उसके जीवन में प्रेतबाधा के बहुत कम केस
ऐसे थे । जिनमें प्रसून ने खुले रूप से ऐसी कार्यवाही की थी । यदि किसी केस से उसे
जुङना भी पङता था, तो वह
अधिकतर गुप्त रूप से ज्यादा से ज्यादा से कार्यवाही निबटा कर समस्या का हल कर देता
था ।
लेकिन ये मामला ऐसा था कि जिसमें बात का पूरी तरह से खुलना सभी के हित में था ।
रेशमा के मुँह से एक पुरुष आवाज निकली - हे साधु, आपको हमारा प्रणाम है । मैं अशरीरी योनि में पिशाच श्रेणी का प्रेत हूँ । मेरे साथ दूसरा ब्रह्मराक्षस और तीसरा छोटा यमप्रेत है । हम सभी बरम देव के आश्रय में रहते हैं । वह हम में सबसे बङे हैं । इस गांव के आसपास तीन स्थानों पर हमारा बसेरा है । एक वह बरम देव पीपल, दूसरा मन्दिर से आगे दो किलोमीटर दूर का शमसान, और तीसरा वर्मा का फ़ार्म हाउस, जिसमें खंडित मन्दिर भी है ।
इन तीनों प्रमुख स्थानों पर डाकिनी, शाकिनी, यक्ष, भूत, प्रेत आदि अनेक प्रकार के लगभग तीस प्रेत बरम देव के आश्रय में रहते हैं, और नियमानुसार गलती करने वाले को ही परेशान करते हैं । बाकी हम इस गांव के आसपास से प्राप्त खुशबू और मनुष्य के त्याज्य मल कफ़ थूक उल्टी आदि कई चीजों का आहार करते हैं ।
हे साधु, आप जानते ही हैं कि इससे अधिक प्रेतों के रहस्य बताना उचित नहीं है । और इस प्रेतपीङा निवारण के पूरा हो जाने के बाद वर्मा परिवार को भी नियम के अनुसार गांव आदि में ये बात खोलना वर्जित है कि इन स्थानों पर प्रेत रहते हैं ।
- एक मिनट । प्रसून ने बीच में हस्तक्षेप करते हुये मुस्करा कर कहा - यदि वर्मा परिवार तुम्हारे रहस्य, तुम्हारे रहने के स्थान, तुम्हारे घर आदि के बारे में लोगों को बता देगा, तो क्या हो जायेगा?
- हे महात्मा । रेशमा के मुख से पिशाच बोला - मैं जानता हूँ कि ये बात आप इन लोगों को ठीक से समझाने हेतु पूछ रहे हैं, जो कि उचित ही है, तो सुनिये प्रेतों का तो कुछ खास नहीं होगा । पर इससे ग्रामवासियों के मन में एक अजीब और अज्ञात सा भय पैदा हो जायेगा, और लोग इन तीनों स्थानों पर पहुँचते ही इस भाव से देखेंगे कि जैसे प्रेतों को ही देख रहे हों ।
फ़िर जिस प्रकार हे साधु, मन्दिर में जाने वाले भक्त के मन में पत्थर की मूर्ति देखते ही ये विचार आता है कि ये भगवान हैं, और उसका भाव भगवान से जुङ जाता है । और तब ये एक तरह से अदृश्य सम्पर्क ही हो जाता है । इसी तरह ये जानकारी हो जाने पर कि इन स्थानों पर प्रेत हैं । वे भावरूपी सम्पर्क हमसे बार बार जिज्ञासा की वजह से भय की वजह से करेंगे । इस तरह ये प्रेतों के लिये आमन्त्रण होगा, और इस गांव के घर घर में प्रेतवासा हो जायेगा । तब इसका जिम्मेदार वर्मा परिवार होगा । क्योंकि वास्तव में अधिकतर प्रेत आवेश होने की मुख्य वजह यही होती है ।
लेकिन ये मामला ऐसा था कि जिसमें बात का पूरी तरह से खुलना सभी के हित में था ।
