रविवार, मई 16, 2010

इस हमाम में सब नंगे हैं.. ?

मैं सदियों से दवी कुचली शोषित नारी के उत्थान का पक्षधर हमेशा ही रहा हूँ लेकिन
जिस तरह का नारी उत्थान आज देखने को मिल रहा है . मैं उसका हिमायती हरगिज
नही हूँ स्त्री हो या पुरुष ये समाज के नियत और धार्मिक मर्यादाओं से अधिक शोभा पाते
हैं और मर्यादा च्युत होने पर हम ही लोग उन्हें धिक्कारते भी हैं . ऐसी स्थिति में क्या ये नहीं लगता कि कहीं न कहीं कोई त्रुटि अवश्य है..आपने उत्तर प्रदेश में प्रचलित एक
कहावत शायद सुनी हो " रांड रंडापा तब काटे जब रडुआ काटन देंय " इसका अर्थ जो
लोग न समझ पाय उनके लिये अर्थ बता रहा हूँ..कोई औरत जब विधवा हो जाती है तो
उसके लिये रांड शब्द का प्रयोग करते हैं..इस कहाबत का आशय यही है कि यदि विधवा
औरत अपने मृतक पति की याद के सहारे ही शालीनता से अपना जीवन काटना चाहे
तो आसपास के रंडवे या अन्य कामभ्रष्ट लोग उसको खाली पङे प्लाट की तरह कब्जाने की कोशिश करते है और तरह तरह के उपायों से उसकी यौनेच्छा या कामपिपासा भङका ही देते हैं..अंत में वो हथियार डाल देती है और फ़िर खुलकर उन्मुक्त यौन जीवन जीती है
ये नई अवतरित हुयी नगरवधू न सिर्फ़ आसपास की विवाहित और अविवाहित युवतियों के लिये उन्मुक्त यौन सम्बन्धों के प्रेरणा रूपी अध्याय खोल देती है..वरन ये अकेली मछली पूरा तालाब ही गन्दा कर देती हैं..क्योंकि.".जानत सब सबकी.. कहे को किनकी.".इस नियम में हमारा वर्तमान समाज जी रहा है अतः ऐसी नगरवधू समाज से बहिष्कारित होने के बजाय ठाठ से हमारे मुहल्ले में हमारी कालोनी में ही रहती है...हमारे घरों में उसका उठना बैठना होता है..और वह आसानी से अपने विचार हाव भाव हमारे घर की महिलाओं पुरुषों..जवान लङकों में सम्प्रेषण कर पतन के नये अध्याय खोलने में कामयाब हो जाती है .श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि युद्ध के परिणाम अच्छे नहीं होंगे जो सैनिक मारे जायेंगे उनकी पत्नियों के आचरण से वर्णसंकरता पैदा होगी..अब प्रश्न यह है कि विधवा होना किसी औरत का निजी दोष तो नहीं है..और फ़िर दोहरी मानसिकता में जीते समाज के लोग एक तरफ़ तो उसका भरपूर उपयोग करना चाहते हैं दूसरी तरफ़ समाज के तेजी से होते नैतिक पतन पर विचार
गोष्ठियां करते हैं . आजकल तो इस खुली बेशर्मी को भी आधुनिकता का नाम दिया जाता है लेकिन मुझे किसी पुराने कवि की पक्तिंयों का अर्थ याद आता है जिसमें उसने कहा था कि नारी के स्तन आदि यदि कुछ कुछ झलकते हों तो नारी की शोभा कई गुना बङ जाती है..
