गुरुवार, सितंबर 02, 2010

अघोरवासा की एक रात 2


शाम के सवा पाँच बज चुके थे ।
और झूलीखार स्थिति ‘अघोरवासा’ अभी भी यहाँ से पैंतीस किलोमीटर दूर था ।
जबकि शमशान के आगे खङंजा जैसी भी कोई सङक नहीं थी ।
पर एक बात जो राहत देने वाली थी । वह ये थी कि शमशान के रास्ते की अपेक्षा वो कच्चा दङा अधिक चौङा और गाङी चलाने के लिये सुगम था । लगभग दो किलोमीटर आगे बढ़ते ही इस तरह गाढ़ा अन्धकार हो गया, मानो अमावस की काली रात हो । और इसकी खास वजह बेहद घने वे पेङ थे, जो झूलीखार में बे तादाद थे ।
पर इससे बेखबर बोर सा महसूस करती हुयी नतालिया और सवेटा मानो उसके साथ किस किस खेल रही थीं । जबकि वह आने वाली परस्थितियों को लेकर चिंतित था । और ये चिंता अगर वह उन तीनों के सामने भी जाहिर कर देता, तो उनका मनोबल और भी टूट सकता था । अब उसे प्रसून की याद आ रही थी कि अगर वो साथ होता, तो वह काफ़ी हद तक निश्चिन्त रह सकता था । बल्कि एकदम ही निश्चिन्त रह सकता था । पर प्रसून बाबाजी के साथ तिब्बत गया था ।
अघोरवासा से तीन किलोमीटर पहले ही कुछ कुछ निर्वस्त्र अघोरी और अघोरिंने नजर आने लगे । नतालिया वीडियो कैमरा लेकर तेजी से उन्हें शूट कर रही थी, और सवेटा के हाथ में स्टिल कैमरा था । लेकिन ड्राइवर रतीराम अब शक्ल से ही भयभीत लग रहा था ।
अभी वे गाङी के अन्दर ही थे कि तभी गाङी के इंजन की आवाज से आकर्षित होकर करीब पचीस अघोरियों का एक दल गाङी के सामने आ गया, और स्पेशियो की खिङकी में जोरदार डंडा मारा ।
इस स्थिति के बारे में उसने तीनों को पहले ही समझा दिया था ।
- पंगा । उसके मुँह से निकला ।
फ़िर उसने प्रसून भाई की एक कूटनीति अपनाते हुये बेहद कामुकता से उन छह अघोरिनों को देखा, जो अर्धनिर्वस्त्र सी अघोरियों के बीच खङी थीं, और स्पेशियो का द्वार खोलकर अकेला ही बाहर निकल आया । वे सब के सब जैसे बेहद अजीब निगाहों से उसे देख रहे थे ।
वह लगभग टहलने के अन्दाज में उस अघोरी के पास पहुँचा ।
जो उनका लीडर मालूम होता था, और जिसने गाङी में डंडा मारा था ।
फ़र्स्ट इम्प्रेस, इज द लास्ट इम्प्रेस ।
बिना किसी चेतावनी, बिना कोई बात किये, उसने एक भरपूर मुक्का उस तगङे अघोरी के मुँह पर मारा, और रिवाल्वर उसकी ओर तान दिया । साथ ही गाङी की तरफ़ इशारा किया, जहाँ खिङकी खोले खङी दो विदेशी हसीनायें किसी फ़िल्मी पोस्टर की तरह उनकी तरफ़ पिस्टल ताने खङी थीं । और न चाहते हुये भी, उनकी वह मुद्रा देखकर, उस परिस्थिति में भी उसकी हँसी निकल गयी ।
- इसकी गोली । फ़िर वह बेहद जहरीले स्वर में बोला - मन्त्र से पहले काम करती है, और वो ये भी नहीं देखती कि उसके द्वारा मरने वाला कौन है?
