रविवार, दिसंबर 18, 2011

महातांत्रिक और मृत्युदीप 5




- तारा देवी । एक दिन काली मन्दिर का वह साधु उसकी सास से बोला - ये तेरी बहू है ना ।
अपना जिक्र आते ही उसके कान चौकन्ने हो गये ।
वह अपनी सास के साथ मन्दिर आयी थी । उसकी सास मन्दिर में बंगाली साधु के पास बैठी थी, जो बंगाली बाबा के नाम से प्रसिद्ध था । और वह ओट में बरामदे के पास पीपल के नीचे खङी थी ।
- हाँ स्वामी जी । उसे सास की आवाज सुनाई दी - ये मेरी बहू है, मंजरी, अभी साल भर पहले विवाह हुआ है । पहली बार इसे यहाँ लायी हूँ । बङे अच्छे और पवित्र भावों वाली हैं ।
वह तेजी से ऐसे स्थान पर गयी । जहाँ से वह दोनों को छिपकर देख भी सके, और सुन भी सके । साधु जैसे किसी गहरी सोच में डूब गया । उसके माथे पर चिन्ता की लकीरें गहरा गयी ।
तारा हैरान थी ।
महात्मा उसकी नयी नवेली बहू को लेकर किस चिन्ता में डूबा हुआ था?
वह आश्चर्यचकित सी उसके बोलने का इंतजार कर रही थी ।
पर वह जैसे शून्य में चला गया था ।
- आखिर । तारा जब अपनी उत्सुकता न रोक सकी तो व्यग्रता से बोली - बात क्या है महाराजकुछ तो बतायें ।
- या देवी सर्वभूते । बंगाली साधु धीरे से बुदबुदाया - इसके परिवार की रक्षा कर ।
ये सुनते ही दोनों सास बहू के होश उङ गये ।
- क्या । तारा बौखलाकर बोली - ये क्या कह रहें आप ।
- सुनो देवी । साधु जैसे अपने में वापिस लौटा - अपने पुत्र और बहू को समझा देना कि अभी पति पत्नी व्यवहार न करें । तब मैं देवी की सहायता से इस बाधा का उपचार सोचता हूँ । तुम्हारी बहू पर पिशाच की छाया है ।
मंजरी को एकदम तेज चक्कर सा आया, और संभालते संभालते भी वह जमीन पर ढेर हो गयी ।
उत्तर मिल चुका था ।
मगर ये उत्तर बेहद भयानक साबित हुआ था ।
उसकी समस्त जिन्दगी में जहर घोल देने वाला उत्तर ।
वो मुर्दा जिस्म सी बदबू ।
मुर्दा स्पर्श का अहसास, और मुर्दे जैसा ही स्वर ।  
- चुप रहो । उसे जैसे फ़िर से सुनाई दिया - मुझे रोको मत, ऐसे मौके बार बार नहीं आते ।..चुप रहो, मुझे रोको मत, ऐसे मौके बार बार नहीं आते ।..चुप रहो, मुझे रोको मत, ऐसे मौके बार बार नहीं आते ।
उसके साथ सम्भोग करने वाला पिशाच था ।
नदी में बहायी गयी ताजा ताजा लाश का उपयोग करके उसने उसके साथ मनमानी की । और ये ख्याल आते ही उसे अब अपने समूचे अस्तित्व से घिन आने लगती थी ।
उसके साथ एक मुर्दा देह द्वारा कामवासना की पूर्ति ।
उसकी जिन्दगी नरक हो गयी ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।