गुरुवार, मई 13, 2010

पिया लाये परायी नारि..चार मूर्ख कवि

आम जिंदगी में तो भगवान को कोसने वालों की कोई कमी है ही नहीं . ब्लाग जगतभी इससे अछूता नहीं है . अगर आप इस बात को ठीक से समझ नहीं पाये हों तो कुछ उदाहरण हैं..मान लीजिये किसी जवान स्त्री का पति..या जवान आदमी की
पत्नी जिनके छोटे छोटे बच्चे भी है..इनमें से कोई एक मर जाता है तो ब्लाग जगत की तरह भगवान के ब्लाग पर लोग अक्सर इस तरह के कमेंट देते हैं ..अरे ईश्वरबङा अन्यायी है..ये भी नहीं देखा कि छोटे बच्चे थे..भरी जवानी में विधवा हुयी..
अब क्या होगा आदि..ये तो अनर्थ ही है..आदि...मेरा अध्ययन ये कहता है कि नीचे पव्लिक की तमाम परेशानियों(भौतिक ) की जिम्मेदार सरकार है..और देहिक और दैविक तमाम परेशानियों का जिम्मेदार भगवान है..भगवान सुनता नहीं ..भगवान मेरी सुन लो..वृद्ध जो शरीर की जर्जरता आदि से परेशान है..अरे अब उठा ले मुझे आदि कमेंट करते हैं..इस तरह के प्रायः हजारों कमेंट हमने सुने होंगे..और वास्तव में मेरे मन में भी कहीं न कहीं ये बात अवश्य (पर अब नहीं ) थी कि सिस्टम (भगवान के ) में कोई न कोई गङबङी अवश्य हो सकती है..तमाम अनसुलझे अन्य प्रश्नों की तरह ये प्रश्न भी मेरी प्रश्नावली में प्रमुख था . ग्यान के द्वैत मार्गीय विचारधारा के सम्पर्क में मैं 1990 to 2005 तक रहा इनके पास मेरे प्रश्नो का उत्तर नहीं था ..यदि था भी तो इस तरह का कि एक प्रश्न का
उत्तर मिले और बीस नये प्रश्न पैदा हो जांय..इसलिये क्योंकि उत्तर से संतुष्टि नहीं होती थी मैंने उस उत्तर से अपने को कनेक्ट ही नहीं किया..तब जब 2005 to 2010 में मैं अद्वैत ग्यानियों के सम्पर्क में आया मुझे कई प्रश्नों के सटीक उत्तर मिलने लगे..जिनके बाद कोई प्रश्न ही नहीं बन सकता..अद्वैत ग्यान की एक विशेषता है कि यदि प्रश्नकर्ता आप हैं तो उत्तर देने वाले भी आप ही होंगे..वे महान लोग तो आपको उस धारा से सिर्फ़ जोङते हैं जहाँ अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर झिलमिला रहें हैं कहने का अर्थ ये उत्तर मौखिक नहीं होते . इसी सम्बन्ध में कबीर ने कहा है..जब तक न देखो नैनी तब तक न मानों कहनी तो मैंने ऐसे ही प्रश्नों की एक लङी जिसका मूल स्वर ये था कि संसार में तमाम विषमताएं..तमाम तरह की उलझनें..और परेशानियां क्या ये सिद्ध नहीं करती कि या तो कोई भगवान है ही नहीं और यदि है भी तो उससे संविधान बनाने में भूल हुयी है..या फ़िर वो आततायी की तरह मनमानी करने वाला है .
परम स्वतंत्र न सिर पे कोई . भावहि मनहि ,करो तुम सोई ..या तो भगवान इस तरह का मस्तमौला है जैसे अपन लोग कहते हैं कि अपना काम बनता भाङ में जाय जनता..आदि . इस तरह की तमाम बातें रखते हुये मैंने जोरदार लहजे में कहा कि ..निसंदेह यह भूल है..? तब उन संत ने कहा..कि ये भूल नहीं रूल है..तेरी सत्ता के बिना हिले न पत्ता.. खिले न एक हू फ़ूल ..हे मंगल मूल..बेटा कमी भगवान या उसके संविधान में नहीं है तुझमें है.. तू स्वय से स्वयं को देख...आप यकीन नहीं करेगें मात्र इतने वचनों से ही मेरा अग्यानवत भ्रम रूपी किला किसी जर्जर भवन की तरह ढह गया . इसी से मिलता जुलता एक प्रसंग याद आ गया जो आपसे शेयर कर रहा हूँ .
