रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 5



मध्यप्रदेश ।
मध्य भारत का एक राज्य । राजधानी भोपाल ।
यह प्रदेश क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बडा राज्य था, लेकिन इस राज्य के कई नगर उससे हटा कर छत्तीसगढ़ बना दिया गया । इस प्रदेश की सीमायें महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान से मिलती है ।
मध्यप्रदेश के तुंग उतुंग पर्वत शिखर, विन्ध्य सतपुड़ा, मैकल कैमूर की उपत्यिकाओं के अन्तर से गूँजती अनेक पौराणिक कथायें नर्मदा, सोन, सिन्ध, चम्बल, बेतवा, केन, धसान, तवा, ताप्ती आदि नदियों के उदगम और मिलन की कथाओं से फूटती हजारों धारायें यहाँ के जीवन को हरा भरा कर तृप्त करती हैं ।
निमाड़ मध्यप्रदेश के पश्चिमी अंचल में आता है ।
इसकी भौगोलिक सीमाओं में एक तरफ़ विन्ध्य की उतुंग पर्वत श्रृंखला और दूसरी तरफ़ सतपुड़ा की सात उपत्यिकाएँ हैं, और मध्य में बहती है नर्मदा की जलधार ।
पौराणिक काल में निमाड़ अनूप जनपद कहलाता था, बाद में इसे निमाड़ कहा गया ।
इसी निमाङ की अमराइयों में तब कोयल की कूक गूंजने लगी थी । पलाश के फूलों की लाली फ़ैल रही थी । होली का खुमार सिर चढ़कर बोल रहा था, और मधुर गीतों की गूँज से निमाङ चहक रहा था ।
दिल में ढेरों रंग बिरंगे अरमान लिये, रंग बिरंगे ही वस्त्रों में सजी सुन्दर युवतियों के होंठ गुनगुना रहे थे - म्हारा हरिया ज्वारा हो कि, गहुआ लहलहे मोठा हीरा भाई वर बोया जाग ।
और इसी रंग बिरंगी धरती पर वह रूप की रानी पदमा, आँखों में रंग बिरंगे सपने सजाये, जैसे सब बन्धन तोङ देने को मचल रही थी । उसकी छातियों में मीठी मीठी कसक थी, और उसके दिल में एक अजीब अनजान सी हूक थी ।
- आज की रात । नितिन ने सोचा - इसी वीराने में बीतने वाली थी । कहाँ का फ़ालतू लफ़ङा उसे आ लगा था । साँप के मुँह में छछूँदर, न निगलते बने न उगलते ।
- पर मेरे दोस्त । मनोज फ़िर से बोला - जिन्दगी किसी हसीन ख्वाब जैसी नहीं होती, कभी नहीं होती । जिन्दगी की ठोस हकीकत कुछ और ही होती है ? कुछ और ही ।
यकायक नितिन उकताने सा लगा ।
वह उठ खङा हुआ, और फ़िर बिना बोले ही चलने को हुआ ।
मनोज ने उसे कुछ नहीं कहा, और तमंचा कनपटी से लगा लिया - ओके मेरे अजनबी दोस्त, अलविदा ।
आ बैल मुझे मार, जबरदस्ती गले लग जा । शायद इसी के लिये कहा गया है ।
हारे हुये जुआरी की तरह वह फ़िर से बैठ गया ।
मनोज ने एक सिगरेट निकाल कर सुलगा ली ।
नितिन खामोशी से उस छाया को ही देखता रहा ।
- लेकिन मैं शर्मिन्दा नहीं हूँ । पदमा सहजता से बोली - अभी भी नहीं हूँ । अभी अभी तुमने कहा कि मुझे देखना तुम्हें भाता है, फ़िर बताओ..क्यों ? बोलो बोलो ।
ऐसे ही मैं भी तुमको बहुत निगाहों से देखती हूँ । अगर तुम्हारे दिल में कुछ कामरस सा जागता है, तो फ़िर मेरे दिल में क्यों नहीं ? और वैसे भी देवर भाभी का सम्बन्ध अनैतिक नहीं है । देवर को ‘द्वय वर’ कहा गया है, दूसरा वर । यह एक तरह से समाज का अलिखित कानून है, देवर भाभी के शरीरों का मिलन हो सकता है ।
मनोज शायद तुम्हें मालूम न हो, क्योंकि दुनियादारी के मामले में तुम अभी बच्चे हो । अगर किसी स्त्री को उसके पति से औलाद न होती हो, तो उसकी निर्बीज जमीन में प्रथम देवर ही बीज डालता है । उसके बाद कुछ परिस्थितियों में जेठ भी । और जानते हो, ऐसा हमेशा घर वालों की मर्जी से उनकी जानकारी में होता है । वे कुँवारे या शादीशुदा देवर को प्रेरित करते हैं कि वह भाभी की उजाङ जिन्दगी में खुशियों की फ़सल लहलहा दे ।
नितिन के दिमाग में विस्फ़ोट सा हुआ, कैसा अजीब संसार है यह ।
शायद यहाँ बहुत कुछ ऐसा विचित्र है, जिसको उस जैसे लोग कभी नहीं जान पाते ।
तन्त्रदीप से शुरू हुयी उसकी मामूली प्रेतक जिज्ञासा इस लङके के दिल में घुमङते कैसे तूफ़ान को सामने ला रही थी ।
उसने सोचा तक न था । सोच भी न सकता था ।
- शब्द । वह तमंचा जमीन पर रखता हुआ बोला शब्द, और शब्दों का कमाल । हैरानी की बात थी कि भाभी के शब्द आज मुझे जहर से लग रहे थे । उसके चुलबुले पन में मुझे एक नागिन नजर आ रही थी । उसके बेमिसाल सौन्दर्य में मुझे डायन नजर आ रही थी, एक खतरनाक चुङैल, मुझे.. । अचानक बीच में जैसे उसे कुछ याद सा आया - एक बात बताओ तुम भूत प्रेतों में विश्वास करते हो । मेरा मतलब भूत होते हैं, या नहीं होते हैं ?
नितिन ने एक सिहरती सी निगाह काली छाया पर डाली ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।