शनिवार, फ़रवरी 08, 2014

पिशाच का बदला 1




भूत-प्रेतों की रहस्यमय दुनियां, उनका स्थूल शरीर रहित लगभग अशरीरी और सूक्ष्मशरीर का जीवन, और उनकी अपनी जिन्दगी के अजीबोगरीब क्रियाकलाप पर आधारित ये तीन प्रेतकथायें ‘अगिया वेताल’ ‘पिशाच का बदला’ और ‘चुङैल’ संशोधित संस्करण के साथ आपके हाथों में है। और पूरी उम्मीद है कि ये तीनों बङी कहानियां भी आपको अन्य प्रेत कहानियों और उपन्यास जैसे ही पसन्द आयेंगे।
यहाँ एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिये कि दरअसल इन वायव्य शरीरधारियों का इंसानी जीवन से क्या सम्बन्ध है, और भूत-प्रेतों का इंसानी जीवन में क्या और क्यों दखल है?
वैसे अब तक के मेरे अनुभव में तो ये भी एक हैरानी कि बात रही है कि जो लोग इन अदृश्य रूहों से कुछ हद तक या कुछ ज्यादा भी, प्रभावित रहे। वे अक्सर ही और पूरी दृढ़ता से इनके अस्तित्व को नकारते रहे, और कहते रहे कि ये सब क्या बकवास है, और आधुनिक प्रगतिशील युग में तो यह निरा अंधविश्वास ही है।
जबकि इसके ठीक उलट, जो कतई प्रभावित नहीं थे, और जिनके दूर दूर तक अभी प्रभावित होने के कारण भी नहीं थे। वे न सिर्फ़ पूरी आस्था से रूहों के अस्तित्व को स्वीकारते थे, बल्कि उनमें दिलचस्पी भी लेते थे, और मानते थे कि उनका या उनके परिवार या उनके किसी परिचित का वायवीय रूहों से या तो सम्पर्क है, या फ़िर वे उसके विपरीत प्रभाव से प्रभावित हैं।
दरअसल किसी भी कारणवश हुयी मृत्यु से जैसे ही किसी इंसान का ये नजर आने वाला शरीर या स्थूल आवरण उतर जाता है, तो उस वक्त उसके पास सिर्फ़ सूक्ष्म शरीर ही रह जाता है। और फ़िर वह अपने अंतःकरण में संचित स्मृति, कारण और गुण प्रभाव के द्वारा शेष रही जीवनलीला को खेलने को विवश होता है। तब तक, जब तक कि उसे फ़िर से कोई पंचतत्व वाला शरीर नहीं मिल जाता।
 राजीव श्रेष्ठ
आगरा


