रविवार, जून 27, 2010

सहज समाधि की ओर

जिस समय समाधि द्वारा आँखों की दोनों पुतलियाँ अन्दर की और उलटने लगती है । तो सबसे पहले अन्धकार में प्रकाश की कुछ किरणें दिखायी देती हैं । और फ़िर अलोप हो जाती हैं । बिजली जैसी चमक दिखाई देती है । दीपक जैसी ज्योति दिखाई देती है । पाँच तत्वों के रंग लाल , पीला , नीला हरा और सफ़ेद दिखाई देते हैं । इससे वृति अभ्यास में लीन होने लगती है । इसके बाद आसमान पर तारों जैसी चमक । दीपमाला जैसी झिलमिल दिखाई देगी । और चाँद जैसा प्रकाश और सूर्य जैसी किरणें दिखाई देंगी । जिस समय आँख बिलकुल भीतर की ओर उलट जायेगी । तब सुरती शरीर छोङकर ऊपर की ओर चङेगी । तो आकाश दिखाई देगा । जिसमें " सहस्त्रदल " कमल दिखाई देगा । उसके हजारों पत्ते अलग अलग त्रिलोकी का काम कर रहे हैं । अभ्यासी यह दृश्य देखकर बहुत खुश होता है । यहाँ उसे तीन लोक के मालिक का दर्शन होता है । बहुत से अभ्यासी इसी स्थान को पाकर इसको ही कुल का मालिक समझकर गुरु से आगे चलने का रास्ता नहीं पूछते । यहाँ का प्रकाश देखकर सुरति त्रप्त हो जाती है । इस प्रकाश के ऊपर एक " बारीक और झीना दरबाजा " अभ्यासी को चाहिये कि इस छिद्र में से सुरति को ऊपर प्रविष्ट करे । इसके आगे " बंक नाल " याने टेङा मार्ग है । जो कुछ दूर तक सीधा जाकरनीचे की ओर आता है । फ़िर ऊपर की ओर चला जाता है । इस नाल से पार होकर सुरति " दूसरे आकाश " पहुँची । यहाँ " त्रिकुटी स्थान " है । यह लगभग लाख योजन लम्बा और चौङा है । इसमें अनेक तरह के विचित्र तमाशे और लीलाएं हो रही हैं । हजारों सूर्य और चन्द्रमा इसके प्रकाश से लज्जित है । " ॐ" और " बादल की सी गरज " सुनाई देती है । जो बहुत सुहानी लगती है । तथा वह आठों पहर होती रहती है । इस स्थान को पाकर सुरती को बहुत आनन्द मिलता है । और वह सूक्ष्म और साफ़ हो जाती है । इस स्थान से अन्दर के गुप्त भेदों का पता चलने लगता है । कुछ दिन इस स्थान की सैर करके सुरती ऊपर की ओर चढने लगी । चढते चढते लगभग करोङ योजन ऊपर चङकर तीसरा परदा तोङकर वह " सुन्न " में पहुँची । यह स्थान अति प्रसंशनीय है । यहाँ सुरति बहुत खेल विलास आदि करती है । यहाँ " त्रिकुटी स्थान " से बारह गुणा अधिक प्रकाश है । यहाँ अमृत से भरे बहुत से " मानसरोवर " तालाब स्थित हैं । और बहुत सी अप्सरायें स्थान स्थान पर नृत्य कर रही हैं । इस आनन्द को वहाँ पहुँची हुयी सुरति ही जानती है । यह लेखनी या वाणी का विषय हरगिज नहीं है । यहाँ तरह तरह के अति स्वादिष्ट सूक्ष्म भोजन तैयार होते हैं । अनेको तरह के राग रंग नाना खेल हो रहे हैं । स्थान स्थान पर कलकल करते हुये झरने
