सोमवार, अगस्त 22, 2011

अंगिया वेताल 4




- भगत जी । पंडितानी घबरा कर बोली - बिटिया को क्या हुआ?
- मसान । भगत भावहीन स्वर में बोला - इस पे मसान सवार हो गया ।
फ़िर वह रूपा की ओर मुङा और सख्त स्वर में बोला - बता कौन है तू?
- वो तू । रूपा उच्चस्वर में हँसते हुये बोली - खुद ही बता चुका कि मैं मसान हूँ ।
भगत के मन में इस समय भयंकर बवंडर जारी था । वह कामचलाऊ गद्दी लगाये अवश्य था । पर उसके दिलोदिमाग में निर्वस्त्र रूपा घूम रही थी । यह उसके सौन्दर्य का ही जादू था कि वह जिसको पाने के वह जागते हुये सपने देखता था । कितनी आसानी से पके फ़ल की तरह टपक कर उसकी गोद में आ गिरी थी ।
अब वह एक बार क्या बीसियों बार उसको भोगने वाला था, और पंडितानी खुद उसे रूपा के साथ किसी दामाद की तरह सौंपने वाली थी । मालती पहले ही उसकी मुठ्ठी में थी । आज उसे भगत होने का असली लाभ मिला था ।
जितना ही वह इस विचार को निकालने की कोशिश करता । उतना ही दोगुनी ताकत से वह विचार उसके दिमाग पर हावी हो जाता, जैसे वह सामने बैठी रूपा से मानसिक सहवास कर रहा हो । इसलिये उसने गद्दी का काम आधे में ही छोङ दिया, और काला कपङा आदि मंगाकर ताबीज बनाने लगा । वह इस मरीज को आसानी से ठीक होने देने का इच्छुक नही था ।
उसके द्वारा गद्दी से हटाते ही रूपा अन्दर कमरे में जाकर लेट गयी ।
घबराई हुयी पंडिताइन भगत से मसान के बारे में विस्तार से बात करने लगी ।
भगत ने उन्हें बताया कि घबराने की कोई बात नहीं । कुछ ही गद्दी लगाकर वह रूपा को मसान से हमेशा के लिये छुटकारा दिला देगा । यह बताते हुये भगत ने अतिरिक्त रूप से बढ़ा चढ़ाकर पंडिताइन को पूरा पूरा आतंकित करने की कोशिश की । जिसमें वह कामयाब भी रहा ।
भगत ने यह भी कह दिया अभी वह इस बात का जिक्र किसी से न करे । यहाँ तक कि पंडित जी से भी नहीं । खामखांह सयानी लङकी थी । अगर बात फ़ैल जाती, तो उसके शादी ब्याह में दिक्कत आ सकती थी । यह कहते हुये उसने ऐसा अभिनय किया । मानो उसे कुछ याद आ गया हो, और वह फ़िर से खिंचा सा रूपा के कमरे में आ गया ।


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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।