रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 23


कमाल की कहानी लिखी है, इस कहानी के लेखक ने । उसके कानों में पदमा जैसे फ़िर बोली - जतिन.. कहानी जो उसने शुरू की, उसे कोई और कैसे खत्म कर सकता है । ये कहानी है..?
कहानी ! कहानी, उससे छोङी भी नहीं जा रही थी, और पढ़ना भी मुश्किल लग रहा था । एक बार तो उसे लगा कि कहाँ वह फ़ालतू के झमेले में फ़ँस गया । भाङ में गयी कहानी, और उसका लिखने वाला ।
पर तभी उसे चुनौती सी देती आकर्षक पदमा नजर आती, और कहती - इस कहानी के तारतम्य को आगे बढ़ाना, और उसके सूत्र जोङना, तुम जैसे बच्चों का खेल नहीं ।.. सोचो, अगर वो ऐसा न करते, तो फ़िर इतनी दिलचस्प कहानी बन सकती थी ?
क्या कमाल की कहानी लिखी उन्होंने ।
और तभी उसे मनसा का भी चैलेंज सा गूँजता - भाग जा बच्चे, ये साधनासिद्धि, तन्त्र, मन्त्र बच्चों के खेल नहीं, इनमें दिन रात ऐसे ही झमेले हैं । इसलिये अभी भी समय है । दरअसल ये वो मार्ग है । जिस पर जाना तो आसान है, पर लौटने का कोई विकल्प ही नहीं है ।
हद हो गयी । जैसे उल्टा हो गया ।
जासूस किसी रहस्य को खोजने चला, और खुद रहस्य में फ़ँस गया ।
लेखक कहानी लिखने चला, और खुद कहानी हो गया ।
वह तो अपने मन में हीरोगीरी जैसा ख्याल करते हुये इसका एक-एक तार जोङकर शान से इस उलझी गुत्थी को हल करने वाला था, और उसे लगता था कि वे सब पात्र  चकित से होकर उसको पूरा पूरा सहयोग करेंगे, पर यहाँ वह उल्टा जैसे भूलभुलैया में फ़ँस गया था ।
कहावत ही उलट गयी ।
खरबूजा छुरी पर गिरे, या छुरी खरबूजे पर, कटेगा खरबूजा ही ।
लेकिन यहाँ तो जैसे खरबूजा ही छुरी को काटने पर आमादा था ।
उसने मोबायल में समय देखा, रात के दस बजना चाहते थे ।
नीचे घर में शान्ति थी, पर हल्की हल्की टीवी चलने की आवाज आ रही थी, कुछ सोचता हुआ वह नीचे उतर आया

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।