रविवार, जून 27, 2010

सहज समाधि की ओर

जिस समय समाधि द्वारा आँखों की दोनों पुतलियाँ अन्दर की और उलटने लगती है । तो सबसे पहले अन्धकार में प्रकाश की कुछ किरणें दिखायी देती हैं । और फ़िर अलोप हो जाती हैं । बिजली जैसी चमक दिखाई देती है । दीपक जैसी ज्योति दिखाई देती है । पाँच तत्वों के रंग लाल , पीला , नीला हरा और सफ़ेद दिखाई देते हैं । इससे वृति अभ्यास में लीन होने लगती है । इसके बाद आसमान पर तारों जैसी चमक । दीपमाला जैसी झिलमिल दिखाई देगी । और चाँद जैसा प्रकाश और सूर्य जैसी किरणें दिखाई देंगी । जिस समय आँख बिलकुल भीतर की ओर उलट जायेगी । तब सुरती शरीर छोङकर ऊपर की ओर चङेगी । तो आकाश दिखाई देगा । जिसमें " सहस्त्रदल " कमल दिखाई देगा । उसके हजारों पत्ते अलग अलग त्रिलोकी का काम कर रहे हैं । अभ्यासी यह दृश्य देखकर बहुत खुश होता है । यहाँ उसे तीन लोक के मालिक का दर्शन होता है । बहुत से अभ्यासी इसी स्थान को पाकर इसको ही कुल का मालिक समझकर गुरु से आगे चलने का रास्ता नहीं पूछते । यहाँ का प्रकाश देखकर सुरति त्रप्त हो जाती है । इस प्रकाश के ऊपर एक " बारीक और झीना दरबाजा " अभ्यासी को चाहिये कि इस छिद्र में से सुरति को ऊपर प्रविष्ट करे । इसके आगे " बंक नाल " याने टेङा मार्ग है । जो कुछ दूर तक सीधा जाकरनीचे की ओर आता है । फ़िर ऊपर की ओर चला जाता है । इस नाल से पार होकर सुरति " दूसरे आकाश " पहुँची । यहाँ " त्रिकुटी स्थान " है । यह लगभग लाख योजन लम्बा और चौङा है । इसमें अनेक तरह के विचित्र तमाशे और लीलाएं हो रही हैं । हजारों सूर्य और चन्द्रमा इसके प्रकाश से लज्जित है । " ॐ" और " बादल की सी गरज " सुनाई देती है । जो बहुत सुहानी लगती है । तथा वह आठों पहर होती रहती है । इस स्थान को पाकर सुरती को बहुत आनन्द मिलता है । और वह सूक्ष्म और साफ़ हो जाती है । इस स्थान से अन्दर के गुप्त भेदों का पता चलने लगता है । कुछ दिन इस स्थान की सैर करके सुरती ऊपर की ओर चढने लगी । चढते चढते लगभग करोङ योजन ऊपर चङकर तीसरा परदा तोङकर वह " सुन्न " में पहुँची । यह स्थान अति प्रसंशनीय है । यहाँ सुरति बहुत खेल विलास आदि करती है । यहाँ " त्रिकुटी स्थान " से बारह गुणा अधिक प्रकाश है । यहाँ अमृत से भरे बहुत से " मानसरोवर " तालाब स्थित हैं । और बहुत सी अप्सरायें स्थान स्थान पर नृत्य कर रही हैं । इस आनन्द को वहाँ पहुँची हुयी सुरति ही जानती है । यह लेखनी या वाणी का विषय हरगिज नहीं है । यहाँ तरह तरह के अति स्वादिष्ट सूक्ष्म भोजन तैयार होते हैं । अनेको तरह के राग रंग नाना खेल हो रहे हैं । स्थान स्थान पर कलकल करते हुये झरने
