शुक्रवार, जुलाई 30, 2010

किस करम का कौन सा नरक ..?

सभी नरक यम के राज्य में स्थिति हैं । इन नरकों की स्थिति प्रथ्वीलोक से नीचे मानी गयी है । गौ हत्या । भ्रूण हत्या । आग लगाने वाला रोध नामक नरक में जाता है । ब्रह्मघाती । शराबी । सोने की चोरी करने वाला । सूकर नरक में जाता है । क्षत्रिय । वैश्य की हत्या करने वाला ताल नरक में जाता है । ब्रह्महत्या । गुरुपत्नी या बहन के साथ सहवास करने वाला असत्य भाषण करने वाला राजपुरुष तप्तकुम्भ में जाता है । निषिद्ध पदार्थ बेचने वाला । शराब बेचने वाला । तथा स्वामिभक्त सेवक को त्यागने वाला तप्तलौह में जाता है । कन्या या पुत्रवधू के साथ सहवास करने वाला । वेद विक्रेता । वेद निंदक । महाज्वाल नरक में जाता है । गुरु का अपमान करने वाला । व्यंग्य करने वाला । अगम्य स्त्री के साथ सहवास करने
वाला शबल नामक नरक में जाता है । मर्यादा त्यागने वाला वीर विमोहन नरक में । दूसरे का अनिष्ट करने वाला कृमिभक्ष में । देवता । ब्राह्मण से द्वेश रखने वाला लालाभक्ष में । परायी धरोहर हडपने वाला । बाग बगीचे में आग लगाने वाला । विषज्जन नरक में जाता है । असत पात्र से दान लेने वाला । असत प्रतिग्रह लेने वाला । अयाज्य याचक । और नक्षत्र से जीविका चलाने वाला अधःशिर नरक में जाता है । मदिरा । मांस का विक्रेता पूयवह नरक में । मुर्गा । बिल्ली । सूअर । पक्षी । हिरन । भेड को बांधने वाला भी पूयवह में जाता है । घर जलाने वाला । विष देने वाला । कुण्डाशी । शराब विक्रेता । शराबी । मास खाने वाला । पशु मारने वाला । रुधिरान्ध नरक में जाता है । शहद निकालने वाला वैतरणी । क्रोधी मूत्रसंग्यक नरक में । अपवित्र और क्रोधी असिपत्रवन में । हिरन का शिकार करने वाला अग्निज्वाल ।
यग्यकर्म में दीक्षित लेकिन वृत का पालन न करने वाला संदंश । स्वप्न में भी स्खलित होने वाला संयासी
या ब्रह्मचारी अभोजन नरक में । सबसे ऊपर भयंकर गर्मी वाला रौरव । उसके नीचे महारौरव । उसके नीचे शीतल । उसके नीचे तामस । इसके बाद अन्य नरक क्रम से नीचे स्थित हैं । इन नरकों में एक दिन सौ वर्ष के समान होता है । इन नरकों में भोग भोगने के बाद पापी तिर्यक योनि में जाता है । इसके बाद कृमि । कीट । पतंगा ।
स्थावर । एक खुर वाले गधे की योनि प्राप्त होती है । इसके बाद जंगली हाथी आदि की योनि में जाकर गौ की योनि में पहुचता है । गधा । घोडा । खच्चर । हिरन । शरभ । चमरी । ये छह योनियां एक खुर वाली हैं । इसके अतिरिक्त बहुत सी अन्य योनिंयो को भोगकर प्राणी मनुष्य योनि में आता है । और कुबडा । कुत्सित । बौना । चान्डाल आदि योनि में जाता है । अवशिष्ट पाप पुण्य से समन्वित जीव बार बार गर्भ में जाते हैं और मृत्यु को प्राप्त होते है । सब पापों के समाप्त हो जाने के बाद शूद्र । वैश्य । क्षत्रिय आदि होता हुआ क्रम से आरोहण को प्राप्त करता है । इसी में सत्कर्मी होने से ब्राह्मण । देव और इन्द्र के पद पर भी जाता है । मृत्यु लोक में जन्म लेने वाले का मरना निश्चित है । पापियों का जीव अधोमार्ग से निकलता है । यमद्वार पहुचने के लिये जो मार्ग बताये गये हैं । वे अत्यन्त दुर्गन्धदायक मवाद । रक्त से भरा हुआ है । इस मार्ग में स्थित वैतरणी को पार करने के लिये वैतरणी गौ का दान
करना चाहिये । जो गौ पूरी तरह काली हो । स्तन भी काले हों । वह वैतरणी गौ होती है । यमलोक का मार्ग भीषण ताप से युक्त है । अतः छत्रदान करने से मार्ग में छाया प्राप्त होती है । यमराज के दूत महाक्रोधी और भयंकर है । उदारता पूर्वक दान करने वाले को कष्ट देने का विधान नहीं है ।
मनुष्य का यह शरीर केले के वृक्ष के समान सारहीन एवं जल के बुदबुदे के समान क्षणभंगुर है । इसमें जो सार देखता है । मानता है । वह महामूर्ख है ।पंचतत्वों से बना यह शरीर पुनः अपने किये हुये कर्मों के अनुसार उन्हीं पंचतत्वों में जाकर विलीन हो जाता है । अतः उसके लिये रोना क्या ? जब प्रथ्वी । सागर । देवलोक तक नष्ट होते हैं । तो यह मर्त्यलोक तो जल के फ़ेन के समान है ।
मनुष्य के शरीर में साढे तीन करोढ रोंये होते है । कहा जाता है । जो स्त्री ( स्वेच्छा से ) सती होती है । वह इतने ही समय तक पति का उद्धार करती हुयी सुखपूर्वक स्वर्ग में वास करती है और यह अवधि चौदह इन्द्रों के बराबर है । यानी स्वर्ग में चौदह इन्द्र बदल जाते हैं । गर्भवती स्त्री और छोटे बच्चों वाली स्त्री के लिये सती होने का विधान नहीं हैं ।