यानी सौन्दर्य की झलक मर्यादा में हो..तुलसीदास ने भी कहा है कि ..विधुबदनी सब भांति संवारी..सोहे न बसन बिना बरु नारी..यानी औरत कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो बस्त्रों के बिना शोभा नहीं पाती..इस सम्बन्ध में विषयांतर करते हुये एक मजेदार मगर बेकार बात आपसे शेयर कर रहा हूँ..अभी बहुत सालों के अंतराल के बाद जब दुबारा लेपटाप लिया तो एक email बना कर सब दोस्तों को सूचना दी कि दुबारा मैदान-ए-जंग में आ गया हूँ ..उफ़ ..तब मुझे नहीं मालूम था कि वे मेरी क्या गत बनाने वाले हैं..मेरे दोस्त जानते हैं कि मैं singal हूँ..सो उन्होनें मेरे email का दुरुपयोग करते हुये कई adult और dating साइटस पर मेरा रजिस्ट्रेशन कर दिया..और अगले दिन से ही रीना, मीना ,रागिनी, निशा आदि के मेसेज आने लगे जिनमें लिखा होता था कि (अरे बेबकूफ़) माउस पर ही उंगलिया घुमाता रहेगा या...?...मैं हैरान ..परेशान..यार मैं इतना पापुलर हूँ कि कुछ ही दिनों में इतनी सुन्दरियां मुझे जान गयी और बङी अजीव अजीव भाषा में "इनवाइट" भी कर रही हैं "विन्क" शब्द का अर्थ भी मुझे इन्ही इंटरनेट देवियों द्वारा ही ग्यात हुआ..अब जैसे ही सुबह email खोलता इन अनेक अनदेखी प्रेमिकाओं के प्रेमपत्रों से मेरा इनबोक्स भरा मिलता ...हद हो गयी यार..लेकिन काजर की कोठरी में कैसो हू सयानो जाय..मन नहीं माना
सोचा एक बार इनके घर ( सायट पर) जाकर देखते हैं कि ये कौन से अर्थ earth के लोग हैं वहाँ जाकर तो बुद्धी ही घूम गयी साहब..हमसे कहा गया कि दस सदस्य आपको पसन्द करते हैं किससे मिलेंगे ? रीना को चुन लिया..हसरत हुयी कि इसका चाँद सा मुखङा देखते है...लेकिन गजब..वो वास्तव में दूसरे earth की थी हमारे यहाँ जैसा सुन्दरियों का वक्ष होता है ..वैसा तो उसका मुख था..रागिनी तो उससे भी हटकर अलग ग्रह की थी..उसका मुख बिलकुल नितम्ब जैसा था..अन्य मुखों की बात करना हमारी भारतीय परम्परा के अनुकूल नहीं है..
हमारे जैसे मुख वाले मुख बहुत कम देखने को मिले..क्योंकि बहुत दिनों से टी. वी. नही देखा और न्यूजपेपर भी ठीक से नहीं पढ पाया..इसलिये लगा कि nasa ने कोई नया ग्रह खोज ही लिया या udan tastari वाले प्राणियों ने vasundhara पर धावा बोल दिया..सही बात क्या है ये google की नाली में कीवर्ड टायप कर करके जानने की कोशिश कर रहा हूँ .दरअसल कामवासनाओं के अजीव मायाजाल की बहस का कभी भी और कहीं भी कोई अंत नहीं हो सकता मैं अपने दोस्तों में अक्सर इसी बात को लेकर आलोचना का पात्र बन जाता था क्योंकि मेरा मानना था कि अगर तुम दूसरी लङकियों को देखकर सीटी बजाते हो छींटाकसी करते हो तो तुम्हें इस बात के प्रति भी सहनशील होना चाहिये कि दूसरे लङके भी तुम्हारी बहन के साथ यही व्यवहार करेंगे...इस सम्बन्ध में एक बेहद दिलचस्प किस्सा याद आता है..