बह रहे हैं । यहाँ की शोभा और सुन्दरता का वर्णन नहीं किया जा सकता । हीरे के चबूतरे । पन्ने की क्यारियाँ । तथा जवाहरात के वृक्ष आदि दिखाई दे रहे हैं । यहाँ अनन्त शीशमहल का निर्माण है । यहाँ अनेक जीवात्माएं अपने अपने मालिक के अनुसार अपने अपने स्थानों पर स्थित हैं । वे इस रंग विलास को देखती हैं । और दूसरों को भी दिखलाती हैं । इन जीवात्माओं को " हंस मंडली " भी कहा गया है । यहाँ स्थूल तथा जङता नहीं है । सर्वत्र चेतन ही चेतन है । शारीरिक स्थूलता और मलीनता भी नहीं हैं । इसको संतजन भली प्रकार जानते हैं । इस तरह के भेदों को अधिक खोलना उचित नहीं होता । सुरति चलते चलते पाँच अरब पचहत्तर करोङ योजन और ऊपर की ओर चली गयी । अब " महासुन्न " का नाका तोङकर वह आगे बङी । वहाँ दस योजन तक घना काला घोर अंधकार है । इस अत्यन्त तिमिर अंधकार को गहराई से वर्णित करना बेहद कठिन है ।
फ़िर लगभग खरब योजन का सफ़र तय करके सुरति नीचे उतरी । परन्तु फ़िर भी उसके हाथ कुछ न लगा । तब वह फ़िर और ऊपर को चङी । और जो चिह्न ? सदगुरुदेव ने बताया था । उसकी सीध लेकर सुरति उस मार्ग पर चली । इस यात्रा का और इस स्थान का सहज पार पाना बेहद मुश्किल कार्य है ।
सुरति और आगे चली तो महासुन्न का मैदान आया । इस जगह पर " चार शब्द और पाँच स्थान " अति गुप्त हैं । सच्चे दरबार के मालिक की अनन्त सुर्तियां यहाँ रहती हैं । उनके लिये बन्दी खाने बने हुये हैं । यहाँ पर उनको कोई कष्ट नहीं है । और अपने अपने प्रकाश में वे कार्य कर रहीं हैं । परन्तु वे अपने मालिक का दर्शन नहीं कर सकती हैं । दर्शन न होने के कारण वे व्याकुल अवश्य हैं । इनको क्षमा मिलने की एक युक्ति होती है । जिससे वे मालिक से मिल सकती हैं । जब कोई सन्त इस मार्ग से जाते हैं । तो जो सुरतियां नीचे संतो के द्वारा वहाँ जाती हैं । तब उन सुरतियों को उनका दर्शन होता है । फ़िर उन जीवात्माओं को ऊपर ले जाने से जो प्रसन्नता उन संतो को होती है । उसका वर्णन कैसे हो सकता है । सच्चे मालिक की करुणा और दया उन पर होती है । संतजन उन सुरतियों को क्षमा प्रदान करवाकर सच्चे मालिक के पास बुलबाते हैं ।
विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

सोमवार, जून 21, 2010

बन्दर ( बाबा ) क्या जाने अदरक ( बीबी ) का स्वाद ?

मैं सतसंग में जब भी योग या भक्ति की बात करता हूँ । तो प्रायः आम लोग अपनी पूर्व और बेहद मजबूत धारणा के चलते यही मानते हैं कि ये सब बातें या तो फ़ुरसतिया लोगों के लिये हैं ।
या फ़िर उन लोगों के लिये जो जीवन के कार्यों और जिम्मेदारियों से निवृत हो चुके हैं और घर के लोगों द्वारा उठाकर कूङे की तरह बाहर फ़ेंक दिये गयें हैं । अक्सर लोग मुझे अपने ग्यान का उदाहरण भी देते हैं -  नारि मरी गृह सम्पति नासी । मूङ मुङाय भये सन्यासी । यदि कुछ लोग इधर चलने का प्रयास भी करना चाहते हैं । तो वे मानते हैं कि योग भक्ति आदि बेहद कठिन कार्य है । और full time job है । 
कुछ ने यह भी कहा - बाबा आप नहीं जानते ? दिन भर का थका मांदा आदमी..वैल घोङे की तरह जुता आदमी..शाम को जब घर पहुँचता है । और दरबाजे पर नहा धोकर ..लिपिस्टिक.पाउडर से लैस अपनी चमाचम ..झमाझम बीबी को देखता है । तो सब भक्ति धरी रह जाती है । वो थकान बीबी ही दूर कर सकती है..? अपने प्यारे प्यारे बच्चे जब कूदकर गोद में बैठते है । तो भक्ति समझ में नहीं आती । पंजाबी में एक कहाबत है - ये जग मिठ्ठा वो कौन दिठ्ठा..? 