चार बिलकुल निकम्मा इंसान थे जिन्हें कोई काम करना पसंद ही नहीं था..बस मुफ़्त की खाने को मिले और पङे रहो यही उनकी जिंदगी का परमलक्ष्य था . किसी सुयोगवश वे घूमते फ़िरते एक दयालु ह्रदय महात्मा की कुटिया पर पहुँचकर कुछ दिन रहे और चन्दन विष व्यापे नहीं लपटे...वाली बात चरितार्थ करते हुये महात्मा ने उन्हें कुछ ग्यान रूपी शीतलता प्रदान की . कुछ दिन रहने के बाद महात्मा जी उन्हें दीक्षा दी और इस तरह वे उनके शिष्य बन गये . इसके कुछ दिन बाद वे पुनः भ्रमण पर निकल गये और चलते चलते एक ऐसे राजा के राज्य में पहुँच गये जिसे कविता , कवि और कवि सम्मेलन करवाने में बेहद आनन्द आता था . राज्य का पूरा माहौल ही राजा की वजह से कवित्वमय था . ये चारों जब राज्य में पहुँचे तो राजा के इस अनोखे शौक के बारे में पता चला और ये भी पता चला कि यदि कोई कवित्व योग्यता रखता है तो इस राज्य में उसकी जीवन भर मौज ही मौज है..बस राजा को कविता सुनाओ और मुफ़्त में हर तरह के शाही मजे लूटो..ये मूरखमती तो थे ही बिना सोचे विचारे राजा के
दरवार में हाजिर हो गये और अपना परिचय एक अनाम गुमनाम राजा (जिसका वास्तव में कोई अस्तित्व ही न था ) के राजकवि के रूप में दिया . ये कहना ही था कि चारों की शाही खातिरदारी शुरु हो गयी..चारो एक दूसरे को देखकर मुस्कराये..ये खूब उल्लू मिला..तीन दिन बाद राजदरवार में कविता पाठ का आयोजन हुआ तो चारो की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी क्योंकि वे कविता करना जानते ही नहीं थे..जबकि राजा इन नये "राजकवियों" का कविता पाठ सुनने को बेहद उत्सुक था . तब चारों ने एक सलाह बनाई और महीना भर तक मौज उङाने का प्लान तैयार करते हुये राजा को बताया कि राजन हम इस समय देवी सरस्वती की एक विशेष साधना में लगे हुये हैं इसलिये महीना भर तक कविता पाठ नहीं कर सकतेउसके बाद हम आपको दिव्य कविता सुनायेंगे..तब तक हमें किसी प्रकार डिस्टर्ब न किया जाय .
राजा और भी प्रभावित हो गया उसने चारों के लिये बङिया इन्तजाम के आदेश दिये...ये चारों मन में ये विचार बनाये हुये थे कि पचीस दिन मौज उङाओ और उसके बाद चुपचाप खिसक लेंगे ये राजा वैसे भी एक नम्बर का उल्लू है ...इस तरह बीस दिन गुजर गये..राजा इनका बेहद ध्यान रखता था तब मन्त्री आदि कुछ दरवारियों ने राजा से शंका जाहिर की महाराज ये किसी भी एंगिल से कवि नहीं लगते हाँ हरामखाऊ बिना प्रयत्न के ही लगते हैं..राजा को ये बात जमी और उसने उन पर निगरानी बैठा दी कि अगर ये भागने की कोशिश करें तो तुरन्त गिरफ़्तार कर लिया जाय और अगर ये झूठे निकले तो इन्हें फ़ांसी पर लटका दिया जाय..