रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 11



- हाँ ! फिर वह कुछ ठहर कर उसका चेहरा पढ़ता हुआ सा बोला - एक बात है, जो अलग हो सकती है । आपकी भाभी में कामभावना सामान्य से बेहद अधिक हो, और वह आपके भाई से पूर्ण सन्तुष्टि न पाती हों, या उन्हें अलग अलग पुरुषों को भोगना अच्छा लगता हो, और इस स्तर पर वह अपने आपको अतृप्त महसूस करती हो । यस अतृप्त..अतृप्त ।
मनोज के चेहरे पर जैसे भूचाल नजर आने लगा ।
वह एक झटके से उठकर खङा हुया ।
अचानक उसने नितिन का गिरहबान पकङ लिया, और दांत पीसता हुआ बोला - हरामजादे ! क्या बोला तू..अतृप्त ।
नितिन के मानों छक्के ही छूट गये, उसे ऐसी उम्मीद कतई न थी ।
वह एकदम से हङबङा कर रह गया ।
मनोज ने तमंचा निकाला, और उसकी तरफ़ तानता हुआ बोला - मैं तुझे बुलाने गया था कि सुन मेरी बात, फ़िर तूने मेरी भाभी को अतृप्त कैसे बोला । प्यासी..प्यासी औरत..वासना की भूखी । हरामजादे ! मैं तेरा खून कर दूँगा ।
वह चाहता तो एक भरपूर मुक्के में ही इस नशेङी को धराशायी कर देता । उसकी सब दादागीरी निकाल देता, पर इसके ठीक उलट उसने अपना कालर छुङाने तक की कोशिश नहीं की ।
मनोज कुछ देर उसे खूँखार नजरों से देखता रहा ।
फ़िर बोला - बता कौन ऐसा है, जो अतृप्त नहीं है । तू मुझे कामवासना से तृप्त हुआ, एक भी आदमी औरत बता । तू मुझे धन से तृप्त हुआ एक भी आदमी औरत बता । तू मुझे सभी इच्छाओं से त्रप्त हुआ एक भी बन्दा बता, फ़िर तू ही कौन सा तृप्त है ? कौन सी प्यास तुझे यहाँ मेरे पास रोके हुये है । साले मैंने कोई तुझसे मिन्नते की क्या ? बोल ? अब बोल..अतृप्त ।
- ओके । नितिन बेहद सावधानी से सधे स्वर में बोला – सारी भाई, शायद  मुझे ऐसा नहीं बोलना था । सो सारी अगेन ।
- मनोज ! यदि तुम ऐसा सोचते हो । पदमा हिरनी जैसी बङी बङी काली आँखों से उसकी आँखों में झांक कर बोली - कि मैं तुम्हारे भाई से तृप्त नहीं होती, तो तुम गलत सोचते हो । दरअसल वहाँ तृप्त अतृप्त का प्रश्न ही नहीं है, वहाँ सिर्फ़ रुटीन है । पति को यदि पत्नी शरीर की भूख है, तो पत्नी उसका सिर्फ़ भोजन है । वह जब चाहते हैं, मुझे नंगा कर देते हैं, और जैसा जो चाहते हैं, करते हैं ।
मैं एक खरीदी हुयी वैश्या की तरह, मोल चुकाये पुरुष की इच्छानुसार बस आङी तिरछी होती हूँ ।
तुम यकीन करो, उन्हें मेरे इस अपूर्व सौन्दर्य में कोई रस नहीं । मेरे अप्सरा बदन में उन्हें कोई खासियत नजर नहीं आती, उनके लिये मैं सिर्फ़ एक शरीर मात्र हूँ । घर की मुर्गी, जो किसी खरीदी गयी वस्तु की तरह उनके लिये मौजूद रहती है ।
अगर समझ सको तो, मेरे जगह साधारण शक्ल सूरत वाली, साधारण देहयष्टि वाली औरत भी उस समय हो, तो भी उन्हें बस उतना ही मतलब है । उन्हें इस बात से कोई फ़र्क नहीं कि वह सुन्दर है, या फ़िर कुरूप । उस समय बस एक स्त्री शरीर, यही हर पति की जरूरत भर है । और मैं उनकी भी गलती नहीं मानती । क्योंकि उनके काम व्यवहार के समय मैं खुद रोमांचित होने की कोशिश करूँ, तो मेरे अन्दर भी कोई तरंगें ही नहीं उठती, जबकि हमारी शादी को अभी सिर्फ़ चार साल ही हुये हैं ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।