इसका अर्थ है । यहाँ पूरा मजा आ रहा है । स्वर्ग नरक पता नहीं है या नहीं ? भगवान है या नहीं ? किसने देखा ? बाबा हमारा मजा मत खराब कर..? बन्दर ( बाबा ) क्या जाने अदरक ( बीबी ) का स्वाद ?
सचमुच ! सही कहते हैं । हमारे ये भाई । बीबी का स्वाद तो मुझे नहीं मालूम..पर बिना अदरक डाले चाय मुझे भी अच्छी नहीं लगती । क्या बीबी अदरक जैसी तीखी होती है ..? 
जो लोग मेरे पुराने reader हैं । उन्हें मेरे इस सतसंग से कोई बैचेनी नहीं हो रही होगी । पर  बाबा  के नये reader अवश्य उलझन और असमंजस महसूस कर रहे होंगे । यह baba का style है । आप modern लोग समझते हैं कि baba modern नहीं हो सकता ।
खैर..इस तमाम सतसंग का निष्कर्ष यह है कि ज्यादातर ग्रहस्थ और नौकरीपेशा या उधोगपुरुषों का मानना होता है कि भक्ति और संसार का समागम नहीं होता - जगत भगत को बैर..बैर जैसे मूस बिलाई..।
आईये देखें । जगत के कार्य करते हुये भक्ति कैसे की जा सकती है ? इस प्रयोजन हेतु योग या भक्ति को तीन भागों में बाँटा गया है ।
1 - पहला " कर्म योग " है । मन बुद्धि चित्त अहम । पाँच ग्यानेन्द्रियाँ । पाँच कर्मेंन्द्रिया । ये संसार का कार्य करने के लिये हैं । तुम्हारा शरीर एक प्रकार की जेल है । जिसमें तुम्हारे पाप पुण्य के फ़लस्वरूप तुम्हें डाला गया है । अपने इस

शरीर के साथ जो भी अच्छा या बुरा जीवन तुम्हें कर्मफ़ल के रूप में मिला है । उसको भोगना ही होगा - देह धरे के दण्ड को भोगत है हर कोय । ग्यानी भोगे ग्यान से मूरख भोगे रोय ।
यानी - उसकी  रजा में रजा तो कट गयी सजा  ।
कर्म योग का आशय यही है । कि निजी वासनाओं से तुम जिस और जैसे शरीर को प्राप्त हुये हो । जिस और जैसी स्थिति को प्राप्त हुये हो । उसे निर्विकार भाव से भोगो
2 - दूसरा " ग्यान योग " है । ग्यान योग भी बेहद सरल है । इसका मुख्य सूत्र है । चेतना आत्मा के द्वारा गति कर रही है । शरीर और इंद्रियों से जगत के कार्य और व्यवहार करो । और चेतना को परमात्मा में लगा दो । इसी के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि - हे अर्जुन तू युद्ध कर और निरंतर ध्यान कर " जो श्रीकृष्ण के इस वाक्य का अर्थ समझ लेगा । उसके लिये ग्यान योग अत्यन्त सरल हो जायेगा ।
3 - तीसरा " भक्ति योग " है । भक्त का अर्थ ही जुङ जाना है । भक्त का अर्थ ही समर्पण है । भक्त का अर्थ ही सुमरन है । भक्ति के लिये भक्त का मुख्य सूत्र है । यह सब परमात्मा की कृपा से हो रहा है । मैं तो केवल निमित्त मात्र हूँ । संसार एक रंगमंच के परदे की तरह है । जिस पर प्रभु की लीला हो रही है । अतः इस लीला का भरपूर आनन्द तो अवश्य लो । पर मेरा तेरा भूल जाओ । practical रूप में देखो तो । मेरा तेरा करने से आपको कुछ हासिल होता है क्या ? बस यह मानना ही असली भक्ति योग है ।
विशेष - ऊपर के तीनों योग जब विधिवत मिलकर एक हो जाते हैं । तब " हँस " के ग्यान वैराग्य भक्ति नाम के तीनों पंख जो तुम्हारी नादानी और गलतियों से टूट चुके हैं । या घायल हो गये हैं । फ़िर से स्वस्थ हो जातें हैं । और हँस अनन्त की यात्रा पर उङने को तैयार हो जाता है ।