रेशमा के मुँह से एक पुरुष आवाज निकली - हे साधु, आपको हमारा प्रणाम है । मैं अशरीरी योनि में पिशाच श्रेणी का प्रेत हूँ । मेरे साथ दूसरा ब्रह्मराक्षस और तीसरा छोटा यमप्रेत है । हम सभी बरम देव के आश्रय में रहते हैं । वह हम में सबसे बङे हैं । इस गांव के आसपास तीन स्थानों पर हमारा बसेरा है । एक वह बरम देव पीपल, दूसरा मन्दिर से आगे दो किलोमीटर दूर का शमसान, और तीसरा वर्मा का फ़ार्म हाउस, जिसमें खंडित मन्दिर भी है ।
इन तीनों प्रमुख स्थानों पर डाकिनी, शाकिनी, यक्ष, भूत, प्रेत आदि अनेक प्रकार के लगभग तीस प्रेत बरम देव के आश्रय में रहते हैं, और नियमानुसार गलती करने वाले को ही परेशान करते हैं । बाकी हम इस गांव के आसपास से प्राप्त खुशबू और मनुष्य के त्याज्य मल कफ़ थूक उल्टी आदि कई चीजों का आहार करते हैं ।
हे साधु, आप जानते ही हैं कि इससे अधिक प्रेतों के रहस्य बताना उचित नहीं है । और इस प्रेतपीङा निवारण के पूरा हो जाने के बाद वर्मा परिवार को भी नियम के अनुसार गांव आदि में ये बात खोलना वर्जित है कि इन स्थानों पर प्रेत रहते हैं ।
- एक मिनट । प्रसून ने बीच में हस्तक्षेप करते हुये मुस्करा कर कहा - यदि वर्मा परिवार तुम्हारे रहस्य, तुम्हारे रहने के स्थान, तुम्हारे घर आदि के बारे में लोगों को बता देगा, तो क्या हो जायेगा?
- हे महात्मा । रेशमा के मुख से पिशाच बोला - मैं जानता हूँ कि ये बात आप इन लोगों को ठीक से समझाने हेतु पूछ रहे हैं, जो कि उचित ही है, तो सुनिये प्रेतों का तो कुछ खास नहीं होगा । पर इससे ग्रामवासियों के मन में एक अजीब और अज्ञात सा भय पैदा हो जायेगा, और लोग इन तीनों स्थानों पर पहुँचते ही इस भाव से देखेंगे कि जैसे प्रेतों को ही देख रहे हों ।
फ़िर जिस प्रकार हे साधु, मन्दिर में जाने वाले भक्त के मन में पत्थर की मूर्ति देखते ही ये विचार आता है कि ये भगवान हैं, और उसका भाव भगवान से जुङ जाता है । और तब ये एक तरह से अदृश्य सम्पर्क ही हो जाता है । इसी तरह ये जानकारी हो जाने पर कि इन स्थानों पर प्रेत हैं । वे भावरूपी सम्पर्क हमसे बार बार जिज्ञासा की वजह से भय की वजह से करेंगे । इस तरह ये प्रेतों के लिये आमन्त्रण होगा, और इस गांव के घर घर में प्रेतवासा हो जायेगा । तब इसका जिम्मेदार वर्मा परिवार होगा । क्योंकि वास्तव में अधिकतर प्रेत आवेश होने की मुख्य वजह यही होती है ।
किसी भी एकान्त अंधेरे स्थान पर पहुँचकर
भयभीत हुआ आदमी भूत प्रेत के बारे में सोचकर खुद ही, यदि वहाँ प्रेत हो, उससे
सम्पर्क जोङ लेता है । एक तरह से उसे खुद ही निमन्त्रण दे देता है ।
दूसरे, किसी आवेश में नियम के विपरीत कार्य करने से भी प्रेत आवेश होता है । इसके अलावा भी प्रेत आवेश के अन्य कारण होते हैं । पर उनको न कहता हुआ, मैं उस कारण को कहता हूँ । जिससे वर्मा परिवार प्रभावित हुआ ।
