रत्ना हैरत से यह सब सुनते देखते रही ।
जाने क्यों उसे लग रहा था कि ये इंसान नहीं है, स्वयँ भगवान ही है, पर अपने आपको प्रकट नहीं करना चाहते । जो हो रहा था, उस पर उसे पूरा विश्वास भी हो रहा था, और नहीं भी हो
रहा था कि अचानक ये चमत्कार सा कैसे हो गया ।
प्रसून ने उसे बताया नहीं ।
प्रसून ने उसे बताया नहीं ।
लेकिन अब वह अपने स्तर पर पूरा निश्चित था ।
वह प्रेतों के प्रेतभाव से हमेशा के लिये बच्चों सहित
बच चुकी थी ।
अब प्रसून के सामने बस एक ही काम शेष था ।
कि वह उन्हें किसी सही जगह पुनर्जन्म दिलवाने में मदद
कर सके ।
लेकिन ये तो सिर्फ़ रत्ना से जुङा काम था ।
वैसे तो उसे बहुत काम था ।
वैसे तो उसे बहुत काम था ।
बहुत काम, जिसकी अभी शुरूआत भी नहीं हुयी थी ।
यह ख्याल आते ही उसके चेहरे पर अजीब सी सख्ती नजर आने
लगी ।
और वह ‘चलता हूँ बहन’ कहकर उठ खङा हुआ ।
रत्ना एकदम हङबङा गयी ।
उसके चेहरे पर प्रसून के जाने का दुख स्पष्ट नजर आने
लगा ।
वह उसके चरण स्पर्श करने को झुकी ।
‘अरे अरे, क्या करती हो बहन’ कहकर प्रसून तेजी से खुद को बचाता हुआ पीछे
हट गया ।
- अब । तब वह रुँआसी होकर बोली - कब आओगे भैया?
- जल्द ही । वह भावहीन होकर सख्ती से बोला - तुम्हें.. । उसने खोह की तरफ़ देखा, त्यागे गये मानव मलों की तरफ़ देखा - किसी सही घर में पहुँचाने के लिये ।
फ़िर वह उनकी तरफ़ देखे बिना तेजी से मुङकर एक तरफ़ चल दिया ।
- अब । तब वह रुँआसी होकर बोली - कब आओगे भैया?
- जल्द ही । वह भावहीन होकर सख्ती से बोला - तुम्हें.. । उसने खोह की तरफ़ देखा, त्यागे गये मानव मलों की तरफ़ देखा - किसी सही घर में पहुँचाने के लिये ।
फ़िर वह उनकी तरफ़ देखे बिना तेजी से मुङकर एक तरफ़ चल दिया ।
क्योंकि उसकी आँखें भीग रही थी ।
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