रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 12



- सुनो बङे भाई ! फिर मनोज उसकी तरफ़ देखता हुआ बोला - मैंने अब तक जो भी कहा । उसमें तुम ऐसा एक भी शब्द बता सकते हो । जो झूठा हो, असत्य हो, जिसकी बुनियाद न हो । इसीलिये मैं कहता हूँ कि ये दुनियाँ साली एक पाखण्ड है । एक झूठ रूपी, बदबू मारते हुये कूङे का ढेर जैसी । ये जिस जीने को जीना कहती है, वह जीना जीना नहीं, एक गटर लाइफ़ है । जिसमें बिजबिजाते कीङे भी अपने को श्रेष्ठ समझते हैं ।
जैसे ठीक उल्टा हो रहा था, खरबूजा छुरी को काटने पर आमादा था ।
वह उसका इलाज करना चाहता था । यह लङका खुद उसका इलाज किये दे रहा था ।
उसकी सोच झटका सा खाने लगी थी, और उसकी विचारधारा जैसे चेंज ही हो जाना चाहती थी ।
आज जिन्दगी में वह खुद को कितना बेबस महसूस कर रहा था ।
क्योंकि वह इस कहानी को अधूरा भी नहीं छोङ सकता था, और पूरी कब होगी, उसे कोई पता न था । होगी भी, या नहीं होगी, ये भी नहीं पता । उसकी कोई भाभी है, नहीं है । कहाँ है, कैसी है, कुछ पता नहीं । देखना नसीब होगा, नहीं होगा । आगे क्या होगा, कुछ भी पता नहीं । क्या कमाल का लेखक था इसका । कहानी न पढ़ते बनती थी, न छोङते बनती थी । बस सिर्फ़ जो आगे हो, उसको जानते जाओ ।
- लेकिन, तुम एक औरत को कभी नहीं जान सकते मनोज । पदमा उसका हाथ अपने हाथ में लेकर सहलाती हुयी बोली - जब तक कि वह खुद न चाहे, कि तुम उसे जानो, और कितना जानो । किसी औरत को ऐसा नंगा करना असंभव है, उसके पति के लिये भी । वह जिसको पूर्ण समर्पित होती है, बस उसी के लिये नंगी होती है, दूसरा कोई उसे कभी नंगी कर ही नहीं सकता ।
उसका हाथ सहलाते हुये पदमा ने अपने वक्ष से सटा लिया और घुटना उठाकर मोङा ।
उसकी सिल्की मैक्सी घुटने से नीचे सरक गयी, बस फ़िर वह मुर्दा सी होकर रह गयी ।
अपनी हथेली से सटे उसके वक्षों से निकलती उर्जा तरंगें, मनोज के जिस्म में एक नयी अनुभूति का संचार करने लगी । वह अनुभूति, जिसकी उसने आज तक कल्पना भी नहीं की थी । मात्र एक निष्क्रिय रखा हाथ, स्त्री के सिर्फ़ स्पर्श से ऐसी सुखानुभूति करा सकता है, शायद बिना अनुभव के वह कभी सोच तक नहीं पाता ।
- भूल जाओ.. भूल जाओ, अपने आपको । उसे आँख बन्द किये पदमा की बुदबुदाती सी धीमी आवाज सुनाई दी - भूल जाओ कि तुम क्या हो, भूल जाओ कि मैं क्या हूँ, जो होता है, उसे होने दो । उसे रोकना मत ।
एक विद्युत प्रवाह सा निरन्तर उसके शरीर में दौङ रहा था ।
उसके अस्फ़ुट शब्दों में एक जादू सा समाया था । वह वास्तव में ही खुद को भूलने लगा ।
उसे भाभी भी नजर नहीं आ रही थी । पदमा भी नजर नही आ रही थी, पदमिनी नायिका भी नहीं । और कोई औरत भी नहीं, बस एक प्राकृतिक मादक सा संगीत उसे कहीं दूर से आता सा प्रतीत हो रहा था - प्यास ..अतृप्त ..अतृप्त ।
स्वतः ही उसके हाथ, उंगलियाँ, शरीर सब कुछ हलचल में आ गये ।
- आऽ..! उस जीते जागते मयखाने बदन से मादक स्वर उठे - .. प्यास .. अतृप्त ..
- सोचो बङे भाई । मनोज ऊपर पीपल को देखता हुआ बोला - इसमें क्या गलत था ? कोई जबरदस्ती नहीं । यदि अच्छा न लग रहा हो, तो अभी भी कहानी पढ़ना सुनना बन्द कर सकते हो । पढ़ना मैंने इसलिये कहा, क्योंकि ये कहानी तुम्हारे अन्दर उतरती जा रही है । इसलिये तुम मेरे बोले को, लिखे की तरह, सुनने द्वारा पढ़ ही तो रहे हो ।
- छोङो मुझे । अचानक तभी पदमा उसे चौंकाती हुयी तेजी से उठी । उसने झटके से उसका हाथ हटाया, और बोली ये सब गलत है, मैं तुम्हारी भाभी हूँ । ये अनैतिक है, पाप है, हमें नरक होगा ।
नितिन भौंचक्का रह गया ।
अजीब औरत थी, ये लङका पागल होने से कैसे बचा रहा ।
जबकि वह सुनकर ही पागल सा हो रहा था ।
वास्तव में वह सही कह रहा था - कोई जबरदस्ती नहीं । यदि अच्छा न लग रहा हो, तो अभी भी कहानी पढना सुनना बन्द कर सकते हो । और उसे समझ में ही नहीं आ रहा था, कि कहानी अच्छी है, या बुरी । वह सुने, या न सुने ।
- चौंको मत मनोज ! वह कजरारे नयनों से उसे देखकर बोली क्योंकि अब ये मैं हूँ तुम्हारी भाभी, पदमिनी पदमा । फ़िर वह कौन थी, जो मादक आंहें भर रही थी, और सोचो, ये तुम हो, लेकिन फिर अभी अभी रस लेने वाला वह कौन था ? दरअसल ये सब हो रहा है । जो अभी अभी हुआ, वो खुद ही हुआ न । न मैंने किया, न तुमने किया, खुद हुआ, बोलो हुआ कि नहीं ?
लेकिन अब हमारे सामाजिक, नैतिक बोध फ़िर से जाग्रत हो उठे ।
सिर्फ़ इतनी ही बात के लिये मुझे घोर नर्क होगा, तुम्हें भी होगा । फ़िर वहाँ हम दोनों को तप्त लौह की दहकती विपरीत लिंगी मूर्तियों से सैकङों साल लिपटाया जायेगा । क्योंकि मैंने परपुरुष का सेवन किया है, और तुमने माँ समान भाभी का, और ये धार्मिक कानून के तहत घोर अपराध है । लेकिन मैं तुमसे पूछती हूँ कि जब तुम मेरा यौवन रसपान कर रहे थे, और मैं आनन्द में डूबी थी । तब क्या वहाँ कोई पदमा मौजूद थी, या कोई भाभी थी । तब क्या वहाँ कोई मनोज मौजूद था, या कोई देवर था । वहाँ थे, तो  सिर्फ़ एक स्त्री, और एक पुरुष । एक दूसरे में समा जाने को आतुर । प्यासे......अतृप्त । फ़िर हमें सजा किस बात की, हमें नरक क्यों ?
उसे बहुत बुरा लग रहा था । ये अचानक उस बेरहम ने क्या कर दिया । वह बेखुद सा मस्ती में बहा जा रहा था । वह सोचने लगा था कि वो उसको पूर्ण समर्पित है, पर यकायक ही उसने कैसा तिलिस्मी रंग बदला था ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।