सोमवार, सितंबर 19, 2011

तांत्रिक का बदला 9


कैसा रहस्यमय है, ये पूरा जीवन भी । हमसे चार कदम दूर ही जिन्दगी क्या क्या खेल खेल रही है, क्या खेल खेलने वाली है । शायद कोई नहीं जान पाता । खुद थोङी देर पहले उसने ही नहीं सोचा था कि वह अकारण ही यहाँ आयेगा । उसे जलती लाश के बारे में मालूमात होगा । पर हुआ था, और सब कुछ थोङी देर पहले ही हुआ था ।
चलते चलते वह ठीक उसी जगह आ गया, जहाँ वह औरत टीले पर शान्त बैठी हुयी थी, और उसके बच्चे वहीं पास में खेल रहे थे ।  
प्रसून उनकी नजर बचाता हुआ उन्हें छुपकर देखने लगा । कुछ देर शान्ति से उसने पूरी स्थिति का जायजा लिया । वह टीला मुर्दा जलाने के स्थान से महज सौ मीटर ही दूर था । औरत और बच्चों को देखकर जाने किस भावना से उसके आँसू बहने लगे । फ़िर उसने अपने आपको नियन्त्रित किया, और अचानक ही किसी प्रेत के समान उस औरत के सामने जा प्रकट हुआ ।
वह तुरन्त ही भयभीत होकर खङी हो गयी, और बच्चों का हाथ थाम कर चलने को हुयी ।
- कौन थीं ये? उसने खुद ही जानबूझ कर जैसे मूर्खतापूर्ण प्रश्न किया - अभी अभी जो..
वह एकदम से चौंकी ।
उसने गौर से प्रसून को देखा, पर वह कुछ नहीं बोली । उसने बात को अनसुना कर दिया, और तेजी से वहाँ से जाने को हुयी । प्रसून ने असहाय भाव से हथेलियाँ आपस में रगङी । उसकी बेहद दुखी अवस्था देखकर वह यकायक कुछ सोच नहीं पा रहा था ।
फ़िर वह सावधानी से मधुर आवाज में बोला - ठहरो बहन, मैं उनके जैसा नहीं हूँ ।
वह ठिठक कर खङी हो गयी ।
उसके चेहरे पर गहन आश्चर्य था । वह बङे गौर से प्रसून को देख रही थी, और बारबार देख रही थी । और फ़िर अपने को भी देख रही थी ।
फ़िर वह कंपकंपाती सी बेहद धीमी प्रेतक आवाज में बोली - अ आप भगवान हो क्या, मनुष्य रूप में ।
प्रसून के चेहरे पर घोर उदासी छा गयी ।
वह उसी टीले पर बैठ गया । उसने एक निगाह उन मासूम बच्चों पर डाली, और भावहीन स्वर में बोला - नहीं ।
औरत ने बच्चों को फ़िर से छोङ दिया था, और जैसे असमंजस की अवस्था में इधर उधर देख रही थी । प्रसून उसके दिल की हालत बखूबी समझ रहा था, और इसीलिये वह बात को कैसे और कहाँ से शुरू करे, यह तय नहीं कर पा रहा था ।
तभी यकायक उस औरत के चेहरे पर विश्वास सा जगा, और वह कुछ चकित सा होकर बोली - आप मुझे देख सकते हो, और इन.. । उसने बच्चों की तरफ़ उँगली उठाई - दो बच्चों को भी ।
प्रसून ने बेहद स्नेह भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
लेकिन उस औरत के चेहरे पर अभी भी हैरत थी ।
इसलिये वह बोली - फ़िर और सब.. क्यों नहीं देख पाते?
- शायद इसलिये । वह जल चुकी चिता पर निगाह फ़ेंकता हुआ बुझे स्वर में बोला - क्योंकि इंसान सत्य नहीं, सपना देखना अधिक पसन्द करता है । वह जीवन भर सपने में जीता है, सपने में ही मर जाता है ।
- मेरा नाम रत्ना है । उसके मुर्दानी चेहरे पर बुझी राख में इक्का दुक्का चमकते अग्निकणों के समान चमक पैदा हुयी ।
फ़िर वह वहीं उसके सामने जमीन पर ही बैठ गयी ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।