सोमवार, अगस्त 22, 2011

अंगिया वेताल 6



- र रूप । उसे वही परिचित आवाज सुनाई दी ।
उसके जिस्म में अनजानी खुशी की लहर सी दौङ गयी ।
इस अपरिचित बियावान जगह पर स्पर्श के मिलने से उसे बहुत राहत मिली ।
- स्पर्श हम कहाँ है? वह सहमी सी बोली - ये प्रथ्वी तो नहीं मालूम होती ।
- हाँ रूपा, तुम सच कह रही हो । ये प्रथ्वी नहीं, बल्कि अतृप्त और अकाल मृत्यु को प्राप्त इंसानों के रहने का प्रेतलोक है । तुम यहाँ अपने आंतरिक शरीर से आयी हो । तुम्हारा स्थूल शरीर तुम्हारे कमरे में मृतक के समान ही पङा है । क्या तुम्हें भय लग रहा है?
उसने न में सिर हिलाया, और अपने बदन पर स्पर्श की छुअन महसूस करने लगी ।
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चोखा भगत पंजामाली के शमशान में पहुँचा ।
आज वह सिद्धि हेतु आया था । चोखा कई दिनों से इसके लिये चक्कर काट रहा था । तब रात दस बजे के करीब उसे दाह के लिये जाती लाश मिली थी । वह एक हंडिया और चावल साथ ले आया था । यह सिद्धि उसे लपटा बाबा ने बतायी थी ।
चोखा खुद क्योंकि अनपढ़ था, और शौकिया ही तांत्रिक बना था । इसलिये उसने इधर इधर बाबाओं के पास बैठकर कुछ छोटे मोटे मन्त्र, तन्त्र, जन्त्र सीख लिये थे, और इन्ही से काम करता हुआ वह अंधविश्वासी टायप मूढ़ औरतों में खासा लोकप्रिय था । मन्त्र तन्त्र से आकर्षित औरतें अक्सर उससे प्रभावित हो जाती थी । तब वह साधारण बातों में नमक मिर्च लगाकर उसमें भय पैदा करते हुये उनका मनमाना इस्तेमाल करता था ।
इसके अलावा एक कारण और भी था । हराम की खाने के हुनर में उस्ताद चोखा शरीर से बलिष्ठ था । अतः जब वह औरत को अनोखी तृप्ति का अहसास कराता, तब वे उसकी वैसे ही गुलाम हो जाती और अपनी ऐसी ही खूबियों के चलते चोखा मानता था कि उस पर भगवान की खासी कृपा है ।
पर जैसा कि कहते हैं - अन्त बुरे का बुरा ।
और उसके बुरे दिन शुरू हो चुके थे ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।