निश्चय ही उसका ये तरीका काम कर गया, और अघोरियों का वह दल चिल्लाता हुआ ‘ऊ भाला..छू चा’ आदि जैसे आदिवासियों की तरह शब्द निकालता हुआ अघोरवासा की तरफ़ भागने लगा । मनोहर की गाङी भी उनके पीछे पीछे दौङने लगी, और तीन किलोमीटर का निर्विघ्न सफ़र तय करके अघोरवासा पहुँच गयी ।
लेकिन अघोरवासा में जैसे पहले से ही कोहराम मचा हुआ था ।
और लगभग सत्तर अघोरियों का एक दल भाला, त्रिशूल, लाठी आदि लेकर जैसे उनके स्वागत के लिये तैयार था । दरअसल उन्हें उसकी निर्भयता को लेकर बेहद हैरानी हो रही थी ।
अगर अघोरियों की तांत्रिक मांत्रिक आदि शक्ति को नजरअन्दाज कर दिया जाय, तो वे भी अन्य आम इंसानों की तरह ही होते हैं । और वे कोई आसमान से भी नहीं टपकते । बल्कि स्त्री पुरुष के साधारण सम्भोग से ही पैदा होते हैं । नंगे होकर, गर्म तेल चुपङ कर, बदन पर चिता आदि की राख मल लेने, और जटाजूट बढ़ा लेने से कोई आदमी शक्तिशाली नहीं हो जाता । उसका बाह्य रूप डरावना अवश्य हो जाता है । पर अन्दर से वह एक साधारण इंसान ही होता है ।
अब क्योंकि एक आम आदमी इस तरह के माहौल का, इस तरह की तांत्रिक मांत्रिक गतिविधियों का अभ्यस्त नहीं होता । इसलिये वो इन्हें देखकर अक्सर भयभीत हो जाता है । और ये मिट्टी के शेर इसी बात के अभ्यस्त भी हो चुके होते हैं कि प्रत्येक आदमी इन्हें देखकर न सिर्फ़ भयभीत हो, बल्कि दन्डवत भी करे । लेकिन यहाँ ठीक उल्टा ही हो रहा था, और शायद उनके जीवन में उन्हें पहले कभी अनुभव नहीं हुआ था । इसलिये वे अचम्भित से थे ।
क्योंकि अपनी फ़क्कङ और मस्त जिन्दगी में रात को कच्ची शराब पीकर, बीसियों जंगली मुर्गा मुर्गी तीतर बटेर आदि को उमेठ कर मार डालने वाले, फ़िर उनको आग पर भूनकर उनकी हड्डियां मांस आदि चूसकर ‘हू हुल्ला’ जैसा हुङदंग करने वाले, वे नंगधङंग अघोरी अक्सर ही उन्मुक्त उन्मादी कामवासना का खेल खेलते थे, और जैसे हर बंधन से निरबंध थे ।
पर आज जैसे पूरा मामला ही बदल गया था, और वे अपनी बाईयों के सामने खुद को बेइज्जत महसूस कर रहे थे, और उन चारो को तुरन्त मार डालना चाहते थे । ताकि दो कोमलांगियों और दो हट्टे कट्टे पुरुषों का मांस खाकर वे अपने आपको त्रप्त कर सकें, और फ़िर जश्न मनायें ।
उसने एक सिगरेट सुलगायी, और फ़िल्मी स्टायल में उंगलियों में रिवाल्वर घुमाता हुआ उनके सामने टहलता हुआ उनके अगले कदम की प्रतीक्षा करने लगा । उसके मना करने के बाद भी नतालिया और सवेटा स्पेशियो से बाहर निकल आयी । पर रतीराम वहीं बैठा रहा ।
शायद उसे अपनी जान कुछ ज्यादा ही प्यारी थी ।
अघोरवासा का यह मुख्य स्थान लगभग छह बीघा लम्बे चौङे फ़ील्ड के रूप में था । जिसमें स्थान स्थान पर कमरे और गुफ़ायें आदि बनी हुयी थी । जगह जगह छोटी छोटी होलियों जैसे अलाव बने हुये थे, और दस बारह कुत्ते, कुछ सुअर, मुर्गे आदि पक्षियों के दङबे भी वहाँ थे । फ़ील्ड के एक साइड में गंगा नहर कुछ कुछ गोलाई के आकार में बलखाती हुयी सी निकल जाती थी ।
