रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 7


रात के दस बजने वाले थे ।
बादलों से फ़ैला अंधेरा कब का छँट चुका था, और नीले आसमान में चाँद निकल आया था । उस शमशान में दूर दूर तक कोई भी रात्रिचर जीव नजर नहीं आ रहा था । सिर्फ़ सिर के ऊपर उङते चमगादङों की सर्र सर्र कभी कभी उन्हें सुनाई दे जाती थी । बाकी भयानक सन्नाटा ही सांय सांय कर रहा था ।
मनोज अब काफ़ी सामान्य हो चुका था, और बिलकुल शान्त था ।
लेकिन अब नितिन के मन में भयंकर तूफ़ान उठ रहा था ।
क्या बात को यूँ ही छोङ दिया जाये । इसके घर, या अपने घर चला जाये, या घर चला ही नहीं जाये । यहीं, या फ़िर और कहीं, वह सब जाना जाये, जो इस लङके के दिल में दफ़न था । यदि वह मनोज को यूँ ही छोङ देता, तो फ़िर पता नहीं वह कहाँ मिलता, मिलता भी, या नहीं मिलता । आगे क्या कुछ होने वाला था, ऐसे ढेरों सवाल उसके दिलोदिमाग में हलचल कर रहे थे ।
- बस हम तीन लोग ही हैं घर में । मनोज फिर बिलकुल सामान्य होकर बोला - मैं, मेरा भाई, और मेरी भाभी ।
वे दोनों वापस पुल पर आ गये थे, और पुल की रेलिंग से टिके बैठे थे ।
यह वही स्थान था, जहाँ नीचे बहती नदी से नितिन उठकर उसके पास गया था, और जहाँ उसका वेस्पा स्कूटर भी खङा था ।
आज क्या ही अजीब सी बात हुयी थी । उन्हें यहाँ आये कुछ ही देर हुयी थी, और ये बहुत अच्छा था कि वह काली छाया यहाँ तक उनके साथ नहीं आयी थी । बस कुछ दूर पीछे चलकर अंधेरे में चली गयी थी । यहाँ बारबार आसपास ही महसूस होती अदृश्य रूहें भी नहीं थी, और सबसे बङी बात जो उसे राहत पहुँचा रही थी ।
मनोज यहाँ एकदम सामान्य व्यवहार कर रहा था ।
उसके बोलने का लहजा शब्द आदि भी सामान्य थे ।  
फ़िर वहाँ क्या बात थी ? क्या वह किसी अदृश्य प्रभाव में था ।
किसी जादू टोने, किसी सम्मोहन, या ऐसा ही और कुछ अलग सा ।
- फ़िर क्या हुआ ? जब देर तक नितिन अपनी उत्सुकता रोक न सका, तो अचानक स्वतः ही उसके मुँह से निकला - उसके बाद क्या हुआ ?
- कब ? मनोज हैरानी से बोला - कब क्या हुआ, मतलब ?
नितिन के छक्के छूट गये ।
क्या वह किसी ड्रग्स का आदी था, या कोई प्रेत रूह, या कोई शातिर इंसान ।
अब उसके इस ‘कब’ का वह क्या उत्तर देता, सो चुप ही रह गया ।
- मुझे अब चलना चाहिये । अचानक मनोज उठता हुआ बोला - रात बहुत हो रही है, तुम्हें भी घर जाना होगा ।
कहकर वह तेजी से एक तरफ़ बढ़ गया ।
- अरे सुनो सुनो । नितिन हङबङा कर जल्दी से बोला - कहाँ रहते हो आप, मैं छोङ देता हूँ । सुनो भाई एक मिनट.. मनोज, तुम्हारा एड्रेस क्या है ?
- बन्द गली । उसे दूर से आते मनोज के शब्द सुनाई दिये - बन्द घर, जमीन के नीचे, अंधेरा बन्द कमरा ।
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- हा हा हा । मनसा जोगी ने भरपूर ठहाका लगाया -  बन्द गली, बन्द घर, जमीन के नीचे, अंधेरा बन्द कमरा । हा हा..एकदम सही पता ।
नितिन एकदम हैरान रह गया ।
अक्सर गम्भीर सा रहने वाला उसका तांत्रिक गुरु खुलकर हँस रहा था ।
और उसके चेहरे पर रहस्यमय मुस्कान खेल रही थी ।
मनसा जोगी कुछ कुछ काले से रंग का, विशालकाय काले पहाङ जैसा, भारी भरकम इंसान था, और कोई भी उसको देखने सुनने वाला, धोखे से गोगा कपूर समझ सकता था । बस उसकी एक आँख छोटी और सिकुङी हुयी थी, जो उसकी भयानकता में वृद्धि करती थी ।
मनसा बहुत समय तक अघोरियों के सम्पर्क में उनकी शिष्यता में रहा था, और मुर्दा शरीरों पर शवसाधना करता था ।
पहले उसका झुकाव पूरी तरह तामसिक शक्तियों के प्रति था, लेकिन भाग्यवश उसके जीवन में यकायक बदलाव आया, और वह उसके साथ साथ द्वैत की छोटी सिद्धियों में हाथ आजमाने लगा ।
अघोर के उस अनुभवी को उम्मीद से पहले सफ़लता मिलने लगी, और उसके अन्दर का सोया इंसान जागने लगा ।
तब ऐसे ही किन्ही क्षणों में नितिन से उसकी मुलाकात हुयी, जो एकान्त स्थानों पर घूमने की आदत से हुआ महज संयोग भर था ।
मनसा जोगी शहर से बाहर थाने के पीछे टयूबवैल के पास घने पेङों के झुरमुट में एक कच्चे से बङे कमरे में रहता था ।
कमरे के आगे पङा बङा सा छप्पर उसके दालान का काम करता था । जिसमें अक्सर दूसरे साधु बैठे रहते थे ।
नितिन को रात भर ठीक से नींद नहीं आयी थी ।
तब वह सुबह इसी आशा में चला आया था कि मनसा शायद कुटिया पर ही हो, और संयोग से वह उसे मिल भी गया था ।
वह भी बिलकुल अकेला ।
इससे नितिन के उलझे दिमाग को बङी राहत मिली थी ।
पूरा विवरण सुनने के बाद जब मनसा एड्रेस को लेकर बेतहाशा हँसा, तो वह सिर्फ़ भौंचक्का सा उसे देखता ही रह गया ।
- भाग जा बच्चे । मनसा रहस्यमय अन्दाज में उसको देखता हुआ बोला -  ये साधना, सिद्धि, तन्त्र, मन्त्र बच्चों के खेल नहीं, इनमें दिन रात ऐसे ही झमेले हैं । इसलिये अभी भी समय है । दरअसल ये वो मार्ग है, जिस पर जाना तो आसान है, पर लौटने का कोई विकल्प नहीं है ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।