे भी सुनायी दी थी ।
पर लपटा की चेतावनी को ध्यान रखता हुआ वह आँखे बन्द किये बैठा ही रहा, और सावधानी से मन्त्र का जाप करता रहा ।
प्रेतनियाँ उसकी साधना में विघ्न डालने की बात भूलकर उस दिव्य सुन्दरी को ही देखने लगी ।
छोटे प्रेतों के दिल में अपने जीवित होने के समय जैसी हिलोरे उठने लगी ।
सभी गण आपस में यही खुसर पुसर कर रहे थे कि - आखिर ये देवी जैसी कौन है । ये मनुष्य ही लग रही है । पर मनुष्य जैसे डरपोक प्राणी का इस समय शमशान में उपस्थित होना असंभव था । फ़िर आखिर ये कौन है ।
वह प्रेत समुदाय से नहीं थी, यह भी निश्चित ही था ।
लेकिन इन सबकी हालत से बेखबर पेङ की डाली से लटकी हुयी एक रहस्यमय शख्सियत बङे गौर से इस दिलचस्प नजारे को देख रही थी, और बेसब्री से आने वाले पलों का इंतजार कर रही थी ।
मगर इस सबसे बेपरवाह वह रूपसी धीरे धीरे चहलकदमी सी करती हुयी चोखा के आसपास चक्कर काटती रही । उसने उस मुर्दा ग्राउंड के चारों तरफ़ टहलते हुये कुछ चक्कर से लगाये, और फ़िर आकर ठीक चोखा के सामने खङी हो गयी ।
उसने किसी मुजरा नायिका की तरह पाँवों की ऐडी हिलाकर घुँघरू छनकाये, फ़िर हाथों की चूङियों को भी खनकाया ।
और बेहद सावधान सधे स्वर में बोली - चोखा भगत, आँखें खोल, देख मैं आ गयी ।
इस मधुर और धीमी झनकार युक्त आवाज ने भी चोखा को बिजली सा करेंट मारा ।
उसने हङबङाकर आँखें खोल दी । फ़िर मानो उसके होश ही उङ गये ।
- रूपा..तू । वह एकदम उछलते हुये बोला ।
वास्तव में उसके सामने रूपा ही खङी थी ।
इस धरती पर किसी गलती से शाप भोगने आयी जैसे मनुष्य रूपिणी अप्सरा ।


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अंगिया वेताल 9



वह भूल ही गया कि किसलिये यहाँ आया है । वह भूल ही गया कि जिस आधी साधना को वह जाग्रत कर चुका है । उसे बीच में छोङने का परिणाम क्या होगा । वह भूल गया लपटा की वह चेतावनी ‘आँधी आये या तूफ़ान’ साधना बीच में छोङने का मतलब सिर्फ़ मौत ।
कारण कोई हो, मगर परिणाम एक ही, मौत ।
खिलखिलाती हुयी और सीने पर चढ़कर मारने वाली, खुद बुलायी मौत ।
वास्तव में इसीलिये कहा है, क्या देव, क्या दानव, क्या मनुष्य़, क्या अन्य कामवासना ने सबको मुठ्ठी में किया हुआ है फ़िर भला चोखा कैसे बचता ।
- हाँ भगत । रूपा किसी देवी के समान मधुर मुस्कान के साथ बोली - मैं तेरी चाहत में यहाँ तक भी खिंची चली आयी । यही चाहता था न तू ।
- मगर..तेरे घर के लोग..तू..मतलब..। वह अटक अटक कर बोला - इस समय यहाँ आ कैसे गयी ।
- भगत, वे सब सोये पङे हैं । जिस तरह इंसान सदियों से अज्ञान की मोहनिद्रा में सोया है । फ़िर तूने सुना नहीं है कि प्यार अँधा होता है भगत । फ़िर मैं तेरे सपनों की रानी हूँ । तू कल्पना में मुझे भोगता था, आज इस देवी ने तेरी सुन ली, और तेरी मनोकामना पूर्ण हुयी । आज तेरे ख्वाबों की मलिका तेरे सामने खङी है, आखिर कब तक मैं तेरा प्यार कबूल न करती ।
चोखा को कहीं न कहीं किसी गङबङ का किसी धोखे का अहसास हो रहा था ।
और वह एकदम किसी जादुई तरीके से आसमान से उतरी हुयी इस मेनका के रूपजाल से बचना भी चाहता था । पर जाने क्यों अपने आपको असमर्थ सा भी महसूस कर रहा था ।
उसकी छठी इन्द्रिय बारबार उसे खतरे का अहसास करा रही थी ।
पर जैसे ही वह रूपा को देखता, उसका दिमाग मानो शून्य हो जाता ।
- लेकिन..। वह हकलाता हुआ सा बोला - तुझे यहाँ आने में डर..
- भगत । रूप की नायिका फ़िर से खनकते हुये सम्मोहित करने वाले स्वर में बोली - इस अगर मगर किन्तु परन्तु में समय नष्ट न कर । मैं कह चुकी हूँ, प्यार अँधा होता है । वह अँजाम की परवाह नहीं करता । वह किसी बात की परवाह नहीं करता ।
- परन्तु..। न चाहते हुये फ़िर भी भगत के मुँह से निकल ही गया ।
और तब अपनी उपेक्षा से रूठकर मानो वह अनुपम सुन्दरी जाने को मुङी ।
भगत का कलेजा जैसे किसी ने काट डाला हो ।
- ठहरो रूपा । कहते हुये वह अपने राख आसन से उठ गया ।
उसने एक बेबसी की निगाह चिता पर रखी हंडिया पर डाली, और गले से माला उतार कर चिता पर फ़ेंक दी ।
चंडूलिका का काम हथियार फ़िर कामयाब रहा था । सफ़लता से चलती साधना सिद्धि खंडित हो चुकी थी ।