वह टहलते हुये कुछ कुछ आशंकित सा अगले पलों के बारे में सोच रहा था । दरअसल कोई भी बखेङा खङा करके, पंगा करके, यदि वह हीरोगीरी का रुतबा जमाने में कामयाब भी हो जाता, तो इससे कोई फ़ायदा होने के बजाय, उल्टा उसे नुकसान ही होना था । इसलिये वह अघोरियों के उस झुंड में किसी परिचित चेहरे को ढूंढ़ने की कोशिश कर रहा था कि तभी दौङकर आते हुये भौंकते कुत्तों ने उसका काम आसान कर दिया ।
नतालिया और सवेटा चीखकर गाङी में चढ़ गयीं ।
पर वह कुत्तों को देखकर अजीब से अन्दाज में मुस्कराया ।
यानी आधा किला फ़तह ।
फ़िर वही हुआ ।
कुत्ते पहले तो उस पर भौंके । फ़िर उनमें से कुछ कुत्ते पास आकर कूंकूं करते हुये उसके पैर चाटने लगे । जाहिर था, कुछ पुराने कुत्तों ने उसे पहचान लिया था । अघोरियों का दल ये देखकर आश्चर्यचकित रह गया । तभी उसे थोङी राहत और मिली । जब धन्ना और सुखवासी अघोरियों के उस झुंड से निकल कर उसके पास आये, और दुआ सलाम करने लगे ।
धन्ना और सुखवासी सात साल से अघोरपंथ में शामिल हुये थे, और अभी उन्हें सिद्धि आदि में कोई उपलब्धि नहीं हुयी थी । जब वह पिछली बार यहाँ आया था, तब उसकी मुलाकात उनसे हुयी थी । और उस समय यहाँ का मुख्य महन्त मोरध्वज बाबा था । धन्ना ने बताया कि मोरध्वज बाबा चम्बा की तरफ़ चला गया था, और इस समय यहाँ की गद्दी मुंडास्वामी संभाले हुये था ।
मुंडा स्वामी उस समय धूनी पर बैठा हुआ था ।
उन्हें आपस में बातें करते हुये देखकर नतालिया और सवेटा भी उसके पास आ गयी थीं । और आक्रमण करने को लगभग तैयार अघोरी भी कुछ समय के लिये रुककर हैरत से यह नजारा देख रहे थे ।
सुखवासी ने वापस अघोरियों के झुंड के पास जाकर उन्हें बताया कि वह यहाँ का पुराना वाकिफ़ हैऔर मोरध्वज का जानकार है । इसे सुनकर अघोरियों के अस्त्र शस्त्र तो नीचे झुक गये । पर वे अभी भी बदले और अपमान की आग में जल रहे थे ।
धन्ना ने जोर देकर कहा कि वह द्वैत का साधक है, और तुम्हारी अघोर विद्या उसके आगे काम नहीं करेगी । इस बात ने उन पर गहरा असर तो किया । पर उसका साधुओं से अलग आधुनिक स्टायल देखकर उनका दिल ये मानने को कतई तैयार नहीं था कि कोई साधु ऐसा भी हो सकता है ।
तभी मुंडास्वामी धूनी पर से उठकर गुफ़ा से बाहर आया ।
और एक विशाल चबूतरे पर पंचायत होने लगी । धन्ना और सुखवासी उसका प्रतिनिधित्व कर रहे थे । फ़िर एक घन्टे की लम्बी बातचीत के बाद सुलह समझौता हो गया । पर मुंडा का अहंकार ये मानने को कतई तैयार न था कि मनोहर एक अच्छा और उसकी तुलना में बङा साधक हो सकता है । दूसरे उसकी नजरें साफ़ साफ़ बता रही थी कि वो नतालिया और सवेटा के प्रति क्या सोच रहा है? वास्तव में यदि उसके पास पिस्तौल और अलौकिक शक्ति न होती, तो धन्ना के कहने के बाबजूद भी वे दोनों लङकियों पर टूट पङते ।
लेकिन इस सबके बाद भी अपने अहं से मजबूर मुंडा ने तीन बार चुपचाप शक्तिशाली मन्त्र उस पर चलाने की कोशिश की । जो उसने पलक झपकते ही निष्क्रिय कर दिये । तब मुंडा के दिल में उसके लिये स्वतः आदर और दोस्ताना जाग उठा । दरअसल अब वह उससे कुछ अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति में सहायता हेतु इच्छुक था ।
रतीराम भी भय छोङकर बाहर निकल आया, और चोर निगाहों से लगभग नग्न सी अघोरिनों को देखने लगा । मनोहर ने उसे स्पेशियो में रखी देशी शराब का बङा थैला बाहर लाने को कहा, और फ़िर शराब के पाउच जमीन पर फ़ैला दिये ।