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पिशाच का बदला 2



- वर्माजी । अचानक वह बोला - आपकी जिस पुत्रवधू पर प्रेत की छाया है । उसके पति का नाम क्या है?
- रामवीर वर्मा । साहिब सिंह ने असमंजस की हालत में उत्तर दिया - वह बिजली विभाग में है ।
लेकिन प्रसून जी, भगवान के लिये मुझे कुछ तो बताईये । क्योंकि मैं बेहद सस्पेंस महसूस कर रहा हूँ   
वर्माजी जो जानना चाह रहे थे । वह साधना के नियमों के विरुद्ध था, और अदृश्य जगत के किसी भी रहस्य को सम्बन्धित आदमी को बताना तो एकदम गलत था ।
इसलिये उसने वर्माजी से झूठ बोला, और कहा - अभी मैं खुद जानने की कोशिश कर रहा हूँ, तो आपको क्या बताऊं?
इस उत्तर पर वर्माजी असहाय से हो गये, और बैचेनी से पहलू बदलने लगे ।
लेकिन हकीकत कुछ और ही थी ।
डब्बू नाम के पुनर्जन्म लेने वाले बच्चे का माइंड रीड करके वह बहुत कुछ जान चुका था । हालांकि इस पुनर्जन्म हुये बालक को अभी तक न तो अपने पिछले जन्म की याद थी, और न ही उसने ऐसी कोई बात अभी तक कही थी । जैसा कि पुनर्जन्म लेने वाले बच्चे अक्सर कहते हैं ।
पर यह एक संयोग ही था कि वह अपने दादा के साथ मानसी विला आया, और प्रसून ने उसमें प्रेतत्व भाव महसूस किया, और फ़िर स्वाभाविक ही उसने उसका दिमाग रीड किया । और उसी के परिणामस्वरूप वह पहले फ़ार्म हाउस और अब नदी के किनारे खङा था ।
यानी वह स्थान, जहाँ से इस घटना की शुरूआत हुयी । यानी वह स्थान, जहाँ से नन्दू उर्फ़ नन्दलाल गौतम एक जीवन की यात्रा अधूरी छोङकर किसी बदले की खातिर साहिब सिंह वर्मा के घर उनका नाती बन के आया ।
नन्दू उर्फ़ पुनर्जन्म बालक डब्बू के दिमाग में दो घटनायें प्रमुखता से फ़ीड थी । एक तो उसका नदी में डूबकर मर जाना, और दूसरा उसकी बहन लक्ष्मी उर्फ़ लच्छो से कुछ लोगों द्वारा बलात्कार । लेकिन ये घटनायें पूरी स्पष्टता से नही थी, और वह डब्बू की छोटी उम्र को देखते हुये किसी तरह का प्रयोग उस पर नहीं कर सकता था । तब इसका सीधा सा मतलब यह था कि ये जानकारी वह रामवीर से ही हासिल करता । जो इस घटना में शामिल था, और तब आगे कोई निर्णय लेता ।
- ये जमीन । फ़िर वह खेतों की तरफ़ इशारा करके बोला - आपने हाल फ़िलहाल यानी लगभग तीन साल पहले ही खरीदी है । जो कि विवादित होने के कारण कोई ले नहीं पा रहा था, और आपने दबंग होने के कारण ले ली है । जबकि आपको सरकारी कानून की वजह से इसकी डबल रजिस्ट्री करानी पङी ।
- ओह माय गाड । साहिब सिंह के मुँह से स्वतः ही निकल गया - मैं तय नहीं कर पा रहा कि आपको क्या समझूँ, और आपसे क्या व्यवहार करूँ ।
- आप जमीन के बारे में कुछ बताईये ।
- ये जमीन । वर्माजी अजीब भाव से बोले - राजाराम गौतम की थी । राजाराम आज से नौ साल पहले स्वर्गवासी हो गया था । उसके बाद, उसके परिवार में उसकी पत्नी धनदेवी, बङा लङका नन्दू, जवान लङकी लक्ष्मी, और ग्यारह साल का छोटा लङका मुकेश रह गये थे ।
मुझे इस घटना की सच्चाई तो ठीक से नहीं मालूम । क्योंकि उस वक्त मैं गांव से बाहर था । लेकिन ऐसा कहा जाता है कि गांव के कुछ लोगों ने बाहर के लोगों के साथ लक्ष्मी से बलात्कार किया था । और इस घटना को लेकर नन्दू बदला लेने की ताक में रहने लगा था ।
लेकिन वह बेचारा कोई बदला ले पाता । इससे पहले ही नदी में नहाते हुये डूबकर मर गया । क्योंकि उसकी माँ धनदेवी के लिये गांव का माहौल खराब हो चुका था, और उस पर उसका बङा लङका असमय ही मर गया । इसलिये धनदेवी ये गांव छोङकर अपने दोनों बच्चों के साथ अपने भाई के गांव चली गयी ।
वह इस जमीन को बेचना चाहती थी । लेकिन कई दबंगों की नजर इस पर होने के कारण कोई ले नहीं पा रहा था । तब धनदेवी के भाई ने मुझसे सम्पर्क किया, और ये दस बीघा जमीन और वो महुआ आम का बगीचा मैंने उससे खरीद लिया । राजाराम और उसका परिवार बहुत ही भले थे । इसलिये उनके गांव से हमेशा के लिये चले जाने के कारण मुझे बहुत अफ़सोस हुआ ।
लेकिन प्रसून जी, आप यह सब कुछ क्यों पूछ रहे हैं । इसका रेशमा की परेशानी से क्या मतलब है । जिसके लिये मैं खासतौर पर आपको लाया हूँ ।
प्रसून ने एक निगाह डब्बू पर डाली, और बोला - चलिये, आपके घर चलते हैं ।


