- कमाल के आदमी हो भाई । मनोज उसे हैरानी से देखता हुआ बोला - क्या करने आते हो इस मनहूस शमशान में, जहाँ कोई मरने
के बाद भी आना पसन्द न करे, पर आना उसकी मजबूरी है । क्योंकि
आगे जाने के लिये गाङी यहीं से मिलेगी ।
- यही बात । अबकी वह सतर्कता से बोला - मैं आपसे भी पूछ सकता हूँ । क्या करने आते हो इस मनहूस शमशान में, जहाँ कोई मरने के बाद भी आना पसन्द न करे ।
ये चोट मानों सीधी उसके दिल पर लगी ।
- यही बात । अबकी वह सतर्कता से बोला - मैं आपसे भी पूछ सकता हूँ । क्या करने आते हो इस मनहूस शमशान में, जहाँ कोई मरने के बाद भी आना पसन्द न करे ।
ये चोट मानों सीधी उसके दिल पर लगी ।
वह बैचेन सा हो गया, और कसमसाता हुआ पहलू बदलने लगा ।
- दरअसल मेरी समझ में नहीं आता । आखिर वह सोचता हुआ सा बोला - क्या बताऊँ, और कैसे बताऊँ । मेरे परिवार में मैं, मेरी भाभी, और मेरा भाई हैं । हमने कुछ साल पहले एक नया घर खरीदा है । सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि अचानक कुछ अजीब सा घटने लगा, और उसी के लिये मुझे समझ नहीं आता कि मैं किस तरह के शब्दों का प्रयोग करूँ । जो अपनी बात ठीक उसी तरह कह सकूँ, जैसे वह होती है, पर मैं कह नहीं पाता ।
- दरअसल मेरी समझ में नहीं आता । आखिर वह सोचता हुआ सा बोला - क्या बताऊँ, और कैसे बताऊँ । मेरे परिवार में मैं, मेरी भाभी, और मेरा भाई हैं । हमने कुछ साल पहले एक नया घर खरीदा है । सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि अचानक कुछ अजीब सा घटने लगा, और उसी के लिये मुझे समझ नहीं आता कि मैं किस तरह के शब्दों का प्रयोग करूँ । जो अपनी बात ठीक उसी तरह कह सकूँ, जैसे वह होती है, पर मैं कह नहीं पाता ।
ये दीपक..उसने दीप की तरफ़ इशारा किया - एक प्रेत उपचार जैसा बताया गया है । लेकिन वास्तव में मुझे नहीं पता कि
इसका सत्य क्या है ? यहाँ शमशान में, खास
इस पीपल के वृक्ष के नीचे कोई दीपक जला देने से भला क्या हो सकता है, मेरी समझ से बाहर है । पर उस तांत्रिक भगत ने आश्वासन यही दिया है कि इससे हमारे घर का अजीब सा माहौल खत्म हो जायेगा
।
- क्या अजीब सा ? नितिन यूँ ही सामने दूर तक देखता हुआ बोला ।
- कुछ सिगरेट वगैरह है तुम्हारे पास ? अचानक वह अजीब सी बैचेनी महसूस करता हुआ बोला ।
उसने आज एक बात अलग की थी । वह अपना स्कूटर ही यहीं ले आया था, और उसी की सीट पर आराम से बैठा था । शायद कोई रात उसे पूरी तरह वहीं बितानी पङ जाये । इस हेतु उसने बैटरी से एक छोटा बल्ब जलाने का खास इंतजाम अपने पास कर रखा था, और सिगरेट के एक्स्ट्रा पैकेट का भी ।
उसने पैकेट मनोज की तरफ बढ़ा दिया ।
- क्या अजीब सा ? नितिन यूँ ही सामने दूर तक देखता हुआ बोला ।
- कुछ सिगरेट वगैरह है तुम्हारे पास ? अचानक वह अजीब सी बैचेनी महसूस करता हुआ बोला ।
उसने आज एक बात अलग की थी । वह अपना स्कूटर ही यहीं ले आया था, और उसी की सीट पर आराम से बैठा था । शायद कोई रात उसे पूरी तरह वहीं बितानी पङ जाये । इस हेतु उसने बैटरी से एक छोटा बल्ब जलाने का खास इंतजाम अपने पास कर रखा था, और सिगरेट के एक्स्ट्रा पैकेट का भी ।
उसने पैकेट मनोज की तरफ बढ़ा दिया ।
अगले कुछ ही मिनटों में जैसे फिर से नशा उस पर हावी होने लगा, और वह अतीत की गहराइयों में डूब गया । जहाँ वह था, और उसकी भाभी थी ।
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सुबह के ग्यारह बजने वाले थे ।
पदमा काम से फ़ारिग हो चुकी थी । वह अपने पति अनुराग के आफ़िस चले जाने के बाद
सारा काम निबटा कर नहाती थी । उतने समय तक मनोज पढ़ता रहता, और उसके घरेलू कार्यों में भी हाथ बँटा देता ।
उसके नहाने के बाद दोनों साथ साथ खाना खाते । दोनों के बीच एक अजीब सा रिश्ता
था, अजीब सी सहमति थी, अजीब
सा प्यार था, अजीब सी भावना थी ।
जो कामवासना भी थी, और बिलकुल नहीं भी थी ।
पदमा ने बाथरूम में घुसते हुये कनखियों से मनोज को देखा ।
पदमा ने बाथरूम में घुसते हुये कनखियों से मनोज को देखा ।
एक चंचल, शोख, रहस्यमय मुस्कान
उसके होठों पर तैर उठी ।
उसने बाथरूम का दरवाजा बन्द नहीं किया,
और सिर्फ़ हल्का सा पर्दा ही डाल दिया ।
पर्दा, जो मामूली हवा के झोंके से उङने लगता था ।
तभी आंगन में कुर्सी पर बैठकर पढ़ते हुये मनोज का ध्यान अचानक भाभी की मधुर गुनगुनाहट हु हु हूँ हूँ आऽ आऽ पर गया । वह किताब में इस कदर खोया हुआ था कि उसे पता ही नहीं था कि भाभी कहाँ है, और क्या कर रही है ?
तभी आंगन में कुर्सी पर बैठकर पढ़ते हुये मनोज का ध्यान अचानक भाभी की मधुर गुनगुनाहट हु हु हूँ हूँ आऽ आऽ पर गया । वह किताब में इस कदर खोया हुआ था कि उसे पता ही नहीं था कि भाभी कहाँ है, और क्या कर रही है ?
तब उसकी दृष्टि ने आवाज का तार पकङा,
और उसका दिल धक्क से रह गया ।
उसके शरीर में एक अजीब गर्माहट सी दौङ गयी ।
बाथरूम का पर्दा रह रहकर हवा से उङ जाता ।
पदमा ऊपरी हिस्से से निर्वस्त्र थी । और आँखें बन्द किये अपने ऊपर पानी उङेल
रही थी ।
वह मादक स्वर में गुनगुना रही थी -..हु हु हूँ हूँ
नैतिकता, अनैतिकता के मिले जुले से संस्कार, उस किशोर लङके के अंतर्मन को बारबार थप्पङ से मारने लगे ।
वह मादक स्वर में गुनगुना रही थी -..हु हु हूँ हूँ
नैतिकता, अनैतिकता के मिले जुले से संस्कार, उस किशोर लङके के अंतर्मन को बारबार थप्पङ से मारने लगे ।
नैतिकता बारबार उसका मुँह विपरीत ले जाती,
और अनैतिकता का प्रबल वासना संस्कार उसकी निगाह वहीं ले जाता ।
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