इसके साथ ही वहाँ दोस्ताना माहौल में जश्न शुरू हो गया ।
और कुछ ही देर में नशे में लङखङाते हुये अघोरी उन्मुक्त हो उठे ।
वे मुर्गा तीतर आदि पक्षियों को पकङ कर हवा में उछालते, और जीवित अवस्था में ही उसके पंख आदि नोचते । फ़िर अघोरी अघोरिनें उसको बाल की तरह एक दूसरे की तरफ़ उछाल कर वालीबाल जैसा खेल खेलते । इसके बाद पक्षी को घायल अवस्था में ही जलती आग पर लटका देते ।
निर्दोष और असहाय पक्षियों का करुणक्रन्दन सुनकर उसे इतना गुस्सा आ रहा था कि एक एक गोली इन सबके सीने में उतार दे । पर वह कहाँ कहाँ और कितनों को मार सकता था । इस अखिल सृष्टि में ऐसी लीला न जाने कितने अनगिनत स्थानों पर हो रही थी ।
उसे एक दोहा याद हो आया -
दया कौन पर कीजिये, निर्दय कासो होय।
साई के सब जीव हैं, कीरी कुंजर दोय॥
अघोरी भले ही अब उससे डर गये थे, और सहमे हुये थे । पर जाने क्यों उसे लग रहा था कि उसके सामने से हटते ही वे नतालिया और सवेटा के कपङे चीर फ़ाङकर अलग कर देंगे । लेकिन इस सबसे बेखबर वे दोनों अपना अपना कैमरा संभाले तत्परता से काम कर रही थी । पक्षियों का भुना मांस नोचते, और शराब के घूंट भरते हुये वे अघोरी अब उन्मुक्त हो उठे, और पश्चिमी देशों की किसी हैलोवीन पार्टी की तरह सेक्स बर्ताव करने लगे ।
फ़िर कुछ देर की उनकी शूटिंग के बाद, चारो पर्यटक मुंडास्वामी और छह अन्य अघोरियों के साथ एकान्त में एक अलाव के सामने बैठ गये, और उनका इंटरव्यू लेने लगे । मनोहर नतालिया के प्रश्न ट्रांसलेट करता हुआ दुभाषिये का काम कर रहा था । रतीराम निर्लिप्त सा बैठा हुआ उत्सुकता से अघोरियों की कामक्रीङा को देख रहा था ।
ये पूरा अघोरी मिशन कवरेज होते होते सुबह के पाँच बज गये ।
और अब अधिकांश अघोरी फ़ील्ड में ही निढाल होकर सो रहे थे ।
मुंडा की एक पर्सनल साध्वी उन लोगों के लिये चाय बना लायी ।
फ़िर ठीक छह बजे वे पूरा पैकअप करके स्पेशियो में बैठ गये ।
मुंडा, साध्वी, और अन्य कई अघोरियों ने बाकायदा विदा करते हुये उन सबका अभिवादन किया, फ़िर चलते चलते मुंडा ने कई बार आग्रह किया कि वह जल्दी ही फ़िर से झूलीखार आये, और खासतौर पर प्रसून जी को साथ लेकर आये, या फ़िर वो ही कभी उससे मिलने उसके घर आयेगा ।
गाङी वापस शहर की ओर जाने लगी ।
नतालिया और सवेटा अपनी जिंदगी की इस रोमांचक रात को लेकर बहुत एक्साइटेड थी, और रतीराम की परवाह किये बिना उसे बारबार किस कर रही थीं । जिसे देखकर वह काफ़ी उत्तेजित सा हो रहा था । उसने प्रसून के बारे में सोचते हुये एक सिगरेट सुलगायी, और हौले हौले कश लगाने लगा ।
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समाप्त

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बहुचर्चित एवं अति लोकप्रिय लेखक राजीव श्रेष्ठ यौगिक साधनाओं में वर्षों से एक जाना पहचाना नाम है। उनके सभी कथानक कल्पना के बजाय यथार्थ और अनुभव के धरातल पर रचे गये हैं। राजीव श्रेष्ठ पिछले पच्चीस वर्षों में योग, साधना और तन्त्र मन्त्र आदि से सम्बन्धित समस्याओं में हजारों लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं।