रविवार, अप्रैल 01, 2012

कामवासना 6



- भाभी ! तब अचानक वह उसकी ओर देखता हुआ बोला - एक बात बोलूँ, सच सच बताना । क्या तुम भैया से खुश नहीं हो, क्या तुम्हें तृप्ति नहीं होती ?
तब दूसरी तरफ़ देखती पदमा ने यकायक झटके से मुँह घुमाया ।
फ़िर उसने तेजी से तीन हुक खोल दिये, और नागिन सी चमकती आँखों से उसकी तरफ़ देखा ।
- देख इधर । वह सख्त स्वर में बोली - ये माँस के गोले, सिर्फ़ चर्बी माँस के गोले, अगर एक जवान सुन्दर मरी औरत का शरीर लावारिस फ़ेंक दिया जाये, तो फ़िर इस शरीर को कौवे कुत्ते ही खायेंगे । ये मृगनयनी आँखें किसी प्यासी चुङैल के समान भयानक हो जायेंगी । इस सुन्दर शरीर से बदबू और घिन आयेगी, फ़िर बताओ इसमें ऐसा क्या है ? जो किसी स्त्री को नहीं पता, जो किसी पुरुष को नहीं पता, फ़िर भी कोई तृप्त हुआ आज तक । अन्तिम अंजाम जानते हुये भी ।
- नितिन जी ! वह ठहरे स्वर में बोला - बङे ही अजीब पल थे वो, वक्त जैसे थम गया था । उस पर कामदेवी सवार थी, और मुझे ये भी नहीं पता कि उस वक्त उसकी मुझसे क्या ख्वाहिश थी । सच ये है कि, मैं किसी सम्मोहन जैसी स्थिति में था । लेकिन उसका सौन्दर्य, उसके अंग, सभी मुझे विषैले लग रहे थे, और जैसे कोई अज्ञात शक्ति मेरी रक्षा कर रही थी । मुझे सही गलत का बोध करा रही थी, शब्द जैसे अपने आप मेरे मुँह से निकल रहे थे । जैसे शायद अभी भी निकल रहे हैं, शब्द ।
- लेकिन भाभी ! मेरा ये मतलब नहीं था । मैंने सावधानी से कहा - औरत की कामवासना को यदि उसके लिये नियुक्त पुरुष मौजूद हो, तब ऐसी बात कुछ अजीब सी लगती है न । इसीलिये मैंने कहा, शायद आप अतृप्त तो नहीं हो ।
-  अतृप्तऽ.. अतृप्त । मनोज का यह शब्द रह रहकर उसके दिमाग में हथौङे सी चोट करने लगा । एकाएक उसकी मुखाकृति बिगङने लगी, और उसका बदन ऐंठने लगा । उसका सुन्दर चेहरा बेहद कुरूप हो उठा, और उसके चेहरे पर राख सी पुती नजर आने लगी ।
फिर वह बड़े जोर से हँसी, और..
- हाँ..! उसने एक झटका सा मारा, - हाँ, मैं अतृप्त ही हूँ । सदियों से प्यासी, एक अतृप्त औरत । एक प्यासी आत्मा, जिसकी प्यास, आज तक कोई दूर न कर सका, कोई भी ।
अब तक उकताहट महसूस कर रहा नितिन एकाएक सजग हो गया ।
उसकी निगाह स्वतः ही उस काली छाया पर गयी, जो बैचेनी से पहलू बदलने लगी थी । पर मनोज उन दोनों की अपेक्षा शान्त था ।
- फ़िर क्या हुआ ? बेहद उत्सुकता में नितिन के मुँह से निकला ।
- कुछ नहीं । उसने भावहीन स्वर में उत्तर दिया - कुछ नहीं हुआ, वह बेहोश हो गयी ।



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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।