शनिवार, फ़रवरी 08, 2014

प्रेतकन्या 2


उसने खुद को संजय के रूप में ढाला, और कुछ ही देर में वह शैरी के सामने था।
वो वास्तव में एक मोटे अजगर को लिपटाये हुये थी।
जो उसके कामुक अंगों को शीतल स्पर्श का सुख दे रहा था।
- शैरी.. फ़ेंक इसे..मैं असली आ गया..। वह तेजी से उसकी तरफ़ बढ़ता हुआ बोला।
लेकिन शैरी ने चौंकर घोर अविश्वास और शक निगाहों से उसे देखा।
प्रसून उसे ज्यादा सोचने समझने का कोई मौका नहीं देना चाहता था।
अतः उसने अजगर को छीनकर बाबाजी को स्मरण किया, और उनकी सिद्धगुफ़ा को लक्ष्य बनाकर, अलौकिक शक्ति का उपयोग करते हुये, पूरी ताकत से अजगर को अंतरिक्ष में फ़ेंक दिया।
अब ये अजगर अपनी यात्रा पूरी करके गुफ़ा के द्वार पर गिरने वाला था।
और इस तरह से संजय की रूह प्रेतभाव से आधी मुक्त हो जाती।
फ़िर इसके बाद संजय के दिमाग, जो कि इस समय प्रसून के दिमाग से जुङा था, से उसे वह लिखावट मिटा देनी थी, जो उसके और शैरी के बीच हुआ था।
बस इस तरह से संजय एकदम मुक्त हो जाता।
इस हेतु उसने शैरी को बेहद उत्तेजित भाव से पकङ लिया, और पूरी तरह कामुकता में डुबोने की कोशिश करने लगा। शैरी सम्भोग के लिये बेहद व्याकुल हो रही थी।
कि तभी उसने कहा - शैरी, अब जबकि मैं पूरी तरह से प्रथ्वी छोङकर तेरे पास आ गया हूँ। मेरा दिल कर रहा है कि तू मुझे हमारी प्रेमकहानी खुद सुनाये, ताकि आज से हम नया जीवन शुरू कर सकें। वरना तू जानती ही है कि मैं सौ प्रेतनी को एक साथ संतुष्ट करने वाला वेताल हूँ, और तेरी जैसी मेरे लिये लाइन लगाये खङी हैं..
उसकी चोट एकदम निशाने पर बैठी।
उसे सोचने का कोई मौका ही न मिले, इस हेतु वह उसके स्तनों को सहलाने लगा।
- तुम कितने शर्मीले थे। वह जैसे तीन महीने पहले चली गयी - मैं एक दिन यूँ ही प्रथ्वी पर नदी में निर्वस्त्र नहा रही थी, और तुम उसी रास्ते से स्कूल से लौटकर आये थे। क्योंकि मैं प्रथ्वी पर नया वेताल बनाने के आदेश पर गयी थी, और क्योंकि आकस्मिक दुर्घटना में मरे हुये का प्रेत बनना, और स्वेच्छा से प्रेतभाव धारण करने वाला प्रेत, इनकी ताकत में लाख गुने का फ़र्क होता है।
और मुझे नग्न देखने के बाद, तुम फ़िर अक्सर उधर से ही आने लगे। लेकिन तुम इतने शर्मीले थे कि सिर्फ़ मेरी नग्न देह को देखते रहते थे। जबकि तुम्हारे द्वारा सम्भोग किये बिना मैं तुम में प्रेतभाव नहीं डाल सकती थी..तब एक दिन हारकर मैंने ही भगगुहा को सामने करते हुये तुम्हें आमन्त्रण दिया, और पहली बार तुमने मेरे साथ सम्भोग किया..वो कितना सुख पहुँचाने वाला था.. मैं....संजय तुम..अब ..... दिनों ... उसने ... गयी ... कि ... जब .... दिया ....देना..नदी..किनझर..
प्रसून उसकी क्रमबद्ध बात सुनते हुये अन्दर ही अन्दर मुस्करा रहा था।
लेकिन बेचारी शैरी नही जानती थी कि वह उसके बोलने के साथ साथ ही संजय के दिमाग से वह लेखा मिटाता जा रहा था। हालांकि इस प्रयास में उसके नाजुक अंगों से खिलवाङ करते हुये उसे भी उत्तेजना हो रही थी। पर सम्भोग करते ही उसकी असलियत खुल जाती। और तब ऐसी स्थिति में संजय तो मुक्त हो जाता, लेकिन उसकी जगह प्रसून प्रेतभाव से ग्रसित हो जाता।
आखिरकार संयम से काम लेते हुये वह वो पूरी फ़ीडिंग मिटाने में कामयाब हो गया।
शैरी कामभाव प्रस्तुत करती हुयी उसके सामने लेट गयी।
तभी अचानक वह उसे छोङकर उठ खङा हुआ, और बोला कि अभी मैं थकान महसूस कर रहा हूँ। अतः कुछ देर आराम करने के बाद तुम्हें संतुष्ट करता हूँ।
कहकर वह लगभग दस हजार फ़ीट की ऊँचाई वाले उस वृक्ष पर चढ़ गया।
और एक निगाह किंझर को देखते हुये उसने विशाल अंतरिक्ष में नीचे की और छलांग लगा दी।
अब वह बिना किसी प्रयास के प्रथ्वी की तरफ़ जा रहा था। और उसका ये सफ़र लगभग तीन घन्टे में पूरा होना था। जब कि वह बाबाजी की सिद्धगुफ़ा के द्वार पर होता।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।