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पिशाच का बदला 3



नन्दू लगभग पांच साल पहले मरा था ।
और पुनर्जन्म हुये बालक डब्बू के रूप में अभी ढाई साल का था ।
पांच महीने लगभग उसने गर्भ में बिताये । क्योंकि गर्भ में बढ़ते पिंड में जीव चार या सात महीने पूरा होने पर प्रवेश करता है । इसका मतलब लगभग दो साल तक वह प्रेत बनकर भटकता रहा ।
और फ़िर वर्माजी की चौथे नम्बर की पुत्रवधू पुष्पा जब गर्भवती हुयी, तो नियमानुसार ही वह अपना कर्ज वसूलने उनके घर ही आ गया ।
क्योंकि नन्दू अकाल मौत मरा था, निर्दोष मरा था ।
इसलिये प्रेतयोनि के तमाम कष्टों से उसे ज्यादा नहीं जूझना पङा ।
लेकिन इस बात से प्रसून के दिमाग में एक नया रहस्य मानसी विला से ही पैदा हो गया था ।
नन्दू उर्फ़ पुनर्जन्म हुआ बालक डब्बू अब प्रेत नहीं था । लेकिन उसके दिमाग का वह हिस्सा तीन, यानी एक छोटा और दो बङे प्रेतों की पुष्टि कर रहा था, और दिमाग के उस अध्याय का शीर्षक बदला था । तो फ़िर ये तीन प्रेत कौन थे, जो डब्बू को माध्यम बनाकर निर्दोष रेशमा को परेशान कर रहे थे?
ये सभी बातें वह बिना किसी ओझाई आडम्बर के यानी किसी माध्यम को बैठाना और प्रेत आहवान यानी ‘ह्यीं क्लीं चामुन्डाय विच्चे’ आदि के बिना भी जान सकता था । और समस्या को बिना किसी नाटक के भी हल कर सकता था । पर यहाँ मामला दूसरा था । और उसकी नैतिकता के अनुसार उसका प्रयास ये था कि न सिर्फ़ वह वर्मा परिवार को प्रेतपीङा से मुक्ति दिलाये । बल्कि नन्दू के परिवार धनदेवी और लक्ष्मी को भी यथासंभव न्याय दिलाये । इसलिये इस क्रिया को अब वह पूरी तरह से खुलकर करना चाहता था ।
इसीलिये प्रसून ने रामवीर को अकेले मन्दिर ले जाकर न सिर्फ़ सारी बातें कबूलवाईं । बल्कि उसे आगे की कार्यवाही हेतु एक गवाह के तौर पर भी तैयार किया ।

रात के साढ़े दस बज चुके थे ।
वर्मा परिवार के साथ साथ प्रसून भी डिनर से फ़ारिग हो चुका था ।
उसने वर्माजी को पहले ही समझा दिया था कि इस प्रेत आपरेशन की बिलकुल पब्लिसिटी न होने पाये । जैसा कि आम ओझागीरी के समय तमाम गांव के लोग इकठ्ठा हो जाते हैं, और देर तक फ़ालतू की हू हा होती है । और इसी का परिणाम था कि गांव का या बाहर का कोई आदमी तो दूर स्वयं वर्माजी के परिवार के अधिकांश लोग इस समय छत पर नहीं थे ।
बल्कि इस समय रेशमा, वर्माजी, रामवीर, वर्माजी की पत्नी हरप्यारी देवी, पुष्पा, और पुष्पा का पति धर्म सिंह और सोता हुआ डब्बू ही उसके साथ छत पर मौजूद थे, और आगामी दृश्यों की धङकते दिल से प्रतीक्षा कर रहे थे ।
प्रसून ने एक सिगरेट सुलगायी, और कश लगाता हुआ छत की जालीदार बाउंड्री के पास आकर खङा हो गया । उसके साथ सिर्फ़ वर्माजी थे । बाकी लोग पीछे चारपाईयों पर बैठे थे ।
प्रसून ने वर्माजी की ओर देखा, और मुस्करा कर बोला - हाँ कहूँ तो है नहीं, ना कही ना जाय । हाँ ना के बीच में साहिब रहो समाय । वर्माजी आप इस बात का मतलब जानते हैं? वैसे तो ये भगवान की स्थिति और आदमी की जिज्ञासा की बात है ।
लेकिन इस वक्त ये सन्तवाणी कुछ अलग अर्थ में आपके ऊपर फ़िट हो रही है । आपका नाम साहिब सिंह वर्मा है, और इस वक्त प्रेत से प्रभावित आपके घर के लोग छत पर बैठे हैं । लेकिन प्रेत कहीं नजर आ रहा है? और प्रेत यहाँ बिलकुल नहीं है । ऐसा कम से कम आप तो नहीं कह सकते । भूत प्रेत होते ही नहीं हैं । अब कम से कम भुक्तभोगी हो जाने के बाद आप ये बात नहीं कह सकते । लेकिन मैं आपसे प्रश्न करता हूँ कि प्रेत यदि हैं, तो वो कहाँ है?
वर्माजी ने असमंजस की स्थिति में उसकी तरफ़ देखा ।
अपने परिवार की तरफ़ देखा, और फ़िर असहाय भाव से इंकार में सिर हिलाने लगे ।
प्रसून ने बहुत हल्के उजाले में लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित गांव के मन्दिर और वर्माजी की हवेली के ठीक बीच में खङे पीपल के पुराने और भारी वृक्ष की तरफ़ देखा 
और उंगली से उसकी तरफ़ इशारा करते हुये कहा - वहाँ, वहाँ हैं, वो प्रेत ।
और फ़िर उसी उंगली को, उसी अन्दाज में घुमाते हुये, वह अपनी जगह पर घङी के कांटे के अन्दाज में घूमा, और उंगली को रेशमा की तरफ़ कर दिया ।
यकायक ही रेशमा का शरीर अकङने लगा, और उसकी मुखाकृति विकृत होने लगी । इसी के साथ सोता हुआ डब्बू किसी चाबी लगे खिलौने की तरह उठकर बैठ गया । परिवार के अन्य लोग भी स्वाभाविक ही सतर्क हो गये ।


