सोमवार, अगस्त 22, 2011

अंगिया वेताल 1



रूपाली शर्मा एक बेहद खूबसूरत लङकी थी, जिसे संक्षिप्त में सब रूपा कहते थे ।
अपनी खास कमनीय देहयष्टि से वह अप्सराओं जैसी प्रतीत होती थी । उसकी चाल में एक विशेष प्रकार की लचक थी । नृत्य की थिरकन जैसी चाल उसके विशाल नितम्बों में एक वलय पैदा करती थी, जो उसको अप्सराओं के एकदम करीब ले जाती थी ।
वास्तव में वह गलती से इस प्रथ्वी पर उतर आयी कोई अप्सरा ही प्रतीत होती थी, और तब युवक क्या उसको देखकर बूढ़ों के दिल में भी उमंगें लहराने लगती थी । पर उसे अपनी सुन्दरता और भरपूर यौवन का जैसे कोई अहसास न था । जबकि वह अठारह से ऊपर की हो चुकी थी, और ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा थी ।
रूपाली शर्मा ब्राह्मण न होकर मैथिल ब्राह्मण थी । उसके परिवार में फ़र्नीचर आदि लकङी का बिजनेस होता था । उसकी सबसे पक्की सहेली का नाम बुलबुल था । और आज बुलबुल के घर में किसी समारोह का आयोजन था । जिसमें शामिल होने के लिये रूपा आयी हुयी थी ।
उस समय घङी शाम के सात बीस बजाने वाली थी
रूपा के सुन्दर मुखङे पर चिन्ता की लकीरें बढ़ती जा रही थीं । क्योंकि उसे घर लौटना था, और जल्दी ही लौटना था । उन दिनों मोबायल फ़ोन या लैंडलाइन फ़ोन का आम चलन नहीं हुआ था, जो वह अपने घर पर किसी प्रकार की सूचना देकर घरवालों को संतुष्ट कर सकती थी ।
दरअसल वह छह बजे ही बुलबुल से विदा होकर निकलने लगी थी । पर बुलबुल ने थोङा रुक..थोङा रुक’ कहकर उसे इतना लेट कर दिया था, और अब साढ़े सात बज चुके थे ।
जब वह चिंतित थी तब बुलबुल ने कहा कि उसको वह अपने भाई द्वारा साइकिल से घर छुङवा देगी । पर एन टाइम पर उसका भाई एक मित्र के घर चला गया ।
और जब इंतजार करते करते ज्यादा समय हो गया, तब उसने अकेले जाने का ही तय कर लिया ।
यकायक रूपा का कलेजा मानो बाहर आने को हुआ । आसमान में बहुत जोरों से बिजली कङकी, और मूसलाधार बारिश होने लगी । उसके मन में आया जोर जोर से रोने लगे ।
- हे भगवान । वह बिन बुलाई मुसीबत में फ़ँस गयी थी, पर अब क्या हो सकता था ।
उसने दिल को कङा किया, और मचान की तरफ़ बढ़ गयी, जहाँ वह पानी से अपना कुछ बचाव कर सकती थी ।
यह मचान एक विशाल पीपल के पेङ नीचे था । वह मचान के नीचे जाकर चुपचाप खङी हो गयी ।
चारो तरफ़ गहन काला अंधकार छाया हुआ था, और इस अंधेरे में खङे तमाम पेङ पौधे उसे रहस्यमय प्रेतों जैसे नजर आ रहे थे । उसे अन्दर से अपनी मूर्खता पर रोना आ गया । पर अब वह क्या कर सकती थी ।
दरअसल उसका सोचना गलत भी नहीं था । पहले भी कई बार इसी समय वह इस रास्ते से गुजरी थी पर उसे कोई डर महसूस नहीं हुआ था । क्योंकि शार्टकट रास्ता होने से यह आमतौर पर रात दस बजे तक आने जाने वालों से गुलजार रहता था । लेकिन ये संयोग ही था कि आज उसे कोई नजर नहीं आया ।
मचान तक पहुँचते पहुँचते उसके कपङे एकदम भीगकर उसकी माँसल देह से चिपक से गये ।
रूपा ने बैग में से टार्च निकाली, और हाथ में पकङे हुये बारिश के बन्द या कम होने की प्रतीक्षा करने लगी ।
तभी उसे अपने पीछे कुछ सरसराहट सी सुनाई दी । जैसे कोई सर्प पत्तों में रेंग रहा हो । उसका दिल तेजी से धक धक करने लगा, और घबराहट में उसने टार्च जलाकर आवाज की दिशा में देखा ।
पर वहाँ कोई नहीं था ।
उसे आश्चर्य और घबराहट इस बात पर हुयी थी कि बारिश से जमीन, पेङ, झाङियाँ, पत्ते सब पानी से तरबतर हो चुके थे । अतः ऐसे में सरसराहट की आवाज का कोई प्रश्न ही न था । उसके दिल में भय सा जाग्रत हुया, और उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे होने लगा । फ़िर अचानक उसकी चीख निकलते निकलते बची ।
उसे अपने ठीक पीछे किसी के सांस लेने जैसी आवाज सुनाई दी, और फ़िर उसकी गर्दन के पास ऐसी हवा का स्पर्श होने लगा । जैसी नाक से सांस लेते समय बाहर आती है ।
- हा..। वह कांपते स्वर में बोली - क कौन है?
मगर कोई जबाब न मिला ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।