शनिवार, फ़रवरी 08, 2014

पिशाच का बदला 1




भूत-प्रेतों की रहस्यमय दुनियां, उनका स्थूल शरीर रहित लगभग अशरीरी और सूक्ष्मशरीर का जीवन, और उनकी अपनी जिन्दगी के अजीबोगरीब क्रियाकलाप पर आधारित ये तीन प्रेतकथायें ‘अगिया वेताल’ ‘पिशाच का बदला’ और ‘चुङैल’ संशोधित संस्करण के साथ आपके हाथों में है। और पूरी उम्मीद है कि ये तीनों बङी कहानियां भी आपको अन्य प्रेत कहानियों और उपन्यास जैसे ही पसन्द आयेंगे।
यहाँ एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिये कि दरअसल इन वायव्य शरीरधारियों का इंसानी जीवन से क्या सम्बन्ध है, और भूत-प्रेतों का इंसानी जीवन में क्या और क्यों दखल है?
वैसे अब तक के मेरे अनुभव में तो ये भी एक हैरानी कि बात रही है कि जो लोग इन अदृश्य रूहों से कुछ हद तक या कुछ ज्यादा भी, प्रभावित रहे। वे अक्सर ही और पूरी दृढ़ता से इनके अस्तित्व को नकारते रहे, और कहते रहे कि ये सब क्या बकवास है, और आधुनिक प्रगतिशील युग में तो यह निरा अंधविश्वास ही है।
जबकि इसके ठीक उलट, जो कतई प्रभावित नहीं थे, और जिनके दूर दूर तक अभी प्रभावित होने के कारण भी नहीं थे। वे न सिर्फ़ पूरी आस्था से रूहों के अस्तित्व को स्वीकारते थे, बल्कि उनमें दिलचस्पी भी लेते थे, और मानते थे कि उनका या उनके परिवार या उनके किसी परिचित का वायवीय रूहों से या तो सम्पर्क है, या फ़िर वे उसके विपरीत प्रभाव से प्रभावित हैं।
दरअसल किसी भी कारणवश हुयी मृत्यु से जैसे ही किसी इंसान का ये नजर आने वाला शरीर या स्थूल आवरण उतर जाता है, तो उस वक्त उसके पास सिर्फ़ सूक्ष्म शरीर ही रह जाता है। और फ़िर वह अपने अंतःकरण में संचित स्मृति, कारण और गुण प्रभाव के द्वारा शेष रही जीवनलीला को खेलने को विवश होता है। तब तक, जब तक कि उसे फ़िर से कोई पंचतत्व वाला शरीर नहीं मिल जाता।
 राजीव श्रेष्ठ
आगरा


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मेरे बारे में

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।