विद्वान मन्त्री ने कूटनीति का सहारा लेते हुये ये बात दस दिन पहले ही चारों तरफ़ चर्चा के रूप में फ़ैला दी जो एक दूसरे के मुँह से होते हुये इन चारों के कान तक जा पहुँची अब तो चारों को काटो तो खून नहीं बाली बात हो गयी मौज की जगह हर वक्त फ़ांसी का फ़ंदा नजर आने लगा..क्या करें क्या न करें..निगरानी करते हुये सैनिक यमदूत से नजर आते..आखिरी दिन वे टहलने गये..फ़ांसी स्पष्ट नजर आ रही थी..तब उनमें से एक ने सुझाव दिया आओ कविता खोजने की कोशिश करते हैं चारों बस्ती से बाहर एक सङक पर टहल रहे थे और कविता खोजने की कोशिश कर रहे थे..तब उनमें से एक चिल्लाया मुझे मिल गयी.. मुझे कविता मिल गयी..तीनों ने उसकी ओर देखा तो उसने एक औरत की तरफ़ इशारा किया जो अपने सिर पर पीपल काट कर ले जा रही थी और बोला . कविता है..."पीपर लाये नारि.."
तब तक दूसरा चिल्लाया मुझे भी मिल गयी. उसने जामुन का वृक्ष जो फ़लों से लदा था उसकी और उंगली दिखाते हुये कहा.." जामन लगी अपार " अब तीसरा भी चिल्लाया . मुझे भी मिल गयी .उसने एक गूलर के वृक्ष की तरफ़ इशारा किया..." ऊमर कबहु थिर न रहे "
(गूलर के अनेक नामों में से उसका एक नाम " ऊमर " भी होता है . गूलर की एक खासियत होती है यदि आप कभी इस पेढ के नीचे या पास खङे हुये होंगे तो आपने देखा होगा कि प्रत्येक दो सेकेन्ड में एक दो या तीन चार गूलर टप टप गिरते रहतें हैं यह क्रम हमेशा चलता रहता है . इसी हेतु उसने कहा कि गूलर में थिरता नहीं होती ) तभी चौथा भी बोला..मुझे भी कविता प्राप्त हो गयी.." तापर बङ गयी रार " उसने तापर वृक्ष पर लिपटी हुयी ढेरों रार ( अमरबेल ) की तरफ़ इशारा किया .
( तापर भी एक वृक्ष होता है..और " रार " अमरबेल को कहते हैं इसको रार इसलिये कहते हैं क्योंकि ये झगङे की तरह थोङे से सहारे में बङती ही चली जाती है . इसकी अपनी कोई जङ नहीं होती..पत्ते आदि नही होते बस चाऊमीन जैसे लम्बे लम्बे पीले धागे पेढों पर लिपटे रहते है और फ़ैलते ही चले जाते हैं..यधपि इसके औषधीय उपयोग बहुत हैं परन्तु दैनिक जीवन में इसका सामान्य उपयोग एक भी नहीं है..(जो लोग स्टीम बाथ के शौकीन हैं वे यदि पानी में इसको लगभग तीन सौ ग्राम डाल दें और फ़िर चेहरे को छोङकर अन्य शरीर पर इसकी भाप लें तो ये नस नाङियों को स्वच्छ कर देती है रक्त का प्रवाह बेहतर करती है..कई लोगों का इससे रंग भी निखर कर गोरा हो जाता है..त्वचा की समस्याओं में भी लाभप्रद है..स्टीम बाथ के बारे में कई लोगों की धारणा है कि इसको घर पर साधारण
तरीके से नही ले सकते . ऐसा नहीं है आप एक छोटे स्टूल या छिद्रयुक्त कुर्सी पर केवल चढ्ढी पहनकर या चाहे तो वो भी न पहनें..एक बङा कपङा ओङकर बैठ जाये..और उसी में भाप का बर्तन रखकर उसका मुँह थोङा ही खोलें ये स्नान कमाल का फ़ायदेमंद है..हाँ इसको करते समय सिर पर कपङा बांधना न भूले.)..खैर संभवतः तभी किसी ने चिढ में इसका नाम रार (झगङा) रख दिया होगा .
इस तरह हमारे चारों कवि भाईयों को कविता मिल गयी और वे आश्वस्त हो गये कि अब तो बच ही जायेंगे . नियत समय पर चारों ने कविता सुनायी .
