- तुम । अन्ततः दयाराम बोला - यही सोच रहे
होगे कि आखिर मैं कौन हूँ, यहाँ क्यों आया हूँ? सच तो ये है प्रसून, मैं अपनी बीबी की हत्या करने
आया हूँ । वो बीबी, जो मेरी बीबी है, पर
जो मेरी बीबी नहीं है ।
बात के बीच में ही वो अचानक हँसा, फ़िर ओर भी जोर से हँसा, और अट्टहास करने लगा - उफ़ है न कमाल ! बीबी है, पर बीबी नहीं है, तो
सवाल ये है प्रसून जी, कि बीबी आखिर कहाँ गयी? है वही, पर वो नही है, तो फ़िर
कुसुम कहाँ गयी ।
अगर मेरे साथ चार साल से रह रही औरत एक प्रेतनी है, तो फ़िर कुसुम कहाँ है, या फ़िर कुसुम लङकी नहीं बल्कि एक प्रेत है । कौन यकीन करेगा इस पर?
- तुम.. । वह उसे लक्ष्य करता हुआ बोला -
तुम, शायद यकीन कर लो, और
तुम यकीन करो या न करो, पर इस वीराने में तुम्हें अपनी
दास्तान बताकर मेरे सीने का ये बोझ हल्का हो जायेगा..?
दयाराम परतापुर का रहने वाला था ।
दयाराम परतापुर का रहने वाला था ।
उसकी तीन शादियाँ हो चुकी थी, पर शायद उसकी किस्मत में पत्नी का
सुख नहीं था । उसकी पहली शादी पच्चीस बरस की आयु में राजदेवी के साथ हुयी थी । नौ
साल तक उसका साथ निभाने के बाद राजदेवी का देहान्त हो गया । मरने से पूर्व सात साल
तक राजदेवी गम्भीर रूप से बीमार ही रही थी, और इसी बीमारी के
चलते अंततः उसका देहान्त हो गया ।
राजदेवी के कोई संतान नहीं हुयी थी ।
पैंतीस बरस की आयु में दयाराम का दूसरा विवाह शारदा
के साथ हुआ ।
शारदा से दयाराम को तीन बच्चों का बाप बनने का
सौभाग्य प्राप्त हुआ । उनकी ग्रहस्थी मजे से चल रही थी कि एक दिन चौदह साल बाद
शारदा भी बिजली के करेंट से चिपक कर मर गयी ।
जिस दिन शारदा मरी ।
जिस दिन शारदा मरी ।
उसका सबसे छोटा बच्चा दो साल का था, बीच का आठ साल का, और बङा ग्यारह साल का । दयाराम के सामने बच्चों के पालन पोषण की बेहद
समस्या आ गयी ।
उसके घर में ऐसा कोई नहीं था, जो इस जिम्मेदारी को संभाल लेता ।
तब दयाराम की सास ने अपने धेवतों का मुख देखते हुये
अपनी तीस साल की लङकी कुसुम जो शादी के सात साल बाद विधवा हो गयी थी । उसकी शादी
फ़िर से दयाराम के साथ कर दी ।
यहीं से दयाराम की जिंदगी में अजीब भूचाल आना शुरू हो
गया ।
विवाह के बाद दयाराम कुसुम को जब पहली बार बुलाने गया, तो मोटर साइकिल से गया था । उसके घर और ससुराल के बीच में लगभग एक सौ साठ किलोमीटर का फ़ासला था ।
विवाह के बाद दयाराम कुसुम को जब पहली बार बुलाने गया, तो मोटर साइकिल से गया था । उसके घर और ससुराल के बीच में लगभग एक सौ साठ किलोमीटर का फ़ासला था ।
लगभग सौ किलोमीटर का फ़ासला तय करते करते दोपहर हो
गयी ।
तब दयाराम ने सुस्ताने और खाना खाने के विचार से मोटर
साइकिल एक बगिया में रोक दी । घने वृक्षों से युक्त इस बगिया में एक कुंआ था । जिस