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पिशाच का बदला 4




उसके जीवन में प्रेतबाधा के बहुत कम केस ऐसे थे । जिनमें प्रसून ने खुले रूप से ऐसी कार्यवाही की थी । यदि किसी केस से उसे जुङना भी पङता था, तो वह अधिकतर गुप्त रूप से ज्यादा से ज्यादा से कार्यवाही निबटा कर समस्या का हल कर देता था ।
लेकिन ये मामला ऐसा था कि जिसमें बात का पूरी तरह से खुलना सभी के हित में था ।
रेशमा के मुँह से एक पुरुष आवाज निकली - हे साधु, आपको हमारा प्रणाम है । मैं अशरीरी योनि में पिशाच श्रेणी का प्रेत हूँ । मेरे साथ दूसरा ब्रह्मराक्षस और तीसरा छोटा यमप्रेत है । हम सभी बरम देव के आश्रय में रहते हैं । वह हम में सबसे बङे हैं । इस गांव के आसपास तीन स्थानों पर हमारा बसेरा है । एक वह बरम देव पीपल,  दूसरा मन्दिर से आगे दो किलोमीटर दूर का शमसान, और तीसरा वर्मा का फ़ार्म हाउस, जिसमें खंडित मन्दिर भी है ।
इन तीनों प्रमुख स्थानों पर डाकिनी, शाकिनी, यक्ष, भूत, प्रेत आदि अनेक प्रकार के लगभग तीस प्रेत बरम देव के आश्रय में रहते हैं, और नियमानुसार गलती करने वाले को ही परेशान करते हैं । बाकी हम इस गांव के आसपास से प्राप्त खुशबू और मनुष्य के त्याज्य मल कफ़ थूक उल्टी आदि कई चीजों का आहार करते हैं ।
हे साधु, आप जानते ही हैं कि इससे अधिक प्रेतों के रहस्य बताना उचित नहीं है । और इस प्रेतपीङा निवारण के पूरा हो जाने के बाद वर्मा परिवार को भी नियम के अनुसार गांव आदि में ये बात खोलना वर्जित है कि इन स्थानों पर प्रेत रहते हैं ।
- एक मिनट । प्रसून ने बीच में हस्तक्षेप करते हुये मुस्करा कर कहा - यदि वर्मा परिवार तुम्हारे रहस्य, तुम्हारे रहने के स्थान, तुम्हारे घर आदि के बारे में लोगों को बता देगा, तो क्या हो जायेगा?
- हे महात्मा । रेशमा के मुख से पिशाच बोला - मैं जानता हूँ कि ये बात आप इन लोगों को ठीक से समझाने हेतु पूछ रहे हैं, जो कि उचित ही है, तो सुनिये प्रेतों का तो कुछ खास नहीं होगा । पर इससे ग्रामवासियों के मन में एक अजीब और अज्ञात सा भय पैदा हो जायेगा, और लोग इन तीनों स्थानों पर पहुँचते ही इस भाव से देखेंगे कि जैसे प्रेतों को ही देख रहे हों ।