गुरुवार, जुलाई 22, 2010

प्रेतनी का मायाजाल 1




बहुत कम लोग इस अज्ञात तथ्य से परिचित होंगे कि प्रथ्वी पर होने वाली सभी अकाल मृत्यु और स्वाभाविक मृत्यु के बाद लगभग तीस प्रतिशत लोग ‘प्रेतगति’ को प्राप्त होते हैं। इसमें अकाल मृत्यु वालों का दस से पन्द्रह प्रतिशत होता है, और लगभग पन्द्रह से बीस प्रतिशत ही स्वाभाविक मृत्यु से मरे लोगों का होता है।
बीमारी, दुर्घटना, हत्या, टोना आदि द्वारा अकाल मृत्यु को प्राप्त हुये लोग, अभी उनकी आयु शेष रहने से, अपने सूक्ष्म शरीर में आयु का ठीका पूर्ण होने तक भटकते रहते हैं। ये साधारण और अक्सर बङे प्रेतों से डर कर रहने वाले प्रेत होते हैं।
लेकिन खासतौर पर स्वाभाविक मृत्यु मरे लोग अज्ञानतावश उल्टे, सीधे, नीच, और अज्ञात देवी देव पूजने से प्रेतगति को प्राप्त होते हैं। क्योंकि अनजाने में वे स्वयं ही अपना संस्कार उनसे जोङ देते हैं। प्रायः ऐसे प्रेत पहले किस्म की अपेक्षा सबल होते हैं।
इसके अतिरिक्त एक तीसरी श्रेणी उन लोगों की भी होती है, जो जानबूझ कर प्रेत, मसान, जिन्न आदि को लालच हेतु या शौकिया सिद्ध करते हैं, या अन्य तरीकों से उनकी सेवा करते हैं, सम्पर्क में रहते हैं। ये भी अन्त समय प्रेतगति को ही प्राप्त होते हैं। ये बङे और खतरनाक और ताकतवर प्रेत होते हैं।
इसके भी अलावा कुछ गलत ढंग से वामपंथी साधनायें करने वाले, जिनमें शव साधना, शमशान साधना, कापालिक आदि करने वाले भी अन्त में ऐसी ही गति को प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार की साधनाओं में एक ‘विशेष’ साधना और है, जो अक्सर लोग भक्ति समझ कर करते हैं, और अधिकांश स्त्री पुरुष पूजा सोच कर करते हैं (किसी कारणवश इसको बताना उचित नहीं) ये भी अन्त में इसी गति को प्राप्त होते हैं। और इनमें से बहु प्रतिशत नीच देवों के गण बनते हैं।
मनुष्य जीवन जितना जीते जी महत्वपूर्ण है। उससे कहीं ज्यादा मरने पर समस्यायें हैं। क्योंकि एक बार पंचतत्वों से बना ये भौतिक शरीर छूट कर यदि अति दुखदायी और कष्टदायक प्रेतयोनि को प्राप्त हो जाता है, तो बङे लम्बे समय तक उस जीव को अनेकानेक प्रकार के दारुण कष्टों को भोगना होता है। प्रस्तुत कहानी ऐसे ही कुछ तथ्यों और स्थितियों का वर्णन करती है।
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- राजीव श्रेष्ठ
        आगरा



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प्रेतनी का मायाजाल 2





शाम के सात बजकर चवालीस मिनट हो चुके थे ।
वातावरण में हल्का हल्का अंधेरा फ़ैल चुका था ।
प्रसून इस समय कलियारी कुटी नामक एक बेहद गुप्त और सिद्ध स्थान पर मौजूद था ।
कलियारी कुटी के आसपास का लगभग सौ किमी इलाका निर्जन वन था, सिर्फ़ उसकी एक दिशा को छोङकर, जो यहाँ से तीन किमी दूर कलियारी गांव के नाम से जाना जाता था ।
इसको इस तरह से समझें कि सौ किमी व्यास का एक वृत बनाया जाये, और उसमें से बीस अंश का हिस्सा काट दिया जाय, और यही बीस अंश वाला हिस्सा इंसानों के सम्पर्क वाला था । शेष हिस्सा एकदम निर्जन ही रहता था ।
कलियारी कुटी को साधनास्थली के रूप में उसे उसके गुरु बाबाजी’ ने प्रदान किया था, और तबसे इस स्थान पर प्रसून कई बार सशरीर और अशरीर आ चुका था । अपनी पहली अंतरिक्ष यात्रा उसने इसी स्थान से अशरीर की थी ।
कलियारी कुटी के छह किमी के दायरे में, यहाँ पूर्व में तपस्यारत रह चुके, किसी तपस्वी पुरुष की आन’ लगी हुयी थी । लेकिन वो तपस्वी पुरुष कौन था, इसकी जानकारी उसे नहीं थी, और न ही बाबाजी ने उसे कभी कुछ बताया था ।
उस कुटी के निकट ही पहाङी श्रंखला से एक झरना निकलता था । जिसमें पत्थरों के टकराने से साफ़ हुआ पानी उजले कांच के समान चमकता था । ये इतना स्वच्छ और बेहतरीन जल था कि कोई भी इसको बेहिचक आराम से पी सकता था ।
कुटी से चार फ़र्लांग दूर वो पहाङी थी, जिस पर प्रसून इस वक्त मौजूद था ।  
इस पहाङी पर चार फ़ुट चौङी दस फ़ुट लम्बी और दो फ़ुट मोटी, दो पत्थर की शिलाएं एक घने वृक्ष के नीचे बिछी हुयी थी । इस तरह यह एक शानदार प्राकृतिक डबल बेड था ।
कलियारी गांव से साढ़े तीन किमी की दूरी पर, और इस पहाङी से आधा किलोमीटर की दूरी पर, एक पुराना शमशान स्थल था । जिसके एक साइड का दो किमी का इलाका किसी नीच वाम शक्ति ने बांध’ रखा था ।
कभी कभी उसे हैरत होती थी कि एक ही स्थान पर दो विपरीत शक्तियां, यानी सात्विक और तामसिक अगल बगल ही मौजूद थी, जो कि एक तरह से असंभव जैसा था ।
प्रसून ने एक सिगरेट सुलगायी, और जैसे यूँ ही कलियारी विलेज की ओर देखने लगा । जहाँ बहुत हल्के प्रकाश के रूप में जीवन के चिह्न नजर आ रहे थे ।
एक तरफ़ साधना के लिये इंसानी जीवन से दूर एकदम निर्जन में भागना, और दूसरी तरफ़ लगभग अपरिचित से इस जनजीवन को दूर से देखना, एक अजीब सी सुखद अनुभूति देता था ।
प्रसून पहाङी पर टहलते हुये अपने घर के बारे में सोचने लगा ।
नीलेश अपनी गर्लफ़्रेंड मानसी के साथ उसके घर मारीशस गया हुआ था । बाबाजी किसी अज्ञात स्थान पर थे, और इस वक्त उसके सम्पर्क में नहीं थे ।
उसने अंतरिक्ष की ओर देखा, जहाँ धीरे धीरे जवान होती रात के साथ असंख्य तारे नजर आने लगे थे । उसका दिल कर रहा था कि कलियारी कुटी में अशरीर होकर सूक्ष्म लोकों की यात्रा पर निकल जाये, जो इन्हीं तारों के बीच अंतरिक्ष में हर ओर फ़ैले हुये थे । पर बाबाजी के आदेशानुसार उसे बीस दिन का समय इसी कलियारी कुटी में एक विशेष साधना करते हुये बिताना था ।
- साहिब । उसके मुख से आह सी निकली - तेरी लीला अपरम्पार ।
उसने रिस्टवाच की लाइट आन कर समय देखा ।
रात के नौ बजने वाले थे ।
तभी उसे अपने आसपास एक विचित्र सा अहसास होने लगा ।
हत्या.. कुसुम.. हत्या.. कुसुम..!
ये शब्द जैसे बारबार उसके जेहन पर दस्तक सी देने लगे । इसका सीधा सा मतलब था कि आसपास कोई सामान्य आदमी मौजूद था । जिसके दिमाग में इस तरह के विचारों का अंधङ चल रहा था ।
इस ‘आन’ लगे हुये, और दूसरी साइड पर बांधे गये स्थान पर, एक सामान्य आदमी का मौजूद होना, और वो भी किसी हत्या के इरादे से, एक अजूबे से कम नहीं था ।
तपस्वी की आन’ लगा हुआ स्थान इंटरनेट के उस वाइ फ़ाइ’ स्थान के समान होता है । जिसमें आम जिंदगी की बात दूर से ही बिना प्रयास के कैच होने लगती है, और इसी आन के प्रभाव से जीव’ श्रेणी में आने वाली आत्मायें एक अज्ञात प्रभाव से उस स्थान से अनजाने ही दूर रहती हैं ।
अभी वह इस नयी हलचल के बारे में सोच ही रहा था कि शमशान स्थल की तरफ़ एक रोशनी सी हुयी, और कुछ ही देर में बुझ गयी ।



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प्रेतनी का मायाजाल 3




दस मिनट बाद ही वह पहाङी से नीचे एक वृक्ष के पास आकर खङा हो गया । पर उसने उसके पास आने या उसे पुकारने की कोई कोशिश नहीं की । उल्टे उसने उसका फ़ार्मूला उसी पर आजमाते हुये सिगरेट बीङी में से कुछ मुँह से लगाकर तीन बार माचिस को जलाया ।
अब वह उससे लगभग दो सौ कदम दूर पहाङी के नीचे कुछ हटकर मौजूद था । परन्तु वे दोनों ही इस कशमकश में थे कि एक दूसरे के बारे में कैसे जाना जाय?
तब उसने मानो निरुद्देश्य ही टार्च की रोशनी अपने ऊपर पेङ पर फ़ेंकी, और स्वाभाविक ही प्रसून के मुख से तेज आवाज में निकला - ऐ वहाँ पर कौन है? 
- मैं हूँ भाई । वह तेज आवाज में बोला - मेरा नाम दयाराम है ।
अगले कुछ ही मिनटों में वह उसके पास पत्थर की शिला पर बैठा था, और उसे उस निर्जन और वीराने स्थान में अकेला देखकर बेहद हैरान था । उसकी ये हैरानी और तीव्र जिज्ञासा का हो जाना प्रसून का अत्यधिक नुकसान कर सकती थी । इसलिये प्रसून ने उसे बताया कि वह बायोलोजी का छात्र है, और उसका कार्य कुछ अलग किस्म के जीव जन्तुओं पर शोध करना है, जो प्रायः इस क्षेत्र में अधिक मिलते हैं ।
उसने जानबूझ कर आधी अंग्रेजी और बेहद कठिन शब्दों का प्रयोग किया था ताकि उसकी बात भले ही उसकी समझ में न आये, पर वह उसके यहाँ होने के बारे में अधिक संदेह न करे, और कुछ समझता कुछ न समझता हुआ संतुष्ट जाय ।
वही हुआ ।
लेकिन इसमें प्रसून की चपल बातों से ज्यादा इस वक्त उसकी मानसिक स्थिति सहयोग कर रही थी । जिसके लिये वह इस लगभग भुतहा और डरावने स्थान पर रात के इस समय मौजूद था ।
कुछ देर में संयत हो जाने के बाद उसने उसका नाम पूछा ।
प्रसून ने सहज भाव से बताया ।
- प्रसून जी । वह आसमान की तरफ़ देखता हुआ बोला - आपकी शादी हो चुकी है?
- नहीं । प्रसून ने जंगली क्षेत्र की तरफ़ लगे घने पेङों की तरफ़ देखते हुये कहा - दरअसल कोई लङकी मुझे पसन्द ही नहीं करती । आपकी निगाह में कोई सीधी साधी लङकी हो तो बताना ।
- फ़िर तो तुम खुशकिस्मत ही हो, दोस्त । उसने एक गहरी सांस ली और बोला - इस सृष्टि में औरत से ज्यादा खतरनाक कोई चीज नहीं है? 
कहकर कुछ देर तक वह जैसे किसी गहरी सोच में डूबा रहा, फ़िर उसने चरस से भरी हुयी सिगरेट निकाल कर सुलगायी, और एक दूसरी सिगरेट प्रसून की ओर बढ़ाई ।
लेकिन फ़िर उसके मना करने पर वह सिगरेट के कश लगाता हुआ मानो अतीत में कहीं खो गया, और जैसे उसकी उपस्थिति को भी भूल गया ।
तब प्रसून ने एक सादा सिगरेट सुलगायी, और रिस्टवाच पर दृष्टिपात किया ।
रात के लगभग दस बजने वाले थे ।
चरसी सिगरेट की अजीब सी कसैली महक वातावरण में तेजी से फ़ैल रही थी ।
दयाराम हल्के नशे में मालूम होता था, और इसका सीधा सा अर्थ था कि उसके पास आने से पूर्व ही वह एक-दो सिगरेट और भी पी चुका था ।
और यह उसके लिये बिना प्रयास के ही हुआ फ़ायदे का सौदा था । क्योंकि तब सच्चाई जानने के लिये उसे उसके दिमाग से ज्यादा छेङछाङ नहीं करनी थी । बल्कि उस गम के मारे ने खुद ही रो रोकर उसे अफ़साना ए जिन्दगी सुना देना था ।



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प्रेतनी का मायाजाल 4




- तुम । अन्ततः दयाराम बोला - यही सोच रहे होगे कि आखिर मैं कौन हूँ, यहाँ क्यों आया हूँ? सच तो ये है प्रसून, मैं अपनी बीबी की हत्या करने आया हूँ । वो बीबी, जो मेरी बीबी है, पर जो मेरी बीबी नहीं है ।
बात के बीच में ही वो अचानक हँसा, फ़िर ओर भी जोर से हँसा, और अट्टहास करने लगा - उफ़ है न कमाल ! बीबी है, पर बीबी नहीं है, तो सवाल ये है प्रसून जी, कि बीबी आखिर कहाँ गयी? है वही, पर वो नही है, तो फ़िर कुसुम कहाँ गयी ।
अगर मेरे साथ चार साल से रह रही औरत एक प्रेतनी है, तो फ़िर कुसुम कहाँ है, या फ़िर कुसुम लङकी नहीं बल्कि एक प्रेत है । कौन यकीन करेगा इस पर?
- तुम.. । वह उसे लक्ष्य करता हुआ बोला - तुम, शायद यकीन कर लो, और तुम यकीन करो या न करो, पर इस वीराने में तुम्हें अपनी दास्तान बताकर मेरे सीने का ये बोझ हल्का हो जायेगा..?
दयाराम परतापुर का रहने वाला था ।
उसकी तीन शादियाँ हो चुकी थी, पर शायद उसकी किस्मत में पत्नी का सुख नहीं था । उसकी पहली शादी पच्चीस बरस की आयु में राजदेवी के साथ हुयी थी । नौ साल तक उसका साथ निभाने के बाद राजदेवी का देहान्त हो गया । मरने से पूर्व सात साल तक राजदेवी गम्भीर रूप से बीमार ही रही थी, और इसी बीमारी के चलते अंततः उसका देहान्त हो गया ।
राजदेवी के कोई संतान नहीं हुयी थी ।
पैंतीस बरस की आयु में दयाराम का दूसरा विवाह शारदा के साथ हुआ ।
शारदा से दयाराम को तीन बच्चों का बाप बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । उनकी ग्रहस्थी मजे से चल रही थी कि एक दिन चौदह साल बाद शारदा भी बिजली के करेंट से चिपक कर मर गयी ।
जिस दिन शारदा मरी ।
उसका सबसे छोटा बच्चा दो साल का था, बीच का आठ साल का, और बङा ग्यारह साल का । दयाराम के सामने बच्चों के पालन पोषण की बेहद समस्या आ गयी ।
उसके घर में ऐसा कोई नहीं था, जो इस जिम्मेदारी को संभाल लेता ।
तब दयाराम की सास ने अपने धेवतों का मुख देखते हुये अपनी तीस साल की लङकी कुसुम जो शादी के सात साल बाद विधवा हो गयी थी । उसकी शादी फ़िर से दयाराम के साथ कर दी ।
यहीं से दयाराम की जिंदगी में अजीब भूचाल आना शुरू हो गया ।
विवाह के बाद दयाराम कुसुम को जब पहली बार बुलाने गया, तो मोटर साइकिल से गया था ।  उसके घर और ससुराल के बीच में लगभग एक सौ साठ किलोमीटर का फ़ासला था ।
लगभग सौ किलोमीटर का फ़ासला तय करते करते दोपहर हो गयी ।
तब दयाराम ने सुस्ताने और खाना खाने के विचार से मोटर साइकिल एक बगिया में रोक दी । घने वृक्षों से युक्त इस बगिया में एक कुंआ था । जिस पर एक रस्सी बाल्टी राहगीरों को पानी उपलब्ध कराने के लिये हर समय रखी रहती थी ।
बगिया से कुछ ही दूर पर बङे बङे तीन गढ्ढे थे, और कुछ ही आगे एक विशाल पीपल के पेङ के पास एक बङी पोखर थी ।
बेहद थकान सा अनुभव करते हुये दयाराम का ध्यान इस विचित्र और रहस्यमय बगिया के रहस्यमय वातावरण की ओर नहीं गया । अलबत्ता खेतों हारों बाग बगीचों में ही अधिक घूमने वाली कुसुम को ये बगिया जाने क्यों बङी रहस्यमय सी लग रही थी ।
वह बगिया एक अजीब सा रहस्यमय सन्नाटा ओढ़े हुये जान पडती थी । उसके पेङों पर बैठे उल्लू और खुसटिया जैसे पक्षी मानों एकटक कुसुम को ही देख रहे थे ।
दयाराम खाना खाकर आराम करने के लिये लेट गया ।
लेकिन विवाह के कई सालों बाद, कुसुम यकायक एक पुरुष की निकटता पाकर शीघ्र सहवास के लिये उत्सुक हो रही थी । जब दयाराम ने बगिया में मोटर साइकिल रोकी । तभी उसने सोचा कि दयाराम ने ये निर्जन स्थान इसीलिये चुना है कि वो भी कुसुम की ही तरह शीघ्र ही उसके साथ सहवास की इच्छा रखता है । क्योंकि बगिया के आसपास दूर तक गांव नहीं थे, और न ही वहाँ कोई पशु चराने वाले थे ।
अपने पति के मरने के बाद कुसुम लम्बे समय तक दैहिक सुख से वंचित रही थी । इसलिये आज दयाराम को दूसरे पति के रूप में पाकर उसकी सम्भोग की वह दबी इच्छा स्वाभाविक ही बलबती हो उठी । पर उसकी इच्छा के विपरीत दयाराम लेटते ही सो गया, और जल्दी ही खर्राटे लेने लगा ।
हालांकि कुसुम भी कुछ थकान सी महसूस कर रही थी । पर कामवासना के तेज कीङे जैसे अब उसके अन्दर कुलुबुला रहे थे, और जिनके चलते वह अजीब सी बैचेनी महसूस कर रही थी । लेकिन अभी वह दयाराम से इतनी खुली भी नहीं थी कि उसे जगाकर सम्भोग का प्रस्ताव कर देती ।
अतः उसने एक बेबसी की आह सी भरी, और सूनी बगिया के चारो तरफ़ देखा ।
फ़िर हार कर वह एक पेङ से टिककर बैठ गयी, और उसकी निगाह वृक्षों पर घूमने लगी ।
तब अचानक ही उसके शरीर में जोर की झुरझुरी हुयी, और उसके समस्त शरीर के रोंगटे खडे हो गये ।
उल्लू जैसे गोल मुँह वाले वो छोटे छोटे पक्षी कुसुम को ही एकटक देख रहे थे । उनकी मुखाकृति ऐसी थी, मानो हँस रहे हों । घबरा कर उसने अन्य वृक्षों पर नजर डाली, तो वहाँ भी, उसे एक भी सामान्य पक्षी नजर नहीं आया ।
सभी वैसे ही अजीब से गोल मुँह वाले थे, और एकटक उसी को देख रहे थे ।
तब पहली बार कुसुम को अहसास हुआ कि क्यों वो बगिया उसे रहस्यमय लग रही थी ।
वहाँ अदृश्य में भी किसी के होने का अहसास था । और निश्चय ही कोई था, जो उसके आसपास था, और बेहद पास था ।


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प्रेतनी का मायाजाल 5




फ़गआत या लोखङा प्रेत की वो किस्म होती है । जो किसी अभिशप्त स्थान पर, या इस्तेमाल न किये जाने वाले शमशान स्थल के आसपास ही रहती है ।
अब तक दयाराम की संगत में प्रसून बहुत कुछ जान गया था । कुछ घटना वह अपने दिमाग से अपनी जानकारी के अनुसार सुना अवश्य रहा था । पर कुछ रहस्य इसमें ऐसा भी था । जिसके बारे में दयाराम भी नहीं जानता था ।
दरअसल ना जानकारी में या किसी होनी के वशीभूत हुआ दयाराम एक अभिशप्त बगिया और अभिशप्त स्थान पर रुक गया था, जहाँ प्रेतवासा था । और पचास, साठ या अस्सी साल पहले उस स्थान को शमशान के रूप में प्रयोग किया जाता रहा होगा । और फिर बाद में कुछ ऐसी घटनाएं घटी होंगी, जिससे वो स्थान अभिशप्त या अछूत समझा जाने लगा होगा । इसी वजह से उसके आसपास आबादी नहीं थी, और इसी वजह से वहाँ पशु आदि चराने वाले नहीं थे । क्योंकि जो लोग प्रेतवासा के बारे में जानते होंगे, वह जानबूझ कर आफ़त क्यों मोल लेंगे ।
इस तरह धीरे धीरे मनुष्य के दूर होते चले जाने से, उस स्थान पर प्रेतों का कब्जा पक्का होता चला गया, और दयाराम कुसुम जैसे व्यक्ति अज्ञानता में उसमें फ़ंसने लगे ।
पर उसके दिमाग में और भी बहुत से सवाल थे ।
कुसुम पर प्रेत का आवेश हो जाना कोई बङी बात नहीं थी ।
लेकिन चार साल में उसने, या प्रेत ने, ऐसा क्या किया था । जो दयाराम उसे मारने पर आमादा था । दयाराम को कैसे मालूम पङा कि कुसुम पर प्रेत था । उसने क्या इलाज कराया । और सबसे बङा सवाल दयाराम उसको मारना ही चाहता था, तो घर पर आसानी से मार सकता था ।
वह इस वीराने में क्यों आया?
चार साल तक प्रेतनी का एक आदमी के साथ रहना मामूली बात नहीं थी ।
आखिर प्रेतनी कौन थी और क्या चाहती थी?
अगर प्रेतनी पूरी तरह से कुसुम के शरीर का इस्तेमाल कर रही थी ।
तो कुसुम इस वक्त कहाँ थी, और किस हाल में थी?
ऐसे कई सवाल थे, जिनका उत्तर दयाराम, और सही उत्तर, कुसुम के पास था ।
पर कुसुम इस वक्त कहाँ थी?
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बेहद सुहानी, मगर बेहद रहस्यमय हो उठी रात धीरे धीरे अपना सफ़र तय कर रही थी ।
प्रसून ने कलियारी कुटी की तरफ़ देखा ।
उसने सोचा कि अगर दयाराम न आया होता, तो वह क्या कर रहा होता?
दयाराम अब भी टहल रहा था ।
उसने उत्सुकतावश शिला पर रखी टार्च की रोशनी पेङ पर डाली ।
पेङ नीबू और बेर के मिले जुले आकार वाले फ़लों से लदा पङा था । ये गूदेदार मीठा फ़ल था, जो प्रसून भूख लगने पर अक्सर खा लिया करता था ।
कलियारी कुटी से पांच सौ मीटर दूर ऐसा ही एक अन्य वृक्ष था । जिस पर जामुन के समान लाल और बैंगनी रंग के चित्तेदार फ़ल लगते थे । ये फ़ल भी खाने में स्वादिष्ट थे । पर ये एक चमत्कार की तरह कलियारी गांव और अन्य गांव वालों से बचे हुये थे ।
क्योंकि पहाङी के नीचे का इलाका किसी प्रेत शक्ति ने बांध रखा था, और कलियारी कुटी को किसी तपस्वी की आन लगी हुयी थी । ऐसी हालत में सामान्य मनुष्य यदि इधर आने की कोशिश करता तो उसे डरावने मायावी अनुभव हो सकते थे ।
जैसे अचानक बङे अजगर का दिखाई दे जाना, अचानक किसी हिंसक जन्तु का प्रकट हो जाना, अचानक कोई रहस्यमयी आकृति का दिखाई देना, वर्जित क्षेत्र में कदम रखने वाले को तेज चक्कर आने लगना आदि जैसे कई प्रभाव हो सकते थे ।


