शाम के सात बजकर चवालीस मिनट हो चुके थे ।
वातावरण में हल्का हल्का अंधेरा फ़ैल चुका था ।
प्रसून इस समय कलियारी कुटी नामक एक बेहद गुप्त और
सिद्ध स्थान पर मौजूद था ।
कलियारी कुटी के आसपास का लगभग सौ किमी इलाका निर्जन
वन था, सिर्फ़ उसकी एक
दिशा को छोङकर, जो यहाँ से तीन किमी दूर कलियारी गांव के नाम
से जाना जाता था ।
इसको इस तरह से समझें कि सौ किमी व्यास का एक वृत बनाया
जाये, और उसमें से बीस
अंश का हिस्सा काट दिया जाय, और यही बीस अंश वाला हिस्सा
इंसानों के सम्पर्क वाला था । शेष हिस्सा एकदम निर्जन ही रहता था ।
कलियारी कुटी को साधनास्थली के रूप में उसे उसके गुरु
‘बाबाजी’ ने प्रदान
किया था, और तबसे इस स्थान पर प्रसून कई बार सशरीर और अशरीर
आ चुका था । अपनी पहली अंतरिक्ष यात्रा उसने इसी स्थान से अशरीर की थी ।
कलियारी कुटी के छह किमी के दायरे में, यहाँ पूर्व में तपस्यारत रह चुके, किसी तपस्वी पुरुष की ‘आन’ लगी हुयी थी । लेकिन वो
तपस्वी पुरुष कौन था, इसकी जानकारी उसे नहीं थी, और न ही बाबाजी ने उसे कभी कुछ बताया था ।
उस कुटी के निकट ही पहाङी श्रंखला से एक झरना निकलता
था । जिसमें पत्थरों के टकराने से साफ़ हुआ पानी उजले कांच के समान चमकता था । ये
इतना स्वच्छ और बेहतरीन जल था कि कोई भी इसको बेहिचक आराम से पी सकता था ।
कुटी से चार फ़र्लांग दूर वो पहाङी थी, जिस पर प्रसून इस वक्त मौजूद था ।
इस पहाङी पर चार फ़ुट चौङी दस फ़ुट लम्बी और दो फ़ुट
मोटी, दो पत्थर की
शिलाएं एक घने वृक्ष के नीचे बिछी हुयी थी । इस तरह यह एक शानदार प्राकृतिक डबल
बेड था ।
कलियारी गांव से साढ़े तीन किमी की दूरी पर, और इस पहाङी से आधा किलोमीटर की दूरी
पर, एक पुराना शमशान स्थल था । जिसके एक साइड का दो किमी का
इलाका किसी नीच वाम शक्ति ने ‘बांध’ रखा था ।
कभी कभी उसे हैरत होती थी कि एक ही स्थान पर दो
विपरीत शक्तियां, यानी सात्विक और
तामसिक अगल बगल ही मौजूद थी, जो कि एक तरह से असंभव जैसा था
।
प्रसून ने एक सिगरेट सुलगायी, और जैसे यूँ ही कलियारी विलेज की ओर
देखने लगा । जहाँ बहुत हल्के प्रकाश के रूप में जीवन के चिह्न नजर आ रहे थे ।
एक तरफ़ साधना के लिये इंसानी जीवन से दूर एकदम
निर्जन में भागना, और दूसरी तरफ़
लगभग अपरिचित से इस जनजीवन को दूर से देखना, एक अजीब सी सुखद
अनुभूति देता था ।
प्रसून पहाङी पर टहलते हुये अपने घर के बारे में
सोचने लगा ।
नीलेश अपनी गर्लफ़्रेंड मानसी के साथ उसके घर मारीशस
गया हुआ था । बाबाजी किसी अज्ञात स्थान पर थे, और इस वक्त उसके सम्पर्क में नहीं थे ।
उसने अंतरिक्ष की ओर देखा, जहाँ धीरे धीरे जवान होती रात के साथ
असंख्य तारे नजर आने लगे थे । उसका दिल कर रहा था कि कलियारी कुटी में अशरीर होकर
सूक्ष्म लोकों की यात्रा पर निकल जाये, जो इन्हीं तारों के
बीच अंतरिक्ष में हर ओर फ़ैले हुये थे । पर बाबाजी के आदेशानुसार उसे बीस दिन का
समय इसी कलियारी कुटी में एक विशेष साधना करते हुये बिताना था ।
- साहिब । उसके मुख से आह सी निकली - तेरी लीला अपरम्पार ।
उसने रिस्टवाच की लाइट आन कर समय देखा ।
- साहिब । उसके मुख से आह सी निकली - तेरी लीला अपरम्पार ।
उसने रिस्टवाच की लाइट आन कर समय देखा ।
रात के नौ बजने वाले थे ।
तभी उसे अपने आसपास एक विचित्र सा अहसास होने लगा ।
हत्या.. कुसुम.. हत्या.. कुसुम..!
ये शब्द जैसे बारबार उसके जेहन पर दस्तक सी देने लगे
। इसका सीधा सा मतलब था कि आसपास कोई सामान्य आदमी मौजूद था । जिसके दिमाग में इस
तरह के विचारों का अंधङ चल रहा था ।
इस ‘आन’ लगे हुये, और दूसरी साइड पर बांधे गये स्थान पर,
एक सामान्य आदमी का मौजूद होना, और वो भी किसी हत्या के
इरादे से, एक अजूबे से कम नहीं था ।
तपस्वी की ‘आन’ लगा हुआ स्थान इंटरनेट के उस ‘वाइ
फ़ाइ’ स्थान के समान होता है । जिसमें आम जिंदगी की बात दूर से ही बिना प्रयास के
कैच होने लगती है, और इसी आन के प्रभाव से ‘जीव’ श्रेणी में आने वाली आत्मायें एक अज्ञात प्रभाव से उस स्थान से
अनजाने ही दूर रहती हैं ।
अभी वह इस नयी हलचल के बारे में सोच ही रहा था कि
शमशान स्थल की तरफ़ एक रोशनी सी हुयी, और कुछ ही देर में बुझ गयी ।
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