एक लङका हमारे ग्रुप में नया नया दोस्त बना था और पूरा heman था . हम लोग अक्सर घूमने जाते और बालाओं को देखकर (जिनमें मैं कभी शामिल नहीं होता था दरअसल मेरी जिन्दगी की कहानी ही अलग तरह की है ) छींटाकसी करते थे जिनमें वह लङका भी शामिल होता था..एक दिन हम सब लोग जा रहे थे हमारे काफ़ी आगे एक लङकी जा रही थी सब लोग लङकी पर छींटाकसी करने लगे..उस लङके पर जिसका नाम योगी ( योगेश ) था किसी का ध्यान नहीं था..मैंने देखा वह असमंजस और अजीव पेशोपश में था और चुप था जैसे समझ न पा रहा हो कि क्या करे..तभी एक लङके राहुल ने सारी मर्यादाएं लांघते हुये एक गन्दा कमेंट किया और योगी ने झपटकर उसका कालर पकङते हुये जोरदार मुक्का उसके मुँह पर मारा और दाँत पीसकर बोला stupid..she's my sister..सारे लङकों पर मानों घङों पानी पङ गया किसी को कुछ न सूझा..कि क्या करे और क्या कहे...ये तो अच्छा था कि नेहा (राहुल की बहन) ने कमेंट की कोई परवाह न करते हुये पलटकर नहीं देखा था वरना वो ऐसे लङके की बहन थी
जिसे दादा या don भी कहते हैं और don हमारे साथ ही था इस तरह एक बङी ( मगर आधी ) शरमिंदगी से हम लोग बच गये..और लङकों ने इस गलती के प्रायश्चित स्वरूप बाद में नेहा के पैर छुये..(ताकि राहुल के दिल में कोई मलाल न रहे ये इस बात का भी प्रमाण था कि योगी की बहन उनकी अपनी बहन जैसी ही है)हालांकि नेहा को इस बङी और शर्मनाक घटना का कभी कोई कैसा भी पता न चला .उस दिन से योगी मेरा बहुत आदर करने लगा क्योंकि उसके सामने या आगे पीछे मैं इस तरह के कृत्यों से हमेशा दूर रहता हूँ यह बात वह भली भांति जानता था.. अब चलते चलते एक बात और..एक भारत का संत एक बार विदेश भ्रमण पर गया वहाँ उसने देखा कि एक युवती एक कब्र पर पंखे से हवा कर रही है..पूछने पर उसने बताया कि यह कब्र उसके हसबेंड की है..संत का ह्रदय अत्यंत प्रसन्न हो गया..ओ हो देवी तुम्हारा पतिप्रेम धन्य है..ह्रदय गदगद हो गया तुम्हारे दर्शन पाकर...मैं तो समझता था कि सीता सावित्री जैसी नारियां पवित्र भारतभूमि पर ही हैं...वो ऐसा है स्वामी जी " युवती ने कहा " कि दरअसल भावावेश में मैं अपने मृत पति को वचन दे बैठी कि जब तक उसकी कब्र की मिट्टी नहीं सूख जायेगी ..तब तक मैं दूसरा विवाह न करूँगी...? हमने अच्छा जानकर तुमसे करली क्या दो बात..आपने समझा हो गयी बिन बादल बरसात ये तो..हद कर दी आपने..?

2 टिप्‍पणियां:

Rajeev Shreshtha ने कहा…

मैंने प्रायः यह देखा है कि ब्लागर्स भाई अथवा अन्य पाठक
अक्सर नई पोस्ट पढने में ही रुचि लेते हैं पर इस सम्बन्ध
में मैं एक बात कहना चाहता हूँ कोई महत्वपूर्ण पुरानी पोस्ट
जो आपने पढी नहीं आपके लिये नयी ही है और हो सकता
है उसमें वही विषयवस्तु हो जो आप खोज रहें हों इसलिये
किसी भी ब्लाग पर एक निगाह सभी शीर्षकों पर डालेंगे
तो हो सकता है आपको कोई दुर्लभ जानकारी मिल ही जाय
satguru-satykikhoj.blogspot.com

नीरज यादव मऊ( यू.पी.)भारत ने कहा…

आप का लिखा हुआ कहानी मुझे बहुत अच्छा लगा धन्यवाद

मेरे बारे में

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।