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प्रेतनी का मायाजाल 6




अचानक दयाराम चौकन्ना हो उठा ।
और प्रसून रहस्यमय अन्दाज में मुस्कराया ।
उसने फ़ुर्ती से रिवाल्वर उठा ली, और सतर्कता से इधर उधर देखने लगा ।
प्रसून जानता था कि उसके रोंगटे खङे हो चुके हैं, और वह निकट ही किसी प्रेत की उपस्थिति महसूस कर रहा है, जिसका कि चार साल के अनुभव में वह अभ्यस्त हो चुका था ।  
वास्तव में उस वक्त वहाँ दो प्रेत पहाङी के नीचे मौजूद थे ।
जो प्रसून को स्पष्ट दिखाई दे रहे थे ।
उनमें से एक औरत अंगी था, जो शायद कुसुम थी । और दूसरा कोई अन्य पुरुष अंगी था ।
हालांकि प्रसून कवर्ड’ स्थिति में था, फ़िर भी वे ऊपर नहीं आ रहे थे ।
इसके दो कारण थे, एक तो ऊपर वाला इलाका लगभग आन के क्षेत्र में आता था ।
जहाँ प्रेत क्या यक्ष, किन्नर, गंधर्व, डाकिनी, शाकिनी जैसी शक्तियां भी घुसने से पहले सौ बार सोचती ।
दूसरे प्रसून भले ही कवर्ड (उच्चस्तर के तान्त्रिक साधक अपने को एक ऐसे अदृश्य कवच में बन्द कर लेते हैं, जिससे उनकी असलियत का पता नहीं चलता । उच्चस्तर के महात्मा, साधु, संत प्रायः इस तरीके को अपनाते हैं, जो किन्ही अज्ञात कारणोंवश बेहद आवश्यक होता है) था । पर उस स्थिति में भी वे एक अनजाना भय महसूस कर रहे थे ।
और उन्हें जैसे अज्ञात खतरे की बू आ रही थी ।
प्रसून दयाराम को और अधिक डिस्टर्ब नहीं होने देना चाहता था । इस तरह उसका कीमती समय नष्ट हो सकता था । अतः उसने उसकी निगाह बचाते हुये एक ढेला उठाया और फ़ूंक मारकर प्रेतों की ओर उछाल दिया ।
उसे इसकी प्रतिक्रिया पहले ही पता थी ।
प्रेत अपने अंगों में जबरदस्त खुजली महसूस करते हुये तेजी से वहाँ से भागे ।
उनका अनुमान सही था ।
पहाङी पर उनके लिये खतरा मौजूद था और वे अब लौटकर आने वाले नहीं थे ।
कुछ ही देर में दयाराम सामान्य स्थिति में आ गया ।
वह फ़िर से पत्थर की शिला पर बैठ गया, और बैचेनी से अपनी उंगलियां चटका रहा था । एक खुशहाली की खातिर, अपने बच्चों की सही परवरिश की खातिर, उसने तीसरी बार शादी की । और उस शादी ने उसके पूरे जीवन में आग लगा दी ।
पर वह कुछ भी तो नहीं कर सका ।
क्या करता बेचारा?
- फ़िर । उसका ध्यान पुनः अपनी तरफ़ आकर्षित करते हुये प्रसून ने पूछा - उसके बाद क्या हुआ?
बगिया में सोया हुआ दयाराम जैसे अचानक ही हङबङाकर उठा ।
उसने कलाई घङी पर नजर डाली, तो तीन बजने वाले थे ।
यानी ढाई घन्टे, वह एक तरह से घोङे बेचकर सोया था ।
उसे बेहद हैरत थी कि ऐसी चमत्कारी नींद अचानक उसे कैसे आ गयी थी ।
वह तो महज आधा घन्टा आराम करने के उद्देश्य से लेट गया था । मगर लेटते ही उसकी चेतना ऐसे लुप्त हुयी, मानो किसी नशे के कारण बेहोशी आयी हो ।
पर वास्तव में वह नींद में भी नहीं था?
बल्कि अपनी उसी अचेतन अवस्था में वह एक घनघोर भयानक जंगल में भागा चला जा रहा था । जंगल में बेहद रहस्यमयी पीले और काले रंग का मिश्रित सा घनघोर  अंधकार छाया हुआ था ।