फ़िर जिस प्रकार हे साधु, मन्दिर में जाने वाले भक्त के मन में पत्थर की मूर्ति देखते ही ये विचार आता है कि ये भगवान हैं, और उसका भाव भगवान से जुङ जाता है । और तब ये एक तरह से अदृश्य सम्पर्क ही हो जाता है । इसी तरह ये जानकारी हो जाने पर कि इन स्थानों पर प्रेत हैं । वे भावरूपी सम्पर्क हमसे बार बार जिज्ञासा की वजह से भय की वजह से करेंगे । इस तरह ये प्रेतों के लिये आमन्त्रण होगा, और इस गांव के घर घर में प्रेतवासा हो जायेगा । तब इसका जिम्मेदार वर्मा परिवार होगा । क्योंकि वास्तव में अधिकतर प्रेत आवेश होने की मुख्य वजह यही होती है ।
किसी भी एकान्त अंधेरे स्थान पर पहुँचकर भयभीत हुआ आदमी भूत प्रेत के बारे में सोचकर खुद ही, यदि वहाँ प्रेत हो, उससे सम्पर्क जोङ लेता है । एक तरह से उसे खुद ही निमन्त्रण दे देता है ।
दूसरे, किसी आवेश में नियम के विपरीत कार्य करने से भी प्रेत आवेश होता है । इसके अलावा भी प्रेत आवेश के अन्य कारण होते हैं । पर उनको न कहता हुआ, मैं उस कारण को कहता हूँ । जिससे वर्मा परिवार प्रभावित हुआ ।
ये पांच साल पुरानी बात है । जब कि नन्दलाल गौतम उर्फ़ नन्दू नदी में डूबकर, जल में डूबने से अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ, बुङुआ प्रेत या बूङा प्रेत बन गया । और ये हर वक्त दुखी हुआ सा रोता रहता था । प्रेतयोनि में जाने के बाद भी इसे अपनी माँ बहन भाई की बेहद चिंता रहती थी ।
ये प्रेत होकर आसानी से अपने ऊपर हुये जुल्म का खतरनाक बदला ले सकता था । लेकिन इसके बावजूद सीधा स्वभाव होने के कारण, ये बदले की बात भुलाकर, अपने असहाय हो गये परिवार के विषय में सोचता रहता था । और हम प्रेतों से भी बहुत ही कम वास्ता रखता था ।
तब इसके सीधेपन से प्रभावित होकर कुछ बङे शक्तिशाली प्रेतों ने इसकी मदद करने का निश्चय किया । जिनमें कि मैं भी शामिल था । हमें इससे बेहद सहानुभूति थी । क्योंकि हम भी कभी इंसान थे । और अब हमारे पास सिर्फ़ ये दुर्लभ मनुष्य शरीर ही तो नहीं था । बाकी हमारी भावनायें आदि लगभग वैसी ही थीं । हे साधु, आप जानते ही हैं कि इंसानों और हम में सिर्फ़ शरीरों का ही फ़र्क है ।
प्रसून ने देखा, पूरा वर्मा परिवार बङी उत्सुकता से इस दिलचस्प प्रेतकथा को सुन रहा था । लेकिन वास्तव में इस प्रेतकथा में उसके लिये कुछ भी दिलचस्प नहीं था । पर एक विशेष कारण से वह प्रेतकथा पिशाच के द्वारा रेशमा के मुख से करवा रहा था ।