पर एक रस्सी बाल्टी राहगीरों को पानी उपलब्ध कराने के लिये हर समय रखी रहती थी ।
बगिया से कुछ ही दूर पर बङे बङे तीन गढ्ढे थे, और कुछ ही आगे एक विशाल पीपल के पेङ
के पास एक बङी पोखर थी ।
बेहद थकान सा अनुभव करते हुये दयाराम का ध्यान इस
विचित्र और रहस्यमय बगिया के रहस्यमय वातावरण की ओर नहीं गया । अलबत्ता खेतों
हारों बाग बगीचों में ही अधिक घूमने वाली कुसुम को ये बगिया जाने क्यों बङी
रहस्यमय सी लग रही थी ।
वह बगिया एक अजीब सा रहस्यमय सन्नाटा ओढ़े हुये जान
पडती थी । उसके पेङों पर बैठे उल्लू और खुसटिया जैसे पक्षी मानों एकटक कुसुम को ही
देख रहे थे ।
दयाराम खाना खाकर आराम करने के लिये लेट गया ।
लेकिन विवाह के कई सालों बाद, कुसुम यकायक एक पुरुष की निकटता पाकर
शीघ्र सहवास के लिये उत्सुक हो रही थी । जब दयाराम ने बगिया में मोटर साइकिल रोकी
। तभी उसने सोचा कि दयाराम ने ये निर्जन स्थान इसीलिये चुना है कि वो भी कुसुम की
ही तरह शीघ्र ही उसके साथ सहवास की इच्छा रखता है । क्योंकि बगिया के आसपास दूर तक
गांव नहीं थे, और न ही वहाँ कोई पशु चराने वाले थे ।
अपने पति के मरने के बाद कुसुम लम्बे समय तक दैहिक
सुख से वंचित रही थी । इसलिये आज दयाराम को दूसरे पति के रूप में पाकर उसकी सम्भोग
की वह दबी इच्छा स्वाभाविक ही बलबती हो उठी । पर उसकी इच्छा के विपरीत दयाराम
लेटते ही सो गया, और जल्दी ही
खर्राटे लेने लगा ।
हालांकि कुसुम भी कुछ थकान सी महसूस कर रही थी । पर
कामवासना के तेज कीङे जैसे अब उसके अन्दर कुलुबुला रहे थे, और जिनके चलते वह अजीब सी बैचेनी
महसूस कर रही थी । लेकिन अभी वह दयाराम से इतनी खुली भी नहीं थी कि उसे जगाकर
सम्भोग का प्रस्ताव कर देती ।
अतः उसने एक बेबसी की आह सी भरी, और सूनी बगिया के चारो तरफ़ देखा ।
फ़िर हार कर वह एक पेङ से टिककर बैठ गयी, और उसकी निगाह वृक्षों पर घूमने लगी ।
फ़िर हार कर वह एक पेङ से टिककर बैठ गयी, और उसकी निगाह वृक्षों पर घूमने लगी ।
तब अचानक ही उसके शरीर में जोर की झुरझुरी हुयी, और उसके समस्त शरीर के रोंगटे खडे हो
गये ।
उल्लू जैसे गोल मुँह वाले वो छोटे छोटे पक्षी कुसुम
को ही एकटक देख रहे थे । उनकी मुखाकृति ऐसी थी, मानो हँस रहे हों । घबरा कर उसने अन्य वृक्षों पर नजर डाली, तो वहाँ भी, उसे एक भी सामान्य पक्षी नजर नहीं आया
।
सभी वैसे ही अजीब से गोल मुँह वाले थे, और एकटक उसी को देख रहे थे ।
तब पहली बार कुसुम को अहसास हुआ कि क्यों वो बगिया
उसे रहस्यमय लग रही थी ।
वहाँ अदृश्य में भी किसी के होने का अहसास था । और
निश्चय ही कोई था, जो उसके आसपास था, और बेहद पास था ।
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