रविवार, अक्तूबर 16, 2011

जस्सी दी ग्रेट 7



समय!
समय की इस किताब में सदियों से जाने क्या क्या लिखा जाता रहा है । क्या लिखने वाला है, और आगे क्या लिखा जायेगा, ये शायद कोई नहीं जानता है ।
करमकौर को ही सुबह तक ये नहीं मालूम था कि आज उसकी जिन्दगी में एक यादगार पुरुष आने वाला है । न सिर्फ़ यादगार पुरुष, बल्कि यादगार एक एक लम्हा भी, जिसको बारबार संजोने का दिल करे ।
क्या अजीब बात थी । उसे घर की देखभाल के लिये छोङ गयी राजवीर के बारे में सोचना चाहिये था । उसकी बेटी जस्सी के बारे में सोचना चाहिये था । उसे एक पराये पुरुष से अनैतिक सम्बन्ध के पाप के बारे में सोचना चाहिये था । पर ये सभी सोच अब जैसे कहीं गायब ही हो चुकी थी ।
उसके अन्दर की करमकौर मर चुकी थी, और मुक्तभोग की अभिलाषी स्त्री जाग उठी थी । एक वासना से भरी हुयी स्त्री, जिसे सम्बन्ध नहीं सिर्फ़ पुरुष नजर आता है, और ये पुरुष उसे जैसे आज किस्मत की देवी ने मेहरबान होकर उपलब्ध कराया था । तब ये बेशकीमती पल अगर वह पाप पुण्य को सोचने में गुजार देती, तो ना जाने ये पल फ़िर कब उसकी जिन्दगी में आते । आते भी या ना आते, और इसीलिये वह किसी भी हालत में इनको गंवाना नहीं चाहती थी ।
सतीश अनाङी था, औरत से उसका पहले कोई वास्ता नहीं था । पर वह हेविच्युल थी, मेच्योर्ड थी । एक अनाङी था, एक खिलाङिन थी, और ये संयोग बङा अनोखा और दिलचस्प अनुभव वाला था । इसलिये अभी अभी बीते क्षणों को सोचकर ही उसका बदन रोमांचित हो जाता था लेकिन अब उसे कुछ लज्जा सी आ रही थी, और कुछ वह त्रिया चरित्र भी करना चाहती थी, इस तन्हाई के एक एक पल को सजाने के लिये । अतः वह कपङे पहनने लगी ।
तब सतीश अचानक चौंककर बोला - नहाओगी नहीं..भ भाभी?
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यू नाटी.. ब्वाय ! वह उसका कान पकङ कर बोली - पस्त हो रही हूँ मैं । हिम्मत नहीं हो रही, पर नहाना तो चाहती हूँ ।
सतीश के मुँह से चाहत के आवेग से भरी भावना निकल गयी - क्या मैं आपको...।
वह जैसे अचम्भित सी होकर रह गयी । स्त्री पुरुष का सामीप्य अनोखी स्थितियों को जन्म देता है ।
किसी खिलती कली के समान तमाम अनजान कलायें पंखुरियों के समान खुलने लगती है ।
उसने कोई ना नुकुर नहीं की और वे दोनों बाथरूम में आ गये । सतीश की उत्तेजना से वह जान रही थी कि ये कभी न समाप्त होने वाली भूख थी, और अगले कुछ ही क्षणों में वह फ़िर से आनन्दित हो रही थी ।
कुछ समय बाद..रात के नौ बज चुके थे, और वह टीवी के सामने बैठी हुयी फ़िल्मी गीत देख रही थी । कितनी अदभुत बात थी कि पर्दे पर रोमांटिक भाव-भंगिमायें करते हर नायक नायिका में उसे अपनी और सतीश की ही छवि नजर आ रही थी, और आज रात को भी वह भरपूर जीना चाहती थी, क्योंकि शायद ऐसी सुनहली रात उसे जिन्दगी में फ़िर से नसीब न हो । अतः उसने अपने पुष्ट बदन पर सिर्फ़ एक गाउन पहना हुआ था, और उसका भी एक ही बन्द लगाया हुआ था, एक ही बन्द ।
-
ये स्त्री भी अजीब पागल ही होती है । उसने सोचा - सदियों से इसने व्यर्थ ही खुद को अनेक बन्दिशों की बन्द में कैद किया हुआ है, जबकि एक बन्द भी काफ़ी है ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।