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अंगिया वेताल 10



दो घण्टे बीत गये ।
रूपा निढाल सी एक तरफ़ बैठी थी ।
चोखा अलग जमीन पर बैठा था । वह किसी खूँखार शेरनी की तरह रति स्थान पर टपके रक्त को देख रही थी । उसकी आँखों में घृणा का सागर उमङ रहा था ।
फ़िर अचानक वह उठी । इसके साथ ही किसी यन्त्र सा चोखा भी खङा हो गया । वह रक्त के पास पहुँची, और उसे उँगली से लगाया । फ़िर उसने चोखा का तिलक किया, और अपने माथे पर गोल बिन्दी लगायी ।
- अब । वह खतरनाक स्वर में बोली - जाओ । फ़िर वह चीखी - जाओ तुम, मैंने कहा जाओऽ..
चोखा के बदन से परछाई नुमा साया निकलकर पेङ पर चला गया । चोखा फ़िर लङखङाया, और गिरता गिरता संभल गया । बल्कि वह गिरने ही वाला था । जब रूपा ने उसे संभाला ।
- तूने..। फ़िर यकायक वह घोर नफ़रत से बोली - मेरा कौमार्य भंग किया बोल.. तूने वो अमानत जो..पति की थी, उसे नष्ट किया । बोल..पापी..बोल..अब बोलता क्यों नहीं ।
चोखा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कह रही है, और क्यों कह रही है । उसे तेज चक्कर सा आ रहा था, और वह मुश्किल से खङा हो पा रहा था ।
रूपा ने किसी महाराष्ट्रियन औरत की भांति साङी समेटी, उसने साङी का पल्लू कसकर खोंसा ।
फ़िर वह किसी लङाके की भांति चोखा की तरफ़ बढ़ी, और जबरदस्त घूँसा उसके जबङे पर मारा । चोखा को काली रात में दिन सा नजर आने लगा । घूँसा उसे किसी भारी घन की चोट के समान महसूस हुआ । उसका जबङा हिल गया, और खून निकलने लगा । फ़िर रूपा ने किसी दक्ष लङाके की तरह उसे लात घूँसों पर रख लिया । चोखा पलटवार तो दूर अपना बचाव भी न कर सका, और अन्त में पस्त होकर चिता के पास गिर पङा । उसकी नाक से भल भल कर खून निकल रहा था ।
तब घायल शेरनी सी रूपा ने अपनी झूलती लटों को अपने सुन्दर मुखङे पर पीछे फ़ेंका, और गहरी गहरी सांसें लेने लगी । उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था ।
- धन्यवाद चंडूलिका । उसके कानों में सुनाई दिया - धन्यवाद ।
- ऐ । अचानक वह गुर्राई - धन्यवाद नहीं वेताल, हमें शरीर बार बार नहीं मिलते । वो भी ऐसे काम प्रवाहित माहौल में, जलती चिता, दो माध्यम जिस्म, जवान कन्या और कद्दावर मनुष्य । मैं हमेशा इसकी भूखी रहती हूँ ।
- पर । उसके कानों में भयभीत स्वर सुनाई दिया - ये माध्यम मर जायेगी देवी, और मैं इससे प्यार करता हूँ ।
- मर जाने दे । वह नफ़रत से बोली - मैं चाहती हूँ कि सभी मर जायें । इस समाज की मूर्ख बन्दिशों के चलते ही हम प्रेतनियाँ अतृप्त मरी हैं । तू भी इन्हीं मनुष्यों का ही तो शिकार हुआ । मनुष्य, हाँ मनुष्य, जो कभी हम भी थे ।
कहते कहते अचानक वह फ़ूट फ़ूटकर रोने लगी ।
फ़िर तेज स्वर में अट्टाहास करने लगी ।
यकायक उसने भरपूर थप्पङ चोखा के गाल पर मारा, और उसी पल चोखा उस पर झपट पङा । चिता पूरी तरह जल चुकी थी ।
अब उसमें अंगार ना के बराबर थे, बस उसकी राख ही गर्म थी ।


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मेरे बारे में

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।