रविवार, अक्तूबर 16, 2011

जस्सी दी ग्रेट 8


अंधेरा!
अंधेरा राजवीर के घर में भी फ़ैला हुआ था । वह बाथरूम से फ़ारिग हो चुकी थी, और अचानक ही बिना किसी भावना के खिङकी के पास आकर खङी हो गयी । तभी अक्समात ही उसे हल्का हल्का सा चक्कर आने लगा, और पूरा घर उसे गोल गोल सा घूमता हुआ प्रतीत हुआ ।
कमरा, बेड, टीवी, सोफ़ा, उसका बच्चा, स्वयँ वह, सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । सब कुछ मानों एक तूफ़ानी चक्रवात में घिर चुका हो, और अपने ही दायरे में गोल गोल घूम रहा हो । फ़िर उसे लगा, एक तेज तूफ़ान भांय भांय सांय सांय करता हुआ आ रहा है, और फ़िर सब कुछ उङने लगा । घर, मकान, दुकान, शहर, धरती, आसमान, लोग, वह, राजवीर सभी तेजी से उङ रहे हैं, और बस उङते ही चले जा रहे हैं ।
और फ़िर यकायक उसकी आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह भयंकर तेज तूफ़ान उसे उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ, और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी । घबराकर वह जंगल में भागने लगी । पर क्यों, और कहाँ भाग रही हैं, ये उसको मालूम न था ।
बिजली बारबार जोरों से कङकती थी, और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था । भयानक मूसलाधार बारिश हो रही थी, और फ़िर वह एक दरिया में फ़ँसकर उतराती हुयी बहने लगी ।
तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । वह उसकी ओर जोर जोर से ‘बचाओ’ कहती हुयी चिल्लाई, और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी । फ़िर उसका सिर बहुत जोर से चकराया, और वह ‘बचाओ बचाओ’ चीखती हुयी लहराकर गिर गयी ।
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- क्या । राजवीर उछलकर बोली - क्या कह रही है तू, क्या सच में ऐसा हुआ था?
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मेरा यकीन कर, राजवीर.. तू मेरा यकीन कर । करमकौर घबराई हुयी सी बोली - मुझे तो तेरे इसी घर में कोई भूत प्रेत का चक्कर मालूम होता है, समझ ले मरते मरते बची हूँ मैं । तेरे जाने के बाद सारा दिन मैं तेरे लिये दुआयें ही करती रही । पूजा पाठ के अलावा किसी बात में मन ही नहीं लगा । रात बारह बजे तक तो मुझे जैसे चैन ही नसीब नहीं हुआ । जिन्दगी में इतना दर्द, एक साथ मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया । पर नींद ऐसी होती है कि सूली पर लटके इंसान को भी आ ही जाती है, सो दिन भर की सूली चढ़ी हुयी मैं बेचारी करमकौर अभी ठीक से नींद की झप्पी ले भी नहीं पायी थी कि अचानक मेरी आँख खुल गयी, और मुझे बाथरूम जाना हुआ ।
बस उसके बाद मैं यहाँ खिङकी से आयी ..तू यकीन कर राजवीर तब यहाँ खिङकी के बाहर तेरा । उसने उँगली दिखाई - ये घर नहीं था, कोई दूसरी ही दुनियाँ थी, भयानक जंगल था, एक ऐसा जादुई जंगल, जिसमें जाते ही मैं नग्न हो गयी, और जैसे किसी अज्ञात भय से भाग रही थी ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।