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प्रेतनी का मायाजाल pretani ka mayajal
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प्रेतनी का मायाजाल 7




दयाराम ने राहत की सांस ली ।
उसकी उजङी ग्रहस्थी फ़िर से बस चुकी थी ।
वह ज्यादातर दिन भर घर से बाहर खेतों पर ही रहता था ।
इसलिये अगले ढाई साल तक वह अपने घर में फ़ैल चुके मायाजाल को नहीं जान सका था । हालांकि उसे कुछ न कुछ ऐसा अवश्य था, जो अजीब लगता था, पर वो कुछ, क्या था ।
यह उसकी समझ से बाहर था ।
इन ढाई सालों में कुसुम के दो बच्चे हुये, जो तीन-चार महीने की अवस्था होते ही रहस्यमय तरीके से मर गये । कुसुम का व्यवहार भी अजीब था । इसका जिक्र उसके दोनों बङे बच्चों ने और उसके नौकर रूपलाल ने भी किया था ।
बच्चों के स्कूल जाते ही, घर अकेला होते ही, वह एकदम नंगी हो जाती थी, और ज्यादातर नंगी ही रहती थी । उसे पानी के सम्पर्क में रहना बहुत अच्छा लगता था । गर्मियों में वह चार बार तक, और सर्दियों में दो बार नहाती थी ।
दयाराम उससे सम्भोग करे, या न करे । वह रात में निर्वस्त्र ही रहती थी ।
दयाराम के पूछने पर उसने कहा कि कपङों में वह घुटन महसूस करती है ।
एक अजीब बात, जिसने दयाराम को सबसे ज्यादा चौंकाया, वह यह थी कि उसने कभी अपने जाये बच्चों को स्तनपान नहीं कराया ।
इसका कारण उसने यह बताया कि उसकी छातियों में दूध ही नहीं उतरता ।
फ़िर रूपलाल के इशारा करने पर दयाराम ने गौर किया कि वह कभी पलक नहीं झपकाती थी, अर्थात उसकी आंखें किसी पत्थर की मूर्ति की तरह अपलक ही रहती थीं ।
रूपलाल ने यह भी बताया कि कभी वो गलती से उसकी नंगी हालत में घर में आ गया, तो भी उसने कपङे पहनने या कमरे में जाने की कोई कोशिश नहीं की ।
रूपलाल बाहर स्कूल में रहता था । इसलिये काम पङने पर ही घर में आता जाता था ।
ढाई साल बाद, इस तरह के अजीब अजीब समाचार सुनकर दयाराम मानों सोते से जागा । जिन बातों को वह अब तक नजरअन्दाज कर रहा था । उनके पीछे कोई खतरनाक रहस्य छिपा हुआ था ।
यानी पानी सिर से ऊपर जा रहा था ।
तब वह अपने बच्चों की खातिर बेहद चिंतित हो उठा ।
जाने क्यों उसे अपनी ये हवेली बेहद खतरनाक और रहस्यमय लगने लगी ।
और उसे एक अदृश्य मायाजाल का अहसास होने लगा ।
यही सोच विचार करते हुये उसने आगे से घर में अधिक समय बिताने का निश्चय किया ।
और तब उसने दो स्पष्ट प्रमाण देखे ।
पहला, जब वह बाथरूम के शीशे के सामने शेव कर रहा था ।
कुसुम उसके ठीक पीछे आकर उससे एकदम सटकर खङी हो गयी । उसके पुष्ट उरोज दयाराम की पीठ से सटे हुये थे, और उसके दोनों हाथ दयाराम के अंग’ को खोज रहे थे, पर ..?
पर शीशे में उसका कोई प्रतिबिम्ब नहीं था ।
जो कि उस बङे आकार के शीशे में निश्चित होना चाहिये था ।
उस समय दयाराम इस रहस्य को अपने दिल में ही छुपा गया ।
और उसने कुसुम से कुछ नहीं कहा ।
लेकिन अब वह कुसुम से मन ही मन भयभीत रहने लगा ।
खासतौर पर वह अपने छोटे छोटे बच्चों के लिये चिंतित हो उठा ।
और फ़िर दूसरा प्रमाण भी उसे जल्दी ही मिल गया ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।