बुधवार, जून 16, 2010

2012 में प्रलय की वास्तविकता

भारत में तो मैंने इतना नहीं देखा । पर 2012 को लेकर अमेरिका आदि कुछ विकसित देशों मे हल्ला मचा हुआ है । हाल ही में हुये मेरे एक परिचित स्नेहीजन त्रयम्बक उपाध्याय साफ़्टवेयर इंजीनियर ने अमेरिका ( से ) में 2012 को लेकर मची खलबली के बारे में बताया । उन्होनें इस सम्बन्ध में मेरे एक अन्य मित्र श्री विनोद दीक्षित द्वारा लिखी पोस्ट end of the world.. 2012 को भी पढा था । इस तरह की बातों में मेरा नजरिया थोङा अलग रहता है । मेरे द्रष्टिकोण के हिसाब से यह पोस्ट भ्रामक थी । लिहाजा इस ज्वलन्त मुद्दे को लेकर मेरे पास जब अधिक फ़ोन आने लगे ।तो मैंने वह पोस्ट ही हटा दी । पहले तो मेरे अनुसार यह उस तरह सच नहीं है । जैसा कि लोग या विनोद जी कह रहे हैं । दूसरे यदि इसमें कुछ सच्चाई है भी तो " डाक्टर भी मरणासन्न मरीज से ये कभी नहीं कहता कि तुम कुछ ही देर ( या दिनों ) के मेहमान हो " यदि हमारे पास किसी चीज का उपाय नहीं है । तो " कल " की चिन्ता में " आज "को क्यों खराब करें । यदि प्रलय होगी भी । तो होगी ही । उसको कौन रोक सकता है । जब हम " लैला " सुनामी " हैती " के आगे हाथ जोङ देते है । तो प्रलय तो बहुत बङी " चीज " है । लेकिन तीन दिन पहले जब मैं इस इंद्रजाल ( अंतर्जाल ) internet पर घूम रहा था । तो किसी passions साइट पर मैंने लगभग 40 साइट इसी विषय पर देखी । जिनमें " एलियन " द्वारा तीसरे विश्व युद्ध द्वारा आतंकवाद , प्राकृतिक आपदा ..आदि किसके द्वारा " प्रथ्वी " का अंत होगा । ऐसे प्रश्न सुझाव आदि थे । जो लोग मेरे बारे में जानते हैं और जिन्हें लगता है कि मैं " इस प्रश्न " का कोई संतुष्टि पूर्ण उत्तर दे सकता हूँ । ऐसे विभिन्न स्थानों से लगभग 90 फ़ोन काल मेरे पास आये । और मैंने उनका गोलमाल..टालमटोल..उत्तर दिया । इसकी वजह वे लोग बेहतर ढंग से समझ सकते हैं । जो किसी भी प्रकार की कुन्डलिनी या अलौकिक साधना में लगे हुये हैं । मान लीजिये कि किसी साधक ने इस प्रकार की साधना कर ली हो कि वह भविष्य के बारे में बता सके । और वह पहले से ही सबको सचेत करने लगे । तो ये साधना का दुरुपयोग और ईश्वरीय नियमों का उलंघन होगा । परिणामस्वरूप वह ग्यान साधक से अलौकिक शक्तियों द्वारा छीन लिया जायेगा । क्योंकि ये सीधा सीधा ईश्वरीय विधान और प्रकृति के कार्य में हस्तक्षेप होगा ।
हाँ इस या इन आपदाओं से बचने के उपाय अवश्य है । और वे किसी को भी सहर्ष बताये जा सकते हैं । पर यदि कोई माने तो ? क्योंकि जगत एक अग्यात नशे में चूर है । " झूठे सुख से सुखी हैं , मानत है मन मोद । जगत चबेना काल का कछू मुख में कछु गोद । " जीव वैसे ही काल के गाल में है । उसकी कौन सी उसे परवाह है । तो खबर नहीं पल की और बात करे कल की । वाला रवैया चारों तरफ़ नजर आता है । खैर..जगत व्यवहार और विचार से साधुओं को अधिक मतलब नहीं होता । फ़िर भी एक अति आग्रह रूपी दबाब में जब बार बार ये प्रश्न मुझसे किया गया । तो मुझे संकेत में इसका जबाब देना पङा ।
