रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 15




- क्यों पढ़ रहे हो ये घटिया, वल्गर, चीप, अश्लील, पोर्न, सेक्सी, कामुक, सस्ती सी वाहियात कहानी । मनोज सीधे नितिन की आँखों में भावहीनता से देखता हुआ बोला - यही शब्द देते हो ना तुम, ऐसे वर्णन को । पाखण्डी पुरुष, तुम भी तो उसी समाज का हिस्सा हो, जहाँ इसे घटिया, अनैतिक, वर्जित, प्रतिबंधित, हेय मानते हैं । फ़िर क्या रस आ रहा है, तुम्हें इस कहानी में ।..गौर से सोचो, तुम उसी ईडियट सोसाइटी का अटूट हिस्सा हो । उसी मूर्ख दोगले समाज का अंग हो, जहाँ दिमाग में तो यही सब भरा है । हर छोटे बङे की चाहत यही है, पर बातें उच्च सिद्धांतों, आदर्श और नैतिकता की है ।
बङे भाई ! किसी मेमोरी चिप की तरह यदि ब्रेन चिप को भी पढ़ा जा सकता, तो हर पुरुष नंगा हो जाता, और हर स्त्री नंगी । हर स्त्री की चिप में नंगे पुरुषों की फ़ाइलें ओपन होती, और हर पुरुष की चिप में खुलती, बस नंगी औरत । प्यास ..अतृप्त ।
एक बार फिर से नितिन हैरान रह गया ।
उसकी इस मानसिकता को क्या शब्द दे ।
ब्रेन वाशिंग, या ब्रेन फ़ीडिंग, या कोई सम्मोहन, या उस कयामत स्त्री का जादू, या रूप का वशीकरण, या स्त्री पुरुष के रोम रोम में समायी स्त्री पुरुष की अतृप्त चाहत, या फ़िर एक महान सच । 
- ..नोज..कैसा लग ..रहा है । वह थरथराती आवाज में बोली - तुम्हें..आऽ..तुम मारे दे रहे हो । उऽ आनन्द है ।
- अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः । फिर ठीक उसी समय, उन कामुक पलों में मनोज के दिमाग में भूतकाल की पदमा की आकृति उभरी । साङी का पल्लू कमर में खोंसे हुये वह नजाकत से खङी हो गयी, और बोली - इनको स्वर कहते हैं । हर बच्चे को शुरू से यही सिखाया जाता है । पढ़ाई का पहला वास्ता इन्ही से है, पर तुम इनका असली रहस्य जानते हो ?
स्वर यानी आवाज । ध्वनि, कामध्वनि, सीत्कार, अतृप्त शब्द..अतृप्त ।
नहीं समझे । फ़िर से उसकी पतली भौंहरेख किसी तीर का लक्ष्य साधते हुये कमान की तरह ऊपर नीचे हुयी - एक सुन्दर, इठलाती, मदमदाती औरत के मुख से इन स्वर अक्षरों की संगीतमय अन्दाज में कल्पना करो । जैसे वह आनन्द में सिसकियाँ भर रही हो । अऽ आऽ इऽ ईऽ उऽ ऊऽ ओऽ देखोऽ..वह महीन मधुर झनकार सी झनझन होती हुयी बोली - हर अक्षर को कामरस से सराबोर कर दिया गया है न । सोचो क्यों ?.. काम ।.. काम ही तो हमारे शरीर में बिजली सा दौङता है । हाँ, जन्म से ही, पर हम समझ नहीं पाते । इन स्वर ध्वनियों में वही उमगता काम ही तो गूँज रहा है ।
काम सिर्फ़ काम..अतृप्त ।
फ़िर इन्ही शब्दों के आधार पर व्यंजन रूप ध्वनि बनती है । क, ख में अ और वासना वायु की गूंज है या नहीं । बस थोङा सा ध्यान से देखो, फ़िर इन कामस्वर और व्यंजन के मधुर मिलन से इस सुन्दर संसार की रचना होती है । गौर से देखो, तो ये पूरा रंगीन मोहक संसार, इसी छोटी सी वर्णमाला में समाहित है न ।
प्यास .. प्यास .. अतृप्त ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।