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प्रेतकन्या 1




दरअसल इन लोकों में प्रथ्वी की तरह मर्दानगी वाला सिद्धांत चलता है।
यदि सभ्यता का प्रदर्शन किया, तो आपको डरपोक माना जायेगा, और ये भी पहचान हो जायेगी कि आप पहली बार यहाँ आये हैं। न सिर्फ़ नये, बल्कि अंतरिक्ष के लिये अजनबी भी, और ये दोनों बातें बेहद खतरनाक थीं।
प्रेतकन्या एक सफ़ेद घांघरा सा पहने थी, और कमर से ऊपर निर्वस्त्र थी।
उसके लम्बे लम्बे बाल हवा में लहरा रहे थे।
- तुम वाकई सख्त, और बङे..। उसने प्रसून के शरीर पर निगाह फ़ेंकते हुये होठों पर जीभ फ़िरायी - जिगर वाले हो। आओ..मेरे जैसा सुख पहुँचाने वाली, यहाँ दूसरी नहीं है, क्या तुम..। उसने अपने उन्नत कुचों को उठाते हुये कहा - भोग करना चाहोगे।
वह फ़िर एक अजीब से चक्कर में पङ गया।
दरअसल उससे भोग करने का मतलब था, अपने दिमाग को उसे रीड करने देना, और लगभग दस प्रतिशत प्रेतभाव का फ़ीड हो जाना, और सम्भोग नहीं करने का मतलब था, उसका रुष्ट हो जाना, तो जो जानकारी वह उससे प्राप्त करना चाहता था, उससे वंचित रह जाना।
उसने फ़ैसला लेते हुये बीच का रास्ता अपनाया, और उसे पेङ के नीचे टेकरी पर गिराकर उसके उरोजों से खेलने लगा।
- पहले तुझे कभी नहीं देखा..किस लोक का प्रेत है तू? वह आनन्द से आँखे बन्द करते हुये बोली।
- इस वक्त मेरे दिमाग में सिर्फ़ एक ही बात है..। वह सावधानी से बोला - उस किंझर वाली की अकङ ढीली करना।
यकायक मानों विस्फ़ोट सा हुआ।
किंझर शब्द सुनते ही वह चौंककर बैठ गयी, और लगभग चिल्लाकर बोली - तू प्रेत नहीं..कुछ अन्य है..। प्रेत किंझर का मुकाबला नहीं कर सकता..
- मैं जो भी हूँ। प्रसून ने उसकी कमजोर नस पर चोट की - तू मुझे किंझर का शार्टकट बता। मेरे पास समय कम है, लेकिन लौटते समय..समझ गयी कहाँ चोट दूँगा..
उसका पैंतरा काम कर गया।
वह बेहद अश्लील भाव से हँसी।
चींटी से लेकर मनुष्य, और फ़िर देवताओं तक भी, किसकी कमजोरी नहीं होती, ये कामवासना।
अबकी बार जब उसने अंतरिक्ष में छलांग लगायी, तो उसके पास पूरी जानकारी थी।
किंझर बेहद शक्तिशाली किस्म के वेताल प्रेतों का लोक था, और वहाँ का आम जनजीवन बेहद उन्मुक्त किस्म का था। हस्तिनी किस्म की स्थूलकाय प्रेतनियां पूर्णतः नग्न अवस्था में रहती थी, और लगभग दैत्याकार पुरुष भी एकदम निर्वस्त्र रहते थे।
सार्वजनिक जगहों पर सम्भोग, और सामूहिक सम्भोग के दृश्य वहाँ लगभग आम ही थे।
फ़िर कुछ ही देर में वह किंझर पर मौजूद था।
क्षेत्रफ़ल की दृष्टि से किंझर एक विशालकाय प्रेतलोक था।
अभी वह सोच विचार में मग्न ही था कि उसके पास से बीस बाईस युवतियों का दल गुजरा।
वे बङे कामुक भाव से उस अजनबी को देख रही थी।
अब उसे युक्ति से काम लेना था।
उसने बेलनुमा एक पेङ की टहनी तोङी, और उसे यूँ ही हिलाता हुआ एक प्रेतकन्या के पास पहुँचा, और उसके नितम्ब पर सांकेतिक रूप से हल्का सा वार जैसे काम आमन्त्रण हेतु किया।
उसने आश्चर्य से तुरन्त पलटकर देखा।
प्रसून ने उसका हाथ पकङ कर फ़ौरन ही अपनी तरफ़ खींच लिया।
ये वहाँ की निश्चित जीवनशैली थी।
इसके विपरीत, अगर वह प्रथ्वी की तरह, बहनजी या भाभीजी जरा सुनना, जैसी शैली में बात करता, तो वो तुरन्त समझ जाती कि वह प्रथ्वी, या उस जैसे किसी अन्य लोक का है, और ये स्थिति उसे कैद करा सकती थी। प्रसून के शरीर से मानव की बू नहीं आती थी। क्योंकि पूर्व की अंतरिक्ष यात्राओं में ही वह ऐसी बू को छिपाने की तरकीबें जान गया था।
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प्रेतकन्या 2


