गुरुवार, जुलाई 22, 2010

प्रेतनी का मायाजाल 6




अचानक दयाराम चौकन्ना हो उठा ।
और प्रसून रहस्यमय अन्दाज में मुस्कराया ।
उसने फ़ुर्ती से रिवाल्वर उठा ली, और सतर्कता से इधर उधर देखने लगा ।
प्रसून जानता था कि उसके रोंगटे खङे हो चुके हैं, और वह निकट ही किसी प्रेत की उपस्थिति महसूस कर रहा है, जिसका कि चार साल के अनुभव में वह अभ्यस्त हो चुका था ।  
वास्तव में उस वक्त वहाँ दो प्रेत पहाङी के नीचे मौजूद थे ।
जो प्रसून को स्पष्ट दिखाई दे रहे थे ।
उनमें से एक औरत अंगी था, जो शायद कुसुम थी । और दूसरा कोई अन्य पुरुष अंगी था ।
हालांकि प्रसून कवर्ड’ स्थिति में था, फ़िर भी वे ऊपर नहीं आ रहे थे ।
इसके दो कारण थे, एक तो ऊपर वाला इलाका लगभग आन के क्षेत्र में आता था ।
जहाँ प्रेत क्या यक्ष, किन्नर, गंधर्व, डाकिनी, शाकिनी जैसी शक्तियां भी घुसने से पहले सौ बार सोचती ।
दूसरे प्रसून भले ही कवर्ड (उच्चस्तर के तान्त्रिक साधक अपने को एक ऐसे अदृश्य कवच में बन्द कर लेते हैं, जिससे उनकी असलियत का पता नहीं चलता । उच्चस्तर के महात्मा, साधु, संत प्रायः इस तरीके को अपनाते हैं, जो किन्ही अज्ञात कारणोंवश बेहद आवश्यक होता है) था । पर उस स्थिति में भी वे एक अनजाना भय महसूस कर रहे थे ।
और उन्हें जैसे अज्ञात खतरे की बू आ रही थी ।
प्रसून दयाराम को और अधिक डिस्टर्ब नहीं होने देना चाहता था । इस तरह उसका कीमती समय नष्ट हो सकता था । अतः उसने उसकी निगाह बचाते हुये एक ढेला उठाया और फ़ूंक मारकर प्रेतों की ओर उछाल दिया ।
उसे इसकी प्रतिक्रिया पहले ही पता थी ।
प्रेत अपने अंगों में जबरदस्त खुजली महसूस करते हुये तेजी से वहाँ से भागे ।
उनका अनुमान सही था ।
पहाङी पर उनके लिये खतरा मौजूद था और वे अब लौटकर आने वाले नहीं थे ।
कुछ ही देर में दयाराम सामान्य स्थिति में आ गया ।
वह फ़िर से पत्थर की शिला पर बैठ गया, और बैचेनी से अपनी उंगलियां चटका रहा था । एक खुशहाली की खातिर, अपने बच्चों की सही परवरिश की खातिर, उसने तीसरी बार शादी की । और उस शादी ने उसके पूरे जीवन में आग लगा दी ।
पर वह कुछ भी तो नहीं कर सका ।
क्या करता बेचारा?
- फ़िर । उसका ध्यान पुनः अपनी तरफ़ आकर्षित करते हुये प्रसून ने पूछा - उसके बाद क्या हुआ?
बगिया में सोया हुआ दयाराम जैसे अचानक ही हङबङाकर उठा ।
उसने कलाई घङी पर नजर डाली, तो तीन बजने वाले थे ।
यानी ढाई घन्टे, वह एक तरह से घोङे बेचकर सोया था ।
उसे बेहद हैरत थी कि ऐसी चमत्कारी नींद अचानक उसे कैसे आ गयी थी ।
वह तो महज आधा घन्टा आराम करने के उद्देश्य से लेट गया था । मगर लेटते ही उसकी चेतना ऐसे लुप्त हुयी, मानो किसी नशे के कारण बेहोशी आयी हो ।
पर वास्तव में वह नींद में भी नहीं था?
बल्कि अपनी उसी अचेतन अवस्था में वह एक घनघोर भयानक जंगल में भागा चला जा रहा था । जंगल में बेहद रहस्यमयी पीले और काले रंग का मिश्रित सा घनघोर  अंधकार छाया हुआ था ।



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प्रेतनी का मायाजाल pretani ka mayajal
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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।