रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 24



बस उसमें एक बात वाकई अलग थी । उन्मुक्त सौन्दर्य युक्त, उन्मुक्त यौवन ।
वह आम औरतों की तरह किसी जवान लङके, पुरुष के सामने होने पर बारबार अपने सीने को ढांकने का फ़ालतू दिखावा नहीं करती थी, या इसके उलट उसमें अनुराग दिखाते हुये स्तनों को उभारना, जैसी क्रियायें भी नहीं करती थी । जो काम से अतृप्त औरत के खास लक्षण होते हैं । और ठीक इसके विपरीत, किसी के प्रति कोई चाहत प्रदर्शन करते हुये, अर्धनग्न वक्षों की झलक दिखाकर, काम संकेत देना भी उसका आम लङकियों, स्त्रियों जैसा स्वभाव नहीं था ।
वह जैसी स्थिति में होती थी, बस होती थी । वह न कभी कुछ अलग से दिखाती थी, न कुछ छिपाती थी । सहज सामान्य, जैसी है, है ।
लचकती मचकती हरी भरी फ़ूलों की डाली, अनछुआ सा नैसर्गिक सौन्दर्य ।
उसको इस तरह जानना, देखने में ये सामान्य अनावश्यक सी बात लगती है । पर किसी का स्वभाव, चरित्र ज्ञात हो जाने पर उसे आगे जानना आसान हो जाता है, और वह यही तो जानने आया था ।
इसके साथ साथ, आज दिन में उसकी एक पहेली और भी हल हुयी थी । जब वह गली के आगे चौराहे से सिगरेट खरीदने गया था ।
उसने एक सिगरेट सुलगायी थी, और मनोज के घर के ठीक सामने खङा था ।
तब उसकी निगाह गली के अन्तिम छोर तक गयी । अन्तिम छोर पर गली बन्द थी ।
यह देखते ही उसके दिमाग को एक झटका सा लगा ।
स्वतः ही उसकी निगाह मनोज के घर पर ऊपर से नीचे तक गयी ।
उस घर की बनावट आम घरों की अपेक्षा किसी गोदाम जैसी थी, और वह हर तरफ़ से बन्द सा मालूम होता था ।
- बन्द गली । उसे भूतकाल से आते मनोज के शब्द सुनाई दिये - बन्द घर, जमीन के नीचे, अंधेरा बन्द कमरा ।
- हा हा हा । तभी उसके दिमाग में भूतकाल में जोगी बोला - बन्द गली, बन्द घर, जमीन के नीचे, अंधेरा बन्द कमरा..हा हा हा, एकदम सही पता ।
- बन्द गली, बन्द घर तो हुआ । उसने सोचा - अब जमीन के नीचे, अंधेरा बन्द कमरा । लेकिन कहाँ है, वो कमरा ?


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।