ये पांच साल पुरानी बात है । जब कि नन्दलाल गौतम उर्फ़ नन्दू नदी में डूबकर, जल में डूबने से अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ, बुङुआ प्रेत या बूङा प्रेत बन गया । और ये हर वक्त दुखी हुआ सा रोता रहता था । प्रेतयोनि में जाने के बाद भी इसे अपनी माँ बहन भाई की बेहद चिंता रहती थी ।
दूसरे, किसी आवेश में नियम के विपरीत कार्य करने से भी प्रेत आवेश होता है । इसके अलावा भी प्रेत आवेश के अन्य कारण होते हैं । पर उनको न कहता हुआ, मैं उस कारण को कहता हूँ । जिससे वर्मा परिवार प्रभावित हुआ ।
ये पांच साल पुरानी बात है । जब कि नन्दलाल गौतम उर्फ़ नन्दू नदी में डूबकर, जल में डूबने से अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ, बुङुआ प्रेत या बूङा प्रेत बन गया । और ये हर वक्त दुखी हुआ सा रोता रहता था । प्रेतयोनि में जाने के बाद भी इसे अपनी माँ बहन भाई की बेहद चिंता रहती थी ।
ये प्रेत होकर आसानी से अपने ऊपर हुये
जुल्म का खतरनाक बदला ले सकता था । लेकिन इसके बावजूद सीधा स्वभाव होने के कारण, ये बदले की बात भुलाकर,
अपने असहाय हो गये परिवार के विषय में सोचता रहता था । और हम
प्रेतों से भी बहुत ही कम वास्ता रखता था ।
तब इसके सीधेपन से प्रभावित होकर कुछ बङे शक्तिशाली प्रेतों ने इसकी मदद करने का निश्चय किया । जिनमें कि मैं भी शामिल था । हमें इससे बेहद सहानुभूति थी । क्योंकि हम भी कभी इंसान थे । और अब हमारे पास सिर्फ़ ये दुर्लभ मनुष्य शरीर ही तो नहीं था । बाकी हमारी भावनायें आदि लगभग वैसी ही थीं । हे साधु, आप जानते ही हैं कि इंसानों और हम में सिर्फ़ शरीरों का ही फ़र्क है ।
प्रसून ने देखा, पूरा वर्मा परिवार बङी उत्सुकता से इस दिलचस्प प्रेतकथा को सुन रहा था । लेकिन वास्तव में इस प्रेतकथा में उसके लिये कुछ भी दिलचस्प नहीं था । पर एक विशेष कारण से वह प्रेतकथा पिशाच के द्वारा रेशमा के मुख से करवा रहा था ।
तब इसके सीधेपन से प्रभावित होकर कुछ बङे शक्तिशाली प्रेतों ने इसकी मदद करने का निश्चय किया । जिनमें कि मैं भी शामिल था । हमें इससे बेहद सहानुभूति थी । क्योंकि हम भी कभी इंसान थे । और अब हमारे पास सिर्फ़ ये दुर्लभ मनुष्य शरीर ही तो नहीं था । बाकी हमारी भावनायें आदि लगभग वैसी ही थीं । हे साधु, आप जानते ही हैं कि इंसानों और हम में सिर्फ़ शरीरों का ही फ़र्क है ।
प्रसून ने देखा, पूरा वर्मा परिवार बङी उत्सुकता से इस दिलचस्प प्रेतकथा को सुन रहा था । लेकिन वास्तव में इस प्रेतकथा में उसके लिये कुछ भी दिलचस्प नहीं था । पर एक विशेष कारण से वह प्रेतकथा पिशाच के द्वारा रेशमा के मुख से करवा रहा था ।
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