सोमवार, सितंबर 19, 2011

तांत्रिक का बदला 13




तीनों अभी भी बैठे शराब पी रहे थे ।
उसने नरसी की लाश पर निगाह डाली, और फिर दौङकर उससे लिपट गयी ।
अब तक जबरन रोकी उसकी रुलाई फ़ूट पङी ।
- हेऽ ईश्वरऽ । वह गला फ़ाङकर चिल्लाई - अबऽ विश्वास नहीं होता कि तू हैऽ.. नहीं विश्वास होता कि इस दुनियाँ में कोई ईश्वर, कोई भगवान है । इस देवता आदमी ने क्या गुनाह किया था, अपने जान में इसने कभी चींटी नहीं मरने दी । हर परायी औरत को माँ बहन समझा, दूसरे की भलाई के लिये कभी इसने रात दिन नहीं देखा । तेरे हर छोटे बङे द्वार पर इसने सर झुकाया ।
- और परिणामऽ । उसने छाती पर हाथ मारा, और दहाङती हुयी बोली - मुझे जबाब देऽ भगवान । मुझे जबाब चाहिये, मुझे जबाब चाहियेऽ । वह अपना सर जमीन पर पटकने लगी - मुझे जबाब देऽ,  आज एक दुखियारी औरत, एक बेबा, अबला, दो मासूम बच्चों की माँ, सिर्फ़ तुझसे जबाब चाहती है, क्या यही है तेरा न्याय?
क्या ऐसाऽ ही भगवान है तूऽ.. तूने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया? तूने क्यूँ मेरी हरी भरी बगिया उजाङ दी, मुझे जबाब देऽ । वह फ़िर से दहाङी - मैं सिर्फ़ऽ जबाब चाहती हूँऽ । मैं तुझसे दया की भीख नहींऽ माँग रही, सिर्फ़ जबाब देऽऽ । और तुझे जबाब देनाऽ होगा ।
मगर कहीं से कोई जबाब नहीं मिला ।
फ़िर वह उठकर खङी हो गयी, उसके चेहरे पर भयंकर कठोरता छायी हुयी थी ।
उसने बेहद घृणा और नफ़रत से तीनों को देखा ।
और जहर भरे स्वर में बोली - कान खोलकर सुन हरामजादे, नाजायज रण्डी से पैदा, सुअर की औलाद, अगर तूने कुतिया का दूध नहीं पिया, तो मार डाल मुझे भी इसी वक्त, और मार डाल उन दो नन्हें बच्चों को भी ।
- भाभी.. भाभी माँ । सुरेश गिङगिङा कर बोला - ऐसा मत बोलो, मैं बहुत कमजोर दिल इंसान हूँ ।
- थू..थू..है तुझ पर । वह घृणा से थूक कर बोली और मेरी ये आखिरी बात गौर से सुन हरामजादे । ये एक अबला औरत, एक पतिवृता नारी, और एक देवता इंसान की.. पत्नी का शाप हैऽ तुझेऽ । कहते कहते उसने पेट पर हाथ घुमाया, और ऊपर देखती हुयी बोली - अगर मैंने जीवन भर एक सच्ची औरत के सभी धर्म निभाये हैं, तो यही जमीनऽ जिसके लिये.. तूने मेरा घर.. बरबाद किया, बहुत जल्द तुझे मिट्टी में मिला देगी ।
कहकर वह बिना मुङे झटके से बाहर निकल गयी ।
सुरेश ने इतवारी को उसे छोङने हेतु भेजा भी, पर वह पैदल ही भागती चली गयी ।
और बहुत तेजी से घर की तरफ़ भाग रही थी ।
चलते चलते प्रसून रुक गया ।
उसकी गहरी आँखों में आँसुओं का सैलाब सा था, और चेहरे पर अजीब सी सख्ती छायी हुयी थी । क्रोध से उसकी सभी नसें नाङियाँ फ़ूल उठी थी ।
वह वहीं खङे पेङ के तने पर बेबसी से बारबार घूंसे मारने लगा, और काफ़ी देर बाद शान्त हुआ । फ़िर योगस्थ होकर उसने गहरी गहरी साँस खींची, और वहीं पेङ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगा ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।