बह रहे हैं । यहाँ की शोभा और सुन्दरता का वर्णन नहीं किया जा सकता । हीरे के चबूतरे । पन्ने की क्यारियाँ । तथा जवाहरात के वृक्ष आदि दिखाई दे रहे हैं । यहाँ अनन्त शीशमहल का निर्माण है । यहाँ अनेक जीवात्माएं अपने अपने मालिक के अनुसार अपने अपने स्थानों पर स्थित हैं । वे इस रंग विलास को देखती हैं । और दूसरों को भी दिखलाती हैं । इन जीवात्माओं को " हंस मंडली " भी कहा गया है । यहाँ स्थूल तथा जङता नहीं है । सर्वत्र चेतन ही चेतन है । शारीरिक स्थूलता और मलीनता भी नहीं हैं । इसको संतजन भली प्रकार जानते हैं । इस तरह के भेदों को अधिक खोलना उचित नहीं होता । सुरति चलते चलते पाँच अरब पचहत्तर करोङ योजन और ऊपर की ओर चली गयी । अब " महासुन्न " का नाका तोङकर वह आगे बङी । वहाँ दस योजन तक घना काला घोर अंधकार है । इस अत्यन्त तिमिर अंधकार को गहराई से वर्णित करना बेहद कठिन है ।
फ़िर लगभग खरब योजन का सफ़र तय करके सुरति नीचे उतरी । परन्तु फ़िर भी उसके हाथ कुछ न लगा । तब वह फ़िर और ऊपर को चङी । और जो चिह्न ? सदगुरुदेव ने बताया था । उसकी सीध लेकर सुरति उस मार्ग पर चली । इस यात्रा का और इस स्थान का सहज पार पाना बेहद मुश्किल कार्य है ।
सुरति और आगे चली तो महासुन्न का मैदान आया । इस जगह पर " चार शब्द और पाँच स्थान " अति गुप्त हैं । सच्चे दरबार के मालिक की अनन्त सुर्तियां यहाँ रहती हैं । उनके लिये बन्दी खाने बने हुये हैं । यहाँ पर उनको कोई कष्ट नहीं है । और अपने अपने प्रकाश में वे कार्य कर रहीं हैं । परन्तु वे अपने मालिक का दर्शन नहीं कर सकती हैं । दर्शन न होने के कारण वे व्याकुल अवश्य हैं । इनको क्षमा मिलने की एक युक्ति होती है । जिससे वे मालिक से मिल सकती हैं । जब कोई सन्त इस मार्ग से जाते हैं । तो जो सुरतियां नीचे संतो के द्वारा वहाँ जाती हैं । तब उन सुरतियों को उनका दर्शन होता है । फ़िर उन जीवात्माओं को ऊपर ले जाने से जो प्रसन्नता उन संतो को होती है । उसका वर्णन कैसे हो सकता है । सच्चे मालिक की करुणा और दया उन पर होती है । संतजन उन सुरतियों को क्षमा प्रदान करवाकर सच्चे मालिक के पास बुलबाते हैं ।
विशेष--अगर आप किसी प्रकार की साधना कर रहे हैं । और साधना मार्ग में कोई परेशानी आ रही है । या फ़िर आपके सामने कोई ऐसा प्रश्न है । जिसका उत्तर आपको न मिला हो । या आप किसी विशेष उद्देश्य हेतु कोई साधना करना चाहते हैं । और आपको ऐसा लगता है कि यहाँ आपके प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है । तो आप निसंकोच सम्पर्क कर सकते हैं ।

3 टिप्‍पणियां:

Vinashaay sharma ने कहा…

बहुत अच्छा लगा यह ज्ञान पाकर ।

vijay ने कहा…

kya hum is gaayan ko pa sakte hai karpya hame uchit marg dhikhaye. vijay banjaria

Sacred ने कहा…

अगर करुणा से स्पर्श करके पर ,स्पर्श करने वाला स्वयं को अनंत चाँदनी में समाहित होता हुआ पाए,
तो साधक का स्तर क्या है कृपया अवश्य बतलाये

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।