एक - पीपर लाये नारि
दो - जामन लगी अपार
तीन - ऊमर कबहु थिर न रहे
चार - तापर बङ गयी रार
कविता सुनकर सब हँसने लगे..तब राजा ने कहा प्रिय कवियो इस का अर्थ भी स्पष्ट करें..अब चारों एक दूसरे का मुँह ताकने लगे अर्थ बताने की समस्या आ सकती है इसकी तो उन्होनें कल्पना भी नहीं की थी..वे सिर झुकाकर लज्जित से नीचे देखने लगे..कुछ ही देर में राजा ने उन्हें फ़ांसी पर लटकाने का आदेश कर दिया..आदेशानुसार फ़ांसी कल दिन में होनी थी..उन्हें गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया...चारों जेल में फ़ांसी के फ़न्दे पर लटकने की कई तरह से कल्पना कर रहे थे..तभी अंतिम समय में उन्हें उस महात्मा याने अपने गुरु के वचन याद हो आये ..जब कहीं कोई उम्मीद न हो ऐसी मरने के समान स्थिति में भी गुरु ऐसे बचा लेते हैं जैसे कोई बेहद मामूली बात हो ..उस समय तो उन्हें ये बात हास्यापद लगी पर अब जाने क्यों महत्वपूर्ण लगने लगी और वे एकटक होकर गुरु को याद करने लगे और प्रार्थना करने लगे कि गुरु कैसे ही उन्हें फ़ांसी से बचा लें..इस समय उनकी स्थिति चीर हरित द्रोपदी और ग्राह के चंगुल में फ़ंसे गजराज जैसी थी..आस वास दुविधा सब खोई..सुरति एक कमल दल होई..इसका अर्थ ये है कि उनकी समस्त आशा इस बिन्दु पर आकर केन्द्रित हो गयी कि अब उन्हें कोई अगर बचा
सकता है तो वे गुरु महाराज ही हैं .
नियत समय पर जैसे ही फ़ांसी का वक्त आया..वास्तव में उनकी प्रार्थना कामयाव हो गयी..एन वक्त पर महात्मा प्रकट हो गये (आ गये ) और हाथ उठाकर कहा .ठहरो.. राजन इन्हें किस अपराध में मत्युदन्ड दिया जा रहा है..?
राजा ने उनके झूठ के बारे में बताया...महात्मा ने कहा...राजन इनकी कविता के भाव बेहद गहराई युक्त है और इसका प्रसंग भी धार्मिक है...राजा ने चौंककर महात्मा को देखा..
महात्मा ने कहा ..राजन कविता और उसका मर्म सुनिये .
पी पर लाये नारि . जा मन लगी अपार . ऊमर कबहु थिर न रहे . तापर बढ गयी रार
सुनिये राजन...ये मंदोदरी और रावण के बीच का प्रसंग है..पी पर लाये नारि यानी पिया परायी औरत घर ले आये...जा मन लगी अपार...अर्थात सीता उसके मन में बसी हुयी थी ऊमर कबहु थिर न रहे..अर्थात जिंदगी का कोई भरोसा नहीं..यौवन शीघ्र ही विदा हो जाता है...तापर बङ गयी रार..मंदोदरी बोली हे पिया एक औरत के पीछे इतना बङा युद्ध उचित नहीं हैं..राजा संतुष्ट हो गया . चारों को छोङ दिया गया..लेकिन आगे के लिये राजा के रोकने पर भी चारों नहीं रुके और गुरु के साथ ही निकल आये..राजा ने उन्हें ससम्मान भेंट देकर विदा किया|
कबिरा हरि के रूठते गुरु के शरणे जाय..कह कबीर गुरु रूठते हरि नहि होत सहाय .
कबिरा वे नर अन्ध हैं गुरु को कहते और ..हरि के रूठे ठौर है गुरु रूठे नहीं ठौर .

2 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

अच्छी जानकारी।

विजयप्रकाश ने कहा…

एक अच्छी बोध कथा के लिये धन्यवाद

मेरे बारे में

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।