गुरुवार, जुलाई 22, 2010

प्रेतनी का मायाजाल 7




दयाराम ने राहत की सांस ली ।
उसकी उजङी ग्रहस्थी फ़िर से बस चुकी थी ।
वह ज्यादातर दिन भर घर से बाहर खेतों पर ही रहता था ।
इसलिये अगले ढाई साल तक वह अपने घर में फ़ैल चुके मायाजाल को नहीं जान सका था । हालांकि उसे कुछ न कुछ ऐसा अवश्य था, जो अजीब लगता था, पर वो कुछ, क्या था ।
यह उसकी समझ से बाहर था ।
इन ढाई सालों में कुसुम के दो बच्चे हुये, जो तीन-चार महीने की अवस्था होते ही रहस्यमय तरीके से मर गये । कुसुम का व्यवहार भी अजीब था । इसका जिक्र उसके दोनों बङे बच्चों ने और उसके नौकर रूपलाल ने भी किया था ।
बच्चों के स्कूल जाते ही, घर अकेला होते ही, वह एकदम नंगी हो जाती थी, और ज्यादातर नंगी ही रहती थी । उसे पानी के सम्पर्क में रहना बहुत अच्छा लगता था । गर्मियों में वह चार बार तक, और सर्दियों में दो बार नहाती थी ।
दयाराम उससे सम्भोग करे, या न करे । वह रात में निर्वस्त्र ही रहती थी ।
दयाराम के पूछने पर उसने कहा कि कपङों में वह घुटन महसूस करती है ।
एक अजीब बात, जिसने दयाराम को सबसे ज्यादा चौंकाया, वह यह थी कि उसने कभी अपने जाये बच्चों को स्तनपान नहीं कराया ।
इसका कारण उसने यह बताया कि उसकी छातियों में दूध ही नहीं उतरता ।
फ़िर रूपलाल के इशारा करने पर दयाराम ने गौर किया कि वह कभी पलक नहीं झपकाती थी, अर्थात उसकी आंखें किसी पत्थर की मूर्ति की तरह अपलक ही रहती थीं ।
रूपलाल ने यह भी बताया कि कभी वो गलती से उसकी नंगी हालत में घर में आ गया, तो भी उसने कपङे पहनने या कमरे में जाने की कोई कोशिश नहीं की ।
रूपलाल बाहर स्कूल में रहता था । इसलिये काम पङने पर ही घर में आता जाता था ।
ढाई साल बाद, इस तरह के अजीब अजीब समाचार सुनकर दयाराम मानों सोते से जागा । जिन बातों को वह अब तक नजरअन्दाज कर रहा था । उनके पीछे कोई खतरनाक रहस्य छिपा हुआ था ।
यानी पानी सिर से ऊपर जा रहा था ।
तब वह अपने बच्चों की खातिर बेहद चिंतित हो उठा ।
जाने क्यों उसे अपनी ये हवेली बेहद खतरनाक और रहस्यमय लगने लगी ।
और उसे एक अदृश्य मायाजाल का अहसास होने लगा ।
यही सोच विचार करते हुये उसने आगे से घर में अधिक समय बिताने का निश्चय किया ।
और तब उसने दो स्पष्ट प्रमाण देखे ।
पहला, जब वह बाथरूम के शीशे के सामने शेव कर रहा था ।
कुसुम उसके ठीक पीछे आकर उससे एकदम सटकर खङी हो गयी । उसके पुष्ट उरोज दयाराम की पीठ से सटे हुये थे, और उसके दोनों हाथ दयाराम के अंग’ को खोज रहे थे, पर ..?
पर शीशे में उसका कोई प्रतिबिम्ब नहीं था ।
जो कि उस बङे आकार के शीशे में निश्चित होना चाहिये था ।
उस समय दयाराम इस रहस्य को अपने दिल में ही छुपा गया ।
और उसने कुसुम से कुछ नहीं कहा ।
लेकिन अब वह कुसुम से मन ही मन भयभीत रहने लगा ।
खासतौर पर वह अपने छोटे छोटे बच्चों के लिये चिंतित हो उठा ।
और फ़िर दूसरा प्रमाण भी उसे जल्दी ही मिल गया ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।