सोमवार, अगस्त 22, 2011

अंगिया वेताल 7



रात के लगभग ग्यारह बज चुके थे, और शव को जलाने आये लोग वहाँ से जा चुके थे । चिता की आग अभी भी धधक रही थी । उनके जाते ही पेङों के पीछे छिपा चोखा निकल आया, और सावधानी से इधर उधर देखता हुआ जलते मुर्दे के पास आकर बैठ गया । उसने सिर्फ़ एक लंगोट पहना हुआ था, और सांवली बलिष्ठ कसरती देह से जिन्दा भूत ही लग रहा था । चोखा पहले भी शव के पास रात गुजारने के अनुभवों से गुजर चुका था । अतः उसके मन में नाममात्र का भी भय न था ।
हाँ, दूसरी बातों को लेकर भय था ।
क्या थी वे बातें?
तब स्वतः ही उसके दिमाग में लपटा बाबा के बोल गूँजे - मगर सावधान चोखे, सिद्धि के दौरान कोई रूपसी नग्न, अर्धनग्न अवस्था में आकर तुझे काम निमन्त्रण दे । उसको स्वीकार नहीं करना । कोई डाकिनी, शाकिनी, डायन, चुङैल तुझे भयभीत करे, करने देना । तू शान्त होकर अपना काम करना । अगर तू किसी भी तरह बहका, तो तेरी मौत निश्चित है । 
चोखा के भय से रोंगटे खङे हो गये ।
शमशान और तामसी शक्तियों की इस तरह की निकृष्ट साधना जिसमें डाकिनी, शाकिनी प्रकट होने वाली थी, से रूबरू होने का उसका पहला ही चांस था । पर वह यह नहीं जानता था कि यह पहला चांस ही उसका आखिरी चांस होने वाला था ।
चोखा ने हंडिया मुर्दे के पास ही रख दी, और उसके पानी में चावल और कुछ अन्य चीजें डाल दी । फ़िर उसने अपने सामान की पोटली से तेल निकाला, और सारे बदन पर मलने लगा । पूरे बदन को तेल से तरबतर करने के बाद उसने चिता की गर्म गर्म राख को बदन पर मला, और कुछ ही देर में भयानक काले जिन्न के समान नजर आने लगा । उसकी लाल लाल आँखें चिता के मद्धिम प्रकाश में खूंखार चीते की भांति चमकने लगी ।
- खुश हो कालका । कहते हुये उसने चावल की हंडिया चिता पर पकने के लिये रख दी, और फ़िर गांजे से भरी चिलम को चिता की आग से जलाकर पीने लगा ।
निकृष्ट डरावनी साधनाओं में नशा भय को बहुत कम कर देता है, ये उसका माना हुआ अनुभव था । अतः उसने आज भी वही काम किया था । नशीली चिलम का सुट्टा जैसे ही उसके दिमाग में चढ़ता, वह और भयंकर सा हो उठता । पूरी चिलम पीते पीते उसकी आँखे इस तरह लाल हो गयीं । मानो उनसे खून छलक रहा हो ।
तब उसने चिता से काफ़ी गर्म राख उठायी, और जमीन पर एक बिछावन के रूप में बिछा दी ।
फ़िर उस पर बैठकर वह मन्त्र पढ़ने में तल्लीन हो गया । क्लीं क्लीं जैसे बीज मन्त्रों के साथ डाकिनी, शाकिनी, कालका आदि शब्द बीच बीच में उसके मुँह से धीरे धीरे निकलने लगे, और वह झूमने लगा ।
उसके आसपास शमशान में विचरने वाले गण एकत्र होने लगे । मगर तांत्रिक से कुछ अनजाना भय सा खाते हुये वे उससे एक निश्चित दूरी पर ही रहे । तब कुछ बङे गण आये, और चोखा को अपने बदन पर प्रेतवायु के झोंकों जैसा अहसास होने लगा ।
यह अहसास इस तरह होता है । जैसे एक इंसान दूसरे इंसान की गर्दन आदि पर हल्की सी फ़ूँक मारे, और ये अहसास अक्सर कान के पास ही गरदन तक अधिक होता है ।
फ़िर उसके सामने शाकिनी आदि प्रत्यक्ष होने लगी । हड्डियों के कंकाल सी और कभी काली गन्दी सी वे स्थूल शरीरी सी भी दिखती औरतें निर्वस्त्र थी । उनके उलझे हुये बाल बहुत गन्दे और हवा में उङते थे । उनकी कमर पर नीच देवियों की भांति हड्डियों की मालायें भी बँधी थी, और उनके काले स्तन नोकीले और तने थे ।
ऐसे बहुत से अन्य अनुभव चोखे को होते रहे । पर लपटा की बात को ध्यान रखता हुआ बहुत हल्का सा ही विचलित होता हुआ वह अपने काम में ही लगा रहा ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।