उसने खुद को संजय के रूप में ढाला, और कुछ ही देर में वह शैरी के सामने था।
वो वास्तव में एक मोटे अजगर को लिपटाये हुये थी।
जो उसके कामुक अंगों को शीतल स्पर्श का सुख दे रहा था।
- शैरी.. फ़ेंक इसे..मैं असली आ गया..। वह तेजी से उसकी तरफ़ बढ़ता हुआ बोला।
लेकिन शैरी ने चौंकर घोर अविश्वास और शक निगाहों से उसे देखा।
प्रसून उसे ज्यादा सोचने समझने का कोई मौका नहीं देना चाहता था।
अतः उसने अजगर को छीनकर बाबाजी को स्मरण किया, और उनकी सिद्धगुफ़ा को लक्ष्य बनाकर, अलौकिक शक्ति का उपयोग करते हुये, पूरी ताकत से अजगर को अंतरिक्ष में फ़ेंक दिया।
अब ये अजगर अपनी यात्रा पूरी करके गुफ़ा के द्वार पर गिरने वाला था।
और इस तरह से संजय की रूह प्रेतभाव से आधी मुक्त हो जाती।
फ़िर इसके बाद संजय के दिमाग, जो कि इस समय प्रसून के दिमाग से जुङा था, से उसे वह लिखावट मिटा देनी थी, जो उसके और शैरी के बीच हुआ था।
बस इस तरह से संजय एकदम मुक्त हो जाता।
इस हेतु उसने शैरी को बेहद उत्तेजित भाव से पकङ लिया, और पूरी तरह कामुकता में डुबोने की कोशिश करने लगा। शैरी सम्भोग के लिये बेहद व्याकुल हो रही थी।
कि तभी उसने कहा - शैरी, अब जबकि मैं पूरी तरह से प्रथ्वी छोङकर तेरे पास आ गया हूँ। मेरा दिल कर रहा है कि तू मुझे हमारी प्रेमकहानी खुद सुनाये, ताकि आज से हम नया जीवन शुरू कर सकें। वरना तू जानती ही है कि मैं सौ प्रेतनी को एक साथ संतुष्ट करने वाला वेताल हूँ, और तेरी जैसी मेरे लिये लाइन लगाये खङी हैं..
उसकी चोट एकदम निशाने पर बैठी।
उसे सोचने का कोई मौका ही न मिले, इस हेतु वह उसके स्तनों को सहलाने लगा।
- तुम कितने शर्मीले थे। वह जैसे तीन महीने पहले चली गयी - मैं एक दिन यूँ ही प्रथ्वी पर नदी में निर्वस्त्र नहा रही थी, और तुम उसी रास्ते से स्कूल से लौटकर आये थे। क्योंकि मैं प्रथ्वी पर नया वेताल बनाने के आदेश पर गयी थी, और क्योंकि आकस्मिक दुर्घटना में मरे हुये का प्रेत बनना, और स्वेच्छा से प्रेतभाव धारण करने वाला प्रेत, इनकी ताकत में लाख गुने का फ़र्क होता है।
और मुझे नग्न देखने के बाद, तुम फ़िर अक्सर उधर से ही आने लगे। लेकिन तुम इतने शर्मीले थे कि सिर्फ़ मेरी नग्न देह को देखते रहते थे। जबकि तुम्हारे द्वारा सम्भोग किये बिना मैं तुम में प्रेतभाव नहीं डाल सकती थी..तब एक दिन हारकर मैंने ही भगगुहा को सामने करते हुये तुम्हें आमन्त्रण दिया, और पहली बार तुमने मेरे साथ सम्भोग किया..वो कितना सुख पहुँचाने वाला था.. मैं....संजय तुम..अब ..... दिनों ... उसने ... गयी ... कि ... जब .... दिया ....देना..नदी..किनझर..
प्रसून उसकी क्रमबद्ध बात सुनते हुये अन्दर ही अन्दर मुस्करा रहा था।
लेकिन बेचारी शैरी नही जानती थी कि वह उसके बोलने के साथ साथ ही संजय के दिमाग से वह लेखा मिटाता जा रहा था। हालांकि इस प्रयास में उसके नाजुक अंगों से खिलवाङ करते हुये उसे भी उत्तेजना हो रही थी। पर सम्भोग करते ही उसकी असलियत खुल जाती। और तब ऐसी स्थिति में संजय तो मुक्त हो जाता, लेकिन उसकी जगह प्रसून प्रेतभाव से ग्रसित हो जाता।
आखिरकार संयम से काम लेते हुये वह वो पूरी फ़ीडिंग मिटाने में कामयाब हो गया।
शैरी कामभाव प्रस्तुत करती हुयी उसके सामने लेट गयी।
तभी अचानक वह उसे छोङकर उठ खङा हुआ, और बोला कि अभी मैं थकान महसूस कर रहा हूँ। अतः कुछ देर आराम करने के बाद तुम्हें संतुष्ट करता हूँ।
कहकर वह लगभग दस हजार फ़ीट की ऊँचाई वाले उस वृक्ष पर चढ़ गया।
और एक निगाह किंझर को देखते हुये उसने विशाल अंतरिक्ष में नीचे की और छलांग लगा दी।
अब वह बिना किसी प्रयास के प्रथ्वी की तरफ़ जा रहा था। और उसका ये सफ़र लगभग तीन घन्टे में पूरा होना था। जब कि वह बाबाजी की सिद्धगुफ़ा के द्वार पर होता।


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काली विधवा



फ़िर उसे बेहद हैरत हुयी कि कज्जलिका जैसी मामूली प्रेतनी एक छोटे प्रेत आवाहन पर न तो कुछ सच उगलने को तैयार हुयी, और न भयभीत हुयी। उल्टे वह माध्यम हेमलता के द्वारा उससे अश्लील बातें करने लगी, और सम्भोग के लिये उकसाने लगी। जबकि ब्लैक विडो को परखने के लिये प्रसून ने उसी के स्तर का आक्रमण किया था।
वह इस तरह हँस रही थी, मानो उसका मजाक उङा रही हो।
और इसका एकदम सीधा और साफ़ मतलब था कि कज्जलिका को बाहरी तौर पर किसी बङी शक्ति का समर्थन प्राप्त था। क्या ये समर्थन बगङा का था, या किसी और प्रेत शक्ति का?
प्रसून ने पहले ही भाँप लिया था कि ये मामला उसके अनुमान से कहीं अधिक गम्भीर हो सकता है, और इसका मतलब ये हो सकता है कि हेमलता के घर के आसपास कोई बङी प्रेतशक्ति अपने किसी खास उद्देश्य या किसी खास आदेश पर डेरा जमाये बैठी हो।
करीब आधा घन्टा बाद !
हेमलता ने थके अन्दाज में आँखे खोली, और हङबङा कर बोली - सारी, लगता है..मुझे झप्पी आ गयी थी।
नीलेश ने उसके कपङे पूर्ववत कर दिये थे। पिछले आधा घन्टे में उसके साथ जो हुआ था। वह उसके दिमाग की गहराईयों में गहरे दफ़न हो चुका था, और एक कमाल द्वारा वह सिर्फ़ इतना ही महसूस कर सकती थी कि मानो अचानक से उसे गहरी नींद सी आ गयी हो।
उसके साथ क्या हुआ था?
कुछ भी तो नहीं।
- ब्लैक विडो। उसके मुँह से निकला।
पर अबकी बार हेमलता कुछ नही बोली ।
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और फ़िर ठीक एक घन्टे बाद !
प्रसून नीलेश और हेमलता किले के अन्दर खङे थे।
शाम के साढ़े सात बजने वाले थे।
और हल्का अंधेरा हो जाने से वह रहस्यमय किला और भी रहस्यमय प्रतीत हो रहा था।
प्रसून ने एक निरीक्षणात्मक निगाह किले में चारों तरफ़ घुमायी।
और फ़िर मुस्कराकर किले के अन्दर खङे उस विशाल बरगद के पेङ को देखना लगा।
- तक्षणा। फ़िर उसके मुँह से निकला - ये हुयी न कोई बात।
- तक्षणा। नीलेश एकदम चौंककर बोला - तक्षणा..और प्रथ्वी पर..?
हेमलता भौंचक्का सा मुँह लिये अजीब से भाव से उन दोनों अजूबों को देख रही थी।
तक्षणा एक खतरनाक किस्म की प्रेतनी होती है।


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मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।