ये जबाब मैंने " श्री महाराज जी " और कुछ गुप्त संतो से प्राप्त किया था । अलौकिकता के " ग्यान काण्ड " और " बिग्यान काण्ड " में जिन साधुओं या साधकों की पहुँच होती है । वे इस चीज को देख सकते हैं । 2012 में प्रलय की वास्तविकता क्या है । आइये इसको जानें ।
" संवत 2000 के ऊपर ऐसा योग परे । के अति वर्षा के अति सूखा प्रजा बहुत मरे ।
अकाल मृत्यु व्यापे जग माहीं । हाहाकार नित काल करे । अकाल मृत्यु से वही बचेगा ।
जो नित " हँस " का ध्यान धरे । पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण । चहुँ दिस काल फ़िरे ।
ये हरि की लीला टारे नाहिं टरे ।
अब क्योंकि संवत 2000 चल ही रहा है । इसलिये प्रलय ( मगर आंशिक ) का काउंटडाउन शुरू हो चुका है । मैंने किसी पोस्ट में लिखा है कि गंगा यमुना कुछ ही सालों की मेहमान और है । 2010 to 2020 के बाद जो लोग इस प्रथ्वी पर रहने के " अधिकारी " होंगे । वो प्रकृति और प्रथ्वी को एक नये श्रंगार में देखने वाले गिने चुने भाग्यशाली लोग होंगे । और ये घटना डेढ साल बाद यानी 2012 में एकदम नहीं होने जा रही । बल्कि इसका असली प्रभाव 2014 to 2015 में देखने को मिलेगा । इस प्रथ्वी पर रहने का " हक " किसका है । ये रिजल्ट सन 2020 में घोषित किया जायेगा । यानी आपने सलामत 2020 को happy new year किया । तो आप 65 % का विनाश करने वाली इस प्रलय से बचने वालों में से एक होंगे । ऊपर जो " संतवाणी " मैंने लिखी है । उसमें ऐसी कोई कठिन बात नहीं है । जिसका अर्थ करना आवश्यक हो । सिवाय इस एक बात " अकाल मृत्यु से वही बचेगा । जो नित " हँस " का ध्यान धरे । " के । " हँस " ग्यान या ध्यान या भक्ति वही है । जो शंकर जी , हनुमान , राम , कृष्ण , कबीर , नानक रैदास , दादू , पलटू ..आदि ने की । यही एकमात्र " सनातन भक्ति " है । इसके बारे में मेरे सभी " ब्लाग्स " में बेहद विस्तार से लिखा है । अतः नये reader और जिग्यासु उसको आराम से देख सकते हैं । और कोई उलझन होने पर मुझे फ़ोन या ई मेल कर सकते हैं ।
लेकिन अभी भी बहुत से प्रश्न बाकी है । ऊपर का दोहा कोई विशेष संकेत नहीं कर रहा । ये सब तो अक्सर प्रथ्वी पर लगभग होता ही रहा है । तो खास क्या होगा और क्यों होगा ? ये अब भी एक बङा प्रश्न था । तो आप लोगों के अति आग्रह और दबाब पर मैंने " श्री महाराज जी " से विनम्रता पूर्वक निवेदन किया । और उत्तर में जो कुछ मेरी मोटी बुद्धि में फ़िट हुआ । वो आपको बता रहा हूँ ।
