सोमवार, सितंबर 19, 2011

तांत्रिक का बदला 11




रत्ना हैरत से यह सब सुनते देखते रही ।
जाने क्यों उसे लग रहा था कि ये इंसान नहीं है, स्वयँ भगवान ही है, पर अपने आपको प्रकट नहीं करना चाहते । जो हो रहा था, उस पर उसे पूरा विश्वास भी हो रहा था, और नहीं भी हो रहा था कि अचानक ये चमत्कार सा कैसे हो गया ।
प्रसून ने उसे बताया नहीं ।
लेकिन अब वह अपने स्तर पर पूरा निश्चित था ।
वह प्रेतों के प्रेतभाव से हमेशा के लिये बच्चों सहित बच चुकी थी ।
अब प्रसून के सामने बस एक ही काम शेष था ।
कि वह उन्हें किसी सही जगह पुनर्जन्म दिलवाने में मदद कर सके ।
लेकिन ये तो सिर्फ़ रत्ना से जुङा काम था ।
वैसे तो उसे बहुत काम था ।
बहुत काम, जिसकी अभी शुरूआत भी नहीं हुयी थी ।
यह ख्याल आते ही उसके चेहरे पर अजीब सी सख्ती नजर आने लगी ।
और वह ‘चलता हूँ बहन’ कहकर उठ खङा हुआ ।
रत्ना एकदम हङबङा गयी ।
उसके चेहरे पर प्रसून के जाने का दुख स्पष्ट नजर आने लगा ।
वह उसके चरण स्पर्श करने को झुकी ।
‘अरे अरे, क्या करती हो बहन’ कहकर प्रसून तेजी से खुद को बचाता हुआ पीछे हट गया ।
- अब । तब वह रुँआसी होकर बोली - कब आओगे भैया?
- जल्द ही । वह भावहीन होकर सख्ती से बोला - तुम्हें.. । उसने खोह की तरफ़ देखा, त्यागे गये मानव मलों की तरफ़ देखा - किसी सही घर में पहुँचाने के लिये ।
फ़िर वह उनकी तरफ़ देखे बिना तेजी से मुङकर एक तरफ़ चल दिया ।
क्योंकि उसकी आँखें भीग रही थी ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।