रविवार, अक्तूबर 16, 2011

जस्सी दी ग्रेट 17



आसान नहीं होता, ऐसी परिस्थितियों में ठीक से काम करना, और सबको सब कुछ समझा पाना भी आसान नहीं है । किसी विदेशी फ़्री सेक्स धरती की तरह पंजाब में भी कामभावना की लहरें सी बह रही थीं ।
और सबसे बङी बात थी कि वह इस केस में एकदम से कोई प्रभाव भी नहीं छोङ सकता था । कोई झूठे तन्त्र मन्त्र का दिखावा करने से तो उसे वैसे ही नफ़रत थी । फ़िर वह दामाद की तरह इस घर में कब तक ठहरा रह सकता था । जबकि निजी तौर पर उसकी भारी दिलचस्पी इस केस में थी ।
जस्सी उसे खुद को आकर्षित करती थी । गगन कौर बस उसके साथ सेक्स करने के ख्वाब देखती थी । करमकौर तो बस मौका मिलते ही उस पर टूट पङना चाहती थी । हाँ, राजवीर बेकरारी से उस पल के इन्तजार में थी, जब प्रसून इस रहस्य पर से कोई परदा उठायेगा, या कहेगा..तुम्हारी लाङली अब ठीक हो गयी । और जाने किस अज्ञात भावना से उसको ऐसी ही उम्मीद भी थी ।
सिर्फ़ बराङ साहब के लिये उसे लगा था कि वह कोई फ़ालतू का बखेङा खङा कर सकता है, और उसके काम में विघ्न पैदा कर सकता है । उसने एक जवान बेटी का पिता होने के नाते प्रसून को संदेह की नजर से देखा भी था । लेकिन यह क्षणिक भावना ही साबित हुयी थी ।
प्रसून की किसी को भी सम्मोहित कर देने वाली जादुई पर्सनालिटी से अगले दो मिनट में ही वह खुद को उसके आगे बौना महसूस करने लगा था, और उसकी अमीरी का रौब पल भर में चूर चूर हो गया था । जब उसे इस लङके की हस्ती पता लगी । वैसे भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके बताने से नहीं, स्वयँ उसकी आभा से झलकता है ।
जब उसे पता लगा कि प्रसून कीट वैज्ञानिक है, और उसका एक पाँव रूस में, तो दूसरा योरोप में अक्सर रहता है । जब उसने औपचारिकता वश ही अपने शेयर बिजनेस और रिसर्च वर्क के बारे में बहुत संक्षिप्त सा परिचय दिया, तो बराङ साहब को हिसाब लगाना मुश्किल हो गया कि इसकी आमदनी कितनी हो सकती है ।
उसने उसकी आलीशन कोठी और वैभव पर एक मामूली सी निगाह डालना भी उचित नहीं समझा था । उसने उसकी आलीशान बेटी को भरपूर देखना तो दूर, अभी देखने की ही कोई कोशिश नहीं की थी । जबकि वह दस बार उसके सामने आ जा चुकी थी । यह सब अनुभव किसी इंसान के प्रति होना बराङ की जिन्दगी में पहला वाकया था ।
वह कुछ ही देर पहले आया था, और औपचारिक रूप से भावहीन हल्लो बोलकर अपने पास से एक मैगजीन निकालकर उसे पढ़ने लगा था । क्योंकि अभी बातचीत शुरू नहीं हुयी थी, और राजवीर उसके स्वागत में नाश्ता आदि इन्तजाम में लगी हुयी थी ।
और ये सब घोर अहंकारी बराङ साहब के जीवन में पहली बार हो रहा था । जब वह अपने ही घर में अपने तमाम रौब दाब के बाबजूद भी उस लङके के आगे खुद को बेहद छोटा महसूस कर रहा था, और उससे कोई बातचीत कर पाने में उसकी खुद की जबान ही अटक जाती थी, शब्द बाहर नहीं आते थे । मगर प्रसून को जैसे उसकी उपस्थिति का अहसास तक नहीं था ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।