बाढ , सूखा , बीमारी , महामारी और कुछ प्राकृतिक आपदायें रौद्र रूप दिखलायेंगी । और जनमानस का झाङू लगाने के स्टायल में सफ़ाया करेंगी । लेकिन...? इससे भी प्रलय जैसा दृष्य नजर नहीं आयेगा । प्रलय लायेगा धुँआ..धुँआ..हाहाकारी...विनाशकारी..धुँआ..चारों दिशाओं से उठता हुआ घनघोर काला गाढा धुँआ..। और ये धुँआ मानवीय अत्याचारों से क्रुद्ध देवी प्रथ्वी के गर्भ से लगभग जहरीली गैस के रूप में बाहर आयेगा । यही नहीं प्रथ्वी के गर्भ में होने वाली ये विनाशकारी हलचल तमाम देशों को लीलकर उनका नामोंनिशान मिटा देगी । प्रथ्वी पर संचित तमाम तेल भंडार इसमें कोढ में खाज का काम करेंगे । और 9 / 11 को जैसा एक छोटा ट्रेलर हमने देखा था । वो जगह जगह नजर आयेगा । प्रथ्वी में आंतरिक विस्फ़ोटों से विकसित देशों की बहुमंजिला इमारते तिनकों की तरह ढह जायेगी । हाहाकार के साथ त्राहि त्राहि का दृष्य होगा । समुद्र में बनने वाले भवन और अन्य महत्वाकांक्षी परियोजनायें इस भयंकर जलजले में मानों " बरमूडा ट्रायएंगल " में जाकर गायब हो जायेगीं । nasa के सभी राकेट बिना लांच किये । विना तेल लिये । बिना बटन दबाये " अंतरिक्ष " में उङ जायेंगे । और वापस नहीं आयेंगे ।
और बेहद हैरत की बात ये है । कि इस विनाशकारी मंजर को देखने वाले भी होंगे । और इस से बच जाने वाले भी लाखों (हाँलाकि कुछ ही ) की तादाद में होंगे । और प्रथ्वी की आगे की व्यवस्था भी उन्हीं के हाथों होगी । इस भयानक महालीला के बाद प्रथ्वी के वायुमंडल में सुखदायी परिवर्तन होंगे । और आश्चर्य इस बात का कि जिन घटकों से ये तबाही आयेगी । वे ही घटक प्रथ्वी से बाहर आकर तबाही का खेल खेलने के बाद परिवर्तित होकर नये सृजन की रूप रेखा तैयार करेंगे ।
अब अंतिम सवाल । ये सब आखिर क्यों होगा ? तो इसका उत्तर है । डिसबैलेंस । यानी प्राकृतिक संतुलन का बिगङ जाना । ये बैलेंस बिगङा कैसे ? इसका आध्यात्मिक उत्तर और कारण बेहद अलग है । वो मैं न समझा पाऊँगा । और न आप इतनी आसानी से समझ पायेंगे । सबसे बङा जो मुख्य कारण है । वो है कई पशु पक्षियों की प्रजाति का लुप्त हो जाना । मनुष्य का अधिकाधिक प्राकृतिक स्रोतों का दोहन । और मनुष्य के द्वारा अपनी सीमा
छोङकर प्रकृति के कार्यों में हस्तक्षेप करना आदि ..?
अब एक आखिरी बात..पशु पक्षियों के लुप्त होने से प्रलय का क्या सम्बन्ध ? जो लोग अमेरिका आदि देशो के बारे में जानकारी रखते हैं । उन्हें एक बात पता होगी । कि एक बार जहरीले सांपो के काटने से आदमियों की मृत्यु हो जाने पर वहाँ सामूहिक रूप से सांपो की हत्या कर दी गयी । ताकि " आदमी " निर्विघ्न रूप से रात दिन विचरण कर सके । और कुछ स्थान एकदम सर्पहीन हो गये...कुछ ही समय बाद । वहाँ एक अग्यात रहस्यमय बीमारी फ़ैलने लगी । तब बेग्यानिकों को ये बात पता चली कि सर्प हमारे आसपास के वातावरण से जहरीले तत्वों को खींच लेते है । और वातावरण स्वच्छ रहता है । सर्प हीनता की स्थिति में वह विष वातावरण में ही रहा । और जनता उस अदृष्य विष की चपेट में आ गयी । ये सिर्फ़ एक घटित उदाहरण भर था । आज प्रथ्वी के वायुमंडल और
वातावरण से जरूरत की तमाम चीजें गायब हो चुकी हैं ? इसलिये प्रथ्वी पर मूव होने वाली इस साक्षात " मूवी " का मजा लेने के लिये तैयार हो जाये । और घबरा रहें हैं तो अभी भी मौज लेने enjoy करने के लिये आपके पास तीन साल तो हैं ही । तो डू मौज । डू एन्जोय । गाड ब्लेस यू ।

बुधवार, जून 09, 2010

एक गरीब की खुशनुमा शाम

शाम का समय था । मौसम का रुख ।अब दोपहर की अपेक्षा ।खुशनमा हो चला था । हाथ में सब्जी का थैला लटकाये मैं । मैं यानी राजकिशोर पाराशर, प्राइवेट मामूली क्लर्क , गौतम बुद्ध इंटर कालेज , बन्नाखेङा । वही आने वाले कल परसों की चिंता लिये ।उसे आज से , सदा से ढो रहा था । गधा खच्चर की तरह । जिन्दगी को ढोने के बाबजूद..जिन्दगी ने मुझे ।कलेशों की भरपूर सौगात दी थी । घर पर बीबी की कांय कांय..बच्चों की अन अफ़ोर्डेवल डिमांडस..कालेज के स्टाफ़ की तनातनी..ऊपर वालों की टेङी निगाह..जिन्दगी । एक भयानक जंगल । नजर आने लगी..जिसमें मैं ।मुझे एक निरीह चूहा..खरगोश केसमान ।नन्ही जान वाला महसूस होता । और आसपास ।खतरनाक शेर चीते नजर आते । मुझे मेरी गरदन उमेठने को तैयार..दिखने में मेरे ही जैसे..पर अन्य कोई..गैरों की क्या कहूँ । वक्त की मार ने । मेरे लिये मेरी निजी बीबी को । ऐसा बना दिया था । उसके अनुसरणकर्ता ।मेरे निजी बच्चे । मुझे सङे चूहे की भांति देखते थे । जिसकी वजह । सिर्फ़ इतनी थी । कि इन सबकी निगाहों में मैं मूरख । और एकदम फ़ेल आदमी था । मेरे गाल ।जिन्दगी के इस पतझङ ने । चालीस में ही पिचका दिये थे । मेरी कमर । वक्त के तूफ़ानों से ।अस्सी के समान झुक गयी थी । इस फ़ेलियरटी ने शायद ..मुझे नामर्द और नपुंसक भी । बना दिया था । तभी मेरी अङतीस की बीबी । मुझ चालीस के को त्यागकर । पङोस के बाइस के । जीतप्रकाश को हमेशा उपलब्ध थी । ऐसा मैं नहीं । मेरी कालोनी के यादव जी कहते । गुप्ता जी कहते । शर्मा जी कहते । वर्माजी...बस अखवार में नहीं निकली थी । टी.वी. में नहीं आयी थी । बेकार खबर थी । क्योंकि सब पहले से ही जानते थे । ऐसा मैं बेकार आदमी था । हफ़्ते भर का राशन थैले में था । सब्जी बाला । कुछ खराब सब्जियां । फ़ेंकने के छाँटता था । ये फ़ार्मूला । मुझे एक पाव भाजी वाले ने । दया करके बता दिया था ।वो भी उसी में से ।सब्जी लाता था । सब्जी बाला अब ।मेरी औकात जान गया था । मैं दस रुपये में पाँच किलो । सब्जी ले आता था । आज भगवान मेहरबान था । " उस ढेर " में शायद सब्जी बाले की गलती से । अच्छे अच्छे बेंगन मिल गये थे । मैं बङा खुश था । कि बीबी के निहोरे करके । किसी तरह आज भरंवा बेंगन । बनबा ही लूँगा । लेकिन भरंवा बेंगन की खुशी । मेरी छोटी सी उम्मीद भर थी । हो सकता है । बीबी घर पर न हो ।
जीतप्रकाश के साथ । घूमने गयी हो । सिनेमा गयी हो । इसलिये भविष्य से अग्यात । मेरे अरमानों का दिया । विचारों के तूफ़ान में ।अपनी मद्धिम लौ के साथ । फ़ङफ़ङा रहा था । मैं वास्तव में था ही । मूरख आदमी । जो आने वाले कल के । ऊजल सपने देखने के बजाय ।अतीत के कज्जल कोठार में । घुसा रहता । मैं जिन्दगी की रेल को । आगे ले जाने के बजाय । पीछे दौङाता । पीछे । पीछे । रेल । रेल नहीं कार....।
मुँह आगे की तरफ़ । सोच पीछे की तरफ़ । चल रहा था भरी सङक पर । ख्याल था घर का । ख्याल था भरंवा बेंगन का । असावधान कौन था । मैं । मैं यानी राजकिशोर पाराशर, प्राइवेट मामूली क्लर्क , गौतम बुद्ध इंटर कालेज , बन्नाखेङा । उन कार वाले साहब की । कोई गलती नहीं थी । सरासर मेरी गलती थी । इस गरीब पब्लिक को । मजा है..कार वालों को पकङने का । कार के बोनट की टक्कर मेरे कमर पर लगी थी । हाथ के थैले का राशन । मेरी इज्जत की तरह सङक पर फ़ैला पङा था । मेरे अरमानों के गोल गोल बेंगनी बेंगन । सङक पर दूर दूर तक बिखर गये थे । बाजारों में भीङ फ़ैलाते ठलुआ लुक्कों ने । घर गृहस्थी से बेजार । कुछ फ़ालतू फ़ुक्कों ने । कार वाले साहब और मेम साहब को घेर लिया था । और फ़ालतू में चिल्ला रहे थे । अमीरी मुर्दाबाद । साहब विना मांगे ही । मुझे " एक टक्कर " के दो हजार दे रहे थे । मैंने अपना टटोला टटूली एक्सरा किया । कोई हड्डी नहीं टूटी । कोई चीज नहीं फ़ूटी । सिर्फ़ दस रुपये की । आयोडेक्स के बराबर । नुकसान था । फ़िर दो हजार किस बात के । जिन्दगी ने तो इतनी टक्करें मारी । कभी कोई हरजाना नहीं दिया । जमाने ने तो इतनी ठोकरें मारी । कभी हालचाल भी नहीं पूछा । आप जाईये । साहब । बस एक और ठोकर ही तो लगी है । पर मैं सही हूँ ।
पर भाई साहब । आपका नुकसान भी तो हुआ है । मेम ने सहानभूति की । मेरा नुकसान । मैं अपने नुकसान का हिसाब किताब । अगर । जिन्दगी से लूँ । तो टाटा बिरला बन जाऊँ । क्या नुकसान हुआ । सामान सङक पर फ़ैल गया । बटोर लूँगा । बेंगन । सब्जी । पहले ही कूङे के ढेर से लाया हूँ । कीच में गिर गये । धो लूँगा । पर एक टक्कर का सौदा । क्या लालच से करूँ । क्षति हुयी ही नहीं । फ़िर क्यों क्षतिपूर्ति लूँ । शायद अभी ..मैं इतना नहीं गिरा । मैं । मैं । मैं यानी राजकिशोर पाराशर, प्राइवेट मामूली क्लर्क , गौतम बुद्ध इंटर कालेज , बन्नाखेङा ।
साहब कार ले के चला गया । भारत की जनता " पागल है..पागल है..। कहकर चली गयी । मैंने फ़िर से सारा सामान । कुशलता से थैले में समेट लिया । थैली फ़टने से सङक पर फ़ैल गयी । कुछ चीनी । मैंने अरोरकर । फ़ूँक मारकर । साफ़कर वहीं खा ली । सब्जियाँ नल पर धो ली । और गरम फ़ुलकों । भरंवा बेगन । का ख्याली चटकारा लेते हुये घर पहुँच गया । बीबी वन चेतना केन्द्र गयी थी । बच्चों के जीतप्रकाश अंकल के साथ । बच्चे पङोसी के दुत्कारने के बाबजूद । बेशर्म बने उसका टी.वी. देख रहे थे । क्योंकि उनके घर टी.वी. नहीं था । उनके बाप की औकात टी.वी. की नहीं थी ।
हल्का हल्का । अन्धेरा छाने लगा था । कार की टक्कर । अब जमकर । कसक रही थी । थैला जमीन पर रखकर । मैं अपने ही दरबाजे पर बैठ गया । क्योंकि घर का ताला बन्द था । और । थैले में से एक बेंगन निकालकर । भरंवा बेंगन । का स्वाद याद करते हुये खाने लगा । मैं । मैं यानी राजकिशोर पाराशर, प्राइवेट मामूली क्लर्क , गौतम बुद्ध इंटर कालेज , बन्नाखेङा । समाप्त ।

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।